Thursday, 4 May 2017

ख़ामोश फ़ज़ा थी कहीं साया भी नहीं था,


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  1. ख़ामोश फ़ज़ा थी कहीं साया भी नहीं था,
    इस शहर में हमसा कोई तनहा भी नहीं था,
    किस जुर्म पे छीनी गयी मुझसे मेरी हँसी,
    मैंने किसी का दिल तो दुखाया भी नहीं था ...

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