Heart Touch Shyari.....
चिराग हो के न हो दिल जला के रखते है
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते है
मिला दिया है भले पसीना मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते है
बस एक खुद से ही नहीं बनी वरना
जमाने भर से हमेषा निभा के रखते हैं
हमें पंसद नही जंग में भी चालाकी
जिसे निषाने पर रखते है बता केे रखते है
देखो कहीं ये जुगनू दिनमान हो न जाये
ये रास्ते का पत्थर, भगवान हो ना जाये
जो कुछ दिया है प्रभु ने अहसान मानता हूँ
बस चाहता यही हूॅं, अभिमान हो ना जाये
लगन से काम को अपने जो सुबह-ओ-षाम करते है
जिन्हेें मंजिल की ख्वाइष है वो कब आराम करते है
ये छोटी बात है लेकिन तुम्हारे काम आएगी
जो अच्छे लोग होेेते है वो अच्छे काम करते है
बहुत कम लोगों को मिलता है यह एजाज दुनिया में
जो अपने साथ में रोषन बड़ो का नाम करते हैं।
मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मेाहताज नहीं
ये कैंचिया हमें उड़ने से खाक रोकेगी
कि हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
जंग में कागजी अफदाद से क्या होता है
हिम्मतें लड़ती है तादाद से क्या होता है
फिर एक बच्चे ने लाषों के ढेर पर चढ़कर
ये कह दिया कि अभी खानदान बाकी है
मैं पर्वतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली जमीन खोद के फरहाद हो गये
तुझे खबर भी है मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है
आग नफरत की जो हम लोग बुझाने लग जाए
फिर सियासत के यहाँ होष ठिकाने लग जाए
अपनी मेहनत के सबब और उसकी इनायत के तुफैल
मैं जहां पहुँचा दूँ औरों को जमाने लग जाए
काम को फर्ज समझकर जो निभाने लग जाए
फिर बुलंदी से बुलाने हमें आने लग जाए
शुभकामनाएँ
फूलों की तरह महकते रहो, तारों की तरह चमकते रहो
बुलबुल की तरह चहकते रहो, हीरे की तरह दमकते रहो
तुम्हारे जीवन में कोई नीरसता न कोई शोक हो
कदम कदम पर खुषियाँ और पवं भरा आलोक हो
हँसते रहे आप हजारों के बीच में
जैसे हँसता है फूल बहारों के बीच में
रोषन हो आप दुनिया में इस तरह से
जैसे होता है चाँद सितारों के बीच में
तलाष करोगे तो कोई मिल ही जाएगा
मगर हमारी तरह रिष्ते कौन निभाएगा
माना कमी नहीं आपके चाहने वालों की
मगर क्या कोई हमारी जगह ले पाएगा
अपने दिल की सुनो अफवाहों पर कान ना दो
हमें बस याद रखो, बेषक कभी नाम ना लो
आपको वहम है हमने भुला दिया आपको
पर मेरी कोई ऐसी सांस नहीं जब आपका नाम न लूं
आपकी एक मुस्कान ने हमारे होष उड़ा दिये
और हम जब होष में आए आप फिर मुस्कुरा दिये
छते, सुंदर देहरियाँ, दालाने व द्वार
तोरण, दीप, रांगोलियां, झिलमिल बांदरवार
अपने आंगन रोषनी, कर लेना भरपूर
कुछ उनको भी बांटना , जो बैठे मजबूर
दो सुमन मिले, दो वंष मिले, दो सपनों ने श्रृंगार किया
दो दूर देष के पथिको ने संग-संग चलना स्वीकार किया
वक्त की धूप हो या तेज आँधिया, कुछ कदमों के निषां कभी नहीं खोते
जिन्हें याद कर मुस्कुरा दें आंखे वे दूर होकर भी दूर नहीं होते
आज के बाद न जाने क्या समां होगा
हममें से ना जाने कौन कहां होगा
फिर मिलना होगा सिर्फ ख्वाबों में
जैसे सुखे गुलाब मिलते है किताबों में
सीढि़याँ उनके लिये बेमानी हैं जिन्हें चाँद पर जाना है
आसमान पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद ही बनाना है।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम तो दरियाँ है हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी हम बहेंगे रास्ता हो जाएगा
दिल ऐसा कि सीधे किये जूते भी बड़ो के
जिद इतनी कि खुद ताज उठाकर नहीं पहना
श्रृध्दांजली
सोचते हो कि ये नहीं होगा, आसमां एक दिन जमीं होगा
