Thursday 27 April 2017

Shayari Dil se

Shayari Dil se

जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो साज पे गुजरी है वो किस दिल को खबर है

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता
किस घर में खुषी होती है मातम नहीं होता
क्या सुरमा भरी आँखांे से आँसू नहीं गिरते
क्या मेंहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

सबने मिलाए हाथ यहां तीरगी के साथ
कितना बड़ा मजाक है ये रोषनी के साथ
किस काम की रही ये दिखावे की जिंदगी
वादे किये किसी से निभाई किसी के साथ
शर्ते लगाई नहीं जाती दोस्तो के साथ
कीजे मुझे कबूल मेरी हर कमी के साथ
---वसीम बरेलवी ---
कीमत तो खूब बड़ गई शहरों मे धान की
बेटी विदा न हो सकी फिर भी किसान की
-- रईस अंसारी
सजा के चेहरे पर सच्चाई जो निकलता है
वो जिसका घूस से सब कारोबार चलता है
वो जिनके घर में दिया तक नहीं जलाने को
ये चांद उन्हीं के लिए निकलता है
--रईस अंसारी--
जमीनों में जमाना सोना चाँदी जर दबाता है
मगर वह पांव के नीचे मोह अख्तर दबाता है
मोहब्बत आज भी जिंदा है इन कच्चे मकानों में
मेरा बेटा बड़ा होकर भी मेरा सर दबाता है।
-जोहर कानपुरी-
जबान मेरी अच्छी है मेरा बयान अच्छा है
बस इसलिये कि मेरा खानदान अच्छा है
छतें टपकती  है लेकिन खुलूस है तो यहाँ
तेरे महल से ये कच्चा मकान अच्छा है
अभी बाकी है बुर्जुगों का एहतराम यहाँ
मेरे लिये तो मेरा हिन्दुस्तान अच्छा है।
-जोहर कानपुरी-
घास पर खेलता है बच्चा
और माँ मुस्कुराती है
न जाने क्यों ये दुनिया
काबा और सोमनाथ जाती है
- नीदा फाजली -
माँ के कदमों तले ढूंढले जन्नत अपनी
वरना तुमको नहीं जन्नत मिलने वाली
जिनके माँ बाप ने फुटपाथ पर दम तोड़ दिया
उनके बच्चों को कोई छत नहीं मिलने वाली
- हसन काजमी -
जब भी मेरी कष्ती सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

हमारा तीर कुछ भी हो निषााने पर पहुँचता है
परिंदा चाहे कुछ भी हो ठिकाने पर पहुँचता है
अभी ऐ जिंदगी तुमको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा सिर्फ काँधे तक पहुँचता है
धुँआ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
अपनी खुषी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
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बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची दीवार हर घड़ी खतरे में रहती है
ये ऐसा कर्ज है जिसको अदा मैं कर नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं माँ मेरी सजदे में रहती है
  -मुनव्वर राना

मेरी तमन्ना है मैं फिर से फरिष्ता हो जाऊं ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
-मुनव्वर राना
ठंडे दिल से सोच के देखो , क्या होगा जब कल के लोग
पुंछेगे क्यों नस्ल है गुंगी , तुम तो सुखनवर कितने थे
एक गिरा था आँख से आसूँ माँ की पत्थर बह निकले
तुम क्या जानो ऐसे कतरे , आँख के अंदर कितने थे
इस तरह हासिल जहाँ में हमने जन्नत की नहीं
   -माजिद -
क्या सीरत क्या सूरत थी
माॅं ममता की मूरत थी
पांव छुए और काम हुए
अम्मा एक महूरत थी ।
                                 -मंगल नसीम
शायद ये नेकियाँ है हमारी कि हर जगह
दस्तार के बगैर भी इज्जत वही रही
खाने की चीजें माँ ने जो भेजी है गावं से
बासी भी हो गयी है तो लज्जत वही रही
-मुनव्वर राणा-
धुंए को अब्र और गम को मुसर्रत करते रहते है
हम जहन्नुम को जन्नत करते रहते हैं
हमें इन झुर्रियों में आयतों का अक्स दिखता है
हम अपने माँ के चेहरे की हिफाजत करते रहते है।
सच बोलने के तौर तरीके नहीं रहे
पत्थर बहुत है शहर में शीषे नहीं रहे
खुद मर गया था जिनको बचाने में पहले बाप
अबकेे फसाद में वो ही बच्चे नहीं रहें
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कोई दरख्त या सायबा रहे न रहे
बुजुर्ग जिंदा रहे आस्मां रहे न रहे

