Thursday 27 April 2017

लोगों को कहते सुना अक्सर जिंदा रहे तो फिर मिलेंगे
मगर इस दिल ने महसूस किया है, मिलते रहेंगे तो जिंदा रहेंगे

जब दोस्ती की दास्तान वक्त सुनाएगा
हमको भी कोई षख्स याद आएगा
तब भूल जाएंगे जिंदगी के गमों को
जब आपके साथ गुजरा वक्त याद आएगा

वही अल्फाज जो अखबार में पत्थर के होते हैं
गजल में आ गये तो आंख की पलकें भिगोते हैं

बंगले से भी सड़क को दिये उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने

हवेली वाले हिकारत से मेरी सल्तनत ना देख
मुझे यहां नहीं जन्नत में घर बनाना है
इबादतों के लिये तू मुझे जगह न बता
मुझे पता है कि सर कहांॅ झुकाना है

यूं बेबस न फिरा करो, कोई षाम घर भी रहा करो
वह गजल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिजाज का षहर है, जरा फासले से मिला करो

रंजिश रही दिल में सफाई के बाद
बंजर रही जमीं सिंचाई के बाद
तुम गुफ्तगू करो तो तुम्हें पता चले
कितने हैं लोग जाहिल पढ़ाई के भी बाद

न रहा मोहताज चांद-सितारों का कभी
सदा मैंने अपने मेहनत के उजाले देखे
तष्कीरा लकीरों का वही पर रख दिया
जब नजमियों ने मेरे हाथ के छाले देखे

अक्लें हैरां हैं मेरी रफ्तारे दुनिया देखकर
एक को आता देखकर, एक को जाता देखकर
भूलकर मेरे जनाजे को कांधा मत देना
जिंदा ना हो जाऊं फिर मैं सहारे देखकर

ना पूछा कौन है, क्यों राह में लाचार बैठै हैं
मुसाफिर हंै, सफर करने की हिम्मत हार बैठै है

टूटी हुई मंुडेर पर, छोटा-सा एक चिराग
मौसम से कह रहा है, आंधी चलाके देख

नषेमन पर नषेमन इस कदर तामीर करता चल
कि बिजली गिरते-गिरते आप ही बेजार हो जाएं

ठंडी हवाएं, महक, फिजां, नर्म चांदनी
रात तो एक थी जो बस तेरे साथ काट दी
गोसा बदल-बदलके सारी रात काट दी
कच्चे मकां ने अबके भी बरसात काट दी
हालांकि हम मिले है बड़ी मुद्दतों के बाद
औकात की कमी ने मुलाकात काट दी
वो सर भी काट देता तो होता नहीं मलाल
अफसोस ये है कि उसने मेरी बात काट दी

फुर्सत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से तो बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों

किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर है ये बाहर कौन है

दिल धड़कने का तसव्वुर ख्याली हो गया
एक तेरे जाने से सारा षहर खाली हो गया

सियासत में सियाकारों के चेहरे लाल रहते हैं
यहां जो कुछ नहीं करते मालामाल रहते हैं
मेरे सोने की गंगा में, मेरी चांदी की जमना में
सुनहरी मछलियाॅं थीं, आजकल घडि़याल रहते हैं

या तो मुझसे छीन लो ये बुत तराषी का हुनर
या फिर जो बुत तराषूं वो खुदा हो जाए

हजारों मुष्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर एक फायदा है पीठ पर खंजर नहीं लगता

जिसको तेरी आंखों से प्यार होगा
गर जिया भी तो वह बीमार होगा
ये मोहब्बत है जरा सोच-समझकर रोना
एक आंसू भी टूटा तो गुनाह देगा

वह हादसा भी खूब था, जब आंसुओं का तीर
निकला किसी की आंख से आकर लगा मुझे

कितने मौसम बीत गये दुख-दर्द की तन्हाई में
दर्द की झील नहीं सूखी है आंखों की अंगनाई में

ना किसी की आंख का नूर हूं, ना किसी के दिल का करार हूं
जो किसी के काम ना आ सका, मैं वो एक मुष्ते गुबार हूं

बारिष का मजा चाहो तो, मेरी आंखों में आकर बैठो
वो तो बरसों में बरसती है, यह बरसांे से बरसती है

