Thursday 27 April 2017

Shayari Dil se


Heart Touch Shyari.....

Shayari Dil se

जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो साज पे गुजरी है वो किस दिल को खबर है

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता
किस घर में खुषी होती है मातम नहीं होता
क्या सुरमा भरी आँखांे से आँसू नहीं गिरते
क्या मेंहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

सबने मिलाए हाथ यहां तीरगी के साथ
कितना बड़ा मजाक है ये रोषनी के साथ
किस काम की रही ये दिखावे की जिंदगी
वादे किये किसी से निभाई किसी के साथ
शर्ते लगाई नहीं जाती दोस्तो के साथ
कीजे मुझे कबूल मेरी हर कमी के साथ
---वसीम बरेलवी ---
कीमत तो खूब बड़ गई शहरों मे धान की
बेटी विदा न हो सकी फिर भी किसान की
-- रईस अंसारी
सजा के चेहरे पर सच्चाई जो निकलता है
वो जिसका घूस से सब कारोबार चलता है
वो जिनके घर में दिया तक नहीं जलाने को
ये चांद उन्हीं के लिए निकलता है
--रईस अंसारी--
जमीनों में जमाना सोना चाँदी जर दबाता है
मगर वह पांव के नीचे मोह अख्तर दबाता है
मोहब्बत आज भी जिंदा है इन कच्चे मकानों में
मेरा बेटा बड़ा होकर भी मेरा सर दबाता है।
-जोहर कानपुरी-
जबान मेरी अच्छी है मेरा बयान अच्छा है
बस इसलिये कि मेरा खानदान अच्छा है
छतें टपकती  है लेकिन खुलूस है तो यहाँ
तेरे महल से ये कच्चा मकान अच्छा है
अभी बाकी है बुर्जुगों का एहतराम यहाँ
मेरे लिये तो मेरा हिन्दुस्तान अच्छा है।
-जोहर कानपुरी-
घास पर खेलता है बच्चा
और माँ मुस्कुराती है
न जाने क्यों ये दुनिया
काबा और सोमनाथ जाती है
- नीदा फाजली -
माँ के कदमों तले ढूंढले जन्नत अपनी
वरना तुमको नहीं जन्नत मिलने वाली
जिनके माँ बाप ने फुटपाथ पर दम तोड़ दिया
उनके बच्चों को कोई छत नहीं मिलने वाली
- हसन काजमी -
जब भी मेरी कष्ती सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

हमारा तीर कुछ भी हो निषााने पर पहुँचता है
परिंदा चाहे कुछ भी हो ठिकाने पर पहुँचता है
अभी ऐ जिंदगी तुमको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा सिर्फ काँधे तक पहुँचता है
धुँआ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
अपनी खुषी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
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बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची दीवार हर घड़ी खतरे में रहती है
ये ऐसा कर्ज है जिसको अदा मैं कर नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं माँ मेरी सजदे में रहती है
  -मुनव्वर राना

मेरी तमन्ना है मैं फिर से फरिष्ता हो जाऊं ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
-मुनव्वर राना
ठंडे दिल से सोच के देखो , क्या होगा जब कल के लोग
पुंछेगे क्यों नस्ल है गुंगी , तुम तो सुखनवर कितने थे
एक गिरा था आँख से आसूँ माँ की पत्थर बह निकले
तुम क्या जानो ऐसे कतरे , आँख के अंदर कितने थे
इस तरह हासिल जहाँ में हमने जन्नत की नहीं
   -माजिद -
क्या सीरत क्या सूरत थी
माॅं ममता की मूरत थी
पांव छुए और काम हुए
अम्मा एक महूरत थी ।
                                 -मंगल नसीम
शायद ये नेकियाँ है हमारी कि हर जगह
दस्तार के बगैर भी इज्जत वही रही
खाने की चीजें माँ ने जो भेजी है गावं से
बासी भी हो गयी है तो लज्जत वही रही
-मुनव्वर राणा-
धुंए को अब्र और गम को मुसर्रत करते रहते है
हम जहन्नुम को जन्नत करते रहते हैं
हमें इन झुर्रियों में आयतों का अक्स दिखता है
हम अपने माँ के चेहरे की हिफाजत करते रहते है।
सच बोलने के तौर तरीके नहीं रहे
पत्थर बहुत है शहर में शीषे नहीं रहे
खुद मर गया था जिनको बचाने में पहले बाप
अबकेे फसाद में वो ही बच्चे नहीं रहें
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कोई दरख्त या सायबा रहे न रहे
बुजुर्ग जिंदा रहे आस्मां रहे न रहे

हमारे कुछ गुनाहो की सजा साथ चलती है।
अब हम तन्हा नहीं चलते दुआ भी साथ चलती है
अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ हो नहीं सकता
मैं जब घर से निकलता हूॅ दुआ भी साथ चलती है।
                                           मुनव्वर
मिट्टी में मिला दे मैं तो हो नहीं सकता
अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
दहलीज पर रख दी है किसी शख्स ने आँखे
दिया कोई हो इतना वो रोषन हो नहीं सकता
-- मुनव्वर --
ये कौन जा रहा है मेरा गांव छोड़कर
आँखे भी रो रही है समंदर निचोड़कर
ना तूफानों का खौफ है ना आंधियों का डर
तुमने दिये बनाए हंै सूरज को जोड़कर

ऐसी हसीन बहारों की रात हैं
एक चाॅद आसमां पे है एक मेरे पास है
ऐ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की
अब किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है

महफिल में चार चाॅद लगाने के बावजूद
जब तक ना आए आप उजाला न हो सका

हर पल ध्यान में बसने वाले लोग अफसाने हो जाते है
आॅखे बूढ़ी हो जाती हैं, ख्वाब पुराने हो जाते हैं
सारी बात ताल्लुक वाली जज्बों की सच्चाई तक है
मेल दिलों में आ जाए तो घर विराने हो जाते है
-- अमजद --
तुम जिस ख्वाब में आँखे खोलो उसका रूप अमर
तुम जिस रंग का कपड़ा पहनो वह मौसम का रंग
तुम जिस फूल को हॅसकर देखो कभी ना वो मुरझाए
तुम जिस हरफ पर उंगली रखदो वो रोषन हो जाए
--अमजद--
     
     
        विदेषों मे बसने पर
एक जबरे वक्त है कि सहे जा रहे है हम
और इसी को जिंदगी कहे जा रहे है हम
रहने की ये जगह तो नहीं है मगर यहाँ
पत्थर बसे हुए है मगर रहे जा रहे है हम
--अमजद--
रोषन जो अपने दोस्तों की जात हो गयी
मालूम हमको अपनी  भी औकात हो गयी
मकतल में हमको कोई भी दुष्मन नहीं मिला
अपने ही दोस्तो से मुलाकात हो गयी
--अमजद--

ये फांकाकषी रोजे की आदत बनने वाली है
ये कमजोरी मेरे बच्चों की ताकत बनने वाली है
--तनवीर गाजी--
जिसे देखते ही खुमारी लगे
उसे उम्र सारी हमारी लगे
हँसी सूरते और भी है मगर
वो सब सैकड़ांे में हजारी लगे
वो ससुराल से आयी है मायके
उसे जितना देखो वो प्यारी लगे
--निदा फाजली--
वो जरा सी बात पर बरसांे के याराने गये
पर ये हुआ कि लोग पहचाने गये
में इसे शोहरत कहँू या मेरी रूसवाई कहूँ
मुझसे पहले मेरे अफसाने गये

जल रहे है माॅं की आॅंखो में मोहब्बत के चिराग
उसने दुनिया में जन्नत का नजारा रख दिया
--असर सिद्धी की --

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी ये तारे तो जमीं पर नहीं गिरता
गिरते है समंदर में बड़े शौक से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता

रहकर बंगले में भी अखलाक नहीं भूले हमने
अपने बंगलों से दिये सड़को पे उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने
--जोहर--
ये बात सच है कि आॅधियां खुदा चलाता है
मगर हमारे दिये भी तो वो ही बनाता है
--जोहर--
मेरे चेहरे पर ममता की फेरहानीचमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूं फिर भी पेषानी चमकती है
--मुनव्वर राना--
मियाॅ मैं शेर हूॅं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
लहजा नर्म भी कर लें झल्लाहट नहीं जाती

सूफियान काजी
करे खुद नाज जिनपे साथ ये संसार बेटे दे
जो माहिर हो बड़े फन में वो फनकार बेटे दे
मेरे मौला मेरी बस एक ही दरखास्त है तुमसे
जो लम्बी उम्र देना हो तो खिदमतदार बेटे दे