हमारे कुछ गुनाहो की सजा साथ चलती है।
अब हम तन्हा नहीं चलते दुआ भी साथ चलती है
अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ हो नहीं सकता
मैं जब घर से निकलता हूॅ दुआ भी साथ चलती है।
                                           मुनव्वर
मिट्टी में मिला दे मैं तो हो नहीं सकता
अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
दहलीज पर रख दी है किसी शख्स ने आँखे
दिया कोई हो इतना वो रोषन हो नहीं सकता
-- मुनव्वर --
ये कौन जा रहा है मेरा गांव छोड़कर
आँखे भी रो रही है समंदर निचोड़कर
ना तूफानों का खौफ है ना आंधियों का डर
तुमने दिये बनाए हंै सूरज को जोड़कर

ऐसी हसीन बहारों की रात हैं
एक चाॅद आसमां पे है एक मेरे पास है
ऐ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की
अब किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है

महफिल में चार चाॅद लगाने के बावजूद
जब तक ना आए आप उजाला न हो सका

हर पल ध्यान में बसने वाले लोग अफसाने हो जाते है
आॅखे बूढ़ी हो जाती हैं, ख्वाब पुराने हो जाते हैं
सारी बात ताल्लुक वाली जज्बों की सच्चाई तक है
मेल दिलों में आ जाए तो घर विराने हो जाते है
-- अमजद --
तुम जिस ख्वाब में आँखे खोलो उसका रूप अमर
तुम जिस रंग का कपड़ा पहनो वह मौसम का रंग
तुम जिस फूल को हॅसकर देखो कभी ना वो मुरझाए
तुम जिस हरफ पर उंगली रखदो वो रोषन हो जाए
--अमजद--
     
     
        विदेषों मे बसने पर
एक जबरे वक्त है कि सहे जा रहे है हम
और इसी को जिंदगी कहे जा रहे है हम
रहने की ये जगह तो नहीं है मगर यहाँ
पत्थर बसे हुए है मगर रहे जा रहे है हम
--अमजद--
रोषन जो अपने दोस्तों की जात हो गयी
मालूम हमको अपनी  भी औकात हो गयी
मकतल में हमको कोई भी दुष्मन नहीं मिला
अपने ही दोस्तो से मुलाकात हो गयी
--अमजद--

ये फांकाकषी रोजे की आदत बनने वाली है
ये कमजोरी मेरे बच्चों की ताकत बनने वाली है
--तनवीर गाजी--
जिसे देखते ही खुमारी लगे
उसे उम्र सारी हमारी लगे
हँसी सूरते और भी है मगर
वो सब सैकड़ांे में हजारी लगे
वो ससुराल से आयी है मायके
उसे जितना देखो वो प्यारी लगे
--निदा फाजली--
वो जरा सी बात पर बरसांे के याराने गये
पर ये हुआ कि लोग पहचाने गये
में इसे शोहरत कहँू या मेरी रूसवाई कहूँ
मुझसे पहले मेरे अफसाने गये

जल रहे है माॅं की आॅंखो में मोहब्बत के चिराग
उसने दुनिया में जन्नत का नजारा रख दिया
--असर सिद्धी की --

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी ये तारे तो जमीं पर नहीं गिरता
गिरते है समंदर में बड़े शौक से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता

रहकर बंगले में भी अखलाक नहीं भूले हमने
अपने बंगलों से दिये सड़को पे उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने
--जोहर--
ये बात सच है कि आॅधियां खुदा चलाता है
मगर हमारे दिये भी तो वो ही बनाता है
--जोहर--
मेरे चेहरे पर ममता की फेरहानीचमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूं फिर भी पेषानी चमकती है
--मुनव्वर राना--
मियाॅ मैं शेर हूॅं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
लहजा नर्म भी कर लें झल्लाहट नहीं जाती

सूफियान काजी
करे खुद नाज जिनपे साथ ये संसार बेटे दे
जो माहिर हो बड़े फन में वो फनकार बेटे दे
मेरे मौला मेरी बस एक ही दरखास्त है तुमसे
जो लम्बी उम्र देना हो तो खिदमतदार बेटे दे

चमकती शोख चंचल आॅख गम में छोड़ आये हैं
हम अपना अक्स उसकी चष्मे नम में छोड़ आये है
बहुत खिदमत वहाॅ होगी इसी खातिर तो ऐ यारों
अपाहिज बाप को हम आश्रम में छोड़ आये है।

