Wednesday, 10 May 2017

हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे

हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे
हम जो किसी दिन सोये तो फिर सोते ही रह जाएगें

वो देखो सामने है, अभी तक नजर में है
बिछड़ा कहाँ से भाई , हमारा सफर में है


शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके मांदे परिंदो को उड़ाता क्यों र्हैं।
वक्त को कौन भला रोक सका है  पगले
सुइयां घडि़यों की तू पीछे घुमाता क्यों है।
स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छांव में बैठ के अंदाज लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने मे है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब, त्याग-तपस्या-पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रष्न उठाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है
देख न चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यों हैं।


बदमस्त वो अल्हड़ सी कुंआरी पलके
रात की जगी नींद सी भारी पलके
उन पलकों पर जब से डाली है नजर
अल्लाह की कसम नहीं झपकी पलके


राज जो कुछ हो इषारों में बता भी देना
हाथ जब उनसे मिलाना दबा भी देना
और वैसे नषा तो बुरी बात है मगर
राहत से शेर सुनना हो तो थोड़ी पिला भी देना


जुंबा तो खोल, नजर तो मिला, जबाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
तेेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढ़ाव
मैं तुझे कैसे पढंूगा मुझे वो किताब तो दे

जहालतो के अंधेेरे मिटा के लौट आया
मैं आज सारी किताबें जला के लौट आया
वो अब भी रेल में बैठी सिसक रही होगी
मैं अपना हाथ हवा में हिलाके लौट आया
बदन था जैसे कहीं मछलियाँ थिरकती थी
वो बहता दरिया थी और मैं नहाके लौट आया
खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहाँ
मैं जिस जमीन को ठोकर लगा के छोड़ आया


हाले दिल सबसे छुपाने में मजा आता है
आप पूछे तो बताने में मजा आता है

चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
रोज तारो की नुमाइष में खलल पड़ता है
उनकी याद आई है साँसो जरा धीरे चलो
धड़कने से भी इबादत में खलल पड़ता है



हर लहजा तिरे पांव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिलकर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ कि जमाना हाई दे

बहुत रोई हूँ हँसना चाहती हूँ
मैं तेरे दिल में बसना चाहती हूँ
दरीचे खोल दे सब अपने दिलके
मैं बदली हूँ बरसना चाहती हूँ


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चाँदनी बनके तेरे दिल में उतर जाऊंगी
तू निगाहों से छुएगा तो निखर जाऊंगी
जिंदगी मेरी नहीं मुझसे संवरने वाली
तू मेरा आइना बन जा तो सवर जाऊंगी

लाली, पावडर और काजल की
चलती फिरती दुकान लगती हो
जब भी मेकअप उतार देती हो
केाई पुराना मकान लगती हो

जुगनुओं को जतन से पाला है, तब कहीं मुष्क भर उजाला है
तुमने ठोकर पर रख दिया दिल को, हमने किस तरह संभाला है

लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो, चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाँद सितारों की महफिल , मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो, तुम साथ रहो, जज्बों में कसक आ जाएगी


हमें आना है हाले दिन सुनाने
तुम्हें किस रोज आसानी रहेगी
किसी का दिल दुखाओगे तो घर में
बहुत रोज परेषानी रहेगी

कभी खुषी से खुषी की तरफ नहीं देखा
एक तेरे बाद किसी की तरफ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतजार लाजिम है
ये सोचकर कभी घड़ी की तरफ नहीं देखा

मोहब्बत का मुकद्दर तो अधूरा था अधूरा है
कभी आसूँ नहीं होते, कभी दामन नहीं होता

किसी से कोई ताल्लुक न दोस्ती न लगाव
फिजूल यूं ही जिदंगी बिता रहा था मैं
तेरी निगाह ने एक काम कर दिया वरना
बहुत दिनों से कबूतर उड़ा रहा था मैं


जो हुक्म देता है वा इल्तिजा भी करता है
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है
तू बेवफा है तो ले इक बुरी खबर सुन ले
कि मेरा इंतजार दूसरा भी करता है

उन्हें ये जि़द है मुझे देखकर किसी को न देख
मेरा ये शौक है की सबसे सलाम करता चलूं
ये मेरे ख्वाबों की दुनिया न सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूं

कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को
बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हूँ
तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है


हाय ये कैसा मौसम आया, पंछी  गाना भूल गये
बुलबुल भूली गज़ल, पपीहे प्रेम तराना भूल गये
जाने हवा चली ये कैसी, कैक्टस उगे गुलाबों में
नफरत पढ़ने लगी पीढि़याँ, खुषबू भरी किताबों में
बम और बारूद की भाषा इतनी  भायी दुनिया की
आग लगाना याद रहा हम आग बुझाना भूल गये

हमें कुछ पता नहीं हम क्यों बहक रहे हैं
रातें सुलग रही है दिन भी दहक रहे है
जबसे है तुमको देखा बस इतना जानते है
तुम भी बहक रहे तो हम भी बहक रहे हैं
बरसात ही नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई जुल्फें और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भौरंा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो, हम भी समझ रहे हैं




          मजाकिया
बुरे समय को देखकर गंजा तू क्यों रोये
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाका होय

तुम्हारी अंगड़ाई से मेरी जान निकल जाती है
मेरी जान तू डी. ओ. क्यों नहीं लगाती है

काजल, पावडर और लाली की
चलती फिरती दुकान नजर आती हो
और जब धो लेती हो मुहँ अपना
केाई पुराना मकान नजर आती हो

नल आने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो
हमने देा दिन से मुँह नहीं धोया अपना
और तुम नहाने की बात करते हो


ये लड़की नहंी झांसी की रानी है
इसकी एक नहीं कई कहानी है
शरीर पर हे मेरे जो चोंटो के निषान
ये सब इसी के हाथों की निषानी हैं

लोहे को लोहा काट सकता है
हीरे को हीरा काट सकता है
ज़हर को काटे हे ज़हर
तुम प्लीज अपना ख्याल रखना
तुुमको कुत्ता काट सकता है
              दीपावली
दीप जले देता उजियारा, मन जलकर देता अंधियार
इसलिये सब दीप जलाना, नहीं जलाना अपने मन को
एक जरा सी कौध्ंा तुम्हारी दीपक को अर्पित कर देना
वो छोटा सा दीप चुनौती दे देगा तमके शासन को

दीपावली पे ये भी दुआ मंदिरो में हो
चाहत वफा खुलूस मोहब्बत घरों में हो
हमने घरों में अपने उजाले तो कर लिये
कोषिष करें कि रोषनी सबके घरों में हो

कुछ सितारों की चमक नहीं जाती
कुछ यादों की कसक नहंी जाती
कुछ लोगों से होता है ऐसा रिष्ता
दूर रहकर भी उनकी महक नहीं जाती

खुषी दोमाला हो जाती हरेक त्यौहार की अपने
मुसीबत में किसी मजबूर के जो काम आ जाते
दीवाली पर दिये घर के जलाने से तो बेहतर था
किसी मुफलिस के घर का हम अगर चूल्हा जला पाते

आंखो में आंसुओ की जगह अब रहेगा कौन

हुई शाम अब तो चलो अपने घर चलंे
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन
ऐसी गजल की जिसमें हो सच्चाईयों का जिक्र
मैं कह भी लंू अगर तो फिर उसको सुनेगा कौन