चमकती शोख चंचल आॅख गम में छोड़ आये हैं
हम अपना अक्स उसकी चष्मे नम में छोड़ आये है
बहुत खिदमत वहाॅ होगी इसी खातिर तो ऐ यारों
अपाहिज बाप को हम आश्रम में छोड़ आये है।

भला कैसे खिलेंगे फूल खुषियों के उस आॅगन में
अपाहिज बाप जब घर में हो और औलाद लंदन में
वो जिसके सर से साया बाप का कम उम्र में उठ जाए
उसे मौका शरारत का कहां मिलता है बचपन में

चूल्हा फूंकते वक्त धुंए से आॅख भर जाती है
उस आलम में देख के माॅ को भुख मेरी मर जाती है

वफादारी मोहब्बत आपसी रिष्ते निभाती थी
वो मां थी जो हमेषा प्यार के गजरे बनाती थी


मोहब्बतो को निभाने का दौर खत्म हुआ
वो इंक थाल में खाने का दौर खत्म हुआ

बेटे के साथ अबके बहू भी अरब गयी
किस खत का अब बूढ़े बाप को इंतजार है

न कमरा जान पाता है ना अंगनाइ समझती है
कहां देवर का दिल अटका है ये भौजाई समझती है
हमारे और उसके बीच एक धागे का रिष्ता है
हमें लेकिन हमेषा वो सगा भाई समझती है


कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है
अपने गांव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है
तेरे आगे माॅ भी मुझको मौसी जैसी लगती है
तेरी गोद में गंगा मैया अच्छा लगता है
माया मोह बुढ़ापे में बढ़ जाता हैं
बचपन में बस एक रूपैया अच्छा लगता है

बेटी बनाके लाए थे लेकिन खबर न थी
बेटा मेरा दबा के दुल्हन बैठ जाएगी
सगीर मजंर खडंवा

मैं बात करता नहीं पर अंधेरे से डरता हूूॅ माॅ
यों तो मैं दिखलाता नहीं पर तेरी परवाह करता हूंॅ माॅ
प्रसुन्न जोषी

बदन से अब मेरी जागीरदारी खत्म होती है
मेरे बेटे तेरी बूढ़ी सवारी खत्म होती है

माॅ बाप की आगोष तो फूलों की तरह है
फिर क्यों तेरा किरदार बबूलों की तरह है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवानी है, धागा डाल देती है



          जीवन दर्षन
रात की धड़कन, जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम, जिम्मेदारी रहती है
वो मंजील पर अक्सर देर से पहुॅचे है
जिन लोगो के पास सवारी रहती है

उसूलों पर जहाॅ आँच आऐ टकराना जरूरी है
जो जिंदा हूॅं तो जिंदा नजर आना जरूरी है
नयी उम्रो की मुख्तयारियों को कौन समझाए
कहाॅ से बनकर चलना है कहाॅ जाना जरूरी है
थके हारे परिंदे जब बसेरों के लिये लौटें
सलीका मंद शाखों का लचक जाना जरूरी है

मोहब्बत में कषिष रखने पर शर्माना जरूरी है
मेरे होठों पे अपनी प्यास रख दो फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना जरूरी है

फिर कभी किसी कबूतर की इमानदारी पर शक मत करना
वो तो इस घर को इसी मिनारे से पहचानता है
शहर वाकिफ है मेरे फन की बदौलत मुझसे
आपको जज्बा-ए-दस्तार से पहचानता है

बेखुदी में रेत के कितने समंदर पी गया
प्यास भी क्या शह हैं मैं घबराकर पत्थर पी गया
मयकदे में किसने कितनी पी ये तो खुदा जाने मगर
मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया

जिस्म पर मिट्टी मलकर खाक हो जाएगें हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाऐगे हम
ऐ गरीबी देख रस्ते में हमें मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएगें हम

बच्चों के छोटे हाथो को चाॅद सितारे छुने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे

हमारी दोस्ती से दुष्मनी भी शर्मायी रहती है
हम अकबर है हमारे दिल में जोधाबाई रहती है

फटी कमीज, नूची आस्तीन कुछ तो है
गरीब ऐसी दषा में कुछ तो है
लिबास कीमती रखकर शहर नंगा है
हमारे गावं में मोटा-महीन कुछ तो है

गिरकर उठना , उठकर चलना
ये क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क न पड़ता
किसी जीत या हार का

लाख खौफदारी हो जलजले के आने का
सिलसिला न छोड़ेगे हम भी पर बनाने का
कामयाबी तय करती है हौसलों की मजबूती
दिल में हौसला रखिये कष्तियाॅ चलाने का

सर काट के फिर सर पे मेरे वार करेगा
दुष्मन नहीं ये काम मेरा यार करेगा

खुषी से कब कोई मासूम करतब दिखाता है
ये मजबूरी  है पापी  पेट रस्सी पर चलाता है

यहाॅ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम-सा-बच्चा
बड़ो की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है
न बस में जिंदगी इसके न काबू मौत पर इसका
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता हूं
अजब यह जिंदगी की कैद है दुनिया का हर इसां
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता हैं

समझते थे मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने

मड़ दो चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं

हौसला हो तो उड़ानों में मजा आता है
पर बिखर जाए हवाओं में तो गम मत करना

आप हर दौर की तारीख उठा कर देखें
जुल्म जब हद से गुजरता है फना होता है

रस्में ताजीम न रूसवा हो जाए
इतना मत झुकिये कि सजदा हो जाए
कि जिनको दस्तार मिली है उनको
सर भी मिल जाए तो अच्छा हो जाए

वो जहाॅं भी रहेगा रोषनी लुटाएगा
चिराग का कोई अपना मकां नही होता

वो दौलत और बरकत अपने याद आया
जो अपने घर से लड़कियों को फेंक देते है
तरक्की हो गयी कितनी हमारे मुल्क में देखो
भिखारी एक रूपया और अठन्नी फेंक देते है

जब मेरी उड़ानों को आसमां याद आया
लोग पर कतरने को कैचियां उठा लाए

चिंगारियों को शोला बनाने से क्या मिला
तूफान सो रहा था जगाने से क्या मिला
आॅधी तेरे गुरूर का सर हो गया बुलंद
वरना तुझे चिराग बुझाने से क्या मिला
षिकवा तो कर रहे हो जमाने से क्या मिला

गुजर चुका है जमाना वो इंतजारी का
कि अब मिजाज बना लीजिए षिकारी का
वो बादषाह बन बैठे हैं मुकद्दर से
मगर मिजाज है अब तक वो ही भिखारी का
मंजर
अपने घर में भी सर झुकाकर आया हूं मैं
इतनी मजदूरी को बच्चों की दवाई खा जाएगी

सच कहूं मुझको ये उनमान बुरा लगता हैं
जुल्म सहता हुआ इंसान बुरा लगता है
उनकी खिदमत तो बहुत दूर बहू बेटों को
बूढ़े मो बाप का फरमान बुरा लगता है
किस कदर हो गयी मषरूफ ये दुनिया अपनी
एक दिन ठहरे तो मेहमान बुरा लगता है

डरने वाला हजार बार मरता है
मरने वाला केवल एक बार मरता है

दुष्मन वही बने रहे जो वे थे
धोखा तो उन लोगों से
हुआ जो दोस्त होने का दम भरते रहे हर दम

हमारा दिल तो मुकम्मल सुकून चाहता है
मगर ये वक्त कि हमसे जुनून चाहता है
फरेब इतने दिये हैं उसे सहारों ने
वो छत भी अपने लिये बेसूकूल चाहता है
सफर में बर्फ हवाओं से नींद आती है
लहू हमारा दिसम्बर में जून चाहता है



सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छिपाती है
जैसे सिसकियों का गम शहनाई छिपाती है
जो इसकी तह में जाता है फिर वापस नहीं आता
नदी हर तैरने वाले से गहराई छिपाती है
ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन माॅ को खुष रखना
ये कपड़ो की मदद से अपनी लंबाई छिपाती है

वो जालिम मेरी ख्वाइष ये कहकर टाल जाता है
दिसम्बर जनवरी में कोई नैनिताल जाता है

सो जाते है सड़को पर अखबार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
दावत तो बहुत दूर हम जैसे कलंदर
हर एक के पैसे से दवा भी नहीं खाते

मोहब्बत भी अजीब शह है कोई परदेस में रोए
तो फौरन हाथ की एकाध चूड़ी टूट जाती है
कभी कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती है
लड़कपन में किये वादे की कीमत कुछ नहीं होती
अंगूठी हाथ में रहती है मंगनी टूट जाती है
किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी
कुएं में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है

लोग मतलब परस्त होते हैं बहती गंगा में हाथ धोते है
नींद आती नहंी अमीरों को हम गरीब चैन की नींद सोते है

मेरे हाथों मे पढ़ गये छाले जलती बस्ती बुझा के आया हूं
जिद थी सूरज को देखने की बहुत अपनी आॅखे गंवा के आया हूं