भला कैसे खिलेंगे फूल खुषियों के उस आॅगन में
अपाहिज बाप जब घर में हो और औलाद लंदन में
वो जिसके सर से साया बाप का कम उम्र में उठ जाए
उसे मौका शरारत का कहां मिलता है बचपन में

चूल्हा फूंकते वक्त धुंए से आॅख भर जाती है
उस आलम में देख के माॅ को भुख मेरी मर जाती है

वफादारी मोहब्बत आपसी रिष्ते निभाती थी
वो मां थी जो हमेषा प्यार के गजरे बनाती थी


मोहब्बतो को निभाने का दौर खत्म हुआ
वो इंक थाल में खाने का दौर खत्म हुआ

बेटे के साथ अबके बहू भी अरब गयी
किस खत का अब बूढ़े बाप को इंतजार है

न कमरा जान पाता है ना अंगनाइ समझती है
कहां देवर का दिल अटका है ये भौजाई समझती है
हमारे और उसके बीच एक धागे का रिष्ता है
हमें लेकिन हमेषा वो सगा भाई समझती है


कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है
अपने गांव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है
तेरे आगे माॅ भी मुझको मौसी जैसी लगती है
तेरी गोद में गंगा मैया अच्छा लगता है
माया मोह बुढ़ापे में बढ़ जाता हैं
बचपन में बस एक रूपैया अच्छा लगता है

बेटी बनाके लाए थे लेकिन खबर न थी
बेटा मेरा दबा के दुल्हन बैठ जाएगी
सगीर मजंर खडंवा

मैं बात करता नहीं पर अंधेरे से डरता हूूॅ माॅ
यों तो मैं दिखलाता नहीं पर तेरी परवाह करता हूंॅ माॅ
प्रसुन्न जोषी

बदन से अब मेरी जागीरदारी खत्म होती है
मेरे बेटे तेरी बूढ़ी सवारी खत्म होती है

माॅ बाप की आगोष तो फूलों की तरह है
फिर क्यों तेरा किरदार बबूलों की तरह है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवानी है, धागा डाल देती है



          जीवन दर्षन
रात की धड़कन, जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम, जिम्मेदारी रहती है
वो मंजील पर अक्सर देर से पहुॅचे है
जिन लोगो के पास सवारी रहती है

उसूलों पर जहाॅ आँच आऐ टकराना जरूरी है
जो जिंदा हूॅं तो जिंदा नजर आना जरूरी है
नयी उम्रो की मुख्तयारियों को कौन समझाए
कहाॅ से बनकर चलना है कहाॅ जाना जरूरी है
थके हारे परिंदे जब बसेरों के लिये लौटें
सलीका मंद शाखों का लचक जाना जरूरी है

मोहब्बत में कषिष रखने पर शर्माना जरूरी है
मेरे होठों पे अपनी प्यास रख दो फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना जरूरी है

फिर कभी किसी कबूतर की इमानदारी पर शक मत करना
वो तो इस घर को इसी मिनारे से पहचानता है
शहर वाकिफ है मेरे फन की बदौलत मुझसे
आपको जज्बा-ए-दस्तार से पहचानता है

बेखुदी में रेत के कितने समंदर पी गया
प्यास भी क्या शह हैं मैं घबराकर पत्थर पी गया
मयकदे में किसने कितनी पी ये तो खुदा जाने मगर
मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया

जिस्म पर मिट्टी मलकर खाक हो जाएगें हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाऐगे हम
ऐ गरीबी देख रस्ते में हमें मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएगें हम

बच्चों के छोटे हाथो को चाॅद सितारे छुने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे

हमारी दोस्ती से दुष्मनी भी शर्मायी रहती है
हम अकबर है हमारे दिल में जोधाबाई रहती है

फटी कमीज, नूची आस्तीन कुछ तो है
गरीब ऐसी दषा में कुछ तो है
लिबास कीमती रखकर शहर नंगा है
हमारे गावं में मोटा-महीन कुछ तो है

गिरकर उठना , उठकर चलना
ये क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क न पड़ता
किसी जीत या हार का

लाख खौफदारी हो जलजले के आने का
सिलसिला न छोड़ेगे हम भी पर बनाने का
कामयाबी तय करती है हौसलों की मजबूती
दिल में हौसला रखिये कष्तियाॅ चलाने का

सर काट के फिर सर पे मेरे वार करेगा
दुष्मन नहीं ये काम मेरा यार करेगा

खुषी से कब कोई मासूम करतब दिखाता है
ये मजबूरी  है पापी  पेट रस्सी पर चलाता है

यहाॅ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम-सा-बच्चा
बड़ो की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है
न बस में जिंदगी इसके न काबू मौत पर इसका
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता हूं
अजब यह जिंदगी की कैद है दुनिया का हर इसां
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता हैं