इतने हुए बदनाम हम इस जमाने में
तुमको लग जाएगी सदियां हमें भुलाने में
ना तो पीने का सलीका है ना पिलाने का षऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में

अबके सावन में षरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़कर सारे षहर में बरसात हुई
षब्द झूठे हैं सत्य कथाओं की तरह
वक्त बेषर्म है वैष्या की अदाओं की तरह

सबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहां पे उजालों ने खुदखुषी की है

जिंदगी भर तो गुफ्तगू हुई गैरों से मगर
आज तक तुमसे हमारी ना मुलाकात हुई

खुषबू सी आ रही है इधर जाफरान की
षायद खुली है खिड़की, उनके मकान की

सातों दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
मैं रोया परदेस में भीगा माॅं का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार

आपकी नजरों में सूरज की जितनी अजमत
हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं

रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ

मैंने अपनी खुष्क आंखों से लहु टपका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिये
और सिर्फ कब्रों की जमीनें देकर मत बहलाओ
हमने राजधानी दी थी हमको राज-धानी चाहिये

उस पार उतर जाएं ये बात ख्याली है
जिस नाव में बैठे हो वो डूबने वाली है
हालात की तब्दीली षायद उसे कहते हैं
जो बाग का दुष्मन था, वो बाग का माली है

भोर का तारा हुए तुम, रात के साए गए
रोशनी का दिन सजा तो तुम कहीं पर खो गए

तन समर्पित, मन समर्पित और ये यौवन समर्पित
और क्या दूं मातृ-भू तुम पर किया जीवन समर्पित

कौन कहता है बुढ़ापे में जवानी नहीं होती
ये अलग बात है किसी की मेहरबानी नहीं होती

भाषा चाहे जितनी भी हो, जीत सदा हिंदी की होगी
चंद्रमा पर जाओ या मंगल पर, पहली दुकान किसी सिंधी की होगी

नये कमरों में चीजें पुरानी अब कौन रखता है
परिंदों के लिये कुंडो में पानी अब कौन रखता है
ये तो ये हैं जो संभाले हैं गिरती दीवारों को
वरना बुजुर्गों की निषानी को कौन रखता है

कौन कहता है बूढ़ों को प्यार करने का हक नहीं होता
ये अलग बात है इन पर किसी को षक नहीं होता

उसके घर जाकर दिये सपाटे चार
देखता ही रह गया जगत का ठेकेदार
फटी जब पैर बिवाइ पीर जब समझ में आई

मेरे घर में चहकती रही बेटियाॅं
सारे षहर को खटकती रही बेटियाॅं
ओढ़कर सपन सारा षहर सो गया
राह पापा की तकती रही बेटियाॅं
छोड़ माॅं-बाप को जब बेटा चल दिया
सेवा माॅं-बाप की कर रही बेटियाॅं
मम्मी-पापा के आंसू के अंगारों पर
बनकर बदली बरसती रही बेटियाॅं
बेटी होना एक अपराध है देष मंे
यही सुन-सुन सिसकती रही बेटियाॅं
इस जमाने ने षर्मो-हया बेच दी
राह चलने में अब झिझकती रही बेटियाॅं
अब की तनख्वाह पर ये ये चीज होना हमंे
कहते-कहते झिझकती रही बेटियाॅं

यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो

चाहे बसों, पहाड़ पर या फूलों के गांव
माॅं के आंचल से अधिक षीतल कहीं न छांव
इसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माॅं की गोदी से अधिक नीरज कौन पवित्र

पूछिये तो कायम है रंगीनियाॅं जमाने की
सर धुनते हैं फिर भी वो दिन कहां गये

कुत्ते का घुमाना याद रहा और गाय की टोटी भूल गये
दोस्त-यार सब याद रहे पर सगे भाइयों को भूल गये
साली का जन्मदिन याद रहा और माॅं की दवाई भूल गये

षर्त लगी जब एक षब्द में दुनिया लिखा देने की
सबने दुनिया लिख डाला मैंने सिर्फ माॅं लिखा

