चले जाएंगे हम मुसाफिर हैं सारे
फिर भी एक षिकवा है लबों पे हमारे
खुदा ने तुझे बहुत जल्दी बुलाया
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मेरे दिल को आज तड़पा रहा है
वो मंजर मेरे सामने आ रहा है
कि लोगों ने तेरा जनाजा उठाया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
हम रातों को उठ-उठकर जिनके लिये रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानांे की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
इस बात का रोना है इस बात पर रोते हैं
कष्ती के मुसाफिर ही कष्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकड़ते हैं
कुछ लोग उमर सारी अंधेरा ही ढोते हैं
जब ठेस लगी दिल को ये राज खुला हम पर
धोखा तो नहीं देते नष्तर ही चुभोते हैं
मेरे दर्द के टुकड़े हैं बेचैन नहीं सागर
हम सांसो के धागों में जख्मों को पिरोते हैं
पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम षहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचाके आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुजारें भी तो कहां
सहरा में खुषी के फूल नहीं षहरो में गमों के साए हैं
झूठी-सच्ची आस पर जीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय की जगह खूने दिल पीना कब तक आखिर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकराकर डूब मरेंगे
तूफानों से डरकर जीना कब तक आखिर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुजारा फिर भी ना आए
वादे का एक महीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
सामने दुनियाभर का गम है और इधर एक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर एक आइना कब तक आखिर, आखिर कब तक
ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
दिन गुजर गया इंतजार में रात कट गई इंतजार में
वो मजा कहां वस्ले यार में लुत्फ जो मिला इंतजार में
अब में समझा तेरे रूखसार पे तिल का मतलब
दौलते हुस्न पे दरबान बिठा रखा है
पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती ये हंसी नजरे ख्वाब हो जाती
तूने डाली ना मैकदा नजरें वरना षबनम षराब हो जाती
पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी ये षबनम षराब क्या होगी
जिसने लाखों हंसी देखे हों उसकी नीयत खराब क्या होगी
तुम धड़कनों में बस गए अरमां बन गए
सौ साल यूं बस पहचान बन गए
कल रात उनको देखा उर्दू लिबास में
कुछ लोग कह रहे हैं अगला चुनाव है
वो भीख मांगते हैं हाकिमों के लहजे में
हम अपने बच्चों का हक भी अदब से मांगते हैं
छुपे बैठे हैं गुलजार में बहारे लूटने वाले
कली की आंख लग जाए ऐ कांटो तुम ना सो जाना
दिखाओ चाबुक तो झुककर सलाम करते हैं
ये वो षेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं
कुदरत ने तो बख्षी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं चीन, कहीं ईरान बनाया
साहिर लुधियानवी
पैदा उल्फत में वो सिफात करें पत्थरों के सनम भी बात करें
तुम जरा रूह के करीब आओ जिस्म के दरमियां क्या बात करें
विशिष्ट है आपका ये जन्मदिन
षुभकामना है बार-बार आए यह सुदिन
कामयाबी की मिसाल आपके पूरे पचास साल
तुम हमेषा पत्रकारिता के भाल का तिलक बनकर चमको
मान अधूरा लगता है सम्मान अधूरा लगता है
एक राजीव तेरे बिना संसार अधूरा लगता है
तुम सही वक्त पर खबरों को
इसी तरह क्लिक करते रहो
समय समय की बात है समय समय का योग
लाखों मंे बिक रहे है दो कौड़ी के लोग
हमने किया गुनाह तो दोजख हमें मिला
दोजख का क्या गुनाह जो दोजख को हम मिले।
कायरता जिन चेहरो का श्रंगार करती है
मक्खियाॅ भी उन पर बैठने से इंकार करती है।
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
पिया की दुलारी भोली भाली रे दुल्हनियाॅ
तेरी सब राते हो दीवाली रे दुल्हनियाॅ
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
दुल्हे राजा रखना जतन से दुल्हन को
कभी न दुखाना तुम गोरिया के मन को
नाजुक है नाजो की है पाली रे दुल्हनियाॅ
एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चूल्हो मे हरेक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाॅ सोएगा।
आॅंधी नफरत की न चलेगी कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यकी अब ना कोई शोर शराबा होगा ।
जुल्म होगा ना कही खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा कोई
अब मेरे देष में बेघर न रहेगा कोई ।
नये वादो का जो डाला है वो जाल अच्छा है।
रहनुमाओ ने कहा है ये साल अच्छा है।
दिल को खुष रखने का गालिब यह ख्याल अच्छा है ।
दुष्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गाें का जमाना नहीं भूले
तुम आॅंखो की बरसात बचाए हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम अपनी तस्वीर बनाना नही भूले।