समझते थे मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने

मड़ दो चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं

हौसला हो तो उड़ानों में मजा आता है
पर बिखर जाए हवाओं में तो गम मत करना

आप हर दौर की तारीख उठा कर देखें
जुल्म जब हद से गुजरता है फना होता है

रस्में ताजीम न रूसवा हो जाए
इतना मत झुकिये कि सजदा हो जाए
कि जिनको दस्तार मिली है उनको
सर भी मिल जाए तो अच्छा हो जाए

वो जहाॅं भी रहेगा रोषनी लुटाएगा
चिराग का कोई अपना मकां नही होता

वो दौलत और बरकत अपने याद आया
जो अपने घर से लड़कियों को फेंक देते है
तरक्की हो गयी कितनी हमारे मुल्क में देखो
भिखारी एक रूपया और अठन्नी फेंक देते है

जब मेरी उड़ानों को आसमां याद आया
लोग पर कतरने को कैचियां उठा लाए

चिंगारियों को शोला बनाने से क्या मिला
तूफान सो रहा था जगाने से क्या मिला
आॅधी तेरे गुरूर का सर हो गया बुलंद
वरना तुझे चिराग बुझाने से क्या मिला
षिकवा तो कर रहे हो जमाने से क्या मिला

गुजर चुका है जमाना वो इंतजारी का
कि अब मिजाज बना लीजिए षिकारी का
वो बादषाह बन बैठे हैं मुकद्दर से
मगर मिजाज है अब तक वो ही भिखारी का
मंजर
अपने घर में भी सर झुकाकर आया हूं मैं
इतनी मजदूरी को बच्चों की दवाई खा जाएगी

सच कहूं मुझको ये उनमान बुरा लगता हैं
जुल्म सहता हुआ इंसान बुरा लगता है
उनकी खिदमत तो बहुत दूर बहू बेटों को
बूढ़े मो बाप का फरमान बुरा लगता है
किस कदर हो गयी मषरूफ ये दुनिया अपनी
एक दिन ठहरे तो मेहमान बुरा लगता है

डरने वाला हजार बार मरता है
मरने वाला केवल एक बार मरता है

दुष्मन वही बने रहे जो वे थे
धोखा तो उन लोगों से
हुआ जो दोस्त होने का दम भरते रहे हर दम

हमारा दिल तो मुकम्मल सुकून चाहता है
मगर ये वक्त कि हमसे जुनून चाहता है
फरेब इतने दिये हैं उसे सहारों ने
वो छत भी अपने लिये बेसूकूल चाहता है
सफर में बर्फ हवाओं से नींद आती है
लहू हमारा दिसम्बर में जून चाहता है



सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छिपाती है
जैसे सिसकियों का गम शहनाई छिपाती है
जो इसकी तह में जाता है फिर वापस नहीं आता
नदी हर तैरने वाले से गहराई छिपाती है
ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन माॅ को खुष रखना
ये कपड़ो की मदद से अपनी लंबाई छिपाती है

वो जालिम मेरी ख्वाइष ये कहकर टाल जाता है
दिसम्बर जनवरी में कोई नैनिताल जाता है

सो जाते है सड़को पर अखबार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
दावत तो बहुत दूर हम जैसे कलंदर
हर एक के पैसे से दवा भी नहीं खाते

मोहब्बत भी अजीब शह है कोई परदेस में रोए
तो फौरन हाथ की एकाध चूड़ी टूट जाती है
कभी कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती है
लड़कपन में किये वादे की कीमत कुछ नहीं होती
अंगूठी हाथ में रहती है मंगनी टूट जाती है
किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी
कुएं में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है

लोग मतलब परस्त होते हैं बहती गंगा में हाथ धोते है
नींद आती नहंी अमीरों को हम गरीब चैन की नींद सोते है

मेरे हाथों मे पढ़ गये छाले जलती बस्ती बुझा के आया हूं
जिद थी सूरज को देखने की बहुत अपनी आॅखे गंवा के आया हूं

किस काम की ऐसी  परदेस में कमाई
जब बाप की मैयत में नजर औलाद न आई

एक दिन सब पर मौत की देवी टूटकर मेहरबां होती है
कब्र की नींद क्यों ना मीठी हो उम्र भर की थकान होती है