कोई मरने से मर नहीं जाता, देखना वो यहीं कहीं होगा
बिछड़ा वो इस अदा से कि रूत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर केा वीरान कर गया
दिल के किसी कोने में आबाद रहेंगेे
कुछ लोग जमाने को सदा याद रहेगे
दुनिया बड़ी खराब है शायद इसीलिये
अच्छे जो लोग आये वो जल्दी चले गये
दिलों में दर्द आँखो में नमी महसूस करते है
कोई मौसम हो हम तेरी कमी महसूस करते है
वो आज जिसके जाने से आलस उदास है
लगता है जैसे अब भी मेरे आसपास है
वो मजबूत है इतना कि टूटा सा लगता है
सच्चा है इस कदर कि झूठा सा लगता है
रूठे तो सोचा था मनाएगा वो हमको
मनाने वाला भी मगर रूठा सा लगता है
याद हमें जब भी आते संग बिताए पल छिन सारे
बरबस ही निर्झर बह जाते, नैनांे से दो जल-कण खाटे
दोपहर में सूर्यास्त
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयंा है नामुमकिन
जब बाल पके कंाधो को मय्यत बेटों की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जातेे है
दुनिया वालों के होठों पर उनकी ही कहानी होती है
अनमोल बुजुर्गों की बातेें अनमोल ही कहानी होती है
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है
हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे
हम जो किसी दिन सोये तो फिर सोते ही रह जाएगें
वो देखो सामने है, अभी तक नजर में है
बिछड़ा कहाँ से भाई , हमारा सफर में है
शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके मांदे परिंदो को उड़ाता क्यों र्हैं।
वक्त को कौन भला रोक सका है पगले
सुइयां घडि़यों की तू पीछे घुमाता क्यों है।
स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छांव में बैठ के अंदाज लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने मे है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब, त्याग-तपस्या-पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रष्न उठाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है
देख न चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यों हैं।
बदमस्त वो अल्हड़ सी कुंआरी पलके
रात की जगी नींद सी भारी पलके
उन पलकों पर जब से डाली है नजर
अल्लाह की कसम नहीं झपकी पलके
राज जो कुछ हो इषारों में बता भी देना
हाथ जब उनसे मिलाना दबा भी देना
और वैसे नषा तो बुरी बात है मगर
राहत से शेर सुनना हो तो थोड़ी पिला भी देना
जुंबा तो खोल, नजर तो मिला, जबाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
तेेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढ़ाव
मैं तुझे कैसे पढंूगा मुझे वो किताब तो दे
जहालतो के अंधेेरे मिटा के लौट आया
मैं आज सारी किताबें जला के लौट आया
वो अब भी रेल में बैठी सिसक रही होगी
मैं अपना हाथ हवा में हिलाके लौट आया
बदन था जैसे कहीं मछलियाँ थिरकती थी
वो बहता दरिया थी और मैं नहाके लौट आया
खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहाँ
मैं जिस जमीन को ठोकर लगा के छोड़ आया
हाले दिल सबसे छुपाने में मजा आता है
आप पूछे तो बताने में मजा आता है
चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
रोज तारो की नुमाइष में खलल पड़ता है
उनकी याद आई है साँसो जरा धीरे चलो
धड़कने से भी इबादत में खलल पड़ता है
हर लहजा तिरे पांव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिलकर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ कि जमाना हाई दे
बहुत रोई हूँ हँसना चाहती हूँ
मैं तेरे दिल में बसना चाहती हूँ
दरीचे खोल दे सब अपने दिलके
मैं बदली हूँ बरसना चाहती हूँ
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चाँदनी बनके तेरे दिल में उतर जाऊंगी
तू निगाहों से छुएगा तो निखर जाऊंगी