थामले जो हाथ गिरते आदमी का
आदमी सही में वो ही इंसान है

अन्न देना, धन देना, देना ना मकान चाहे
बेटी कभी देना नहीं किसी निर्धन को

साधना इतनी बड़ी की जाप छोटे पड़ गये
पुण्य जब इतने बडे़ कि पाप छोटे पड़ गये
इतनी ऊंचाइयाॅं जब नापने निकले ये लोग
इतना कद ऊंचा मिला कि नाप छोटे पड़ गये


एक है षहर मुंबई जहां लोग पत्थर दिल होते हैं
एक आपका षहर है खंडवा जहां पत्थर के भी दिल होते हैं

जो भरत भूमि में जन्मा है मुस्लिम है, सिख, इसाई है
उससे पे्रम का रिष्ता है माता का जाया भाई है

अब तो कोई एक वरक तेरे-मेरे बीच हो
तेरे घर हो गीता और मेरे घर कुरआन हो
ईद, दीवाली, होली, मोहर्रम सब मिलकर एक साथ हो
मेरे घर हो जब उपवास, तब तेरे घर रमजान हो

आया वसंत तो फूल भी षोलो में ढल गये
मैं चूमने गया तो मेरे होठ जल गये

जिनके लिये दिलों में चाहत है, प्यार है
वो आ रहे हैं, जिनका हमें इंतजार है

जहां ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मोटरगाड़ी
जहां ना पहुंचे मोटरगाड़ी, वहां पहुंचे बेलगाड़ी
जहां ना पहुंचे बेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी

आ मिटा दे दिलों पे जो स्याही  आ गई
मेरी ईद तू मनाले तेरी दीवाली में मनालूं

एक-दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं
क्या कमी है आदमी की रफ्तार में

आदमी को पेषेवर होते हुए
हमने देखा गांव को षहर होते हुए
खुदा की तरह पूजे गए है यहां
न जाने कितने लोग पत्थर हुए


तुम्हारी षान घर जाती कि रूतबा घर गया होता
जो तुमने कहा गुस्से में प्यार से गर कह दिया होता

माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है

जब कलिका को मादकता में, हंस देने का वरदान मिला
जब सरिता को उन बेसुध-सी लहरों को कल-कल गान मिला
युग-युग की उस तन्मयता को, कल्पना मिली संचार मिला
तब हम पागल से झूम उठे, जब रोम-रोम को प्यार मिला

परिभाषा बांधती है, निष्चित करती है सीमाएॅं
अपरिभाषित प्रेम के बंधन में हम और तुम
परिणाम, परिणिति या नियति सोचकर
क्या किसी ने वास्तव में पे्रम किया है

एक दिन दिनमान से मैंने जरा जब यों कहा
आपके साम्राज्य मंे इतना अंधेरा क्यों रहा
तिलमिलाकर वो दहाड़ा मैं भला अब क्या करूं
तुम निकम्मों के लिये मैं अकेला कहां तक बढ़ूं
आकाष की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम ये घनघोर है कुछ मैं लड़ू कुछ तुम लड़ो

तुम न समझो तुम्हारा मुकद्दर हूं मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तकदीर हो

चंद मछेरो ने साजिष कर सागर की संपदा चुराली
कांटो ने माली से मिलकर फूलों की कुर्की करवा ली
खुषियों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी है
आने को आई आजादी, मगर उजाला बंदी है

रहा ना कारवां अब गर्द लिये बैठे हैं
हमें ना छेडि़ये हम दर्द लिये बैठे हैं


हर फूल की किस्मत में नहीं सेहरे की ताजनषीन
कुछ फूल तो खिलते हैं मजारों के लिये भी

कहीं पर चांद-तारे हैं, कहीं बादल गरजते हैं
कहीं षादी के जलसे हैं, कहीं आंसू बरसते हैं
कहीं टुकड़ों के लाले हैं, कहीं किस्मत बनी रानी
कहीं सूखा समंदर है, कहीं लहरा रहा पानी
हमें दोनों ही प्यारे हैं, बना कुछ भी न बोलेंगे
खुषी भेजे तो हंस लेंगे, सितम भेजे तो रो लेंगे

उस दिन आवाज ने नहीं, चुप्पी ने साथ दिया मेरा
बिगाड़ा चुप्पी ने ही उस दिन मेरे ईमान को