वो जिनका घर बसाने के लिये खुद लुट गया हूॅं मैं
उन्हंे इस शहर में बस मेरा ही घर अच्छा नहीं लगता
तू सच्चा है तो गम कैसा अगर दुनिया मुखालिफ है
अंधेरो को कभी नूरे सहर अच्छा नहंीं लगता

चिरागांे को ये चाहिये बचाए जिंदगी अपनी
हवाएं तो सफर में है हवाएं कैसे कम चले
बगैर कुछ कहे खुलेगा कैसे राजे गम
जबाने बंद हंै अगर तो हाथों की कलम चले

हर आदमी अपने मुकाम से एक कदम दूर
हर एक के घर में कमरा एक ही कम है

आंगन में जहाॅं खेलने बच्चे नहीं आते
उस घर में यू लगता है फरिष्ते नहीं आते
खुषियांे के लिये भेजे हैं बच्चों को अरब हम
और खुषियों की घडि़यांे में ही बच्चे नहीं आते
अपनी सच्चाई से सपनों की तरफ मत जाना
गांव में हो तो शहरों की तरफ मत जाना
माॅऐ कहती थी तूफानों का रूख मोड़ आओ
माॅऐ कहती है कि लहरों की तरफ मत जाना

जिस दिन भी मैं और तुझे हम हो जाएगा
उस दिन घर का पानी भी जमजम हो जाएगा
माॅ के कदमों पर सर रखकर सो जाओ
दर्द हो चाहे जैसा भी कम हो जाएगा

रिष्तो की कहकषों सरे बाजार बेचकर
घर को बना लिया दरो दीवार बेचकर
शोहरत की भुख हमको कहा ले के आ गयी
हम मोहतरम हूए भी तो किरदार बेचकर
वो शख्स सूरमा है पर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है तलवार बेचकर
जिनकी कलम ने मुझ तो बोये थे इंकलाब
अब पेट पालता है वो अखबार बेचकर

इस दौर में शायर पर अजब वक्त पड़ा है
बोेले तो जुबां जाए ना बोले तो हुनर जाए
दस्तार की हुकूमत पर कोई हर्फ ना जाए
दस्तार बुर्जुगों की है सर मेरा है सर जाए

लोगों के दिलों और दुआओं में मिलेगा
वो शख्स कहाॅ तुमको गुफाओं में मिलेगा
ठहरे हुए मौसम में कहाॅ उसका ठिकाना
शाहीन है वो तेज हवाओं में मिलेगा

जिंदगी से कुछ न देने की षिकायत क्या करूं
सोचता हूंॅ जिंदगी तुमको मैंने क्या दिया
मैं गिरा तो वो उठा मुझको गिराने के लिये
भीड़ में दानिष्ता खुद जिसने मुझे धक्का दिया

ताल्लुक रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना हो नामुमकीन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

गुलामों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मुहब्बत करने वाले खून सूरत लोग होते है
यही अंदाज है मेरा समंदर फतह करने का
मेरी कागज की कष्ती में कई जुगनू भी होते है

इलाजे दर्दे दिल तुमसे मसीहा वो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
तुम्हें चाहूॅ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूॅ
मेरा दिल फेर दो मुझसे यह सौदा हो नहीं सकता

कमाले बुजदिली है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
गर जुर्रत है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
उभरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
नहीं तो कौन सा कतरा हैं जो दरियां हो नहंी सकता

रहने दे आसमां जमीं की तलाष कर
सब कुछ यही है ना कही और तलाष कर
हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मजा
जीने के लिये बस एक कमी की तलाष कर

क्या आफताब लोग थे मिट्टी में मिल गये
मिट्टी का एक घर बनाने की फिक्र में
कुछ लोग हैं कद मेरा घटाने कि फिक्र में
मैं हूॅं सितारे तोड़के लाने की फिक्र में

लहजे की उदासी  कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाॅंद सितारों की महफिल मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो तुम साथ रहो जज्बों मे कसक आ जाएगी
कुछ देर में बादल बरसेंगे कुछ देर में सावन झूमेंगे
तुम जुल्फ यूहीं लहराये रहो मौसम में सनक आ जाएगी

आॅखो का था कसूर ना दिल का कसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा गुरूर था
वो थे ना मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता ना था नजर तो नजर का कुसूर था
साकी की चष्में मस्त का क्या कीजिये बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था

तुम्हीं को आॅख भर देख पाऊं मुझे इतनी बिनाई बहुत है
नहीं चलने लगी यूं ही मेरे पीछे ये दुनिया मैंने ठुकराई बहुत है

