Wednesday 17 May 2017

ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था,


ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था,
हमे तो सिर्फ नझर मिलाने का शौक था,
पर क्या करे यारो, हम नझर ही उनसे मिला बैठे,
जिन्हे; सिर्फ; नझरो से पिलाने का शौक था !! —

Samne manzil thi, Piche thi aawaz uski...
Rukte to safar chhut jata,
Chalte to usse bhichad jate...
Manzil ki bhi hasrat thi,
Or usse mohabbat bhi... Aye dil ye bata mujko,
Us waqt me kaha jata... Muddat ka safar bhi tha,
Or barso ki chahat bhi thi... Rukte to bikhar jate,
Chalte to dil toot jate... Yun samaj lo k.......
Lagi pyaas gazab ki thi,
Or pani me bhi zaher tha...
Peete to mar jate....
Or na peete to bhi mar jate....



नफरत ही सही तुमने मुझे कुछ तो दिया है!
इतनी बड़ी दुनिया में मुझे तन्हा किया है!

मैं तुमसे शिकायत भी यार कर नही सकता,
रब ने ही वसीयत में, मुझे दर्द दिया है!

तुम मुझको आंसुओं की, ये बूंदें न दिखाओ,
मैंने तो आंसुओं का समुन्दर भी पिया है!

जाने क्यूँ दर्द ज़ख्मों से बाहर निकल आया,
ज़ख्मों का तसल्ल्ली से रफू तक भी किया है!

तुम मुझे कोई उजाला न दिखाओ,
अब मेरा ही दिल मानो कोई जलता दिया है!"

No comments:

Post a Comment