गर हौसले बुलंद हो मंजिले मिलती रहेगी
एक कदम तुम चलोगे, दो कदम मंजिल चलेगी

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है

ज्यादा खाय, जल्द मरी जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगड़े काम न जो गम खाय

टूटे नहीं संकल्प, बस संदेष यौवन का यही
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत् संघर्ष ही

आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है
आइना छोडि़ये आइने में क्या रखा है

या रहिये इसमें अपने घर की तरह
या मेरे दिल में आप घर ना करें

करीब आओ तो षायद हमें समझ लोगे
ये फासले तो गलतफहमियां बढ़ाते हैं


दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये

षब्द के तीर प्यार की कमान रखते हैं
बंद होंठो में एक मीठी जुबान रखते हैं
तुम तो रहते हो हिन्दुस्तान में लेकिन
ये तो वो हैं जो दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं

रूके तो चांद चले तो हवाओं जैसा है
वो षख्स धूप में देखो तो छांव जैसा है

परी चेहरों की कमी नहीं दुनिया मंे मगर ऐ दोस्त
तेरे मिजाज की ठंडक कहां मिलती है

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते
न ही मैदान जीतने से, मन भी जीते जाते हैं

गहरी नदियां, नांव पुरानी, तिस पर यह मौसम तूफानी
तू किसको आवाज लगाता, सभी करेंगे आना-कानी
वैसे तो इस जग में यारों, बड़ी प्रखर आंसू की बानी
लेकिन अंधो की नगरी में, मत कर रोने की नादानी
तू ही नहीं दुखी इस जग में, सबकी अपनी राम कहानी

जीवन में एक सितारा था, माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया, अंबर के आंगन को देखो
इसके कितने तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये, फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर षोक मनाता है, जो बीत गई सो बीत गई

इस राज को एक मर्दे फिरंगी के किया फाष
हर चंद की दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत एक तर्जे हुकूमत है कि जिसमें
बंदो को गिना करते हैं तौला नहीं करते

मंजिल भी उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों मंे जान होती है
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौंसलो से उड़ान होती है

माना कि तेेरे प्यार के काबिल हम नहीं
पर उनसे जाकर पूछिये, जिन्हें कि हम हासिल नहीं

खाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
और छोटी-मोटी बात पर हिजरत नहीं होती
पहले दीप जले तो चर्चा हुआ करती थी
अब षहर जले तो भी हैरत नहीं होती
रोटी की गोलाई नापा करता है पगले
इसलिये तो घर में बरकत नहीं होती

फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं
जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूं

मोहब्बत एक खुष्बू है हमेषा साथ चलती है
कोई इंसा तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं होता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में जरा सा फासला रखना
दरिया समंदर में मिल जाए तो समंदर नहीं होता

झुकते वही जिनमें जान होती है
अकड़े रहना मुर्दों की पहचान होती है

जिसने बनाई दसो दिषाएं और बनाई ऋतुएं चार
करें विनम्र षीष नवाकर उस रब से मैं बारम्बार
जब-जब जन्म लूं धरती पर संगनी तुझे पाऊं हर बार

यूं तो तुम्हे रोज प्यार करते हैं
पर आज षब्दों से इजहार करते हैं

आप भी आइये हमको भी बुलाते रहिये
दोस्ती जुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिये
दुष्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये

नजर बदल लो, नजारे बदल जाएंगे
सोच बदल लो सितारे बदल जाएंगे
जरूरत नहीं है किष्तियां बदलने की
राह बदल दो किनारे बदल जाएंगे

सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख नहीं, माणिक मदिरा का प्याला
छल रही है जिसमें छल-छल, रूप मदिर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूं
जहां कहीं मिल बैठे हम-तुम, वहीं हो गई मधुषाला

जो दर्द दिया तुमने, गीतों में पिरो लेंगे
आंखे भी छलकेगी, जी भर के भी रो लेंगे

अब तक है जमाने पे जिस आवाज का जादू
उसके मेरे नगमात पे उपकार बड़े थे
कहना रफी साहब के लिये है बड़ा मुष्किल
इंसान बड़े थे या कलाकार बड़े थे