शजर के कद ना शाखों की लंबाई से डरता हॅू
किसी पर्वत ना पर्वत की ऊॅंचाई से डरता हूॅ
समंदर नापना चुटकियों का खेल है लेकिन
तुम्हारे दिल की आॅखों की गहराई से डरता हूॅ
मेरी बस्ती की बेटी मायके में जबसे बैठी है
न जाने क्यों मैं सपने में भी शहनाई से डरता हूॅ
अभी इस शख्स ने तहजीब का दामन नहीं छोड़ा
मैं पापा बन गया हूॅं पर बड़े भाई से डरता हूॅ
मैं इज्जत से जिऊॅं दुनिया में जितने भी दिन जिऊॅ
मैं मरने से नहीं डरता रूसवाई से डरता हूॅ

ये दिल की लगी कम क्या होगी ये इष्क भला कम क्या होगा
जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा

कम होते है जमाने में ऐसे लोग
जिन्हें चाहत की पहचान होती है
सोच लेना किसी पर मरने से पहले
लुटाने के लिये सिर्फ एक ही जान होती है
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल ना चाह कर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर दोस्ती जताता है
कोई कुछ ना कहकर भी दोस्ती निभाता है

कौन सी बात को हां कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है

वो कहते है ये मेरा तीर है जो लेकर निकलेगा
मैं कहता हूँ ये मेरी जान है बड़ी मुष्किल में निकलेगी

खुदा करें कि बारिषों में बिछड़े हम
कि मेरी आॅख में आसूं न नजर आये तुझे

नक्षा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान
कैसे दीपक खा गई उसका हिन्दुस्तान

ईसा,  अल्लाह,  ईष्वर सारे मंतर सीख
जाने कब किस नाम पर मिले ज्यादा भीख

बादलों से सलाम लेता हूँ, वक्त को मैं थाम लेता हूँ
मौत मर जाती है पल भर के लिये जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ

अपनी मस्ती की शाम मत देना
दोस्तों को ये काम मत देना
जिनको तमीज ना हो पीने की
उनके हाथों में जाम मत देना

इतने बदनाम हुए हम इस जमाने में
तुम्हें लग जाएगी सदियाँ हमें भुलाने में
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में

मिले न खुद जो छलककर वो प्यार मत लेना
खुषी कभी भी किसी से उधार मत लेना
कभी-कभी तो पुराने ही काम आते हैं
तू घर के सारे कैलेंडर उतार मत लेना
दवा के बदले जहर ही मिलेगा दुनिया में
कभी गमों में उसे तू पुकार मत लेना

सितारे तोड़ने की मेरी ख्वाहिष तुमसे पूरी हो
दुआ है तुम सभी कद से मेरे ऊँचे निकल जाओ

तरक्कियों की दौड़ में उसी का दौर चल गया
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया
कहाँ तो बात कर रहा था खेलने की आग से
जरा सी आंच क्या लगी तो मोम सा पिघल गया

कामयाबी के वो सफात आ जाता है
काबू करना जिसे जज्बात पे आ जाता है
बात करते हुए डरती है शराफत उससे
चंद लम्हों में जो औकात पे आ जाता है

तुम अक्सर जहन मेरा होष वाला छीन लेेते हो
अंधेरा बोट देते हो उजाला छीन लेते हो
अमीरे शहर होने का यकीनन हक तुम्ही को है
कि तुम मुफलिस के मुँह का भी निवाला छीन लेेते हो



सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इष्क के इम्तिहां और भी है
इसी रात दिन में उलमा कर न रह लेना
जमीं और भी है आस्मां और भी है

निर्माण घर में बैठ कर होता नहीं कभी
बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे
पीछे बंधे है हाथ मगर शर्त है सफर
किससे कहूॅ कि पांव से कांटा निकाल दे

न कर शुमार कि हर शै गिनी नहीं जाती
ये जिंदगी है हिसाबों से जी नहीं जाती

चारों ओर खड़े है दुष्मन बीचों-बीच अकेला मैं
जबसे मुझको खुषफहमी हैं,सब घटिया है, बढि़या मैं

छोटी-छोटी उम्मीदों पर लहरा लहरा मरता हँू
जो जन्नत को तज आया था उस आदम का बेटा हूँ

अपने हाथ कहां तक जाते भागदौड़ बस यूं ही थी
उनके बांस बहुत थे लंबे जो कन कैया लूट गये
बाहर धूप थी षिद्धत की और हवा भी अंदर थी बेचैन
गुब्बारे वाले के आखिर सब गुब्बारे फूट गये

