Tuesday 2 May 2017

हुई शाम

 हुई शाम

हुई शाम उनका ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

अभी तक तो होंठों पे था
तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत सदमे में थे हम उनको भूला कर
Hui Shaam हुई शाम 
अचानक ये क्या हो गया
के चहरे पे रंग-ए-मलाल आ गया

हुई शाम उनका ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

हमें तो यही था ग़ुरूर
ग़म-ए-यार है हमसे दूर
वही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामत की चाल आ गया

हुई शाम उनका ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया......

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