ये जो हरसु फलक मंजर खड़े हंै
न जाने किसके पैरो पर खड़े हैं
तुला है धूप नरसाने पर सुख
शेर भी छतरियां लेकर खड़े हैं
इन्हें नामों से पहचानता है
मेरे दुष्मन मेरे अदंर खड़े हैं
किसी दिन चाँद निकला था यहां से
उजाले आज तक यहां खड़े हैं

कभी उंगली पकड़कर मैं जिसे चलना सिखाता था
उसी का हाथ अब मेरी ही पगड़ी तक पहुँचता हैं
वो भी दिन थे कभी अपने अदालत घर मे ंलगती है
मगर मन मसहला घर का कचहरी तक पहुँचता है।

वो मेरे लब को चूमकर बोले
जिंदगी भर जुबान बंद रखना
आज कोई त्यौहार है शायद
आज अपनी दुकान बंद रखना
कुछ दिनों से खराब मौसम है
ऐ परिंदो उड़ान बंद रखना


सफर हयात का तमाम हिजरतो में बंट गया
वतन जमीन ही रही में सरहदों में बंट गया
हजार नाम थे मेरे मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों मस्जिदों में बंट गया
मैं जख्म-जख्म आदमी के दुख समेटता रहा
खुदा जो मस्जिद में था नाराजगी में बंट गया

जिसकी आहट पर निकल पड़ता था सीने से
आज उसेे देखकर दिल मेरा धड़का ही नहीं
यूं तो मुंतजीर किसी शाम में भी नहीं था उसका
वादे पर उसके कभी वो भी आया नहीं

जिंदगी भर का सफर साथ कटा है इसके
लाष के पांव से कांटा ना निकाला जाए


उजाले इस कदर बेनूर क्यों है
किताबें जिदंगी से दूर क्यों है
कभी यूं हो की पत्थर चोट खाए
ये हरदम आइना ही झूट क्यों है

आज तो आप भी शीदों की तरह बोलकर
हम तो समझे थे कि पत्थर नहीं बोला करते

इतना उड़ने के लिये पर नहीं खोला करते
लब हिलाने की किमत भी इन्हें दी जाती है
ये शराफत से कभी मुंह नहीं खोला करते
जी हजूर मैं किसी पद से नवाजे जाते
हम भी सरकार के अतराफ जो बोला करते

साम्प्रदायिकता के दानव का अंत निकट अब आया है,
राष्ट्रहित रक्षार्थ अर्जुन ने फिर गांडीव उठाया है।

जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता,
उस कौम का दुनिया में कहीं घर नहीं होता

क्या रंग दे रहा है, माषूक का बुढ़ापा,
अंगूर का मजा, किषमिष में आ रहा है।

गिला तुझसे नहीं है ओ आस्तीन के सांप,
हमसे ही तुझे खून पिलाते नहीं बना।

दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटो के लिये,
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेडि़या हो जाएगा

मैयत पर मेरी लोग आकर ये कहेंगे,
सही में मरा हुआ है या ये भी चुटकुला है।


ये ना समझो क्रूर कृत्य का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध
                                   राष्ट्रकवि दिनकर
सपनों के रंग तिनका-तिनका बनाया
हर उमंग को दबाया
आज हुए हैं सच सब सपनों के रंग
भरके दिल में उमंग रखे पहला कदम
सपनों के रंग
लाखों वसंत से गुजरो तुम
हो रंग बसंती जीवन का
है हर बसंत की एक दुआ
कि अंत ना हो इस जीवन का

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

जब से चला हूं बस मेरी मंजिल पर नजर है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले
तुमने मेरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा


किस्मत में जो लिखा वो मिल जाएगा मेरे आका
वो दीजिये जो मेरे मुकद्दर में नहीं है।

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,
मेरी किष्ती जहां डूबी, वहां पानी बहुत कम था।

मुझे थकने नहीं देते जरूरत के पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।

जेहमत उठाके आप जो तषरीफ लाए हैं
फूलों की क्या बिसात हमने दिल बिछाए हैं

अभी आए, अभी आकर जरा दामन संभाला है
तुम्हारी जाऊं-जाऊं ने हमारा दम निकाला है

कानों की बालियां चाॅंद-सूरज लगे,
ये बनारस की साड़ी खूब सजे
राज की बात बताएं समधीजी घायल हैं
आज भी जब समधन की झनकती पायल है

जादू है या तिलस्म है तुम्हारी जुबान में
तुम झूठ भी कहते हो तो होता है एतबार



अपनी आवाज की लर्जिष पे तो काबू पा लो
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते हैं
अपने तेवर तो संभालो कि कोई ये ना कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं

हयात लेके चलो, कायनात लेके चलो
चलो तो सारे जमाने को साथ लेके चलो

कष्मीर की वादियों में बेपर्दा निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फीली चट्टानों में

कागज का ये लिबास बदन से उतार दो
बारिष जो हुई तो कहां सर छिपाओगे


दोस्ती ही एक ऐसा रिष्ता है,
जिसे हम हमारी पसंद से चुनते हैं

कह दो ये समंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आएंगे

जलजले ऊंची इमारत को गिरा सकते हैं
मैं तो बुनियाद हूं मुझको तो कोई खौफ नहीं

षोहरत की बुलंदी भी पलभर का तमाषा है
जिस षाख पर बैठे हो वो टूट भी सकती है

अगर ताकत के माने हैं पाष्विक ताकत तो वाकई
नारी में है कम और अगर ताकत के माने हैं नैतिक ताकत
तो निःसंदेह मर्द से कई गुना ज्यादा आगे है औरत
                                         महात्मा गांधी
मूर्ति वंदनीय है, इसलिये नहीं कि उसमें देवता है
बल्कि इसलिये कि उसने तराषे जाने का दर्द सहा है

ढल गई षाम सितारों का जुलूस आया है

आंख मीची तो अपना गया
आंख खोली तो सपना गया
आंख मूंदी तो दफना दिया गया

वो किसी चीज का मोहताज नहीं है
जिसे जीने का हुनर आता है

यादों में उनकी बातों में खुषियों के रंग बरसते हैं
खुषियों में अपनों से मिलने को नैना तरसते हैं।

खुषी के रंग लाई ये घड़ी
प्यार के रंग लाई ये घड़ी

दिल के फफोले जल गए सीने के दाग से
घर को आग लग गई घर के चिराग से

फूल की पत्ती से भी कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नांदा पर कलामे पाक भी है बेअसर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं,
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये

मौत उस षख्स की है जिसपे जमाना रोए
यूं तो सभी आते हैं दुनिया में मरने के लिये

कहां ये मर्तबा अपना के हम तकलीफे षिरकत दें
मगर मेहमां गरीबों के हुए हैं बादषाह अक्सर

मेरी मंषा है मेरे आंगन में दीवार उठे
मेरे हिस्से की जमीं भी मेरे भाई तू रख ले

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय मौसम की तरह दोस्त भी बदल जाते हैं

तुलसी भैया की मेहनत फिर हो गई साकार
स्वीकारो है बंधुवर बधाइयाॅं और सत्कार

हवा महक उठी रंगे चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा

कौन से फूल थे कल रात तेरे बिस्तर में
आज खुषबू तेरे पहलू से बहुत आती है

यही है राज मेरी कामयाबी का जमाने में
कि मैं साहिल पर रूककर भी नजर रखता हूं तूफां पर