जिंदगी मेरी नहीं मुझसे संवरने वाली
तू मेरा आइना बन जा तो सवर जाऊंगी
लाली, पावडर और काजल की
चलती फिरती दुकान लगती हो
जब भी मेकअप उतार देती हो
केाई पुराना मकान लगती हो
जुगनुओं को जतन से पाला है, तब कहीं मुष्क भर उजाला है
तुमने ठोकर पर रख दिया दिल को, हमने किस तरह संभाला है
लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो, चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाँद सितारों की महफिल , मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो, तुम साथ रहो, जज्बों में कसक आ जाएगी
हमें आना है हाले दिन सुनाने
तुम्हें किस रोज आसानी रहेगी
किसी का दिल दुखाओगे तो घर में
बहुत रोज परेषानी रहेगी
कभी खुषी से खुषी की तरफ नहीं देखा
एक तेरे बाद किसी की तरफ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतजार लाजिम है
ये सोचकर कभी घड़ी की तरफ नहीं देखा
मोहब्बत का मुकद्दर तो अधूरा था अधूरा है
कभी आसूँ नहीं होते, कभी दामन नहीं होता
किसी से कोई ताल्लुक न दोस्ती न लगाव
फिजूल यूं ही जिदंगी बिता रहा था मैं
तेरी निगाह ने एक काम कर दिया वरना
बहुत दिनों से कबूतर उड़ा रहा था मैं
जो हुक्म देता है वा इल्तिजा भी करता है
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है
तू बेवफा है तो ले इक बुरी खबर सुन ले
कि मेरा इंतजार दूसरा भी करता है
उन्हें ये जि़द है मुझे देखकर किसी को न देख
मेरा ये शौक है की सबसे सलाम करता चलूं
ये मेरे ख्वाबों की दुनिया न सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूं
कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को
बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हूँ
तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है
हाय ये कैसा मौसम आया, पंछी गाना भूल गये
बुलबुल भूली गज़ल, पपीहे प्रेम तराना भूल गये
जाने हवा चली ये कैसी, कैक्टस उगे गुलाबों में
नफरत पढ़ने लगी पीढि़याँ, खुषबू भरी किताबों में
बम और बारूद की भाषा इतनी भायी दुनिया की
आग लगाना याद रहा हम आग बुझाना भूल गये
हमें कुछ पता नहीं हम क्यों बहक रहे हैं
रातें सुलग रही है दिन भी दहक रहे है
जबसे है तुमको देखा बस इतना जानते है
तुम भी बहक रहे तो हम भी बहक रहे हैं
बरसात ही नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई जुल्फें और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भौरंा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो, हम भी समझ रहे हैं
मजाकिया
बुरे समय को देखकर गंजा तू क्यों रोये
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाका होय
तुम्हारी अंगड़ाई से मेरी जान निकल जाती है
मेरी जान तू डी. ओ. क्यों नहीं लगाती है
काजल, पावडर और लाली की
चलती फिरती दुकान नजर आती हो
और जब धो लेती हो मुहँ अपना
केाई पुराना मकान नजर आती हो
नल आने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो
हमने देा दिन से मुँह नहीं धोया अपना
और तुम नहाने की बात करते हो
ये लड़की नहंी झांसी की रानी है
इसकी एक नहीं कई कहानी है
शरीर पर हे मेरे जो चोंटो के निषान
ये सब इसी के हाथों की निषानी हैं
लोहे को लोहा काट सकता है
हीरे को हीरा काट सकता है
ज़हर को काटे हे ज़हर
तुम प्लीज अपना ख्याल रखना
तुुमको कुत्ता काट सकता है
दीपावली
दीप जले देता उजियारा, मन जलकर देता अंधियार
इसलिये सब दीप जलाना, नहीं जलाना अपने मन को
एक जरा सी कौध्ंा तुम्हारी दीपक को अर्पित कर देना
वो छोटा सा दीप चुनौती दे देगा तमके शासन को
दीपावली पे ये भी दुआ मंदिरो में हो
चाहत वफा खुलूस मोहब्बत घरों में हो
हमने घरों में अपने उजाले तो कर लिये