नुमाइष के लिये जो मर रहे हैं
वो घर के आइनों से डर रहे है
बला से जुगनुओं का नाम दे दो
कम से कम रोषनी तो कर रहे है

घर की तामीर चाहे कैसी हों, इसमें रोने की कुछ जगह रखना
उम्र कहने को है पचास के पार कौन है किस जगह पता रखना

कत्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने लुटाने पे खबर  बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है

अब प्रतिस्पर्धा व्यर्थ है, व्यर्थ हुए सब ढंग
वायुयान में बैठकर उड़ने लगी पंतग

समय समय की बात है उलट पुलट परिवेष
आज पतंगे दे रही, पेड़ों को उपदेष

जरा सा कतरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरो के ही लहजे में बात करता है
खुली छतो के दिये कबसे बुझ गये होेते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है
शराफतों की जमाने में कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन डरता है
तुम आ गये हो तो कुछ चाँदनी सी बाते हो
जमीं पर चाँद कहां रोज-रोज उतरता है
जमीं की कैसी वकालत हो कुछ नहीं चलती
अगर आसमां से कोई फैसला उतरता है

वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार ना करता तो और क्या करता

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आॅसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसु को फिर आँखो से बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी के फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी का खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है

उसके तेवर समझना भी आसां नहीं
बात औरो की थी, हम निगाहों में थे

अपनी सूरत से जो जाहिर हो छुपाये कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे

जिसके उसूल हमको इबादत में ले गये
अफसोस हम उसी को अदालत में ले गये

कमा तो लाउंगा कफ्र्यू में रोटियाँ लेकिन
तुम्हारे हाथों में कंगन रहे दुआ करना

खामोष समंदर ठहरी हवा, तूफां की निषानी होती है
डर और ज्यादा लगता है, जब नाव पुरानी होती है
एक ऐसा वक्त भी आता है आँखो में उजाले चुभते हैं
हो रात मिलन की अंधियारी , तो और सुहानी होती है
अनमोल बुजुर्गो की बातें अनमोल बुजुर्गो का साया
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयां हैं नामुनकिन
जब बाप के कांधो को मय्यत बेटो की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जाते है
दुनिया वालों के होठों पे उनकी कहानी होती है
हो जाएगी ठंडी रोने से यह आग तुम्हारे दिल की मयंक
होती है नवाजिष अष्को की तो आग भी पानी होती है

बनाओ शौक से ऊँची इमारतें लेकिन
किसी फकीर के आने का रास्ता रखना
वो शख्स चिखता फिरता है आज सड़को पर
मुसिबतों में जो कहता था हौसला रखना

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आँसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसू को फिर आँखो सेे बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी को फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है







राजनीति
पीली शाखें सूखे पत्ते , खुषरंग शजर बन जाते हैं
जब उसकी नवाजिष होती है, सब एक हुनर बन जाते हैं
चलते हैं सभी एक साथ मगर, मंजिल पर पहुँचने से पहले
कुछ राहनुमा बन जाते है, कुछ गर्दे सफर बन जाते हैं
ये शौके सियासत भी है अजब, इस शौके सियासत में यारों
कुछ लोगों के घर बिक जाते है, कुछ लोगों के घर बन जाते हैं

बारूदों के ढेर पर बैठी हुई दुनिया
शोलो से हिफाजत का हुनर कुछ रही है

कसम खुदा की हम उनको ही प्यार करतेे हैं
जो दिल के तीर से दिल का षिकार करते हैं
सफेद पोषों से दिल की कहानियाँ मत कहो
ये लोग दिल से नहीं दिल्ली से प्यार करते हैं
किसी से छीन कर खाना हमें नहीं आता
हम तो शेर हैं अपना षिकार खुद करते है
मजा तो तब है जब मौत से मिलो खुष होकर
कि जिदंगी से कुत्ते भी प्यार करते है
                                    जौहर कानपुरी

सारी बस्ती कदमों में है ये भी एक फनकारी है
वरना बदन को छोड़कर अपना जो कुछ है सरकारी है
फूलो की खुषबू लूटी है कांटो की चैकीदारी में
ये रहजन का काम नहीं है रहनुमाओं की मक्कारी है।

क्लींटन पर- राहत इंदौरी

अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूं
मैं चाहता था सितारों को आफताब करूं
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन हैं दुनिया इसे खराब करूं

आँखो में आसूं रखो, होठों में चिंगारी रखो
जिदंा रहना है, तरकीब बहुत सारी रखो

खातिर से या लिहाज से मैं मान तो गया
झूठी कसम से आपका ईमान तो गया

तारीके वक्त उतर आया अदाकारी पर
लोग मजबूर हैं जालिम की तरफदारी पर
कल इसी जुर्म पर सर काट दिये जाते थे
आज एजाज दिया जाता है गद्दारी पर