सारी दुनिया की निगाहों में गिरा है मजरूह
तब जाकर कहीं तेरे दिल में जगह पायी है

मिलन की रात है गुल कह दो इन चिरागों को
खुषी के वक्त में क्या काम जलने वालों का

दौलत ने दिया वो लिबास कि आ गया गुरूर
दामन था तार-तार अभी कल की बात है

वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद


कुछ नया करने की जिद में पुराने हो गए
बाल चांदी हो गए, बच्चे सयाने हो गए

मुस्कुराओ ऐसे कि बहारों को होंष आ जाए
तालियां बजाओ ऐसे कि कवियों को जोष आ जाए

इस मंजर को देखकर झूम गया मन आज
मन रविषंकर हो गया, तन बिरजू महाराज

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

अंगड़ाई भी ना लेने पाए उठाके हाथ
जो मुझको देख लिया छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ

चमन को सींचने में पत्तियां कुछ झड़ गई होंगी
यही इल्जाम मुझ पर लग रहा है बेवफाई का
मगर कलियों को जिसने रौंद डाला अपने हाथों से
वही दावा कर रहे हैं इस चमन की रहनुमाई का


जेब देता है अंगूठी में नगीना जिस तरह
है दुआ मेरे रहे जोड़ी सलामत उस तरह

मरने के बाद भी मेरी आंखे खुली रही
आदत जो पड़ी हुई थी उनके इंतजार की

हद से बढ़कर हसीन लगते हो, झूठी कसमें जरूर खाया करो
मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर मुस्कुराना ना भूल जाया करो

तू लाख छुपाये दामन मेरा फिर भी है ये दावा
तेरे दिल में मैं ही हूं, कोई दूसरा नहीं है
कोई आरजू नहीं है, कोई जुस्तजू नहीं है
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है

उनके आने से जो चेहरे पे आ गई रौनक
वो समझने लगे बीमार का हाल अच्छा है
यूं जन्नत की हकीकत तो हमें है मालूम
दिल को बहलाने के लिये गालिब ये ख्याल अच्छा है

काटे नहीं कटते हैं लम्हें इंतजार के
नजरे जमाए बैठे हैं रस्ते पे यार के


हजारों ख्वाहिषें ऐसी कि हर ख्वाहिष पर दम निकले
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

जब हम ना होंगे तो क्या रंगे महफिल
किसे देखकर आप षर्माइयेगा

स्वागत है अभिनंदन है क्या भाग्य हमारा है
सेवादल का वीर सिपाही आज पधारा है

हमारी आन, हमारी बान, हमारी षान आए हैं
हमारे प्राण, हमारी जान ले वरदान आए हैं
हमारे हैं, हमारों का भला स्वागत करें कैसे
कहें तो क्या, कहें किससे कि घर भगवान आए हैं


वक्त अच्छा भी आएगा नासीर
गम ना कर जिंदगी पड़ी है अभी

मैटर -

तेज सूर्य सा, धन कुबैर सा
बुद्धि चाणक्य सी, कीर्ति अषोक सी
यह सब तुम्हें सुलभ हो

बढ़ती हुई महंगाई और हारती हुई नैतिकता के दिनों में
अपना रक्त जलाकर जलता हुआ दिया
आपके व्यक्तित्व को आलोकित करे

दीपपर्व आतंकवाद, साम्प्रदायिकता,
भ्रष्टाचार की अमावस का  मुक्तिपर्व हो

दुर्गम पर्वत षिखर यूंही हमें डराते हैं
किंतु किये जो काम आपने याद हमें आ जाते हैं
अभी कहां आराम लिखा यह निंद्रा तो बस छलना है
अरे अभी तो मीलों तुमको राह बनकर चलना है।


सूरज से कहते हैं बेषक वह अपने घर आराम करें
चाॅंद-सितारे जी भर सोये नहीं किसी का काम करें
आॅंख मंूद लो दीपक तुम भी दिया-सलाई जलो नहीं
अपना सोना, अपनी चांदी गला-गला कर मलो नहीं
अगर अमावस से लड़ने की जिद कोई कर लेता है
तो एक जरा सा जुगनू सारा अंधकार हर लेता है

तनकर खड़ा था जो वो जड़ से उखड़ गया
वाकिफ नहीं था वो हवा के मिजाज से

कायरता जिन चेहरों का सिंगार करती है
मक्खियां भी उन चेहरों पर बैठने से इंकार करती है

दौलत और जवानी एक दिन खो जाती है
सच मानों तो सारी दुनिया दुष्मन हो जाती है
उम्रभर दोस्त मगर साथ चलते हैंष्


षाम तन्हाई की है आएगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखाए वही तारा न रहा

कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का
कल रूके ना रूके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज प्यार में गुजार दे

अच्छी सूरत को संवरने की जरूरत क्या है
सादगी भी तो कयामत की अदा होती है।

तुझे  देखकर जग वाले पर यकीं नहीं क्यों कर होगा
जिसकी रचना इतन संुदर वो कितना सुंदर होगा

छोटी सी, प्यारी सी, नन्ही सी आई कोई परी
भोली सी, प्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी
पालने में ऐसे ही झूलते रहे खुषियों की बहारों में झूलते रहे
गाते मुस्कुराते संगीत की तरह ये तो लगे रामा के गीत की तरह

खुषियां देती है दुख ले लेती है
माॅं की ममता का मोल नहीं कोई
उम्रभर मैं करूॅं माॅं की बंदगी
माॅं तेरे नाम है मेरी जिंदगी

फूलों सा चेहरा तेरा कलियों सी मुस्कान है
रंग तेरा देखकर रूप तेरा देखकर कुदरत भी हैरान है
महलो की रानी दुख से बेगानी लग जाए ना धूप तुझे
उड़-उड़ जाऊं सबको बताऊं धूप लगे है छाॅंव मुझे
कांटो से हो जाए पांव ना घायल

चलते हैं वो भी हमसे तेवर बदल-बदल कर
चलना सिखाया जिनको हमने संभल-संभल कर
बिस्तर की सलवटों से महसूस ये हो रहा है
तोड़ा है दम किसी ने करवट बदल-बदल कर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये


क्या है मुकद्दर में फिक्र नहीं इसकी
हारते हैं फिर भी हिम्मत नहीं थकती
वही तो कहलाते हैं फाइटर
मंजिल उनके पास खुद चलकर आती है
खुद ही जो लिखते हैं किस्मत अपनी
क्योंकि फाइटर हमेषा जीतता है।

मेरे जनाजे में सारा गांव निकला
पर वो ना निकले जिनके खातिर जनाजा निकला

देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए
एक दिन बिगड़ी किस्मत संवर जाएगी
ये खुषी हमसे बचकर किधर जाएगी
देखना जिंदगी यूं गुजर जाएगी
देखा फूलों को कांटो में हंसते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए

आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं एक ऐसे गगन के तले
जहां गम भी ना हो आंसू भी ना हो बस प्यार ही प्यार पले


उस मोड़ से षुरू करें फिर ये जिंदगी
हर रात जहां हसीन थी हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख्वाब थे
फूलों के ख्वाब थे वो मोहब्बत के ख्वाब थे
लेकिन कहां है इनमें वो पहले सी दिलकषी
रहते थे हम हसीन ख्यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फुरसत की हर घड़ी
षायद ये वक्त हमसे कोई चाल चल गया
रिष्ता वफा का और कोई रंगो में ढल गया