किस काम की ऐसी  परदेस में कमाई
जब बाप की मैयत में नजर औलाद न आई

एक दिन सब पर मौत की देवी टूटकर मेहरबां होती है
कब्र की नींद क्यों ना मीठी हो उम्र भर की थकान होती है

वो जिनका घर बसाने के लिये खुद लुट गया हूॅं मैं
उन्हंे इस शहर में बस मेरा ही घर अच्छा नहीं लगता
तू सच्चा है तो गम कैसा अगर दुनिया मुखालिफ है
अंधेरो को कभी नूरे सहर अच्छा नहंीं लगता

चिरागांे को ये चाहिये बचाए जिंदगी अपनी
हवाएं तो सफर में है हवाएं कैसे कम चले
बगैर कुछ कहे खुलेगा कैसे राजे गम
जबाने बंद हंै अगर तो हाथों की कलम चले

हर आदमी अपने मुकाम से एक कदम दूर
हर एक के घर में कमरा एक ही कम है

आंगन में जहाॅं खेलने बच्चे नहीं आते
उस घर में यू लगता है फरिष्ते नहीं आते
खुषियांे के लिये भेजे हैं बच्चों को अरब हम
और खुषियों की घडि़यांे में ही बच्चे नहीं आते
अपनी सच्चाई से सपनों की तरफ मत जाना
गांव में हो तो शहरों की तरफ मत जाना
माॅऐ कहती थी तूफानों का रूख मोड़ आओ
माॅऐ कहती है कि लहरों की तरफ मत जाना

जिस दिन भी मैं और तुझे हम हो जाएगा
उस दिन घर का पानी भी जमजम हो जाएगा
माॅ के कदमों पर सर रखकर सो जाओ
दर्द हो चाहे जैसा भी कम हो जाएगा

रिष्तो की कहकषों सरे बाजार बेचकर
घर को बना लिया दरो दीवार बेचकर
शोहरत की भुख हमको कहा ले के आ गयी
हम मोहतरम हूए भी तो किरदार बेचकर
वो शख्स सूरमा है पर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है तलवार बेचकर
जिनकी कलम ने मुझ तो बोये थे इंकलाब
अब पेट पालता है वो अखबार बेचकर

इस दौर में शायर पर अजब वक्त पड़ा है
बोेले तो जुबां जाए ना बोले तो हुनर जाए
दस्तार की हुकूमत पर कोई हर्फ ना जाए
दस्तार बुर्जुगों की है सर मेरा है सर जाए

लोगों के दिलों और दुआओं में मिलेगा
वो शख्स कहाॅ तुमको गुफाओं में मिलेगा
ठहरे हुए मौसम में कहाॅ उसका ठिकाना
शाहीन है वो तेज हवाओं में मिलेगा

जिंदगी से कुछ न देने की षिकायत क्या करूं
सोचता हूंॅ जिंदगी तुमको मैंने क्या दिया
मैं गिरा तो वो उठा मुझको गिराने के लिये
भीड़ में दानिष्ता खुद जिसने मुझे धक्का दिया

ताल्लुक रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना हो नामुमकीन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

गुलामों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मुहब्बत करने वाले खून सूरत लोग होते है
यही अंदाज है मेरा समंदर फतह करने का
मेरी कागज की कष्ती में कई जुगनू भी होते है

इलाजे दर्दे दिल तुमसे मसीहा वो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
तुम्हें चाहूॅ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूॅ
मेरा दिल फेर दो मुझसे यह सौदा हो नहीं सकता

कमाले बुजदिली है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
गर जुर्रत है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
उभरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
नहीं तो कौन सा कतरा हैं जो दरियां हो नहंी सकता

रहने दे आसमां जमीं की तलाष कर
सब कुछ यही है ना कही और तलाष कर
हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मजा
जीने के लिये बस एक कमी की तलाष कर

क्या आफताब लोग थे मिट्टी में मिल गये
मिट्टी का एक घर बनाने की फिक्र में
कुछ लोग हैं कद मेरा घटाने कि फिक्र में
मैं हूॅं सितारे तोड़के लाने की फिक्र में

लहजे की उदासी  कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाॅंद सितारों की महफिल मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो तुम साथ रहो जज्बों मे कसक आ जाएगी
कुछ देर में बादल बरसेंगे कुछ देर में सावन झूमेंगे
तुम जुल्फ यूहीं लहराये रहो मौसम में सनक आ जाएगी

आॅखो का था कसूर ना दिल का कसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा गुरूर था
वो थे ना मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता ना था नजर तो नजर का कुसूर था
साकी की चष्में मस्त का क्या कीजिये बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था

तुम्हीं को आॅख भर देख पाऊं मुझे इतनी बिनाई बहुत है
नहीं चलने लगी यूं ही मेरे पीछे ये दुनिया मैंने ठुकराई बहुत है

शजर के कद ना शाखों की लंबाई से डरता हॅू
किसी पर्वत ना पर्वत की ऊॅंचाई से डरता हूॅ
समंदर नापना चुटकियों का खेल है लेकिन
तुम्हारे दिल की आॅखों की गहराई से डरता हूॅ
मेरी बस्ती की बेटी मायके में जबसे बैठी है
न जाने क्यों मैं सपने में भी शहनाई से डरता हूॅ
अभी इस शख्स ने तहजीब का दामन नहीं छोड़ा
मैं पापा बन गया हूॅं पर बड़े भाई से डरता हूॅ
मैं इज्जत से जिऊॅं दुनिया में जितने भी दिन जिऊॅ
मैं मरने से नहीं डरता रूसवाई से डरता हूॅ

ये दिल की लगी कम क्या होगी ये इष्क भला कम क्या होगा
जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा

कम होते है जमाने में ऐसे लोग
जिन्हें चाहत की पहचान होती है
सोच लेना किसी पर मरने से पहले
लुटाने के लिये सिर्फ एक ही जान होती है
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल ना चाह कर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर दोस्ती जताता है
कोई कुछ ना कहकर भी दोस्ती निभाता है

कौन सी बात को हां कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है

वो कहते है ये मेरा तीर है जो लेकर निकलेगा
मैं कहता हूँ ये मेरी जान है बड़ी मुष्किल में निकलेगी

खुदा करें कि बारिषों में बिछड़े हम
कि मेरी आॅख में आसूं न नजर आये तुझे

नक्षा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान
कैसे दीपक खा गई उसका हिन्दुस्तान

ईसा,  अल्लाह,  ईष्वर सारे मंतर सीख
जाने कब किस नाम पर मिले ज्यादा भीख

बादलों से सलाम लेता हूँ, वक्त को मैं थाम लेता हूँ
मौत मर जाती है पल भर के लिये जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ

अपनी मस्ती की शाम मत देना
दोस्तों को ये काम मत देना
जिनको तमीज ना हो पीने की
उनके हाथों में जाम मत देना

इतने बदनाम हुए हम इस जमाने में
तुम्हें लग जाएगी सदियाँ हमें भुलाने में
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में

मिले न खुद जो छलककर वो प्यार मत लेना
खुषी कभी भी किसी से उधार मत लेना
कभी-कभी तो पुराने ही काम आते हैं
तू घर के सारे कैलेंडर उतार मत लेना
दवा के बदले जहर ही मिलेगा दुनिया में
कभी गमों में उसे तू पुकार मत लेना

सितारे तोड़ने की मेरी ख्वाहिष तुमसे पूरी हो
दुआ है तुम सभी कद से मेरे ऊँचे निकल जाओ

तरक्कियों की दौड़ में उसी का दौर चल गया
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया
कहाँ तो बात कर रहा था खेलने की आग से
जरा सी आंच क्या लगी तो मोम सा पिघल गया

कामयाबी के वो सफात आ जाता है
काबू करना जिसे जज्बात पे आ जाता है
बात करते हुए डरती है शराफत उससे
चंद लम्हों में जो औकात पे आ जाता है

तुम अक्सर जहन मेरा होष वाला छीन लेेते हो
अंधेरा बोट देते हो उजाला छीन लेते हो
अमीरे शहर होने का यकीनन हक तुम्ही को है
कि तुम मुफलिस के मुँह का भी निवाला छीन लेेते हो



सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इष्क के इम्तिहां और भी है
इसी रात दिन में उलमा कर न रह लेना
जमीं और भी है आस्मां और भी है

निर्माण घर में बैठ कर होता नहीं कभी
बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे
पीछे बंधे है हाथ मगर शर्त है सफर
किससे कहूॅ कि पांव से कांटा निकाल दे

