Monday, 1 May 2017

♥♥♥♥♥♥दर्द और तकलीफ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥दर्द और तकलीफ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द और तकलीफ से दो चार होना पड़ रहा है।  
वो गुनाह करके भी खुश हैं, मुझको रोना पड़ रहा है। 

है बुरा जो वक़्त मेरा, सब सहारा खींच बैठे,
आज खुद बैसाखियों पर, खुद को ढ़ोना पड़ रहा है। 

इस क़दर तकदीर भी, मुझसे निभाए दुश्मनी,
दर्द के काँटों पे मुझको, दोस्त सोना पड़ रहा है। 

दूर तक ग़म का मरुस्थल, कौन है जो बूंद देगा,
अपना चेहरा, अपने ही अश्क़ों से धोना पड़ रहा है। 

आज छोटी पड़ रही, शर्मो हया की चादरें,
खुद-ब-खुद इंसानियत का, कद भी बौना पड़ रहा है। 

फेर लीं उसने निगाहें, रौंदकर तस्वीर मेरी,
देखकर उसको किनारे खुद ही होना पड़ रहा है। 

" देव " मुमकिन है जमाना, नाम अपना याद रखे,
बस तभी तो बाजुओं में, जोर बोना पड़ रहा है। " 

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