ये दौलत भी ले लो ये षोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कष्ती वो बारिष का पानी
मोहल्ले की सबसे पुरानी निषानी
वो बुढि़या जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वे छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडि़या वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडि़या की षादी पे लड़ना-झगड़ना
वो झूले से गिरना वो गिरकर संभलना
वो पीतल के छल्लांे के प्यारी से तोहफे
वो टूटी हुई चूडि़यों की निषानी
वो कागज की कष्ती ़ ़ ़ ़
कभी रेत के ऊंचे टीलो पे जाना
घरोंदे बनाना बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था ना रिष्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी


बात निकलेगी तो फिर दूर तक ले जाएगी
लोग बेवक्त उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे तुम इतनी परेषां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालो की तरफ
चूडि़यों पर भी कई तंज किये जाएंगे
कांपते होठो पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हरेक बात का ताना देंगे
उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे के तास्सुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जाएगी

उबरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
वरना कौन कतरा है जो दरिया बन नहीं सकता

दिले नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम मगर षाम ही तो है

जीवन गाथा महापुरूष की हमको यही सिखाती है
हम भी ऊंचे उठ सकते हैं जीवन विकास की थाती है
जब ये महापुरूष जाते हैं हमें छोड़कर धरती पर
रह जाते हंै पदचिन्ह उभरकर सदा समय की रेत पर

चले जाएंगे हम मुसाफिर हैं सारे
फिर भी एक षिकवा है लबों पे हमारे
खुदा ने तुझे बहुत जल्दी बुलाया
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मेरे दिल को आज तड़पा रहा है
वो मंजर मेरे सामने आ रहा है
कि लोगों ने तेरा जनाजा उठाया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया


हम रातों को उठ-उठकर जिनके लिये रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानांे की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
इस बात का रोना है इस बात पर रोते हैं
कष्ती के मुसाफिर ही कष्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकड़ते हैं
कुछ लोग उमर सारी अंधेरा ही ढोते हैं
जब ठेस लगी दिल को ये राज खुला हम पर
धोखा तो नहीं देते नष्तर ही चुभोते हैं
मेरे दर्द के टुकड़े हैं बेचैन नहीं सागर
हम सांसो के धागों में जख्मों को पिरोते हैं


पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम षहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचाके आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुजारें भी तो कहां
सहरा में खुषी के फूल नहीं षहरो में गमों के साए हैं

झूठी-सच्ची आस पर जीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय की जगह खूने दिल पीना कब तक आखिर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकराकर डूब मरेंगे
तूफानों से डरकर जीना कब तक आखिर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुजारा फिर भी ना आए
वादे का एक महीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
सामने दुनियाभर का गम है और इधर एक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर एक आइना कब तक आखिर, आखिर कब तक

ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे


दिन गुजर गया इंतजार में रात कट गई इंतजार में
वो मजा कहां वस्ले यार में लुत्फ जो मिला इंतजार में

अब में समझा तेरे रूखसार पे तिल का मतलब
दौलते हुस्न पे दरबान बिठा रखा है

पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती ये हंसी नजरे ख्वाब हो जाती
तूने डाली ना मैकदा नजरें वरना षबनम षराब हो जाती

पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी ये षबनम षराब क्या होगी
जिसने लाखों हंसी देखे हों उसकी नीयत खराब क्या होगी

तुम धड़कनों में बस गए अरमां बन गए
सौ साल यूं बस पहचान बन गए

कल रात उनको देखा उर्दू लिबास में
कुछ लोग कह रहे हैं अगला चुनाव है
वो भीख मांगते हैं हाकिमों के लहजे में
हम अपने बच्चों का हक भी अदब से मांगते हैं

छुपे बैठे हैं गुलजार में बहारे लूटने वाले
कली की आंख लग जाए ऐ कांटो तुम ना सो जाना


दिखाओ चाबुक तो झुककर सलाम करते हैं
ये वो षेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं

कुदरत ने तो बख्षी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं चीन, कहीं ईरान बनाया
                                साहिर लुधियानवी

पैदा उल्फत में वो सिफात करें पत्थरों के सनम भी बात करें
तुम जरा रूह के करीब आओ जिस्म के दरमियां क्या बात करें

विशिष्ट है आपका ये जन्मदिन
षुभकामना है बार-बार आए यह सुदिन

कामयाबी की मिसाल आपके पूरे पचास साल
तुम हमेषा पत्रकारिता के भाल का तिलक बनकर चमको

मान अधूरा लगता है सम्मान अधूरा लगता है
एक राजीव तेरे बिना संसार अधूरा लगता है

तुम सही वक्त पर खबरों को
इसी तरह क्लिक करते रहो

समय समय की बात है समय समय  का योग
लाखों मंे बिक रहे है दो कौड़ी के लोग

हमने किया गुनाह तो दोजख हमें मिला
दोजख का क्या गुनाह जो दोजख को हम मिले।

कायरता जिन चेहरो का श्रंगार करती है
मक्खियाॅ भी उन पर बैठने से इंकार करती है।


लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
पिया की दुलारी भोली भाली रे दुल्हनियाॅ
तेरी सब राते हो दीवाली रे दुल्हनियाॅ
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
दुल्हे राजा रखना जतन से दुल्हन को
कभी न दुखाना तुम गोरिया के मन को
नाजुक है नाजो की है पाली रे दुल्हनियाॅ

एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चूल्हो मे हरेक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाॅ सोएगा।
आॅंधी नफरत की न चलेगी कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यकी अब ना कोई शोर शराबा होगा ।
जुल्म होगा ना कही खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा  कोई
अब मेरे देष में बेघर न रहेगा कोई ।
नये वादो का जो डाला है वो जाल अच्छा है।
रहनुमाओ ने कहा है ये साल अच्छा है।
दिल को खुष रखने का गालिब यह ख्याल अच्छा है ।


दुष्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गाें का जमाना नहीं भूले
तुम आॅंखो की बरसात बचाए हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम अपनी तस्वीर बनाना नही भूले।
एक उम्र हुई मैं तो हॅंसी भूल चुका हूॅ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नही भूले।

उनके मकबरे पर तो एक भी दिया नही
जिन्होंनें अपना खून चढ़ाया वतन पर
जगमगा रहे है मकां उन्हीं के
बेचा जिन्होंने शहीदो के कफन को


कोई चांदनी रात का चांद बनकर तुम्हारे तसव्वुर में आया तो होगा
किसी से तो की होगी तुमने मोहब्बत किसी को गले लगाया तो होगा
तुम्हारे ख्यालों की अंगड़ाइयों में मेरी याद के फूल महके तो होंगे
कभी अपनी आंखों के काजल से तुमने मेरा नाम लिखकर मिटाया तो होगा
लबों से मोहब्बत का जादू जगाके भरी बज्म में सबसे नजरे बचाके
निगाहों की राहों से दिल में समाके किसी ने तुम्हें भी चुराया तो होगा
कभी आइने से निगाहें चुराकर जली होगी भरपूर अंगड़ाइयों में
तो घबराके खुद तेरी अंगड़ाइयों ने तेरे हुस्न को गुदगुदाया तो होगा
निगाहों में षम्मे तमन्ना जलाके तकी होगी तुमने भी राहे किसी की
किसी ने तो वादा किया होगा तुमसे किसी ने तुम्हें भी रूलाया तो होगा