न कर शुमार कि हर शै गिनी नहीं जाती
ये जिंदगी है हिसाबों से जी नहीं जाती

चारों ओर खड़े है दुष्मन बीचों-बीच अकेला मैं
जबसे मुझको खुषफहमी हैं,सब घटिया है, बढि़या मैं

छोटी-छोटी उम्मीदों पर लहरा लहरा मरता हँू
जो जन्नत को तज आया था उस आदम का बेटा हूँ

अपने हाथ कहां तक जाते भागदौड़ बस यूं ही थी
उनके बांस बहुत थे लंबे जो कन कैया लूट गये
बाहर धूप थी षिद्धत की और हवा भी अंदर थी बेचैन
गुब्बारे वाले के आखिर सब गुब्बारे फूट गये

नुमाइष के लिये जो मर रहे हैं
वो घर के आइनों से डर रहे है
बला से जुगनुओं का नाम दे दो
कम से कम रोषनी तो कर रहे है

घर की तामीर चाहे कैसी हों, इसमें रोने की कुछ जगह रखना
उम्र कहने को है पचास के पार कौन है किस जगह पता रखना

कत्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने लुटाने पे खबर  बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है

अब प्रतिस्पर्धा व्यर्थ है, व्यर्थ हुए सब ढंग
वायुयान में बैठकर उड़ने लगी पंतग

समय समय की बात है उलट पुलट परिवेष
आज पतंगे दे रही, पेड़ों को उपदेष

जरा सा कतरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरो के ही लहजे में बात करता है
खुली छतो के दिये कबसे बुझ गये होेते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है
शराफतों की जमाने में कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन डरता है
तुम आ गये हो तो कुछ चाँदनी सी बाते हो
जमीं पर चाँद कहां रोज-रोज उतरता है
जमीं की कैसी वकालत हो कुछ नहीं चलती
अगर आसमां से कोई फैसला उतरता है

वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार ना करता तो और क्या करता

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आॅसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसु को फिर आँखो से बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी के फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी का खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है

उसके तेवर समझना भी आसां नहीं
बात औरो की थी, हम निगाहों में थे

अपनी सूरत से जो जाहिर हो छुपाये कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे

जिसके उसूल हमको इबादत में ले गये
अफसोस हम उसी को अदालत में ले गये

कमा तो लाउंगा कफ्र्यू में रोटियाँ लेकिन
तुम्हारे हाथों में कंगन रहे दुआ करना

खामोष समंदर ठहरी हवा, तूफां की निषानी होती है
डर और ज्यादा लगता है, जब नाव पुरानी होती है
एक ऐसा वक्त भी आता है आँखो में उजाले चुभते हैं
हो रात मिलन की अंधियारी , तो और सुहानी होती है
अनमोल बुजुर्गो की बातें अनमोल बुजुर्गो का साया
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयां हैं नामुनकिन
जब बाप के कांधो को मय्यत बेटो की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जाते है
दुनिया वालों के होठों पे उनकी कहानी होती है
हो जाएगी ठंडी रोने से यह आग तुम्हारे दिल की मयंक
होती है नवाजिष अष्को की तो आग भी पानी होती है

बनाओ शौक से ऊँची इमारतें लेकिन
किसी फकीर के आने का रास्ता रखना
वो शख्स चिखता फिरता है आज सड़को पर
मुसिबतों में जो कहता था हौसला रखना

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आँसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसू को फिर आँखो सेे बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी को फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है







राजनीति
पीली शाखें सूखे पत्ते , खुषरंग शजर बन जाते हैं
जब उसकी नवाजिष होती है, सब एक हुनर बन जाते हैं
चलते हैं सभी एक साथ मगर, मंजिल पर पहुँचने से पहले
कुछ राहनुमा बन जाते है, कुछ गर्दे सफर बन जाते हैं
ये शौके सियासत भी है अजब, इस शौके सियासत में यारों
कुछ लोगों के घर बिक जाते है, कुछ लोगों के घर बन जाते हैं

बारूदों के ढेर पर बैठी हुई दुनिया
शोलो से हिफाजत का हुनर कुछ रही है

कसम खुदा की हम उनको ही प्यार करतेे हैं
जो दिल के तीर से दिल का षिकार करते हैं
सफेद पोषों से दिल की कहानियाँ मत कहो
ये लोग दिल से नहीं दिल्ली से प्यार करते हैं
किसी से छीन कर खाना हमें नहीं आता
हम तो शेर हैं अपना षिकार खुद करते है
मजा तो तब है जब मौत से मिलो खुष होकर
कि जिदंगी से कुत्ते भी प्यार करते है
                                    जौहर कानपुरी

सारी बस्ती कदमों में है ये भी एक फनकारी है
वरना बदन को छोड़कर अपना जो कुछ है सरकारी है
फूलो की खुषबू लूटी है कांटो की चैकीदारी में
ये रहजन का काम नहीं है रहनुमाओं की मक्कारी है।

क्लींटन पर- राहत इंदौरी

अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूं
मैं चाहता था सितारों को आफताब करूं
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन हैं दुनिया इसे खराब करूं

आँखो में आसूं रखो, होठों में चिंगारी रखो
जिदंा रहना है, तरकीब बहुत सारी रखो

खातिर से या लिहाज से मैं मान तो गया
झूठी कसम से आपका ईमान तो गया

तारीके वक्त उतर आया अदाकारी पर
लोग मजबूर हैं जालिम की तरफदारी पर
कल इसी जुर्म पर सर काट दिये जाते थे
आज एजाज दिया जाता है गद्दारी पर

यह भी एक रास्ता है मंजिलो को पाने का
सीख लो तुम भी हुनर हाँ में हाँ मिलाने का

भूली बिसरी सी एक कहानी दे
मुझको वापस मेरी जवानी दे
इन अमीरो से कुछ नहीं होगा
हम गरीबों को हुक्मरानी दे
ष्
ऐ यार समझते हैं, खूब तेरे धोखे
तू हमको बुलाता है, दरबान तेरा रोके

तुम्हारा कद मेरे कद से बहुत ऊँचा सही लेकिन
चढ़ाई पर कमर सबको झुकाकर चलना पड़ता है
सियासत साजिषों का ऐसा खेल है जिसमें
कभी चालों को खुद से छुपाकर चलना पड़ता है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवाती है धागा डाल देती है

हर मैंदा में पापा जीते मैंने मानी हार
मैंने पैसा बहुत कमाया और पापा ने प्यार

वो उम्र में बढ़े हैं कद में बढ़े नहीं
इस वास्ते नजर में हमारे चढ़े नहीं
घेरे हूए खड़े हैं वो पंजो के बल हमें
कुछ लोग चाहते हैं कद मेरा बढ़े नहीं

चोर के डर से माल छुपाया जाता है
थप्पड़ खाकर गाल छुपाया जाता है
तुमने उनसे भीख मांगली अय्यर जी
जिनसे घर का हाल छुपाया जाता हैं।

राहत  इंदौरी
मैं वो दरिया हूँ हरेक बूंद भंवर हैं जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
मुन्तजिर हूँ सितारों की जरा आँख लगे
चांद को छत पे बुला लूंगा इषारा करके

ये जो सहारा नहीं तो परेषां हो जाए
मुष्किलें जान ही लेले अगर आसां हो जाए
ये जो कुछ लोग फरिष्ते बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी लग जाए तो इसंा हो जाए

मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं
लगा है जिसको जमाना खुदा बनाने में
लगे थे जिद पे कि सूरज बनाके छोड़ेगे
पसीने छूट गये हक दिया बनाने में
तमाम उम्र मुझे दर-बदर जो करते गये
जुटे है वो ही मेरा मकबरा बनाने में
ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे हैं
इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में

तू किसी ओर से न हारेगा
तेरा गरूर ही तुझको मारेगा
तुझको दस्तार जिसने बख्शी है
तेरा सर भी वो ही उतारेगा
एक जरा और इंतजार कर लो
सब्र जीतेगा जुल्म हारेगा

 

            संचालन
बापू तेरी मौजूदगी में दुनिया कौन देखेगा
मेले में देखेंगे तुझे सब, मेला कौन देखेगा

दरिया को जौन था कि मैं धारे पे आ गया
लेकिन मैं एक था जो किनारे पे आ गया
मुझको बुलाने वालों की उम्र निकल गई
लेकिन मैं एक तेरे इषारे पे आ गया

ये और बात है खामोष खड़े रहते है
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते है

हर खुषी हँसी मांगे आपसे
हर फूल खुषबू मांगे आपसे
इतनी रोषनी हो आपकी जिदंगी में
कि खुद बिजली वाले कनेक्षन मंागे आपसे

चेहरे पे खुषी आ जाती है आँखो में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे गुरूर आ जाता है
जब तुमसे मोहब्बत की हमने तब जाके कहीं ये राज खुला
मरने का सलीका आते ही जीने का सुरूर आ जाता है

