Tuesday 16 May 2017

इस रात के अंधेरे में एक ख़ामोशी बिखरी हैं

इस रात के अंधेरे में एक ख़ामोशी बिखरी हैं ,
न जाने किसने कितनी कलियाँ तोड़ी हैं !
जिन्हें हक़ था खिलके मुस्कुराने का ,
न जाने उनकी हीं ख़ुशबू कितनो ने लूटी हैं !

मैं और तेरी परछाईं हैं

मैं मेरी क़लम और तेरी परछाईं हैं ,
तु नहीं तो सनम तरी याद हीं चली आइ हैं !
तु मुझसे दूर मैं तुझसे दूर ,
और कोई नहीं साथ मैं और तेरी परछाईं हैं 

ये ग़ज़ल ये शाम और तु याद आइ हैं ,
हर लफ़्ज़ हैं रूठे रूठे हर तरफ़ तन्हाई हैं !
तु नहीं तो मैं नहीं मैं नहीं तो तु नहीं ,
दूर तक हैं ख़ामोशी मैं और तेरी परछाईं हैं !

हर राह हैं सुना सुना हर जगह अँधियारा हैं ,
रोशनी चुभती हैं शूल सा अँधियारा बड़ा हीं प्यार हैं ,
बिन तेरे उजड़ा मेरा संसार ,
कोई न अब साथी मैं और तेरी परछाईं हैं !

हर दिन हैं बुझा बुझा हर हर रात सिर्फ़ तन्हाई हैं ,
सावन भी भाता नहीं हर मौसम हरजाई हैं !
बिन तेरे मैं भी न जी पाउँगा ,
इस जहाँ में बस मैं और तेरी परछाईं हैं !

मेरे क़लम की जान हों तुम

किसी का प्यार हों तुम ,
किसी का भोर हों तुम !
पर जबसे क़दम पड़े तेरे मेरे जीवन ,
तबसे मेरे क़लम की जान हों तुम !

हम दीवाने हैं तेरे जलवों के अपना एक जलवा दिखादे

हम दीवाने हैं तेरे जलवों के अपना एक जलवा दिखादे !
आजाए चैन तुझे बस इतना हमपर जुर्म ढा दे !


बनकर शोला मुझपर तु आग बर सा दे ,
पर मुझको मरने से पहेले एक बार अपना तू वो दिखा दे !

तुझसे मिलकर मैंने ये जाना जीना क्या होता हैं

तुझसे मिलकर मैंने ये जाना जीना क्या होता हैं ,
तुझसे हीं सिखा मैंने हँसना क्या होता हैं !
इतना चाहकर फिर क्यूँ मुकर गई ,
लगता हैं अब शायद बेवफ़ाई का नाम हीं प्यार होता हैं 

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