तुझसे मिलकर उंगली मीठी लगती है
तुमसे बिछड़कर षहद भी खारा लगता है
तेरे आगे चांद पुराना लगता है
तुझसे मिलके कितना सुहाना लगता है

माषूक का बुढ़ापा लज्जत दे रहा है
अंगूर का मजा किषमिष में आ रहा है

जड़ दो चांदी चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं है
सच हारे या बढ़े तो सच ना रहे
झूठ की कोई इंतहा नहीं है

सुनते है कि मिल जाती है हर चीज दुआ से
एक रोज तुझे मांगकर देखंेगे खुदा से

तुझको यूं देखा है, यूं चाहा है, यूं पूजा है
तू जो पत्थर भी होती तो खुदा हो जाती

कहां ले जाएगा बांधकर तू ये षान ओ षौकत
कि कफन में कभी किसी के भी जेब नहीं होता


प्यास है ओस की बूंद पिये लेते हैं
रात है तारों को देखकर जिये लेते हैं
तुम न दे सके लेकिन भरोसा मुझको
जाओ तुम्हें चांद सी मुस्कान दिये देते हैं

क्षितिज तक प्रत्येक दिषा में हम उठे नवप्राण भरने
नवसृजन की साध लें हम उठे निर्माण भरने
साधना के दीप षुभ हो ज्ञान का आलोक छाए
नष्ट तृष्णा के तिमीर हो धाम अपना जगमगाए

तंग आकर मरीज ने अस्पताल से छलांग लगाई
तो डाॅक्टर ने टांग पकड़कर प्रभाती सुनाई
सुबह-सुबह षहर को प्रदूषित करता है नादान
खाली हाथ कहां चला जजमान फोकट में मुक्ति पाएगा
अबे मुर्दे को तो छोड़ा नहीं जिंदा कैसे जाएगा



भूख हर दर्षन का घूंघट उतार देती है
रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपड़े उतार देती है

इस देष में जिंदा लोग रहते हैं मुझे तो इस बात पर भी षक है
यारों ऐसे लोगों को जीने का क्या हक है
जो अपनी बदनसीबी पर खिलखिलाए
और पचास साल में पचास ईमानदार आदमी भी नहीं ढूंढ पाए

पत्थर उबालती रही एक माॅं तमाम रात
बच्चे फरेब खाकर चटाई पर सो गए

कभी तो कोई सच का साथ देेने सामने आए
कि हरेक सच के लिये मुजरिम हमारी जुबां क्यों हो

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाॅं जलाने में

‘‘दुष्मनी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइष रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो षर्मिन्दा न हों‘‘

खुदा महफूज रखे मुल्क को गंदी सियासत से
षराबी देवरों के बीच भोजाई रहती है

मिलकर बैठे भी और कोई न हो
खुदा करे कभी ऐसी कोई मुलाकात न हो


ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे गम उठा ले
तन्हाइयों में रोले महफिल में मुस्कुरा ले

दिनभर गमों की धूप में जलना पड़ा हमें
रातों को षमां बनकर पिघलना पड़ा हमें
हर एक कदम पे जानने वालों की भीड़ थी
हर एक कदम पे भेस बदलना पड़ा हमें

दिल के लहु को मेहंदी की खुषबू ने छीन लिया
जो हुआ बेटा जवान तो बहू ने छीन लिया

मेरा क्या है फिर एक सूरज उगा लूंगा
उजाले उनको दो जो तरसते हैं उजालों को
मेरी मजदूरी पर निगाह भी जमाने की
पर किसने देखा मेरे हाथों के छालों को


लब पे आए जिक्रे काना कहे काषी भी साथ-साथ
बात जब है कि हो नमाज और आरती भी साथ-साथ
कोई कहता है खुदा कोई कहता है नहीं
चल रही है झूठ और सच की कहानी साथ-साथ
नन्हें जहनों पर ये भारी बोझ किसने रख दिया
फिक्र रोटी-दाल की और ए बी सी डी साथ-साथ

जितने कष्ट कंटकों में हैं उनका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला

मोहब्बतों में था जो खुमार वो जाता रहा
बुरा ना मान पर एतबार जाता रहा

इनके साथ 950 करोड़ लोगों का प्यार था
तो उनके साथ वे भी नहीं थे, जिन्होंने उन्हें भेजा
इन षहीदों के पार्थिव षरीर के लिये षहर उमड़ पड़ा
तो उनके गद्दारों के षव भी हमें दफनाना पड़े


तजुर्बों में कमी रही होगी
हादसे बेसबब नहीं होते

आगे बढ़ने का जिनमें है साहस
लोगों की आषाओं का जिन्हें है अहसास
कर्म करने में जिन्हें है विष्वास
सेवा और दयालुता का जिन्हें है अहसास
ठिकाना है उनका सेठी निवास

सफलता आपके यूं ही कदम चूमे
खुषियों ऐसे अवसर आते रहें आप झूमें
प्रगति और सफलता, विस्तार और उपलब्धियां
आपके कार्य को मिले नित-नित नई ऊंचाइयाॅं

अग्रणी रहने का जिनमें है साहस
नमोकार मंत्र जैसा जिन पर हमें है विष्वास
षक नहीं ऐसी दोस्ती पर बढ़ाया है हमारा आत्मविष्वास
मार्ग जिन्होंने सदा दिखाया चलो चले सिस्ट निवास


तुम्हारे इष्क पर कुरबान है मेरी सारी जिंदगी
पर मादरे वतन पर मेरा इष्क भी कुरबान है

आंधियां मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी
वही षाख बचेगी जो लचक जाएगी

तू जब रिष्तों की समाधी बनाने जाएगा
ये बता विष्वास की मिट्टी कहां से लाएगा
दक्षिणा के नाम पर चाहे अंगूठा मांग ले
तेरा पागलपन तुझे इतिहास बनकर खाएगा

घर से मस्जिद है बड़ी दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

हमसे उजली ना सही राजपथो की षाम
जुगनू बनकर आएंगे हम पगडंडी के काम

यूं बेबस ना रहा करो कोई षाम घर भी रहा करो
वो गजल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
मुझे इष्तहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियाॅं
जो कहा नहीं वह सुना करो, जो सुना नहीं वह कहा करो
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करें


दीवानगी हो, उम्मीद हो अक्ल हो या आस
अपना वही है वक्त पे जो काम आ गया

फूल थे गैर की किस्मत में ही ऐ जालिम
तूने पत्थर ही मुझे फेंक के मारे होते

दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिये

रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा ना था अंजाम भी अच्छा ना हुआ

संयोग न हो तो मिलन नहीं संभव
गज भर की दूरी भी योजन बन जाती है
यदि मिलन हो तो भू-अंबर में
किरणों वाली सीढ़ी बन जाती है

जो पे्रम में रोया ना हो जिसने पे्रम विरह को जाना ना हो
उसे तो प्रार्थना की तरफ इंगित भी नहीं किया जा सकता
इसलिये मैं पे्रम का पक्षपाती हूं प्रेम का उपदेष दे रहा हूं
कहता हूं पे्रम करो, क्योंकि पे्रम का निचोड़ ही एक दिन प्रार्थना बनेगा
प्रेम की एक हजार बूंद निचोडे़गे तब कहीं प्रार्थना की एक बूंद एक इत्र की बूंद बनेगी


दोस्त के लिये जान देने के लिये हर कोई तैयार है
बषर्ते जान देने का मौका नहीं आए।

दोस्त मददगार होते है पर इस षर्त पर कि आप उनसे मदद ना मांगे।

सबसे दुष्वार होता है दोस्त की कामयाबी पर मुबारकबाद देना
हाय आंख में आंसू हैं और लब पर मुस्कान।