कोषिष करें कि रोषनी सबके घरों में हो
कुछ सितारों की चमक नहीं जाती
कुछ यादों की कसक नहंी जाती
कुछ लोगों से होता है ऐसा रिष्ता
दूर रहकर भी उनकी महक नहीं जाती
खुषी दोमाला हो जाती हरेक त्यौहार की अपने
मुसीबत में किसी मजबूर के जो काम आ जाते
दीवाली पर दिये घर के जलाने से तो बेहतर था
किसी मुफलिस के घर का हम अगर चूल्हा जला पाते
आंखो में आंसुओ की जगह अब रहेगा कौन
हुई शाम अब तो चलो अपने घर चलंे
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन
ऐसी गजल की जिसमें हो सच्चाईयों का जिक्र
मैं कह भी लंू अगर तो फिर उसको सुनेगा कौन
ये जो हरसु फलक मंजर खड़े हंै
न जाने किसके पैरो पर खड़े हैं
तुला है धूप नरसाने पर सुख
शेर भी छतरियां लेकर खड़े हैं
इन्हें नामों से पहचानता है
मेरे दुष्मन मेरे अदंर खड़े हैं
किसी दिन चाँद निकला था यहां से
उजाले आज तक यहां खड़े हैं
कभी उंगली पकड़कर मैं जिसे चलना सिखाता था
उसी का हाथ अब मेरी ही पगड़ी तक पहुँचता हैं
वो भी दिन थे कभी अपने अदालत घर मे ंलगती है
मगर मन मसहला घर का कचहरी तक पहुँचता है।
वो मेरे लब को चूमकर बोले
जिंदगी भर जुबान बंद रखना
आज कोई त्यौहार है शायद
आज अपनी दुकान बंद रखना
कुछ दिनों से खराब मौसम है
ऐ परिंदो उड़ान बंद रखना
सफर हयात का तमाम हिजरतो में बंट गया
वतन जमीन ही रही में सरहदों में बंट गया
हजार नाम थे मेरे मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों मस्जिदों में बंट गया
मैं जख्म-जख्म आदमी के दुख समेटता रहा
खुदा जो मस्जिद में था नाराजगी में बंट गया
जिसकी आहट पर निकल पड़ता था सीने से
आज उसेे देखकर दिल मेरा धड़का ही नहीं
यूं तो मुंतजीर किसी शाम में भी नहीं था उसका
वादे पर उसके कभी वो भी आया नहीं
जिंदगी भर का सफर साथ कटा है इसके
लाष के पांव से कांटा ना निकाला जाए
उजाले इस कदर बेनूर क्यों है
किताबें जिदंगी से दूर क्यों है
कभी यूं हो की पत्थर चोट खाए
ये हरदम आइना ही झूट क्यों है
आज तो आप भी शीदों की तरह बोलकर
हम तो समझे थे कि पत्थर नहीं बोला करते
इतना उड़ने के लिये पर नहीं खोला करते
लब हिलाने की किमत भी इन्हें दी जाती है
ये शराफत से कभी मुंह नहीं खोला करते
जी हजूर मैं किसी पद से नवाजे जाते
हम भी सरकार के अतराफ जो बोला करते
साम्प्रदायिकता के दानव का अंत निकट अब आया है,
राष्ट्रहित रक्षार्थ अर्जुन ने फिर गांडीव उठाया है।
जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता,
उस कौम का दुनिया में कहीं घर नहीं होता
क्या रंग दे रहा है, माषूक का बुढ़ापा,
अंगूर का मजा, किषमिष में आ रहा है।
गिला तुझसे नहीं है ओ आस्तीन के सांप,
हमसे ही तुझे खून पिलाते नहीं बना।
दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटो के लिये,
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेडि़या हो जाएगा
मैयत पर मेरी लोग आकर ये कहेंगे,
सही में मरा हुआ है या ये भी चुटकुला है।
ये ना समझो क्रूर कृत्य का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध
राष्ट्रकवि दिनकर
सपनों के रंग तिनका-तिनका बनाया
हर उमंग को दबाया
आज हुए हैं सच सब सपनों के रंग
भरके दिल में उमंग रखे पहला कदम
सपनों के रंग
लाखों वसंत से गुजरो तुम
हो रंग बसंती जीवन का
है हर बसंत की एक दुआ
कि अंत ना हो इस जीवन का
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
जब से चला हूं बस मेरी मंजिल पर नजर है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले
तुमने मेरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा
किस्मत में जो लिखा वो मिल जाएगा मेरे आका
वो दीजिये जो मेरे मुकद्दर में नहीं है।
हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,
मेरी किष्ती जहां डूबी, वहां पानी बहुत कम था।
मुझे थकने नहीं देते जरूरत के पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।
जेहमत उठाके आप जो तषरीफ लाए हैं
फूलों की क्या बिसात हमने दिल बिछाए हैं
अभी आए, अभी आकर जरा दामन संभाला है
तुम्हारी जाऊं-जाऊं ने हमारा दम निकाला है
कानों की बालियां चाॅंद-सूरज लगे,
ये बनारस की साड़ी खूब सजे
राज की बात बताएं समधीजी घायल हैं
आज भी जब समधन की झनकती पायल है
जादू है या तिलस्म है तुम्हारी जुबान में
तुम झूठ भी कहते हो तो होता है एतबार
अपनी आवाज की लर्जिष पे तो काबू पा लो
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते हैं
अपने तेवर तो संभालो कि कोई ये ना कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं
हयात लेके चलो, कायनात लेके चलो
चलो तो सारे जमाने को साथ लेके चलो
कष्मीर की वादियों में बेपर्दा निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फीली चट्टानों में
कागज का ये लिबास बदन से उतार दो
बारिष जो हुई तो कहां सर छिपाओगे
दोस्ती ही एक ऐसा रिष्ता है,
जिसे हम हमारी पसंद से चुनते हैं
कह दो ये समंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आएंगे
जलजले ऊंची इमारत को गिरा सकते हैं
मैं तो बुनियाद हूं मुझको तो कोई खौफ नहीं
षोहरत की बुलंदी भी पलभर का तमाषा है
जिस षाख पर बैठे हो वो टूट भी सकती है
अगर ताकत के माने हैं पाष्विक ताकत तो वाकई
नारी में है कम और अगर ताकत के माने हैं नैतिक ताकत
तो निःसंदेह मर्द से कई गुना ज्यादा आगे है औरत
महात्मा गांधी
मूर्ति वंदनीय है, इसलिये नहीं कि उसमें देवता है
बल्कि इसलिये कि उसने तराषे जाने का दर्द सहा है
ढल गई षाम सितारों का जुलूस आया है
आंख मीची तो अपना गया
आंख खोली तो सपना गया
आंख मूंदी तो दफना दिया गया
वो किसी चीज का मोहताज नहीं है
जिसे जीने का हुनर आता है
यादों में उनकी बातों में खुषियों के रंग बरसते हैं
खुषियों में अपनों से मिलने को नैना तरसते हैं।
खुषी के रंग लाई ये घड़ी
प्यार के रंग लाई ये घड़ी
दिल के फफोले जल गए सीने के दाग से
घर को आग लग गई घर के चिराग से
फूल की पत्ती से भी कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नांदा पर कलामे पाक भी है बेअसर
वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं,
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये
मौत उस षख्स की है जिसपे जमाना रोए
यूं तो सभी आते हैं दुनिया में मरने के लिये
कहां ये मर्तबा अपना के हम तकलीफे षिरकत दें
मगर मेहमां गरीबों के हुए हैं बादषाह अक्सर
मेरी मंषा है मेरे आंगन में दीवार उठे
मेरे हिस्से की जमीं भी मेरे भाई तू रख ले
मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय मौसम की तरह दोस्त भी बदल जाते हैं
तुलसी भैया की मेहनत फिर हो गई साकार
स्वीकारो है बंधुवर बधाइयाॅं और सत्कार
हवा महक उठी रंगे चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा
कौन से फूल थे कल रात तेरे बिस्तर में
आज खुषबू तेरे पहलू से बहुत आती है
यही है राज मेरी कामयाबी का जमाने में
कि मैं साहिल पर रूककर भी नजर रखता हूं तूफां पर
सारी दुनिया की निगाहों में गिरा है मजरूह
तब जाकर कहीं तेरे दिल में जगह पायी है
मिलन की रात है गुल कह दो इन चिरागों को
खुषी के वक्त में क्या काम जलने वालों का
दौलत ने दिया वो लिबास कि आ गया गुरूर
दामन था तार-तार अभी कल की बात है
वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
कुछ नया करने की जिद में पुराने हो गए
बाल चांदी हो गए, बच्चे सयाने हो गए
मुस्कुराओ ऐसे कि बहारों को होंष आ जाए