एक उम्र हुई मैं तो हॅंसी भूल चुका हूॅ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नही भूले।
उनके मकबरे पर तो एक भी दिया नही
जिन्होंनें अपना खून चढ़ाया वतन पर
जगमगा रहे है मकां उन्हीं के
बेचा जिन्होंने शहीदो के कफन को
कोई चांदनी रात का चांद बनकर तुम्हारे तसव्वुर में आया तो होगा
किसी से तो की होगी तुमने मोहब्बत किसी को गले लगाया तो होगा
तुम्हारे ख्यालों की अंगड़ाइयों में मेरी याद के फूल महके तो होंगे
कभी अपनी आंखों के काजल से तुमने मेरा नाम लिखकर मिटाया तो होगा
लबों से मोहब्बत का जादू जगाके भरी बज्म में सबसे नजरे बचाके
निगाहों की राहों से दिल में समाके किसी ने तुम्हें भी चुराया तो होगा
कभी आइने से निगाहें चुराकर जली होगी भरपूर अंगड़ाइयों में
तो घबराके खुद तेरी अंगड़ाइयों ने तेरे हुस्न को गुदगुदाया तो होगा
निगाहों में षम्मे तमन्ना जलाके तकी होगी तुमने भी राहे किसी की
किसी ने तो वादा किया होगा तुमसे किसी ने तुम्हें भी रूलाया तो होगा
तुझसे मिलकर उंगली मीठी लगती है
तुमसे बिछड़कर षहद भी खारा लगता है
तेरे आगे चांद पुराना लगता है
तुझसे मिलके कितना सुहाना लगता है
माषूक का बुढ़ापा लज्जत दे रहा है
अंगूर का मजा किषमिष में आ रहा है
जड़ दो चांदी चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं है
सच हारे या बढ़े तो सच ना रहे
झूठ की कोई इंतहा नहीं है
सुनते है कि मिल जाती है हर चीज दुआ से
एक रोज तुझे मांगकर देखंेगे खुदा से
तुझको यूं देखा है, यूं चाहा है, यूं पूजा है
तू जो पत्थर भी होती तो खुदा हो जाती
कहां ले जाएगा बांधकर तू ये षान ओ षौकत
कि कफन में कभी किसी के भी जेब नहीं होता
प्यास है ओस की बूंद पिये लेते हैं
रात है तारों को देखकर जिये लेते हैं
तुम न दे सके लेकिन भरोसा मुझको
जाओ तुम्हें चांद सी मुस्कान दिये देते हैं
क्षितिज तक प्रत्येक दिषा में हम उठे नवप्राण भरने
नवसृजन की साध लें हम उठे निर्माण भरने
साधना के दीप षुभ हो ज्ञान का आलोक छाए
नष्ट तृष्णा के तिमीर हो धाम अपना जगमगाए
तंग आकर मरीज ने अस्पताल से छलांग लगाई
तो डाॅक्टर ने टांग पकड़कर प्रभाती सुनाई
सुबह-सुबह षहर को प्रदूषित करता है नादान
खाली हाथ कहां चला जजमान फोकट में मुक्ति पाएगा
अबे मुर्दे को तो छोड़ा नहीं जिंदा कैसे जाएगा
भूख हर दर्षन का घूंघट उतार देती है
रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपड़े उतार देती है
इस देष में जिंदा लोग रहते हैं मुझे तो इस बात पर भी षक है
यारों ऐसे लोगों को जीने का क्या हक है
जो अपनी बदनसीबी पर खिलखिलाए
और पचास साल में पचास ईमानदार आदमी भी नहीं ढूंढ पाए
पत्थर उबालती रही एक माॅं तमाम रात
बच्चे फरेब खाकर चटाई पर सो गए
कभी तो कोई सच का साथ देेने सामने आए
कि हरेक सच के लिये मुजरिम हमारी जुबां क्यों हो
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाॅं जलाने में
‘‘दुष्मनी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइष रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो षर्मिन्दा न हों‘‘
खुदा महफूज रखे मुल्क को गंदी सियासत से
षराबी देवरों के बीच भोजाई रहती है
मिलकर बैठे भी और कोई न हो
खुदा करे कभी ऐसी कोई मुलाकात न हो
ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे गम उठा ले
तन्हाइयों में रोले महफिल में मुस्कुरा ले
दिनभर गमों की धूप में जलना पड़ा हमें
रातों को षमां बनकर पिघलना पड़ा हमें
हर एक कदम पे जानने वालों की भीड़ थी
हर एक कदम पे भेस बदलना पड़ा हमें
दिल के लहु को मेहंदी की खुषबू ने छीन लिया
जो हुआ बेटा जवान तो बहू ने छीन लिया
मेरा क्या है फिर एक सूरज उगा लूंगा
उजाले उनको दो जो तरसते हैं उजालों को
मेरी मजदूरी पर निगाह भी जमाने की
पर किसने देखा मेरे हाथों के छालों को
लब पे आए जिक्रे काना कहे काषी भी साथ-साथ
बात जब है कि हो नमाज और आरती भी साथ-साथ
कोई कहता है खुदा कोई कहता है नहीं
चल रही है झूठ और सच की कहानी साथ-साथ
नन्हें जहनों पर ये भारी बोझ किसने रख दिया
फिक्र रोटी-दाल की और ए बी सी डी साथ-साथ
जितने कष्ट कंटकों में हैं उनका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला
मोहब्बतों में था जो खुमार वो जाता रहा
बुरा ना मान पर एतबार जाता रहा
इनके साथ 950 करोड़ लोगों का प्यार था
तो उनके साथ वे भी नहीं थे, जिन्होंने उन्हें भेजा
इन षहीदों के पार्थिव षरीर के लिये षहर उमड़ पड़ा
तो उनके गद्दारों के षव भी हमें दफनाना पड़े
तजुर्बों में कमी रही होगी
हादसे बेसबब नहीं होते
आगे बढ़ने का जिनमें है साहस
लोगों की आषाओं का जिन्हें है अहसास
कर्म करने में जिन्हें है विष्वास
सेवा और दयालुता का जिन्हें है अहसास
ठिकाना है उनका सेठी निवास