अगर आपके यहां खुषी का कोई मौका है और आपने दुनिया को उसमें
हिस्सेदारी की दावत देते हैं तथा आप मेरे हरे दोस्त होते हुए भी मुझे भूल गए
मैं इसकी षिकायत नहीं करूंगा, बल्कि खुष हो आप कि आपने खुषी में मुझे याद
नहीं किया। अपनी दोस्ती आपने निभायी, लेकिन खुदा ना खास्ता कभी आप पर मुसीबत
आ जाए और आप उसकी खबर मुझे न दें ताकि मैं आपके कुछ काम ना आ सकूं तो मैं
जरूर बुरा मानूंगा कि आप मुझे अपना दोस्त नहीं मानते।


हे भगवान ! दोस्तों से मेरी रक्षा कर, दुष्मनों से तो मैं खुद अपनी रक्षा कर लूंगा।

अगर मुझे दोस्त या मुल्क में से किसी एक के साथ गद्दारी करना पड़े तो मैं मुल्क
के साथ कर लूंगा।

चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
समझते थे मगर रखी ना फिर भी दूरियां हमने

पुलिस और ईमानदारी क्या बात करते हो श्रीमान्
जैसे सरदारों के मोहल्ले में दुकान

‘‘षब्द के मोती चुगने और बुनने वाला पत्रकारिता का हंस
अपने विषाल पंखो के बावजूद हल्की सी सरसराहट किये
बगैर ही उड़ गया‘‘

मधुमय वसंत जीवन वन के तुम अंतरिक्ष की लहरों में
कब आए थे चुपके से, रजनी के पिछले प्रहरों मंे
क्या तुम्हें देखकर आते यांे मतवाली कोयल बोली थी
उस नीरवता में अलसाह कलियों ने आंखे खोली थी।


किसी ने जर दिया, जेवर दिया, किसी ने खुषी दे दी
किसी का घर बसाने को हमने अपने घर की रोषनी दे दी

बेटे और पिता का हाथ दो बार ही मिलना चाहिये। एक बार
जब बाप-बेटे का हाथ पकड़कर चलना सिखाए, दूसरा जब
बूढ़े बाप को बेटा हाथ पकड़कर सहारा देकर चलाए। जवान
बेटे और बाप का आपस में हाथ मिलाना हमारी संस्कृति नहीं है।

दीवार में दरारे नहीं आती हैं, जहां दरारे पड़ती हैं वहां दीवार खींची जाती हैै।

आज के समय में जब मेरे कमरे में से चीख की आवाज आती है, जब दूसरे
भाई के कमरे में से ठहाके की आवाज आती है। यह समझ में नहीं आता है
कि मेरी चीख को सुनकर वे ठहाके लगा रहे हैं या उनके ठहाके को सुनकर
मेरी चीख निकल रही है।

हम माॅं-बाप के साथ रहे, वे हमारे साथ ना रहे
पहले मैं माॅं-बाप के साथ रहता था, अब वे मेरे साथ रहते हैं।


मनुष्य मूलतः अच्छे स्वभाव का प्राणी है। हमारी सोच नकारात्मक हो गई है।
हम चाहते हैं कि हम भले ही मैच हार जाएं पर पाकिस्तान फाईनल नहीं जीत पाए।

एक बार तीन व्यक्तियों को भगवान ने वरदान दिया- एक को गोरा, दो को गोरा
तीसरा बोला- दोनों को वापस काला कर दो।

एक बार भगवान बोला- तेरे को जो होगा, उससे पड़ोसी को दुगुना होगा। तो मैंने कहा
मेरी एक आंख फूट जाए।

हम जब कम पढ़े-लिखे थे तो सरदार पटेल को ज्यादा चुनते थे। अब ज्यादा पढ़-लिख
लिये तो फूलन देवी को चुनते हैं।  हम षिक्षित तो हो गए पर सभ्य नहीं हो पाए।

अगर कहीं पर्वत है तो यकीन मानिये आस-पास कहीं नदी भी होगी
बिना हृदय में गहरा दर्द संजोए कोई कोई इतना ऊंचा उठ नहीं सकता।

खंडवा जैसे छोटे षहर में आदमी इस खुषी में ही जिये जाता है
कि उसके मरने पर बहुत लोग आएंगे।




बच्चे फूलगोभी हैं, माॅं-बाप बंदगोभी

अजान की तरह पढि़ये, आरती की तरह गाइये

पीतल की बाली भी नहीं उसकी बीबी के कान में
जिसने अपनी जिंदगी गुजार दी सोने की खान में

जाएगी कहां मौज किनारों को छोड़कर
मिल जाएगा सुकून क्या सहारों को छोड़कर
मानाकि हमसे दूर चले जाओगे मगर
रह भी सकोगे क्या इष्क के मारो को छोड़कर

असत्य में षक्ति नहीं होती उसे अपने अस्तित्व
के लिये भी सत्य का सहारा लेना होता है।

सत्य बोले- प्रिय बोले, ऐसा सत्य न बोलें जा प्रिय ना हो
ऐसा प्रिय ना बोलें जो सत्य ना हो।

दुष्कर्म से सफलता की कामना करने के बजाय सत्कर्म करते हुए मर जाना बेहतर है।

जब  क्रोध उठे तो उसके नतीजे पर विचार करो।

जिस दिन मनुष्य दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझेगा
मांसाहार उसी दिन समाप्त हो जाएगा।

वाणी से आदमी की बुद्धि और औकात का पता लग जाता है।

ज्ञान पाप हो जाता है, अगर उद्येष्य षुभ ना हो।

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती-गांव
हर चादर के छोर से बाहर निकले पांव

सातो दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर

अच्छी संगत बैठकर संगी सदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

चाहे गीता बाचिये या पढि़ये कुरआन
मेरा-तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

वो रूलाकर हंस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक

कैसे पता चले पतझड़ है या बहार
ऐ दोस्त कोई पेड़ नहीं आस-पास में

मावस का मतलब बिटिया को भूखी माॅं ने यूं समझाया
भूख की मारी रात अभागन आज चांद को निगल रही है


दुश्मनी का सफर इक कदम, दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे

उलझे हुए दामन को छुड़ाने की सजा है
खुद अपने चिरागों को बुझाने की सजा है
षहरों में किराए का मंका ढूंढ रहे हम
ये गांव का घर छोड़कर आने की सजा है

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है
जख्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यूं है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर
अपनी  नजरों में हर आदमी सिकंदर क्यूं है

अब मैं राषन की कतारों में नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता है
इतनी मंहगाई की बाजार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांट के षरमाता हूं

मैं खिलौनों की दुकाने खोजता ही रह गया
और मेरे फूल से बच्चे सयाने हो गए

ये दुनिया गम तो देती है षरीके गम नहीं होती
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती


जिंदगी सच्चाई बनकर जिस्म छूने को लगी
जब जरा पैसे मिले बाजार मंहगा हो गया

मंजिले ख्वाब बनकर रह जाए
इतना बिस्तर से प्यार मत करना

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

दिले नांदा तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

न्यौछावर संकल्पमय सेवा का वरदान
चिर कृतज्ञ हम कर रहे अमृत महोत्सव सम्मान
सरस सिपाहा सुहृदय की आत्मीयता अगाध
अब गिरीष पूरी करें सौ वर्षों की साध