तालियां बजाओ ऐसे कि कवियों को जोष आ जाए
इस मंजर को देखकर झूम गया मन आज
मन रविषंकर हो गया, तन बिरजू महाराज
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
अंगड़ाई भी ना लेने पाए उठाके हाथ
जो मुझको देख लिया छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
चमन को सींचने में पत्तियां कुछ झड़ गई होंगी
यही इल्जाम मुझ पर लग रहा है बेवफाई का
मगर कलियों को जिसने रौंद डाला अपने हाथों से
वही दावा कर रहे हैं इस चमन की रहनुमाई का
जेब देता है अंगूठी में नगीना जिस तरह
है दुआ मेरे रहे जोड़ी सलामत उस तरह
मरने के बाद भी मेरी आंखे खुली रही
आदत जो पड़ी हुई थी उनके इंतजार की
हद से बढ़कर हसीन लगते हो, झूठी कसमें जरूर खाया करो
मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर मुस्कुराना ना भूल जाया करो
तू लाख छुपाये दामन मेरा फिर भी है ये दावा
तेरे दिल में मैं ही हूं, कोई दूसरा नहीं है
कोई आरजू नहीं है, कोई जुस्तजू नहीं है
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है
उनके आने से जो चेहरे पे आ गई रौनक
वो समझने लगे बीमार का हाल अच्छा है
यूं जन्नत की हकीकत तो हमें है मालूम
दिल को बहलाने के लिये गालिब ये ख्याल अच्छा है
काटे नहीं कटते हैं लम्हें इंतजार के
नजरे जमाए बैठे हैं रस्ते पे यार के
हजारों ख्वाहिषें ऐसी कि हर ख्वाहिष पर दम निकले
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
जब हम ना होंगे तो क्या रंगे महफिल
किसे देखकर आप षर्माइयेगा
स्वागत है अभिनंदन है क्या भाग्य हमारा है
सेवादल का वीर सिपाही आज पधारा है
हमारी आन, हमारी बान, हमारी षान आए हैं
हमारे प्राण, हमारी जान ले वरदान आए हैं
हमारे हैं, हमारों का भला स्वागत करें कैसे
कहें तो क्या, कहें किससे कि घर भगवान आए हैं
वक्त अच्छा भी आएगा नासीर
गम ना कर जिंदगी पड़ी है अभी
मैटर -
तेज सूर्य सा, धन कुबैर सा
बुद्धि चाणक्य सी, कीर्ति अषोक सी
यह सब तुम्हें सुलभ हो
बढ़ती हुई महंगाई और हारती हुई नैतिकता के दिनों में
अपना रक्त जलाकर जलता हुआ दिया
आपके व्यक्तित्व को आलोकित करे
दीपपर्व आतंकवाद, साम्प्रदायिकता,
भ्रष्टाचार की अमावस का मुक्तिपर्व हो
दुर्गम पर्वत षिखर यूंही हमें डराते हैं
किंतु किये जो काम आपने याद हमें आ जाते हैं
अभी कहां आराम लिखा यह निंद्रा तो बस छलना है
अरे अभी तो मीलों तुमको राह बनकर चलना है।
सूरज से कहते हैं बेषक वह अपने घर आराम करें
चाॅंद-सितारे जी भर सोये नहीं किसी का काम करें
आॅंख मंूद लो दीपक तुम भी दिया-सलाई जलो नहीं
अपना सोना, अपनी चांदी गला-गला कर मलो नहीं
अगर अमावस से लड़ने की जिद कोई कर लेता है
तो एक जरा सा जुगनू सारा अंधकार हर लेता है
तनकर खड़ा था जो वो जड़ से उखड़ गया
वाकिफ नहीं था वो हवा के मिजाज से
कायरता जिन चेहरों का सिंगार करती है
मक्खियां भी उन चेहरों पर बैठने से इंकार करती है
दौलत और जवानी एक दिन खो जाती है
सच मानों तो सारी दुनिया दुष्मन हो जाती है
उम्रभर दोस्त मगर साथ चलते हैंष्
षाम तन्हाई की है आएगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखाए वही तारा न रहा
कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का
कल रूके ना रूके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज प्यार में गुजार दे
अच्छी सूरत को संवरने की जरूरत क्या है
सादगी भी तो कयामत की अदा होती है।
तुझे देखकर जग वाले पर यकीं नहीं क्यों कर होगा
जिसकी रचना इतन संुदर वो कितना सुंदर होगा
छोटी सी, प्यारी सी, नन्ही सी आई कोई परी
भोली सी, प्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी
पालने में ऐसे ही झूलते रहे खुषियों की बहारों में झूलते रहे
