Monday, 22 May 2017

इस रात के अंधेरे में एक ख़ामोशी बिखरी हैं

इस रात के अंधेरे में एक ख़ामोशी बिखरी हैं ,
न जाने किसने कितनी कलियाँ तोड़ी हैं !
जिन्हें हक़ था खिलके मुस्कुराने का ,
न जाने उनकी हीं ख़ुशबू कितनो ने लूटी हैं !

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