हम तो बिक जाते है उन अहले करम के हाथों
करके अहसान भी जो नीची नजर रखते हैं

उस पार है उम्मीद और उजास की एक पूरी दुनिया
अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है

उन दिलों के नाम जिनमें अभी प्यार करने की ताकत है
और जिनमें बसी है यह बात कि बेहतर जिंदगी रखने के लिये
एक ताजा षुरूआत करने के लिये कभी भी देर नहीं हुआ करती


जाने कैसे पंख लगाकर पल-पल उड़ जाता है
वक्त तो है आकाष पंछी कहां पकड़ में आता है

क्या भरोसा जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का

बंद रखते हैं जुंबा लब नहीं खोला करते
चांद के सामने तारे नहीं बोला करते
हम अपनी बात का रखते हैं भरपूर जवाब
तुम्हारी तरह हवा में नहीं बोला करते
फासला कितना है इस डाली से उस डाली तक
इतनी दूरी के लिये हम पर नहीं खोला करते

बता सितारों की पगडंडी तुझे चांद तक जाना है
और वहां की बंजर धरती पर एक बाग लगाना है

जन्म दिवस के षुभ प्रभात पर, जब खोलो नयनों के द्वार
सौ-सौ सूरज पास खड़े हों, ले ज्योति षक्ति भंडार

दिले नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम पर षाम ही तो है


तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली
तेरा नभ भर में संचार, मेरा दस फुट का संसार
तेरा गीत कहा वे वाह रोना भी है मुझे गुनाह

सच्चा है अपना प्यार तो क्या इस जहां का डर
फूल बनकर गुलिस्ता में फिर खिलंेगे हम
अब बिछड़ रहे हैं तो कोई रंज मत करो
जब जब बहार आएगी  तो फिर मिलेंगे हम
सितारों को आंखो में महफूज रख लो दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी, इसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी

देखना चाहते हो गर इनकी उड़ान को
और ऊंचा करो इस आसमान को

कष्ती का जिम्मेदार फकत् नाखुदा ही नहीं
कष्ती में बैठने का सलीका भी चाहिये

कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए
कुछ लोग हैं जो वक्त के सांचे बदल गये

किसी का कद बड़ा देना, किसी का कद घटा देना
हमें आता नहीं ना मोहतरम को मोहतरम कहना

ष्
लब पर उसके कभी बदृदुआ नहीं होती
एक माॅं ही तो है जो कभी खफा नहीं होती

जिंदगी है तो ख्वाब है, ख्वाब है तो मंजिले हैं
मंजिले हैं तो रास्ते हैं, रास्ते हैं तो मुष्किले हैं
मुष्किले हैं तो हौंसला है, हौंसला है तो विष्वास है
विष्वास है तो जीत है

मन में अगर हो प्यार तो हर दौर मधुवास है
देता है रब भी साथ अगर दिल में सच्ची आस है
ये तो माना हम बिछड़ रहे हैं मगर
हम यहीं पर फिर मिलेंगे, ये अटल विष्वास है

सूखी धरती, सूखे समंदर आओ पानी बहाएं
रंग गुलाल के सबसे अच्छे सूखी होली मनाएं
आओ दूर कर लें दिल के मलाल
गालों पर लगा दें प्रेम का गुलाल

जरा सी भी वफा तेरी फितरत में नहीं आई,
तुझे पच्चीस बोतल खून कुत्ते का चढ़ाया था

सत्य की विजय होती है यह बात पुरानी है
अब तो जो विजयी होता है, वही सत्य है

रेस में हारे हुए लोगों के पास जीते हुए को
कोसने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता
खंडवा रेस में हारे हुए लोगों का षहर है अतः
विजयी को कोसना यहां का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है



तुम्हारा बेवफा कहना हमें मंजूर है क्योंकि
तुम्हारा साथ देने से मदीना छूट जाएगा

इतनी ऊंची मत छोड़ो गिर पड़ोगे धरती पर
क्योंकि आसमान में सीढि़याॅं नहीं होती
सबको उस रजिस्टर में हाजिरी लगानी है
मौत वाले दफ्तर में छुटिृटयाॅं नहीं होती

बंदूके बंद रहे हमेषा, गायब नफरत फसाद हो
आंसा हो खुलकर मुस्कुराना, हर दिल में उल्लास हो
न्याय चिरायु बनें यहां, अन्याय का अवसान हो
चहक उठे हर चप्पा-चप्पा कोई कोना ना वीरान हो
हर ईद मने खुषहाली में, सदा सुखी रमजान हो

हम लगा ना सके उसके कद का अंदाज
वो आसमां था पर सर झुकाए बैठा था

चमन में इकतलफ बू और रंग से बात बनती है
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमीं हम हैं तो क्या हम हैं

तमाम रिष्ते मैं अपने घर पर छोड़ आया था
फिर उसके बाद कुछ अजनबी ना मिला

वह मूर्ति कर्म में जीती थी हों परमषांत प्रस्थान मिला
अमणित अनुनय बेकार हुए निष्ठुर हरि में कब ध्यान दिया
दुनिया की आंख मिचैली से वे दोनों आंखे बंद हुई
बंधन ठुकराकर तपोमयी, वह आत्मा अब स्वछंद हुई

नमोमंडल पर जरूरत नहीं कि तुम नक्षत्रों
की तरह बंधी घडि़यों और बंधे दिनों में आओ
और तारूण्य में जन्मते ही तुम्हारा विज्ञापन हो
तुम सर्वनाष के नहीं सर्वप्राण के भूकम्प बनकर क्यों ना आओ
पेज गिनने वाले प्रकाषक का पुस्तक के पन्ने बनकर आने के
बजाय तुम अपने जमाने की उथल-पुथल के संदेषवाहक बनकर
क्यों ना आओ। तुम्हारा स्वागत करने वाले बरस अचंभा करें कि
तुम विष्व में किस द्वार से आये थे और किस जीने पर चढ़कर लौट गए।

                            --माखनलाल चतुर्वेदी--


मंजिल मिलेगी जरूर, विष्वास ले चलना होगा वरना
हो अमावस की हुकूमत तो दीप बनकर जलना होगा

ऊंचे पहाड़ों पर जो परिंदा बैठा है
जब भी सोचता है आसमान की बात होगी

पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती तुमको अमृत, स्वयं थामती हाला

पड़ाव-दरपड़ाव, मंजिल के अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा सफर
सहेजते-सहेजते, पड़े-पड़े बिखर गई जिंदगी की किताब


गरीब रोज मरना चाहता है, अमीर उसे मरने नहीं देता
जानता है अमीर, गरीब मर जाएगा तो अमीरी भी नहीं रहेगी
गरीबी की पीठ पर ही टिका है अमीरी का अस्तित्व

हर ओर फूल है, खुषबू है, रस है रसवंती मौसम में
गहरे मन से दे रहे तुम्हें हम, विदा वसंती मौसम में

किताबे जिंदगी का एक नया उनवान है षादी
दो अजनबी जब एक हों वह इकरार है षादी
दुनिया का तकाजा है और फर्ज मजबूर करता है
ये कैसा जष्न है जो लख्ते जिगर को दूर करता है

तू प्यार करना छोटो से, बड़ो की कद्र भी करना
कहे तुझको बुरा कोई तो दीपा सब्र भी करना
तुझे कुछ दे नहीं सकता, बस ये आन देता हूं
बजाए सोने-चांदी के तुझे कुरआन देता हूं