सफलता आपके यूं ही कदम चूमे
खुषियों ऐसे अवसर आते रहें आप झूमें
प्रगति और सफलता, विस्तार और उपलब्धियां
आपके कार्य को मिले नित-नित नई ऊंचाइयाॅं
अग्रणी रहने का जिनमें है साहस
नमोकार मंत्र जैसा जिन पर हमें है विष्वास
षक नहीं ऐसी दोस्ती पर बढ़ाया है हमारा आत्मविष्वास
मार्ग जिन्होंने सदा दिखाया चलो चले सिस्ट निवास
तुम्हारे इष्क पर कुरबान है मेरी सारी जिंदगी
पर मादरे वतन पर मेरा इष्क भी कुरबान है
आंधियां मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी
वही षाख बचेगी जो लचक जाएगी
तू जब रिष्तों की समाधी बनाने जाएगा
ये बता विष्वास की मिट्टी कहां से लाएगा
दक्षिणा के नाम पर चाहे अंगूठा मांग ले
तेरा पागलपन तुझे इतिहास बनकर खाएगा
घर से मस्जिद है बड़ी दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
हमसे उजली ना सही राजपथो की षाम
जुगनू बनकर आएंगे हम पगडंडी के काम
यूं बेबस ना रहा करो कोई षाम घर भी रहा करो
वो गजल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
मुझे इष्तहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियाॅं
जो कहा नहीं वह सुना करो, जो सुना नहीं वह कहा करो
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करें
दीवानगी हो, उम्मीद हो अक्ल हो या आस
अपना वही है वक्त पे जो काम आ गया
फूल थे गैर की किस्मत में ही ऐ जालिम
तूने पत्थर ही मुझे फेंक के मारे होते
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिये
रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा ना था अंजाम भी अच्छा ना हुआ
संयोग न हो तो मिलन नहीं संभव
गज भर की दूरी भी योजन बन जाती है
यदि मिलन हो तो भू-अंबर में
किरणों वाली सीढ़ी बन जाती है
जो पे्रम में रोया ना हो जिसने पे्रम विरह को जाना ना हो
उसे तो प्रार्थना की तरफ इंगित भी नहीं किया जा सकता
इसलिये मैं पे्रम का पक्षपाती हूं प्रेम का उपदेष दे रहा हूं
कहता हूं पे्रम करो, क्योंकि पे्रम का निचोड़ ही एक दिन प्रार्थना बनेगा
प्रेम की एक हजार बूंद निचोडे़गे तब कहीं प्रार्थना की एक बूंद एक इत्र की बूंद बनेगी
दोस्त के लिये जान देने के लिये हर कोई तैयार है
बषर्ते जान देने का मौका नहीं आए।
दोस्त मददगार होते है पर इस षर्त पर कि आप उनसे मदद ना मांगे।
सबसे दुष्वार होता है दोस्त की कामयाबी पर मुबारकबाद देना
हाय आंख में आंसू हैं और लब पर मुस्कान।
अगर आपके यहां खुषी का कोई मौका है और आपने दुनिया को उसमें
हिस्सेदारी की दावत देते हैं तथा आप मेरे हरे दोस्त होते हुए भी मुझे भूल गए
मैं इसकी षिकायत नहीं करूंगा, बल्कि खुष हो आप कि आपने खुषी में मुझे याद
नहीं किया। अपनी दोस्ती आपने निभायी, लेकिन खुदा ना खास्ता कभी आप पर मुसीबत
आ जाए और आप उसकी खबर मुझे न दें ताकि मैं आपके कुछ काम ना आ सकूं तो मैं
जरूर बुरा मानूंगा कि आप मुझे अपना दोस्त नहीं मानते।
हे भगवान ! दोस्तों से मेरी रक्षा कर, दुष्मनों से तो मैं खुद अपनी रक्षा कर लूंगा।
अगर मुझे दोस्त या मुल्क में से किसी एक के साथ गद्दारी करना पड़े तो मैं मुल्क
के साथ कर लूंगा।
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
समझते थे मगर रखी ना फिर भी दूरियां हमने
पुलिस और ईमानदारी क्या बात करते हो श्रीमान्
जैसे सरदारों के मोहल्ले में दुकान
‘‘षब्द के मोती चुगने और बुनने वाला पत्रकारिता का हंस
अपने विषाल पंखो के बावजूद हल्की सी सरसराहट किये
बगैर ही उड़ गया‘‘
मधुमय वसंत जीवन वन के तुम अंतरिक्ष की लहरों में
कब आए थे चुपके से, रजनी के पिछले प्रहरों मंे
क्या तुम्हें देखकर आते यांे मतवाली कोयल बोली थी
उस नीरवता में अलसाह कलियों ने आंखे खोली थी।
किसी ने जर दिया, जेवर दिया, किसी ने खुषी दे दी
किसी का घर बसाने को हमने अपने घर की रोषनी दे दी
बेटे और पिता का हाथ दो बार ही मिलना चाहिये। एक बार
जब बाप-बेटे का हाथ पकड़कर चलना सिखाए, दूसरा जब
बूढ़े बाप को बेटा हाथ पकड़कर सहारा देकर चलाए। जवान
बेटे और बाप का आपस में हाथ मिलाना हमारी संस्कृति नहीं है।
दीवार में दरारे नहीं आती हैं, जहां दरारे पड़ती हैं वहां दीवार खींची जाती हैै।
आज के समय में जब मेरे कमरे में से चीख की आवाज आती है, जब दूसरे
भाई के कमरे में से ठहाके की आवाज आती है। यह समझ में नहीं आता है
कि मेरी चीख को सुनकर वे ठहाके लगा रहे हैं या उनके ठहाके को सुनकर
मेरी चीख निकल रही है।
हम माॅं-बाप के साथ रहे, वे हमारे साथ ना रहे
पहले मैं माॅं-बाप के साथ रहता था, अब वे मेरे साथ रहते हैं।
मनुष्य मूलतः अच्छे स्वभाव का प्राणी है। हमारी सोच नकारात्मक हो गई है।
हम चाहते हैं कि हम भले ही मैच हार जाएं पर पाकिस्तान फाईनल नहीं जीत पाए।
एक बार तीन व्यक्तियों को भगवान ने वरदान दिया- एक को गोरा, दो को गोरा