जो सफर इख्तयार करते है
वहीं मंजिल को पार करते है
बस एक बार चलने का हौसला रखिये
ऐसे मुसाफिर का रास्ते भी इंतजार करते है

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल न चाहकर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर भी दोस्ती निभाता है

कोई पूछता नहीं था, जब तक बिका ना था
तुमने मुझे खरीद कर अनमोल कर दिया

मैं प्रेेमी का उपहार हॅविवाह का हार हूँ
मैं खुषी के एक पल की यादगार हूँ
मैं मृतक को जिदंगी का आखिरी उपहार हूँ
मैं आनंद और गम दोनों का राजदार हूँ

सौ चाँद भी चमके तो क्या बात बनेगी
तुम आओ तो इस रात की औकात बनेगी

हमारा जिक्र तो हर पल हुआ फसाने में
तो क्या हुआ जो थोड़ी देर हुई आने में


चिराग हो के न हो दिल जला के रखते है
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते है
मिला दिया है भले पसीना मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते है
बस एक खुद से ही नहीं बनी वरना
जमाने भर से हमेषा निभा के रखते हैं
हमें पंसद नही जंग में भी चालाकी
जिसे निषाने पर रखते है बता केे रखते है

देखो कहीं ये जुगनू दिनमान हो न जाये
ये रास्ते का पत्थर, भगवान हो ना जाये
जो कुछ दिया है प्रभु ने अहसान मानता हूँ
बस चाहता यही हूॅं, अभिमान हो ना जाये

लगन से काम को अपने जो सुबह-ओ-षाम करते है
जिन्हेें मंजिल की ख्वाइष है वो कब आराम करते है
ये छोटी बात है लेकिन तुम्हारे काम आएगी
जो अच्छे लोग होेेते है वो अच्छे काम करते है
बहुत कम लोगों को मिलता है यह एजाज दुनिया में
जो अपने साथ में रोषन बड़ो का नाम करते हैं।

मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मेाहताज नहीं

ये कैंचिया हमें उड़ने से खाक रोकेगी
कि हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं

जंग में कागजी अफदाद से क्या होता है
हिम्मतें लड़ती है तादाद से क्या होता है

फिर एक बच्चे ने लाषों के ढेर पर चढ़कर
ये कह दिया कि अभी खानदान बाकी है

मैं पर्वतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली जमीन खोद के फरहाद हो गये

तुझे खबर भी है मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है

आग नफरत की जो हम लोग बुझाने लग जाए
फिर सियासत के यहाँ होष ठिकाने लग जाए
अपनी मेहनत के सबब और उसकी इनायत के तुफैल
मैं जहां पहुँचा दूँ औरों को जमाने लग जाए
काम को फर्ज समझकर जो निभाने लग जाए
फिर बुलंदी से बुलाने हमें आने लग जाए

       शुभकामनाएँ
फूलों की तरह महकते रहो, तारों की तरह चमकते रहो
बुलबुल की तरह चहकते रहो, हीरे की तरह दमकते रहो
तुम्हारे जीवन में कोई नीरसता न कोई शोक हो
कदम कदम पर खुषियाँ और पवं भरा आलोक हो

हँसते रहे आप हजारों के बीच में
जैसे हँसता है फूल बहारों के बीच में
रोषन हो आप दुनिया में इस तरह से
जैसे होता है चाँद सितारों के बीच में

तलाष करोगे तो कोई मिल ही जाएगा
मगर हमारी तरह रिष्ते कौन निभाएगा
माना कमी नहीं आपके चाहने वालों की
मगर क्या कोई हमारी जगह ले पाएगा

अपने दिल की सुनो अफवाहों पर कान ना दो
हमें बस याद रखो, बेषक कभी नाम ना लो
आपको वहम है हमने भुला दिया आपको
पर मेरी कोई ऐसी सांस नहीं जब आपका नाम न लूं

आपकी एक मुस्कान ने हमारे होष उड़ा दिये
और हम जब होष में आए आप फिर मुस्कुरा दिये

छते, सुंदर देहरियाँ, दालाने व द्वार
तोरण, दीप, रांगोलियां, झिलमिल बांदरवार
अपने आंगन रोषनी, कर लेना भरपूर
कुछ उनको भी बांटना , जो बैठे मजबूर

दो सुमन मिले, दो वंष मिले, दो सपनों ने श्रृंगार किया
दो दूर देष के पथिको ने संग-संग चलना स्वीकार किया

वक्त की धूप हो या तेज आँधिया, कुछ कदमों के निषां कभी नहीं खोते
जिन्हें याद कर मुस्कुरा दें आंखे वे दूर होकर भी दूर नहीं होते

आज के बाद न जाने क्या समां होगा
हममें से ना जाने कौन कहां होगा
फिर मिलना होगा सिर्फ ख्वाबों में
जैसे सुखे गुलाब मिलते है किताबों में


सीढि़याँ उनके लिये बेमानी हैं जिन्हें चाँद पर जाना है
आसमान पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद ही बनाना है।
  
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम तो दरियाँ है हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी हम बहेंगे रास्ता हो जाएगा

दिल ऐसा कि सीधे किये जूते भी बड़ो के
जिद इतनी कि खुद ताज उठाकर नहीं पहना

      श्रृध्दांजली
सोचते हो कि ये नहीं होगा, आसमां एक दिन जमीं होगा
कोई मरने से मर नहीं जाता, देखना वो यहीं कहीं होगा

बिछड़ा वो इस अदा से कि रूत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर केा वीरान कर गया

दिल के किसी कोने में आबाद रहेंगेे
कुछ लोग जमाने को सदा याद रहेगे

दुनिया बड़ी खराब है शायद इसीलिये
अच्छे जो लोग आये वो जल्दी चले गये

दिलों में दर्द आँखो में नमी महसूस करते है
कोई मौसम हो हम तेरी कमी महसूस करते है

वो आज जिसके जाने से आलस उदास है
लगता है जैसे अब भी मेरे आसपास है

वो मजबूत है इतना कि टूटा सा लगता है
सच्चा है इस कदर कि झूठा सा लगता है
रूठे तो सोचा था मनाएगा वो हमको
मनाने वाला भी मगर रूठा सा लगता है

याद हमें जब भी आते संग बिताए पल छिन सारे
बरबस ही निर्झर बह जाते, नैनांे से दो जल-कण खाटे

   दोपहर में सूर्यास्त
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयंा है नामुमकिन
जब बाल पके कंाधो को मय्यत बेटों की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जातेे है
दुनिया वालों के होठों पर उनकी ही कहानी होती है
अनमोल बुजुर्गों की बातेें अनमोल ही कहानी होती है
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है

हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे
हम जो किसी दिन सोये तो फिर सोते ही रह जाएगें

वो देखो सामने है, अभी तक नजर में है
बिछड़ा कहाँ से भाई , हमारा सफर में है

शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके मांदे परिंदो को उड़ाता क्यों र्हैं।
वक्त को कौन भला रोक सका है  पगले
सुइयां घडि़यों की तू पीछे घुमाता क्यों है।
स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छांव में बैठ के अंदाज लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने मे है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब, त्याग-तपस्या-पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रष्न उठाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है
देख न चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यों हैं।

बदमस्त वो अल्हड़ सी कुंआरी पलके
रात की जगी नींद सी भारी पलके
उन पलकों पर जब से डाली है नजर
अल्लाह की कसम नहीं झपकी पलके

राज जो कुछ हो इषारों में बता भी देना
हाथ जब उनसे मिलाना दबा भी देना
और वैसे नषा तो बुरी बात है मगर
राहत से शेर सुनना हो तो थोड़ी पिला भी देना

जुंबा तो खोल, नजर तो मिला, जबाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
तेेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढ़ाव
मैं तुझे कैसे पढंूगा मुझे वो किताब तो दे

जहालतो के अंधेेरे मिटा के लौट आया
मैं आज सारी किताबें जला के लौट आया
वो अब भी रेल में बैठी सिसक रही होगी
मैं अपना हाथ हवा में हिलाके लौट आया
बदन था जैसे कहीं मछलियाँ थिरकती थी
वो बहता दरिया थी और मैं नहाके लौट आया
खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहाँ
मैं जिस जमीन को ठोकर लगा के छोड़ आया

हाले दिल सबसे छुपाने में मजा आता है
आप पूछे तो बताने में मजा आता है

चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
रोज तारो की नुमाइष में खलल पड़ता है
उनकी याद आई है साँसो जरा धीरे चलो
धड़कने से भी इबादत में खलल पड़ता है


हर लहजा तिरे पांव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिलकर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ कि जमाना हाई दे