सर्द रातों की आवारगी, उस पर नींद का बोझ
हम अपने षहर में होते तो घर जाकर सोते

काफिरों के लिये फकत एक शोर, मोमिनों के लिये एक अजान हूं मैं
ऐ नयी दौर की नस्ल मुझे गौर से सुन, गालिब और मीर की जबान हूं मैं

मोहब्बत में अना नहीं चलती, खुद ना आते हमें बुलाते हो
चांदनी रात सिसकियां भरती तुम जब छत पर आते हो

हजार लाषों को देखकर, आंखे नम नहीं होती
कैसे खा जाते हैं वे झूठी कसमें, हमसे रोटी हजम नहीं होती

काटकर गैरों की टांगे, खुद लगा लेते हैं लोग
इस षहर में इस तरह भी, कद बढ़ा लेते हैं लोग
षेर सुनने का सलीका जब इन्हें आता नहीं
षायरों को जाने ना फिर क्यों बुला लेते हैं लोग


जीने दो हर बषर को, तितली के पर तलक की हिफाजत किया करो
बिन आदमी के क्या वजूद कायनात का, इंसान हो इंसान से मोहब्बत किया करो
                                --अब्दुल जब्बार--

बनाये प्यार की माला जो बिखर न पाये कभी
नषा अहिंसा का चढ़कर, उतर ना पाये कभी
तुम्हीं दुआएं दो, आषीर्वाद दो मुझको
मेरे पांव से चींटी भी ना मर पाए कहीं

निहत्थे लोग भी जंगल में काम करते हैं
तो गाय-बैलों के घर षेर काम करते हैं
करिष्मा है ये महावीर जी के होने का
कि मोर, सांपो को झुककर सलाम करते हैं

वो एक सच है जिसे सब भुलाए बैठे हैं
खुद अपनी आंखों पर पर्दा गिराए बैठे हैं
किसी को कोई भी उस एक से नहीं मतलब
सब अपनी-अपनी दुकान सजाए बैठे हैं

नई सुबह की, नई किरण हो
नया जोष हो, नई लगन हो
हर पल चिंतन, यही हमारा
मंगलमय हो, जीवन तुम्हारा


मौत रास्ते में बिछाई जा रही थी
षहरों को जिंदा जलाया जा रहा था
बज रही थी डुगडुगी बाजीगरों की
खेल टीवी पर दिखलाया जा रहा था

कीमती कालीन जब से मेरे घर में आ गए
बेहिचक घर आने-जाने की अदा जाती रही
बाथरूमों की नये कल्चर में इतना बंद हूं
खुलकर बारिष में नहाने की अदा जाती रही

अगर मिल जाते मुझे वापस उम्र के पिछले हिस्से
भूल जाता मैं बाकी जिंदगी सारी
जी लेता अपना बचपन फिर से

ताजी सांसे ही रहेगी मन में
माॅं की यादें प्राणों में
पिता की ऊर्जा आंखों में उजाला होगा
जाने कैसे मेरे पिता ने मुझे पाला होगा

संतान होना यूं ही नहीं कि आपकी प्रगति है
आपका सोपान है, संतान का होना यूं कि
आपसे भी परे, आपसे भी पार कोई इंसान है
जो अभी-अभी खेलकर सोया हुआ है मगर
जिसमें नियती ने ईष्वर को बोया होगा

माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है

मैं ना जुगनू हूं, ना दिया हूं, ना कोई तारा
रोषनी वाले मेरे नाम से डरते क्यों हैं
लोग हर मोड़ पर रूककर संभलते क्यों हैं
इतना डर है तो घर से निकलते क्यों हैं





क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत में
कर्तव्य पथ पर जो मिले ये भी सही वो भी सही

कुछ ना पहले-पहल आऊं ये दुनिया छली गई
सुमनों के मुख पर धूल सदा ही मली गई
युग-भुज फैलाकर फूलों ने सरिता से मांगा आलिंगन
वह आज नहीं प्रिय कल, कल कहती चली गई

बेरंग जिंदगी तो बेरंग ही सही, हम तो यहीं रहेंगे जमीं तंग ही सही
हम अमन चाहते हैं जुल्म के खिलाफ, गर जंग लाजमी है तो जंग ही सही

आज की यह कविता में खो जाइये
क्या पता ये मिल न फिर दोबारा ना हो
और दोबारा तो क्या इसका पता
मन तुम्हारा न हो मन हमारा न हो
डूबकर कुछ सुनों और सुनकर बुनो
मन मिलाओगे मन से तो मिल जाएंगे
वरना हम हैं परिंदे बहुत दूर के
बोलियां अपनी बोलकर उड़ जाएंगे

मेहरबां होकर जब चाहे बुला लो मुझको
मैं गया वक्त नहीं जो आ भी ना सकूं

कमरे कम दीवार बहुत हैं
इस घर में लाचार बहुत हैं

खुद अपने अपमान से बच, यारों के अहसान से बच
जो निकले आसानी से ऐ दिल, उस अरमान से बच
बात इषारों में कर ले, दीवारों के कान से बच

जगमगाते हुए सूरज पर नजर रखता हूं
तुम समझते हो कि झिलमिलाते सितारों बहक जाऊंगा

घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाॅं
अपनी तबस्सुम से इसे सजाती हैं बेटियाॅं
जब वक्त आता है इनका बिदाई का
जार-जार सबको रूलाती हैं बेटियाॅं

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां
और जिंदगानी रही भी तो नौजवानी फिर कहो

मेरा मुझमें कुछ नहीं जो है सो है तेरा
तेरा तुझको सौंप दूं, क्या लागे है मेरा


जो भी आता है सजा देता है दोस्त बनकर दगा देता है
वो तो माॅं-बाप का ही दिल है वरना मुफ्त में कौन दवा देता है

वो आती रही मिलती रही, हम हंसी को प्यार समझ बैठे
वो एक दिन नहीं आई, हम इतवार समझ बैठे

सभी गीत ऊंचे स्वर में गाए नहीं जाते
जिगर के जख्म सभी को दिखलाए नहीं जाते
जिसे देखो वो बेताब है मीनार बनने को
पर नींव के पत्थर कहीं पाए नहीं जाते

नेता, कुत्ता और जूता पहले तो चरण चाटते हैं
और उसके बाद काटते हैं

गत क्या ढली, सितारे चले गये
गैरों से क्या गिला, जब अपने चले गये
जीत तो सकते थे इष्क की बाजी हम भी
पर तुम्हें जिताने के लिये हम हारते चले गये

वो घटाएं, वो फुहारें वो खनक भूल गये
बज्में बारिष में नहाने की ललक भूल गये
जब से इस बाग में तूने आना छोड़ दिया
तब से पंछी भी यहां अपने चहक भूल गये
हमारे होंठो की हंसी सबने यहां याद रखी
जाने क्यों लोग हमारे दिल की कसक भूल गये


जिन्होंने अपनों को ना माना, माना देष महान है
उन्हीं के दम पर खड़ा हुआ मेरा ये हिन्दुस्तान है

हर चमकती चीज सोना नहीं होती
भावुकता सिर्फ रोना नहीं होती
किसी की दूरी से उदास मत हो दोस्त
किसी की दूरी, उसे खोना नहीं होती

जो बसे हैं वो उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दिया जलाना कब मना है


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