गाते मुस्कुराते संगीत की तरह ये तो लगे रामा के गीत की तरह
खुषियां देती है दुख ले लेती है
माॅं की ममता का मोल नहीं कोई
उम्रभर मैं करूॅं माॅं की बंदगी
माॅं तेरे नाम है मेरी जिंदगी
फूलों सा चेहरा तेरा कलियों सी मुस्कान है
रंग तेरा देखकर रूप तेरा देखकर कुदरत भी हैरान है
महलो की रानी दुख से बेगानी लग जाए ना धूप तुझे
उड़-उड़ जाऊं सबको बताऊं धूप लगे है छाॅंव मुझे
कांटो से हो जाए पांव ना घायल
चलते हैं वो भी हमसे तेवर बदल-बदल कर
चलना सिखाया जिनको हमने संभल-संभल कर
बिस्तर की सलवटों से महसूस ये हो रहा है
तोड़ा है दम किसी ने करवट बदल-बदल कर
वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये
क्या है मुकद्दर में फिक्र नहीं इसकी
हारते हैं फिर भी हिम्मत नहीं थकती
वही तो कहलाते हैं फाइटर
मंजिल उनके पास खुद चलकर आती है
खुद ही जो लिखते हैं किस्मत अपनी
क्योंकि फाइटर हमेषा जीतता है।
मेरे जनाजे में सारा गांव निकला
पर वो ना निकले जिनके खातिर जनाजा निकला
देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए
एक दिन बिगड़ी किस्मत संवर जाएगी
ये खुषी हमसे बचकर किधर जाएगी
देखना जिंदगी यूं गुजर जाएगी
देखा फूलों को कांटो में हंसते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए
आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं एक ऐसे गगन के तले
जहां गम भी ना हो आंसू भी ना हो बस प्यार ही प्यार पले
उस मोड़ से षुरू करें फिर ये जिंदगी
हर रात जहां हसीन थी हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख्वाब थे
फूलों के ख्वाब थे वो मोहब्बत के ख्वाब थे
लेकिन कहां है इनमें वो पहले सी दिलकषी
रहते थे हम हसीन ख्यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फुरसत की हर घड़ी
षायद ये वक्त हमसे कोई चाल चल गया
रिष्ता वफा का और कोई रंगो में ढल गया
ये दौलत भी ले लो ये षोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कष्ती वो बारिष का पानी
मोहल्ले की सबसे पुरानी निषानी
वो बुढि़या जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वे छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडि़या वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडि़या की षादी पे लड़ना-झगड़ना
वो झूले से गिरना वो गिरकर संभलना
वो पीतल के छल्लांे के प्यारी से तोहफे
वो टूटी हुई चूडि़यों की निषानी
वो कागज की कष्ती ़ ़ ़ ़
कभी रेत के ऊंचे टीलो पे जाना
घरोंदे बनाना बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था ना रिष्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी
बात निकलेगी तो फिर दूर तक ले जाएगी
लोग बेवक्त उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे तुम इतनी परेषां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालो की तरफ
चूडि़यों पर भी कई तंज किये जाएंगे
कांपते होठो पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हरेक बात का ताना देंगे
उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे के तास्सुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जाएगी
उबरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
वरना कौन कतरा है जो दरिया बन नहीं सकता
दिले नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम मगर षाम ही तो है
जीवन गाथा महापुरूष की हमको यही सिखाती है
हम भी ऊंचे उठ सकते हैं जीवन विकास की थाती है
जब ये महापुरूष जाते हैं हमें छोड़कर धरती पर
रह जाते हंै पदचिन्ह उभरकर सदा समय की रेत पर
चले जाएंगे हम मुसाफिर हैं सारे
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