यह भी एक रास्ता है मंजिलो को पाने का
सीख लो तुम भी हुनर हाँ में हाँ मिलाने का

भूली बिसरी सी एक कहानी दे
मुझको वापस मेरी जवानी दे
इन अमीरो से कुछ नहीं होगा
हम गरीबों को हुक्मरानी दे
ष्
ऐ यार समझते हैं, खूब तेरे धोखे
तू हमको बुलाता है, दरबान तेरा रोके

तुम्हारा कद मेरे कद से बहुत ऊँचा सही लेकिन
चढ़ाई पर कमर सबको झुकाकर चलना पड़ता है
सियासत साजिषों का ऐसा खेल है जिसमें
कभी चालों को खुद से छुपाकर चलना पड़ता है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवाती है धागा डाल देती है

हर मैंदा में पापा जीते मैंने मानी हार
मैंने पैसा बहुत कमाया और पापा ने प्यार

वो उम्र में बढ़े हैं कद में बढ़े नहीं
इस वास्ते नजर में हमारे चढ़े नहीं
घेरे हूए खड़े हैं वो पंजो के बल हमें
कुछ लोग चाहते हैं कद मेरा बढ़े नहीं

चोर के डर से माल छुपाया जाता है
थप्पड़ खाकर गाल छुपाया जाता है
तुमने उनसे भीख मांगली अय्यर जी
जिनसे घर का हाल छुपाया जाता हैं।

राहत  इंदौरी
मैं वो दरिया हूँ हरेक बूंद भंवर हैं जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
मुन्तजिर हूँ सितारों की जरा आँख लगे
चांद को छत पे बुला लूंगा इषारा करके

ये जो सहारा नहीं तो परेषां हो जाए
मुष्किलें जान ही लेले अगर आसां हो जाए
ये जो कुछ लोग फरिष्ते बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी लग जाए तो इसंा हो जाए

मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं
लगा है जिसको जमाना खुदा बनाने में
लगे थे जिद पे कि सूरज बनाके छोड़ेगे
पसीने छूट गये हक दिया बनाने में
तमाम उम्र मुझे दर-बदर जो करते गये
जुटे है वो ही मेरा मकबरा बनाने में
ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे हैं
इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में

तू किसी ओर से न हारेगा
तेरा गरूर ही तुझको मारेगा
तुझको दस्तार जिसने बख्शी है
तेरा सर भी वो ही उतारेगा
एक जरा और इंतजार कर लो
सब्र जीतेगा जुल्म हारेगा

 

            संचालन
बापू तेरी मौजूदगी में दुनिया कौन देखेगा
मेले में देखेंगे तुझे सब, मेला कौन देखेगा

दरिया को जौन था कि मैं धारे पे आ गया
लेकिन मैं एक था जो किनारे पे आ गया
मुझको बुलाने वालों की उम्र निकल गई
लेकिन मैं एक तेरे इषारे पे आ गया

ये और बात है खामोष खड़े रहते है
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते है

हर खुषी हँसी मांगे आपसे
हर फूल खुषबू मांगे आपसे
इतनी रोषनी हो आपकी जिदंगी में
कि खुद बिजली वाले कनेक्षन मंागे आपसे

चेहरे पे खुषी आ जाती है आँखो में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे गुरूर आ जाता है
जब तुमसे मोहब्बत की हमने तब जाके कहीं ये राज खुला
मरने का सलीका आते ही जीने का सुरूर आ जाता है

जो सफर इख्तयार करते है
वहीं मंजिल को पार करते है
बस एक बार चलने का हौसला रखिये
ऐसे मुसाफिर का रास्ते भी इंतजार करते है

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल न चाहकर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर भी दोस्ती निभाता है

कोई पूछता नहीं था, जब तक बिका ना था
तुमने मुझे खरीद कर अनमोल कर दिया

मैं प्रेेमी का उपहार हॅविवाह का हार हूँ
मैं खुषी के एक पल की यादगार हूँ
मैं मृतक को जिदंगी का आखिरी उपहार हूँ
मैं आनंद और गम दोनों का राजदार हूँ

सौ चाँद भी चमके तो क्या बात बनेगी
तुम आओ तो इस रात की औकात बनेगी

हमारा जिक्र तो हर पल हुआ फसाने में
तो क्या हुआ जो थोड़ी देर हुई आने में

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