बहुत रोई हूँ हँसना चाहती हूँ
मैं तेरे दिल में बसना चाहती हूँ
दरीचे खोल दे सब अपने दिलके
मैं बदली हूँ बरसना चाहती हूँ
0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000

चाँदनी बनके तेरे दिल में उतर जाऊंगी
तू निगाहों से छुएगा तो निखर जाऊंगी
जिंदगी मेरी नहीं मुझसे संवरने वाली
तू मेरा आइना बन जा तो सवर जाऊंगी

लाली, पावडर और काजल की
चलती फिरती दुकान लगती हो
जब भी मेकअप उतार देती हो
केाई पुराना मकान लगती हो

जुगनुओं को जतन से पाला है, तब कहीं मुष्क भर उजाला है
तुमने ठोकर पर रख दिया दिल को, हमने किस तरह संभाला है

लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो, चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाँद सितारों की महफिल , मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो, तुम साथ रहो, जज्बों में कसक आ जाएगी

हमें आना है हाले दिन सुनाने
तुम्हें किस रोज आसानी रहेगी
किसी का दिल दुखाओगे तो घर में
बहुत रोज परेषानी रहेगी

कभी खुषी से खुषी की तरफ नहीं देखा
एक तेरे बाद किसी की तरफ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतजार लाजिम है
ये सोचकर कभी घड़ी की तरफ नहीं देखा

मोहब्बत का मुकद्दर तो अधूरा था अधूरा है
कभी आसूँ नहीं होते, कभी दामन नहीं होता

किसी से कोई ताल्लुक न दोस्ती न लगाव
फिजूल यूं ही जिदंगी बिता रहा था मैं
तेरी निगाह ने एक काम कर दिया वरना
बहुत दिनों से कबूतर उड़ा रहा था मैं

जो हुक्म देता है वा इल्तिजा भी करता है
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है
तू बेवफा है तो ले इक बुरी खबर सुन ले
कि मेरा इंतजार दूसरा भी करता है

उन्हें ये जि़द है मुझे देखकर किसी को न देख
मेरा ये शौक है की सबसे सलाम करता चलूं
ये मेरे ख्वाबों की दुनिया न सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूं

कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को
बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हूँ
तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है

हाय ये कैसा मौसम आया, पंछी  गाना भूल गये
बुलबुल भूली गज़ल, पपीहे प्रेम तराना भूल गये
जाने हवा चली ये कैसी, कैक्टस उगे गुलाबों में
नफरत पढ़ने लगी पीढि़याँ, खुषबू भरी किताबों में
बम और बारूद की भाषा इतनी  भायी दुनिया की
आग लगाना याद रहा हम आग बुझाना भूल गये

हमें कुछ पता नहीं हम क्यों बहक रहे हैं
रातें सुलग रही है दिन भी दहक रहे है
जबसे है तुमको देखा बस इतना जानते है
तुम भी बहक रहे तो हम भी बहक रहे हैं
बरसात ही नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई जुल्फें और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भौरंा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो, हम भी समझ रहे हैं


          मजाकिया
बुरे समय को देखकर गंजा तू क्यों रोये
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाका होय

तुम्हारी अंगड़ाई से मेरी जान निकल जाती है
मेरी जान तू डी. ओ. क्यों नहीं लगाती है

काजल, पावडर और लाली की
चलती फिरती दुकान नजर आती हो
और जब धो लेती हो मुहँ अपना
केाई पुराना मकान नजर आती हो

नल आने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो
हमने देा दिन से मुँह नहीं धोया अपना
और तुम नहाने की बात करते हो

ये लड़की नहंी झांसी की रानी है
इसकी एक नहीं कई कहानी है
शरीर पर हे मेरे जो चोंटो के निषान
ये सब इसी के हाथों की निषानी हैं

लोहे को लोहा काट सकता है
हीरे को हीरा काट सकता है
ज़हर को काटे हे ज़हर
तुम प्लीज अपना ख्याल रखना
तुुमको कुत्ता काट सकता है

              दीपावली
दीप जले देता उजियारा, मन जलकर देता अंधियार
इसलिये सब दीप जलाना, नहीं जलाना अपने मन को
एक जरा सी कौध्ंा तुम्हारी दीपक को अर्पित कर देना
वो छोटा सा दीप चुनौती दे देगा तमके शासन को

दीपावली पे ये भी दुआ मंदिरो में हो
चाहत वफा खुलूस मोहब्बत घरों में हो
हमने घरों में अपने उजाले तो कर लिये
कोषिष करें कि रोषनी सबके घरों में हो

कुछ सितारों की चमक नहीं जाती
कुछ यादों की कसक नहंी जाती
कुछ लोगों से होता है ऐसा रिष्ता
दूर रहकर भी उनकी महक नहीं जाती

खुषी दोमाला हो जाती हरेक त्यौहार की अपने
मुसीबत में किसी मजबूर के जो काम आ जाते
दीवाली पर दिये घर के जलाने से तो बेहतर था
किसी मुफलिस के घर का हम अगर चूल्हा जला पाते

आंखो में आंसुओ की जगह अब रहेगा कौन

हुई शाम अब तो चलो अपने घर चलंे
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन
ऐसी गजल की जिसमें हो सच्चाईयों का जिक्र
मैं कह भी लंू अगर तो फिर उसको सुनेगा कौन

ये जो हरसु फलक मंजर खड़े हंै
न जाने किसके पैरो पर खड़े हैं
तुला है धूप नरसाने पर सुख
शेर भी छतरियां लेकर खड़े हैं
इन्हें नामों से पहचानता है
मेरे दुष्मन मेरे अदंर खड़े हैं
किसी दिन चाँद निकला था यहां से
उजाले आज तक यहां खड़े हैं

कभी उंगली पकड़कर मैं जिसे चलना सिखाता था
उसी का हाथ अब मेरी ही पगड़ी तक पहुँचता हैं
वो भी दिन थे कभी अपने अदालत घर मे ंलगती है
मगर मन मसहला घर का कचहरी तक पहुँचता है।

वो मेरे लब को चूमकर बोले
जिंदगी भर जुबान बंद रखना
आज कोई त्यौहार है शायद
आज अपनी दुकान बंद रखना
कुछ दिनों से खराब मौसम है
ऐ परिंदो उड़ान बंद रखना

सफर हयात का तमाम हिजरतो में बंट गया
वतन जमीन ही रही में सरहदों में बंट गया
हजार नाम थे मेरे मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों मस्जिदों में बंट गया
मैं जख्म-जख्म आदमी के दुख समेटता रहा
खुदा जो मस्जिद में था नाराजगी में बंट गया

जिसकी आहट पर निकल पड़ता था सीने से
आज उसेे देखकर दिल मेरा धड़का ही नहीं
यूं तो मुंतजीर किसी शाम में भी नहीं था उसका
वादे पर उसके कभी वो भी आया नहीं

जिंदगी भर का सफर साथ कटा है इसके
लाष के पांव से कांटा ना निकाला जाए

उजाले इस कदर बेनूर क्यों है
किताबें जिदंगी से दूर क्यों है
कभी यूं हो की पत्थर चोट खाए
ये हरदम आइना ही झूट क्यों है

आज तो आप भी शीदों की तरह बोलकर
हम तो समझे थे कि पत्थर नहीं बोला करते

इतना उड़ने के लिये पर नहीं खोला करते
लब हिलाने की किमत भी इन्हें दी जाती है
ये शराफत से कभी मुंह नहीं खोला करते
जी हजूर मैं किसी पद से नवाजे जाते
हम भी सरकार के अतराफ जो बोला करते

साम्प्रदायिकता के दानव का अंत निकट अब आया है,
राष्ट्रहित रक्षार्थ अर्जुन ने फिर गांडीव उठाया है।

जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता,
उस कौम का दुनिया में कहीं घर नहीं होता

क्या रंग दे रहा है, माषूक का बुढ़ापा,
अंगूर का मजा, किषमिष में आ रहा है।

गिला तुझसे नहीं है ओ आस्तीन के सांप,
हमसे ही तुझे खून पिलाते नहीं बना।

दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटो के लिये,
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेडि़या हो जाएगा

मैयत पर मेरी लोग आकर ये कहेंगे,
सही में मरा हुआ है या ये भी चुटकुला है।

ये ना समझो क्रूर कृत्य का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध
                                   राष्ट्रकवि दिनकर
सपनों के रंग तिनका-तिनका बनाया
हर उमंग को दबाया
आज हुए हैं सच सब सपनों के रंग
भरके दिल में उमंग रखे पहला कदम
सपनों के रंग
लाखों वसंत से गुजरो तुम
हो रंग बसंती जीवन का
है हर बसंत की एक दुआ
कि अंत ना हो इस जीवन का

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

जब से चला हूं बस मेरी मंजिल पर नजर है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले
तुमने मेरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा

किस्मत में जो लिखा वो मिल जाएगा मेरे आका
वो दीजिये जो मेरे मुकद्दर में नहीं है।

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,
मेरी किष्ती जहां डूबी, वहां पानी बहुत कम था।

मुझे थकने नहीं देते जरूरत के पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।

जेहमत उठाके आप जो तषरीफ लाए हैं
फूलों की क्या बिसात हमने दिल बिछाए हैं

अभी आए, अभी आकर जरा दामन संभाला है
तुम्हारी जाऊं-जाऊं ने हमारा दम निकाला है

कानों की बालियां चाॅंद-सूरज लगे,
ये बनारस की साड़ी खूब सजे
राज की बात बताएं समधीजी घायल हैं
आज भी जब समधन की झनकती पायल है

जादू है या तिलस्म है तुम्हारी जुबान में
तुम झूठ भी कहते हो तो होता है एतबार


अपनी आवाज की लर्जिष पे तो काबू पा लो
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते हैं
अपने तेवर तो संभालो कि कोई ये ना कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं

हयात लेके चलो, कायनात लेके चलो
चलो तो सारे जमाने को साथ लेके चलो

कष्मीर की वादियों में बेपर्दा निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फीली चट्टानों में

कागज का ये लिबास बदन से उतार दो
बारिष जो हुई तो कहां सर छिपाओगे

दोस्ती ही एक ऐसा रिष्ता है,
जिसे हम हमारी पसंद से चुनते हैं

कह दो ये समंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आएंगे

जलजले ऊंची इमारत को गिरा सकते हैं
मैं तो बुनियाद हूं मुझको तो कोई खौफ नहीं

षोहरत की बुलंदी भी पलभर का तमाषा है
जिस षाख पर बैठे हो वो टूट भी सकती है

अगर ताकत के माने हैं पाष्विक ताकत तो वाकई
नारी में है कम और अगर ताकत के माने हैं नैतिक ताकत
तो निःसंदेह मर्द से कई गुना ज्यादा आगे है औरत
                                         महात्मा गांधी
मूर्ति वंदनीय है, इसलिये नहीं कि उसमें देवता है
बल्कि इसलिये कि उसने तराषे जाने का दर्द सहा है

ढल गई षाम सितारों का जुलूस आया है

आंख मीची तो अपना गया
आंख खोली तो सपना गया
आंख मूंदी तो दफना दिया गया

वो किसी चीज का मोहताज नहीं है
जिसे जीने का हुनर आता है

यादों में उनकी बातों में खुषियों के रंग बरसते हैं
खुषियों में अपनों से मिलने को नैना तरसते हैं।

खुषी के रंग लाई ये घड़ी
प्यार के रंग लाई ये घड़ी

दिल के फफोले जल गए सीने के दाग से
घर को आग लग गई घर के चिराग से

फूल की पत्ती से भी कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नांदा पर कलामे पाक भी है बेअसर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं,
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये

मौत उस षख्स की है जिसपे जमाना रोए
यूं तो सभी आते हैं दुनिया में मरने के लिये

कहां ये मर्तबा अपना के हम तकलीफे षिरकत दें
मगर मेहमां गरीबों के हुए हैं बादषाह अक्सर

मेरी मंषा है मेरे आंगन में दीवार उठे
मेरे हिस्से की जमीं भी मेरे भाई तू रख ले

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय मौसम की तरह दोस्त भी बदल जाते हैं

तुलसी भैया की मेहनत फिर हो गई साकार
स्वीकारो है बंधुवर बधाइयाॅं और सत्कार

हवा महक उठी रंगे चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा

कौन से फूल थे कल रात तेरे बिस्तर में
आज खुषबू तेरे पहलू से बहुत आती है

यही है राज मेरी कामयाबी का जमाने में
कि मैं साहिल पर रूककर भी नजर रखता हूं तूफां पर

सारी दुनिया की निगाहों में गिरा है मजरूह
तब जाकर कहीं तेरे दिल में जगह पायी है

मिलन की रात है गुल कह दो इन चिरागों को
खुषी के वक्त में क्या काम जलने वालों का

दौलत ने दिया वो लिबास कि आ गया गुरूर
दामन था तार-तार अभी कल की बात है

वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद

कुछ नया करने की जिद में पुराने हो गए
बाल चांदी हो गए, बच्चे सयाने हो गए

मुस्कुराओ ऐसे कि बहारों को होंष आ जाए
तालियां बजाओ ऐसे कि कवियों को जोष आ जाए

इस मंजर को देखकर झूम गया मन आज
मन रविषंकर हो गया, तन बिरजू महाराज

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

अंगड़ाई भी ना लेने पाए उठाके हाथ
जो मुझको देख लिया छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ

चमन को सींचने में पत्तियां कुछ झड़ गई होंगी
यही इल्जाम मुझ पर लग रहा है बेवफाई का
मगर कलियों को जिसने रौंद डाला अपने हाथों से
वही दावा कर रहे हैं इस चमन की रहनुमाई का

जेब देता है अंगूठी में नगीना जिस तरह
है दुआ मेरे रहे जोड़ी सलामत उस तरह

मरने के बाद भी मेरी आंखे खुली रही
आदत जो पड़ी हुई थी उनके इंतजार की

हद से बढ़कर हसीन लगते हो, झूठी कसमें जरूर खाया करो
मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर मुस्कुराना ना भूल जाया करो

तू लाख छुपाये दामन मेरा फिर भी है ये दावा
तेरे दिल में मैं ही हूं, कोई दूसरा नहीं है
कोई आरजू नहीं है, कोई जुस्तजू नहीं है
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है

उनके आने से जो चेहरे पे आ गई रौनक
वो समझने लगे बीमार का हाल अच्छा है
यूं जन्नत की हकीकत तो हमें है मालूम
दिल को बहलाने के लिये गालिब ये ख्याल अच्छा है

काटे नहीं कटते हैं लम्हें इंतजार के
नजरे जमाए बैठे हैं रस्ते पे यार के

हजारों ख्वाहिषें ऐसी कि हर ख्वाहिष पर दम निकले
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

जब हम ना होंगे तो क्या रंगे महफिल
किसे देखकर आप षर्माइयेगा

स्वागत है अभिनंदन है क्या भाग्य हमारा है
सेवादल का वीर सिपाही आज पधारा है

हमारी आन, हमारी बान, हमारी षान आए हैं
हमारे प्राण, हमारी जान ले वरदान आए हैं
हमारे हैं, हमारों का भला स्वागत करें कैसे
कहें तो क्या, कहें किससे कि घर भगवान आए हैं

वक्त अच्छा भी आएगा नासीर
गम ना कर जिंदगी पड़ी है अभी

मैटर -

तेज सूर्य सा, धन कुबैर सा
बुद्धि चाणक्य सी, कीर्ति अषोक सी
यह सब तुम्हें सुलभ हो

बढ़ती हुई महंगाई और हारती हुई नैतिकता के दिनों में
अपना रक्त जलाकर जलता हुआ दिया
आपके व्यक्तित्व को आलोकित करे

दीपपर्व आतंकवाद, साम्प्रदायिकता,
भ्रष्टाचार की अमावस का  मुक्तिपर्व हो

दुर्गम पर्वत षिखर यूंही हमें डराते हैं
किंतु किये जो काम आपने याद हमें आ जाते हैं
अभी कहां आराम लिखा यह निंद्रा तो बस छलना है
अरे अभी तो मीलों तुमको राह बनकर चलना है।

सूरज से कहते हैं बेषक वह अपने घर आराम करें
चाॅंद-सितारे जी भर सोये नहीं किसी का काम करें
आॅंख मंूद लो दीपक तुम भी दिया-सलाई जलो नहीं
अपना सोना, अपनी चांदी गला-गला कर मलो नहीं
अगर अमावस से लड़ने की जिद कोई कर लेता है
तो एक जरा सा जुगनू सारा अंधकार हर लेता है

तनकर खड़ा था जो वो जड़ से उखड़ गया
वाकिफ नहीं था वो हवा के मिजाज से

कायरता जिन चेहरों का सिंगार करती है
मक्खियां भी उन चेहरों पर बैठने से इंकार करती है

दौलत और जवानी एक दिन खो जाती है
सच मानों तो सारी दुनिया दुष्मन हो जाती है
उम्रभर दोस्त मगर साथ चलते हैंष्

षाम तन्हाई की है आएगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखाए वही तारा न रहा

कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का
कल रूके ना रूके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज प्यार में गुजार दे

अच्छी सूरत को संवरने की जरूरत क्या है
सादगी भी तो कयामत की अदा होती है।

तुझे  देखकर जग वाले पर यकीं नहीं क्यों कर होगा
जिसकी रचना इतन संुदर वो कितना सुंदर होगा