तीसरा बोला- दोनों को वापस काला कर दो।
एक बार भगवान बोला- तेरे को जो होगा, उससे पड़ोसी को दुगुना होगा। तो मैंने कहा
मेरी एक आंख फूट जाए।
हम जब कम पढ़े-लिखे थे तो सरदार पटेल को ज्यादा चुनते थे। अब ज्यादा पढ़-लिख
लिये तो फूलन देवी को चुनते हैं। हम षिक्षित तो हो गए पर सभ्य नहीं हो पाए।
अगर कहीं पर्वत है तो यकीन मानिये आस-पास कहीं नदी भी होगी
बिना हृदय में गहरा दर्द संजोए कोई कोई इतना ऊंचा उठ नहीं सकता।
खंडवा जैसे छोटे षहर में आदमी इस खुषी में ही जिये जाता है
कि उसके मरने पर बहुत लोग आएंगे।
बच्चे फूलगोभी हैं, माॅं-बाप बंदगोभी
अजान की तरह पढि़ये, आरती की तरह गाइये
पीतल की बाली भी नहीं उसकी बीबी के कान में
जिसने अपनी जिंदगी गुजार दी सोने की खान में
जाएगी कहां मौज किनारों को छोड़कर
मिल जाएगा सुकून क्या सहारों को छोड़कर
मानाकि हमसे दूर चले जाओगे मगर
रह भी सकोगे क्या इष्क के मारो को छोड़कर
असत्य में षक्ति नहीं होती उसे अपने अस्तित्व
के लिये भी सत्य का सहारा लेना होता है।
सत्य बोले- प्रिय बोले, ऐसा सत्य न बोलें जा प्रिय ना हो
ऐसा प्रिय ना बोलें जो सत्य ना हो।
दुष्कर्म से सफलता की कामना करने के बजाय सत्कर्म करते हुए मर जाना बेहतर है।
जब क्रोध उठे तो उसके नतीजे पर विचार करो।
जिस दिन मनुष्य दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझेगा
मांसाहार उसी दिन समाप्त हो जाएगा।
वाणी से आदमी की बुद्धि और औकात का पता लग जाता है।
ज्ञान पाप हो जाता है, अगर उद्येष्य षुभ ना हो।
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती-गांव
हर चादर के छोर से बाहर निकले पांव
सातो दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
अच्छी संगत बैठकर संगी सदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
चाहे गीता बाचिये या पढि़ये कुरआन
मेरा-तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
वो रूलाकर हंस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक
कैसे पता चले पतझड़ है या बहार
ऐ दोस्त कोई पेड़ नहीं आस-पास में
मावस का मतलब बिटिया को भूखी माॅं ने यूं समझाया
भूख की मारी रात अभागन आज चांद को निगल रही है
दुश्मनी का सफर इक कदम, दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे
उलझे हुए दामन को छुड़ाने की सजा है
खुद अपने चिरागों को बुझाने की सजा है
षहरों में किराए का मंका ढूंढ रहे हम
ये गांव का घर छोड़कर आने की सजा है
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है
जख्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यूं है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर
अपनी नजरों में हर आदमी सिकंदर क्यूं है
अब मैं राषन की कतारों में नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता है
इतनी मंहगाई की बाजार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांट के षरमाता हूं
मैं खिलौनों की दुकाने खोजता ही रह गया
और मेरे फूल से बच्चे सयाने हो गए
ये दुनिया गम तो देती है षरीके गम नहीं होती
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
जिंदगी सच्चाई बनकर जिस्म छूने को लगी
जब जरा पैसे मिले बाजार मंहगा हो गया
मंजिले ख्वाब बनकर रह जाए
इतना बिस्तर से प्यार मत करना
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
दिले नांदा तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
न्यौछावर संकल्पमय सेवा का वरदान
चिर कृतज्ञ हम कर रहे अमृत महोत्सव सम्मान
सरस सिपाहा सुहृदय की आत्मीयता अगाध
अब गिरीष पूरी करें सौ वर्षों की साध
हम तो बिक जाते है उन अहले करम के हाथों
करके अहसान भी जो नीची नजर रखते हैं
उस पार है उम्मीद और उजास की एक पूरी दुनिया
अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है
उन दिलों के नाम जिनमें अभी प्यार करने की ताकत है
और जिनमें बसी है यह बात कि बेहतर जिंदगी रखने के लिये
एक ताजा षुरूआत करने के लिये कभी भी देर नहीं हुआ करती
जाने कैसे पंख लगाकर पल-पल उड़ जाता है
वक्त तो है आकाष पंछी कहां पकड़ में आता है
क्या भरोसा जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का
बंद रखते हैं जुंबा लब नहीं खोला करते
चांद के सामने तारे नहीं बोला करते
हम अपनी बात का रखते हैं भरपूर जवाब
तुम्हारी तरह हवा में नहीं बोला करते
फासला कितना है इस डाली से उस डाली तक
इतनी दूरी के लिये हम पर नहीं खोला करते
बता सितारों की पगडंडी तुझे चांद तक जाना है
और वहां की बंजर धरती पर एक बाग लगाना है
जन्म दिवस के षुभ प्रभात पर, जब खोलो नयनों के द्वार
सौ-सौ सूरज पास खड़े हों, ले ज्योति षक्ति भंडार
दिले नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम पर षाम ही तो है
तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली
तेरा नभ भर में संचार, मेरा दस फुट का संसार
तेरा गीत कहा वे वाह रोना भी है मुझे गुनाह
सच्चा है अपना प्यार तो क्या इस जहां का डर
फूल बनकर गुलिस्ता में फिर खिलंेगे हम
अब बिछड़ रहे हैं तो कोई रंज मत करो
जब जब बहार आएगी तो फिर मिलेंगे हम
सितारों को आंखो में महफूज रख लो दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी, इसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी
देखना चाहते हो गर इनकी उड़ान को
और ऊंचा करो इस आसमान को
कष्ती का जिम्मेदार फकत् नाखुदा ही नहीं
कष्ती में बैठने का सलीका भी चाहिये
कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए
कुछ लोग हैं जो वक्त के सांचे बदल गये
किसी का कद बड़ा देना, किसी का कद घटा देना
हमें आता नहीं ना मोहतरम को मोहतरम कहना
ष्
लब पर उसके कभी बदृदुआ नहीं होती
एक माॅं ही तो है जो कभी खफा नहीं होती
जिंदगी है तो ख्वाब है, ख्वाब है तो मंजिले हैं
मंजिले हैं तो रास्ते हैं, रास्ते हैं तो मुष्किले हैं
मुष्किले हैं तो हौंसला है, हौंसला है तो विष्वास है
विष्वास है तो जीत है
मन में अगर हो प्यार तो हर दौर मधुवास है
देता है रब भी साथ अगर दिल में सच्ची आस है
ये तो माना हम बिछड़ रहे हैं मगर
हम यहीं पर फिर मिलेंगे, ये अटल विष्वास है
सूखी धरती, सूखे समंदर आओ पानी बहाएं
रंग गुलाल के सबसे अच्छे सूखी होली मनाएं
आओ दूर कर लें दिल के मलाल
गालों पर लगा दें प्रेम का गुलाल
जरा सी भी वफा तेरी फितरत में नहीं आई,
तुझे पच्चीस बोतल खून कुत्ते का चढ़ाया था
सत्य की विजय होती है यह बात पुरानी है
अब तो जो विजयी होता है, वही सत्य है
रेस में हारे हुए लोगों के पास जीते हुए को
कोसने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता
खंडवा रेस में हारे हुए लोगों का षहर है अतः
विजयी को कोसना यहां का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है
तुम्हारा बेवफा कहना हमें मंजूर है क्योंकि
तुम्हारा साथ देने से मदीना छूट जाएगा
इतनी ऊंची मत छोड़ो गिर पड़ोगे धरती पर
क्योंकि आसमान में सीढि़याॅं नहीं होती
सबको उस रजिस्टर में हाजिरी लगानी है
मौत वाले दफ्तर में छुटिृटयाॅं नहीं होती
बंदूके बंद रहे हमेषा, गायब नफरत फसाद हो
आंसा हो खुलकर मुस्कुराना, हर दिल में उल्लास हो
न्याय चिरायु बनें यहां, अन्याय का अवसान हो
चहक उठे हर चप्पा-चप्पा कोई कोना ना वीरान हो
हर ईद मने खुषहाली में, सदा सुखी रमजान हो
हम लगा ना सके उसके कद का अंदाज
वो आसमां था पर सर झुकाए बैठा था
चमन में इकतलफ बू और रंग से बात बनती है
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमीं हम हैं तो क्या हम हैं
तमाम रिष्ते मैं अपने घर पर छोड़ आया था
फिर उसके बाद कुछ अजनबी ना मिला
वह मूर्ति कर्म में जीती थी हों परमषांत प्रस्थान मिला
अमणित अनुनय बेकार हुए निष्ठुर हरि में कब ध्यान दिया
दुनिया की आंख मिचैली से वे दोनों आंखे बंद हुई
बंधन ठुकराकर तपोमयी, वह आत्मा अब स्वछंद हुई
नमोमंडल पर जरूरत नहीं कि तुम नक्षत्रों
की तरह बंधी घडि़यों और बंधे दिनों में आओ
और तारूण्य में जन्मते ही तुम्हारा विज्ञापन हो
तुम सर्वनाष के नहीं सर्वप्राण के भूकम्प बनकर क्यों ना आओ
पेज गिनने वाले प्रकाषक का पुस्तक के पन्ने बनकर आने के
बजाय तुम अपने जमाने की उथल-पुथल के संदेषवाहक बनकर
क्यों ना आओ। तुम्हारा स्वागत करने वाले बरस अचंभा करें कि
तुम विष्व में किस द्वार से आये थे और किस जीने पर चढ़कर लौट गए।
--माखनलाल चतुर्वेदी--
मंजिल मिलेगी जरूर, विष्वास ले चलना होगा वरना
हो अमावस की हुकूमत तो दीप बनकर जलना होगा
ऊंचे पहाड़ों पर जो परिंदा बैठा है
जब भी सोचता है आसमान की बात होगी
पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती तुमको अमृत, स्वयं थामती हाला
पड़ाव-दरपड़ाव, मंजिल के अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा सफर
सहेजते-सहेजते, पड़े-पड़े बिखर गई जिंदगी की किताब
गरीब रोज मरना चाहता है, अमीर उसे मरने नहीं देता
जानता है अमीर, गरीब मर जाएगा तो अमीरी भी नहीं रहेगी
गरीबी की पीठ पर ही टिका है अमीरी का अस्तित्व
हर ओर फूल है, खुषबू है, रस है रसवंती मौसम में
गहरे मन से दे रहे तुम्हें हम, विदा वसंती मौसम में
किताबे जिंदगी का एक नया उनवान है षादी
दो अजनबी जब एक हों वह इकरार है षादी
दुनिया का तकाजा है और फर्ज मजबूर करता है
ये कैसा जष्न है जो लख्ते जिगर को दूर करता है
तू प्यार करना छोटो से, बड़ो की कद्र भी करना
कहे तुझको बुरा कोई तो दीपा सब्र भी करना
तुझे कुछ दे नहीं सकता, बस ये आन देता हूं
बजाए सोने-चांदी के तुझे कुरआन देता हूं
सर्द रातों की आवारगी, उस पर नींद का बोझ