खंडवा की मिट्टी ने मुझको गढ़ा, यहीं की फिजा में ये पौधा बढ़ा
खंडवा का रंग ऐसा मन चढ़ा, कोई षहर लगता न इससे बड़ा

गूढ़ ज्ञान, संगीत कला का बिरसे में वो लाए हैं
गंधर्वों की वाणी लेकर इस धरती पर आए हैं
मन्ना दा पहुंचे जहां उन्नति की उच्चतम चोटी है
उनकी कला के सामने फिल्मी दुनिया छोटी है

गजल, गीत, अरू छंद से, छीन ले सबका चैन
दिव्य अमोलक रत्न है, रवीन्द्र जैन

लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
कयामत कहीं से चली आ रही है
खुदा के लिये अपनी नजरों को रोको
मेरे दिल की दुनिया लुटी जा रही है

जिंदगी या तो किसी को प्यार से देखने का नाम है
या किसी की आंखों में प्यार देखने का नाम है

जिस तरफ से गुजरकर हम गये
लोग उसे रास्ता कहने लगे

तुम ही मेरी आरजू हो, किस्मत हो
मेरे मरने के बाद भी नहीं छूटेगी
तुम मेरी जिंदगी की आदत हो
जिसको सदियों से ढूंढ रहा था मैं
तुम उसी रोषनी की दौलत हो
तुमको देखा तो यूं लगा जैसे
तुम्हीं दिल हो तुम्हीं मोहब्बत हो

बिखरा पड़ा है मेरे ही घर में मेरा वजूद
बेकार महफिलों मंे इसे ढूंढता हूं मैं

कुछ हकीकत का सामना भी कर
खुष खयाली के जाल ही मत बुन
आइना देखकर पलट मत जा
हौंसला है तो उसकी बात भी सुन

घरों में छुपकर ना बैठो कि ऋतु सुहानी है
छतों पर चले आओ कि बहता पानी है

पूनम डूबी अमावस के घर, सावन सारे सलाखों में डूबे
और मौसम डूब गया बे मौसम, डूबने वाले तो लाखों में डूबे
षाखों में डूबा है मधुबन सारा, पंछी सयाने भी पाखो में डूबे
और तैर गये हम यूं तो समंदर, डूबे तुम्हारी तो आंखों में डूबे

साजिषें लड़वाने वाली, दीन-ओ-ईंमा हो गयी
गीत हिंदू हो गये, गजलें मुसलमां हो गयी

ला पिला दे साकिया, पैमाना पैमाने के बाद
होष की बाते करेंगे, होष में आने के बाद
सुरखरू होता है इंसा आफते आने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे घिस जाने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर मिन्नतें क्या-क्या ना की
कैसे नजरें फेर ली मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद

कभी दिये के आगे पल दोपल बर्बाद कर लेना
पतंगा जब चले कोई तो, हमको याद कर लेना

वो जितनी खुदनुमाई कर रहा है
खुद अपनी जग हंसाई कर रहा है
जरा सा जोर दरिया में क्या आया
समंदर की बुराई कर रहा है
तमाषा देख तो खुद गर्जियों का
दगा भाई से भाई कर रहा है
हमारे बल पर मसनद पाने वाला
हमसे ही कद अदाई कर रहा है

खुद जिंदगी के हुस्न का मयार बेचकर
दुनिया अमीर हो गई किरदार बेचकर
दीवानगी तो देखिये जूते पहन लिये
उस सरफिरे ने जुनबाओ दस्तार बेचकर
बुजदिल तेरी रगो में अगर खूं नहीं बचा
जा चूडि़यां पहन ले तलवार बेचकर

कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा बना देना
फिर उसके बाद कुछ अफवाह के पर्चे उड़ा देना
गलतफहमी से बढ़कर प्यार का दुष्मन नहीं कोई
परिंदो को उड़ाना हो तो बस षाखें हिला देना

नजर-नजर में उतरना कमाल होता है
नफ्स में बिखरना कमाल होता है
बुलंदी पर पहुंचना कमाल नहीं
बुलंदी पर ठहरना कमाल होता है

कड़वा भले है नीम क्या, चंदन से कम है
अपना षहर खंडवा क्या चंदन से कम है

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