छोटी सी, प्यारी सी, नन्ही सी आई कोई परी
भोली सी, प्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी
पालने में ऐसे ही झूलते रहे खुषियों की बहारों में झूलते रहे
गाते मुस्कुराते संगीत की तरह ये तो लगे रामा के गीत की तरह
खुषियां देती है दुख ले लेती है
माॅं की ममता का मोल नहीं कोई
उम्रभर मैं करूॅं माॅं की बंदगी
माॅं तेरे नाम है मेरी जिंदगी

फूलों सा चेहरा तेरा कलियों सी मुस्कान है
रंग तेरा देखकर रूप तेरा देखकर कुदरत भी हैरान है
महलो की रानी दुख से बेगानी लग जाए ना धूप तुझे
उड़-उड़ जाऊं सबको बताऊं धूप लगे है छाॅंव मुझे
कांटो से हो जाए पांव ना घायल

चलते हैं वो भी हमसे तेवर बदल-बदल कर
चलना सिखाया जिनको हमने संभल-संभल कर
बिस्तर की सलवटों से महसूस ये हो रहा है
तोड़ा है दम किसी ने करवट बदल-बदल कर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये

क्या है मुकद्दर में फिक्र नहीं इसकी
हारते हैं फिर भी हिम्मत नहीं थकती
वही तो कहलाते हैं फाइटर
मंजिल उनके पास खुद चलकर आती है
खुद ही जो लिखते हैं किस्मत अपनी
क्योंकि फाइटर हमेषा जीतता है।

मेरे जनाजे में सारा गांव निकला
पर वो ना निकले जिनके खातिर जनाजा निकला

देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए
एक दिन बिगड़ी किस्मत संवर जाएगी
ये खुषी हमसे बचकर किधर जाएगी
देखना जिंदगी यूं गुजर जाएगी
देखा फूलों को कांटो में हंसते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए

आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं एक ऐसे गगन के तले
जहां गम भी ना हो आंसू भी ना हो बस प्यार ही प्यार पले

उस मोड़ से षुरू करें फिर ये जिंदगी
हर रात जहां हसीन थी हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख्वाब थे
फूलों के ख्वाब थे वो मोहब्बत के ख्वाब थे
लेकिन कहां है इनमें वो पहले सी दिलकषी
रहते थे हम हसीन ख्यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फुरसत की हर घड़ी
षायद ये वक्त हमसे कोई चाल चल गया
रिष्ता वफा का और कोई रंगो में ढल गया


ये दौलत भी ले लो ये षोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कष्ती वो बारिष का पानी
मोहल्ले की सबसे पुरानी निषानी
वो बुढि़या जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वे छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडि़या वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडि़या की षादी पे लड़ना-झगड़ना
वो झूले से गिरना वो गिरकर संभलना
वो पीतल के छल्लांे के प्यारी से तोहफे
वो टूटी हुई चूडि़यों की निषानी
वो कागज की कष्ती ़ ़ ़ ़
कभी रेत के ऊंचे टीलो पे जाना
घरोंदे बनाना बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था ना रिष्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी

बात निकलेगी तो फिर दूर तक ले जाएगी
लोग बेवक्त उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे तुम इतनी परेषां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालो की तरफ
चूडि़यों पर भी कई तंज किये जाएंगे
कांपते होठो पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हरेक बात का ताना देंगे
उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे के तास्सुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जाएगी

उबरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
वरना कौन कतरा है जो दरिया बन नहीं सकता

दिले नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम मगर षाम ही तो है

जीवन गाथा महापुरूष की हमको यही सिखाती है
हम भी ऊंचे उठ सकते हैं जीवन विकास की थाती है
जब ये महापुरूष जाते हैं हमें छोड़कर धरती पर
रह जाते हंै पदचिन्ह उभरकर सदा समय की रेत पर

चले जाएंगे हम मुसाफिर हैं सारे
फिर भी एक षिकवा है लबों पे हमारे
खुदा ने तुझे बहुत जल्दी बुलाया
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मेरे दिल को आज तड़पा रहा है
वो मंजर मेरे सामने आ रहा है
कि लोगों ने तेरा जनाजा उठाया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया

हम रातों को उठ-उठकर जिनके लिये रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानांे की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
इस बात का रोना है इस बात पर रोते हैं
कष्ती के मुसाफिर ही कष्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकड़ते हैं
कुछ लोग उमर सारी अंधेरा ही ढोते हैं
जब ठेस लगी दिल को ये राज खुला हम पर
धोखा तो नहीं देते नष्तर ही चुभोते हैं
मेरे दर्द के टुकड़े हैं बेचैन नहीं सागर
हम सांसो के धागों में जख्मों को पिरोते हैं

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम षहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचाके आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुजारें भी तो कहां
सहरा में खुषी के फूल नहीं षहरो में गमों के साए हैं

झूठी-सच्ची आस पर जीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय की जगह खूने दिल पीना कब तक आखिर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकराकर डूब मरेंगे
तूफानों से डरकर जीना कब तक आखिर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुजारा फिर भी ना आए
वादे का एक महीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
सामने दुनियाभर का गम है और इधर एक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर एक आइना कब तक आखिर, आखिर कब तक

ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे

दिन गुजर गया इंतजार में रात कट गई इंतजार में
वो मजा कहां वस्ले यार में लुत्फ जो मिला इंतजार में

अब में समझा तेरे रूखसार पे तिल का मतलब
दौलते हुस्न पे दरबान बिठा रखा है

पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती ये हंसी नजरे ख्वाब हो जाती
तूने डाली ना मैकदा नजरें वरना षबनम षराब हो जाती

पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी ये षबनम षराब क्या होगी
जिसने लाखों हंसी देखे हों उसकी नीयत खराब क्या होगी

तुम धड़कनों में बस गए अरमां बन गए
सौ साल यूं बस पहचान बन गए

कल रात उनको देखा उर्दू लिबास में
कुछ लोग कह रहे हैं अगला चुनाव है
वो भीख मांगते हैं हाकिमों के लहजे में
हम अपने बच्चों का हक भी अदब से मांगते हैं

छुपे बैठे हैं गुलजार में बहारे लूटने वाले
कली की आंख लग जाए ऐ कांटो तुम ना सो जाना

दिखाओ चाबुक तो झुककर सलाम करते हैं
ये वो षेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं

कुदरत ने तो बख्षी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं चीन, कहीं ईरान बनाया
                                साहिर लुधियानवी

पैदा उल्फत में वो सिफात करें पत्थरों के सनम भी बात करें
तुम जरा रूह के करीब आओ जिस्म के दरमियां क्या बात करें

विशिष्ट है आपका ये जन्मदिन
षुभकामना है बार-बार आए यह सुदिन

कामयाबी की मिसाल आपके पूरे पचास साल
तुम हमेषा पत्रकारिता के भाल का तिलक बनकर चमको

मान अधूरा लगता है सम्मान अधूरा लगता है
एक राजीव तेरे बिना संसार अधूरा लगता है

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समय समय की बात है समय समय  का योग
लाखों मंे बिक रहे है दो कौड़ी के लोग

हमने किया गुनाह तो दोजख हमें मिला
दोजख का क्या गुनाह जो दोजख को हम मिले।

कायरता जिन चेहरो का श्रंगार करती है
मक्खियाॅ भी उन पर बैठने से इंकार करती है।

लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
पिया की दुलारी भोली भाली रे दुल्हनियाॅ
तेरी सब राते हो दीवाली रे दुल्हनियाॅ
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
दुल्हे राजा रखना जतन से दुल्हन को
कभी न दुखाना तुम गोरिया के मन को
नाजुक है नाजो की है पाली रे दुल्हनियाॅ

एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चूल्हो मे हरेक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाॅ सोएगा।
आॅंधी नफरत की न चलेगी कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यकी अब ना कोई शोर शराबा होगा ।
जुल्म होगा ना कही खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा  कोई
अब मेरे देष में बेघर न रहेगा कोई ।
नये वादो का जो डाला है वो जाल अच्छा है।
रहनुमाओ ने कहा है ये साल अच्छा है।
दिल को खुष रखने का गालिब यह ख्याल अच्छा है ।

दुष्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गाें का जमाना नहीं भूले
तुम आॅंखो की बरसात बचाए हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम अपनी तस्वीर बनाना नही भूले।
एक उम्र हुई मैं तो हॅंसी भूल चुका हूॅ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नही भूले।

उनके मकबरे पर तो एक भी दिया नही
जिन्होंनें अपना खून चढ़ाया वतन पर
जगमगा रहे है मकां उन्हीं के
बेचा जिन्होंने शहीदो के कफन को

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर

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