हम अपने षहर में होते तो घर जाकर सोते
काफिरों के लिये फकत एक शोर, मोमिनों के लिये एक अजान हूं मैं
ऐ नयी दौर की नस्ल मुझे गौर से सुन, गालिब और मीर की जबान हूं मैं
मोहब्बत में अना नहीं चलती, खुद ना आते हमें बुलाते हो
चांदनी रात सिसकियां भरती तुम जब छत पर आते हो
हजार लाषों को देखकर, आंखे नम नहीं होती
कैसे खा जाते हैं वे झूठी कसमें, हमसे रोटी हजम नहीं होती
काटकर गैरों की टांगे, खुद लगा लेते हैं लोग
इस षहर में इस तरह भी, कद बढ़ा लेते हैं लोग
षेर सुनने का सलीका जब इन्हें आता नहीं
षायरों को जाने ना फिर क्यों बुला लेते हैं लोग
जीने दो हर बषर को, तितली के पर तलक की हिफाजत किया करो
बिन आदमी के क्या वजूद कायनात का, इंसान हो इंसान से मोहब्बत किया करो
--अब्दुल जब्बार--
बनाये प्यार की माला जो बिखर न पाये कभी
नषा अहिंसा का चढ़कर, उतर ना पाये कभी
तुम्हीं दुआएं दो, आषीर्वाद दो मुझको
मेरे पांव से चींटी भी ना मर पाए कहीं
निहत्थे लोग भी जंगल में काम करते हैं
तो गाय-बैलों के घर षेर काम करते हैं
करिष्मा है ये महावीर जी के होने का
कि मोर, सांपो को झुककर सलाम करते हैं
वो एक सच है जिसे सब भुलाए बैठे हैं
खुद अपनी आंखों पर पर्दा गिराए बैठे हैं
किसी को कोई भी उस एक से नहीं मतलब
सब अपनी-अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
नई सुबह की, नई किरण हो
नया जोष हो, नई लगन हो
हर पल चिंतन, यही हमारा
मंगलमय हो, जीवन तुम्हारा
मौत रास्ते में बिछाई जा रही थी
षहरों को जिंदा जलाया जा रहा था
बज रही थी डुगडुगी बाजीगरों की
खेल टीवी पर दिखलाया जा रहा था
कीमती कालीन जब से मेरे घर में आ गए
बेहिचक घर आने-जाने की अदा जाती रही
बाथरूमों की नये कल्चर में इतना बंद हूं
खुलकर बारिष में नहाने की अदा जाती रही
अगर मिल जाते मुझे वापस उम्र के पिछले हिस्से
भूल जाता मैं बाकी जिंदगी सारी
जी लेता अपना बचपन फिर से
ताजी सांसे ही रहेगी मन में
माॅं की यादें प्राणों में
पिता की ऊर्जा आंखों में उजाला होगा
जाने कैसे मेरे पिता ने मुझे पाला होगा
संतान होना यूं ही नहीं कि आपकी प्रगति है
आपका सोपान है, संतान का होना यूं कि
आपसे भी परे, आपसे भी पार कोई इंसान है
जो अभी-अभी खेलकर सोया हुआ है मगर
जिसमें नियती ने ईष्वर को बोया होगा
माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है
मैं ना जुगनू हूं, ना दिया हूं, ना कोई तारा
रोषनी वाले मेरे नाम से डरते क्यों हैं
लोग हर मोड़ पर रूककर संभलते क्यों हैं
इतना डर है तो घर से निकलते क्यों हैं
क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत में
कर्तव्य पथ पर जो मिले ये भी सही वो भी सही
कुछ ना पहले-पहल आऊं ये दुनिया छली गई
सुमनों के मुख पर धूल सदा ही मली गई
युग-भुज फैलाकर फूलों ने सरिता से मांगा आलिंगन
वह आज नहीं प्रिय कल, कल कहती चली गई
बेरंग जिंदगी तो बेरंग ही सही, हम तो यहीं रहेंगे जमीं तंग ही सही
हम अमन चाहते हैं जुल्म के खिलाफ, गर जंग लाजमी है तो जंग ही सही
आज की यह कविता में खो जाइये
क्या पता ये मिल न फिर दोबारा ना हो
और दोबारा तो क्या इसका पता
मन तुम्हारा न हो मन हमारा न हो
डूबकर कुछ सुनों और सुनकर बुनो
मन मिलाओगे मन से तो मिल जाएंगे
वरना हम हैं परिंदे बहुत दूर के
बोलियां अपनी बोलकर उड़ जाएंगे
मेहरबां होकर जब चाहे बुला लो मुझको
मैं गया वक्त नहीं जो आ भी ना सकूं
कमरे कम दीवार बहुत हैं
इस घर में लाचार बहुत हैं
खुद अपने अपमान से बच, यारों के अहसान से बच
जो निकले आसानी से ऐ दिल, उस अरमान से बच
बात इषारों में कर ले, दीवारों के कान से बच
जगमगाते हुए सूरज पर नजर रखता हूं
तुम समझते हो कि झिलमिलाते सितारों बहक जाऊंगा
घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाॅं
अपनी तबस्सुम से इसे सजाती हैं बेटियाॅं
जब वक्त आता है इनका बिदाई का
जार-जार सबको रूलाती हैं बेटियाॅं
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां
और जिंदगानी रही भी तो नौजवानी फिर कहो
मेरा मुझमें कुछ नहीं जो है सो है तेरा
तेरा तुझको सौंप दूं, क्या लागे है मेरा
जो भी आता है सजा देता है दोस्त बनकर दगा देता है
वो तो माॅं-बाप का ही दिल है वरना मुफ्त में कौन दवा देता है
वो आती रही मिलती रही, हम हंसी को प्यार समझ बैठे
वो एक दिन नहीं आई, हम इतवार समझ बैठे
सभी गीत ऊंचे स्वर में गाए नहीं जाते
जिगर के जख्म सभी को दिखलाए नहीं जाते
जिसे देखो वो बेताब है मीनार बनने को
पर नींव के पत्थर कहीं पाए नहीं जाते
नेता, कुत्ता और जूता पहले तो चरण चाटते हैं
और उसके बाद काटते हैं
गत क्या ढली, सितारे चले गये
गैरों से क्या गिला, जब अपने चले गये
जीत तो सकते थे इष्क की बाजी हम भी
पर तुम्हें जिताने के लिये हम हारते चले गये
वो घटाएं, वो फुहारें वो खनक भूल गये
बज्में बारिष में नहाने की ललक भूल गये
जब से इस बाग में तूने आना छोड़ दिया
तब से पंछी भी यहां अपने चहक भूल गये
हमारे होंठो की हंसी सबने यहां याद रखी
जाने क्यों लोग हमारे दिल की कसक भूल गये
जिन्होंने अपनों को ना माना, माना देष महान है
उन्हीं के दम पर खड़ा हुआ मेरा ये हिन्दुस्तान है
हर चमकती चीज सोना नहीं होती
भावुकता सिर्फ रोना नहीं होती
किसी की दूरी से उदास मत हो दोस्त
किसी की दूरी, उसे खोना नहीं होती
जो बसे हैं वो उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दिया जलाना कब मना है
लोगों को कहते सुना अक्सर जिंदा रहे तो फिर मिलेंगे
मगर इस दिल ने महसूस किया है, मिलते रहेंगे तो जिंदा रहेंगे
जब दोस्ती की दास्तान वक्त सुनाएगा
हमको भी कोई षख्स याद आएगा
तब भूल जाएंगे जिंदगी के गमों को
जब आपके साथ गुजरा वक्त याद आएगा
वही अल्फाज जो अखबार में पत्थर के होते हैं
गजल में आ गये तो आंख की पलकें भिगोते हैं
बंगले से भी सड़क को दिये उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने
हवेली वाले हिकारत से मेरी सल्तनत ना देख
मुझे यहां नहीं जन्नत में घर बनाना है
इबादतों के लिये तू मुझे जगह न बता
मुझे पता है कि सर कहांॅ झुकाना है
यूं बेबस न फिरा करो, कोई षाम घर भी रहा करो
वह गजल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिजाज का षहर है, जरा फासले से मिला करो
रंजिश रही दिल में सफाई के बाद
बंजर रही जमीं सिंचाई के बाद
तुम गुफ्तगू करो तो तुम्हें पता चले
कितने हैं लोग जाहिल पढ़ाई के भी बाद
न रहा मोहताज चांद-सितारों का कभी
सदा मैंने अपने मेहनत के उजाले देखे
तष्कीरा लकीरों का वही पर रख दिया
जब नजमियों ने मेरे हाथ के छाले देखे
अक्लें हैरां हैं मेरी रफ्तारे दुनिया देखकर
एक को आता देखकर, एक को जाता देखकर
भूलकर मेरे जनाजे को कांधा मत देना
जिंदा ना हो जाऊं फिर मैं सहारे देखकर
ना पूछा कौन है, क्यों राह में लाचार बैठै हैं
मुसाफिर हंै, सफर करने की हिम्मत हार बैठै है
टूटी हुई मंुडेर पर, छोटा-सा एक चिराग
मौसम से कह रहा है, आंधी चलाके देख
नषेमन पर नषेमन इस कदर तामीर करता चल
कि बिजली गिरते-गिरते आप ही बेजार हो जाएं
ठंडी हवाएं, महक, फिजां, नर्म चांदनी
रात तो एक थी जो बस तेरे साथ काट दी
गोसा बदल-बदलके सारी रात काट दी
कच्चे मकां ने अबके भी बरसात काट दी
हालांकि हम मिले है बड़ी मुद्दतों के बाद
औकात की कमी ने मुलाकात काट दी
वो सर भी काट देता तो होता नहीं मलाल
अफसोस ये है कि उसने मेरी बात काट दी
फुर्सत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से तो बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों
किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर है ये बाहर कौन है
दिल धड़कने का तसव्वुर ख्याली हो गया
एक तेरे जाने से सारा षहर खाली हो गया
सियासत में सियाकारों के चेहरे लाल रहते हैं
यहां जो कुछ नहीं करते मालामाल रहते हैं
मेरे सोने की गंगा में, मेरी चांदी की जमना में
सुनहरी मछलियाॅं थीं, आजकल घडि़याल रहते हैं
या तो मुझसे छीन लो ये बुत तराषी का हुनर
या फिर जो बुत तराषूं वो खुदा हो जाए
हजारों मुष्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर एक फायदा है पीठ पर खंजर नहीं लगता
जिसको तेरी आंखों से प्यार होगा
गर जिया भी तो वह बीमार होगा
ये मोहब्बत है जरा सोच-समझकर रोना
एक आंसू भी टूटा तो गुनाह देगा
वह हादसा भी खूब था, जब आंसुओं का तीर
निकला किसी की आंख से आकर लगा मुझे
कितने मौसम बीत गये दुख-दर्द की तन्हाई में
दर्द की झील नहीं सूखी है आंखों की अंगनाई में
ना किसी की आंख का नूर हूं, ना किसी के दिल का करार हूं
जो किसी के काम ना आ सका, मैं वो एक मुष्ते गुबार हूं
बारिष का मजा चाहो तो, मेरी आंखों में आकर बैठो
वो तो बरसों में बरसती है, यह बरसांे से बरसती है
इतने हुए बदनाम हम इस जमाने में
तुमको लग जाएगी सदियां हमें भुलाने में
ना तो पीने का सलीका है ना पिलाने का षऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में
अबके सावन में षरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़कर सारे षहर में बरसात हुई
षब्द झूठे हैं सत्य कथाओं की तरह
वक्त बेषर्म है वैष्या की अदाओं की तरह
सबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहां पे उजालों ने खुदखुषी की है
जिंदगी भर तो गुफ्तगू हुई गैरों से मगर
आज तक तुमसे हमारी ना मुलाकात हुई
खुषबू सी आ रही है इधर जाफरान की
षायद खुली है खिड़की, उनके मकान की
सातों दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
मैं रोया परदेस में भीगा माॅं का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
आपकी नजरों में सूरज की जितनी अजमत
हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं
रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ
मैंने अपनी खुष्क आंखों से लहु टपका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिये
और सिर्फ कब्रों की जमीनें देकर मत बहलाओ
हमने राजधानी दी थी हमको राज-धानी चाहिये
उस पार उतर जाएं ये बात ख्याली है
जिस नाव में बैठे हो वो डूबने वाली है
हालात की तब्दीली षायद उसे कहते हैं
जो बाग का दुष्मन था, वो बाग का माली है
भोर का तारा हुए तुम, रात के साए गए
रोशनी का दिन सजा तो तुम कहीं पर खो गए
तन समर्पित, मन समर्पित और ये यौवन समर्पित
और क्या दूं मातृ-भू तुम पर किया जीवन समर्पित
कौन कहता है बुढ़ापे में जवानी नहीं होती
ये अलग बात है किसी की मेहरबानी नहीं होती
भाषा चाहे जितनी भी हो, जीत सदा हिंदी की होगी
चंद्रमा पर जाओ या मंगल पर, पहली दुकान किसी सिंधी की होगी
नये कमरों में चीजें पुरानी अब कौन रखता है
परिंदों के लिये कुंडो में पानी अब कौन रखता है
ये तो ये हैं जो संभाले हैं गिरती दीवारों को
वरना बुजुर्गों की निषानी को कौन रखता है
कौन कहता है बूढ़ों को प्यार करने का हक नहीं होता
ये अलग बात है इन पर किसी को षक नहीं होता
उसके घर जाकर दिये सपाटे चार
देखता ही रह गया जगत का ठेकेदार
फटी जब पैर बिवाइ पीर जब समझ में आई
मेरे घर में चहकती रही बेटियाॅं
सारे षहर को खटकती रही बेटियाॅं
ओढ़कर सपन सारा षहर सो गया
राह पापा की तकती रही बेटियाॅं
छोड़ माॅं-बाप को जब बेटा चल दिया
सेवा माॅं-बाप की कर रही बेटियाॅं
मम्मी-पापा के आंसू के अंगारों पर
बनकर बदली बरसती रही बेटियाॅं
बेटी होना एक अपराध है देष मंे
यही सुन-सुन सिसकती रही बेटियाॅं
इस जमाने ने षर्मो-हया बेच दी
राह चलने में अब झिझकती रही बेटियाॅं
अब की तनख्वाह पर ये ये चीज होना हमंे
कहते-कहते झिझकती रही बेटियाॅं
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो
चाहे बसों, पहाड़ पर या फूलों के गांव
माॅं के आंचल से अधिक षीतल कहीं न छांव
इसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माॅं की गोदी से अधिक नीरज कौन पवित्र
पूछिये तो कायम है रंगीनियाॅं जमाने की
सर धुनते हैं फिर भी वो दिन कहां गये
कुत्ते का घुमाना याद रहा और गाय की टोटी भूल गये
दोस्त-यार सब याद रहे पर सगे भाइयों को भूल गये
साली का जन्मदिन याद रहा और माॅं की दवाई भूल गये
षर्त लगी जब एक षब्द में दुनिया लिखा देने की
सबने दुनिया लिख डाला मैंने सिर्फ माॅं लिखा
थामले जो हाथ गिरते आदमी का
आदमी सही में वो ही इंसान है
अन्न देना, धन देना, देना ना मकान चाहे
बेटी कभी देना नहीं किसी निर्धन को
साधना इतनी बड़ी की जाप छोटे पड़ गये
पुण्य जब इतने बडे़ कि पाप छोटे पड़ गये
इतनी ऊंचाइयाॅं जब नापने निकले ये लोग
इतना कद ऊंचा मिला कि नाप छोटे पड़ गये
एक है षहर मुंबई जहां लोग पत्थर दिल होते हैं
एक आपका षहर है खंडवा जहां पत्थर के भी दिल होते हैं
जो भरत भूमि में जन्मा है मुस्लिम है, सिख, इसाई है
उससे पे्रम का रिष्ता है माता का जाया भाई है
अब तो कोई एक वरक तेरे-मेरे बीच हो
तेरे घर हो गीता और मेरे घर कुरआन हो
ईद, दीवाली, होली, मोहर्रम सब मिलकर एक साथ हो
मेरे घर हो जब उपवास, तब तेरे घर रमजान हो
आया वसंत तो फूल भी षोलो में ढल गये
मैं चूमने गया तो मेरे होठ जल गये
जिनके लिये दिलों में चाहत है, प्यार है
वो आ रहे हैं, जिनका हमें इंतजार है
जहां ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मोटरगाड़ी
जहां ना पहुंचे मोटरगाड़ी, वहां पहुंचे बेलगाड़ी
जहां ना पहुंचे बेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी
आ मिटा दे दिलों पे जो स्याही आ गई
मेरी ईद तू मनाले तेरी दीवाली में मनालूं
एक-दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं
क्या कमी है आदमी की रफ्तार में
आदमी को पेषेवर होते हुए
हमने देखा गांव को षहर होते हुए
खुदा की तरह पूजे गए है यहां
न जाने कितने लोग पत्थर हुए
तुम्हारी षान घर जाती कि रूतबा घर गया होता
जो तुमने कहा गुस्से में प्यार से गर कह दिया होता
माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है
जब कलिका को मादकता में, हंस देने का वरदान मिला
जब सरिता को उन बेसुध-सी लहरों को कल-कल गान मिला
युग-युग की उस तन्मयता को, कल्पना मिली संचार मिला
तब हम पागल से झूम उठे, जब रोम-रोम को प्यार मिला
परिभाषा बांधती है, निष्चित करती है सीमाएॅं
अपरिभाषित प्रेम के बंधन में हम और तुम
परिणाम, परिणिति या नियति सोचकर
क्या किसी ने वास्तव में पे्रम किया है
एक दिन दिनमान से मैंने जरा जब यों कहा
आपके साम्राज्य मंे इतना अंधेरा क्यों रहा
तिलमिलाकर वो दहाड़ा मैं भला अब क्या करूं
तुम निकम्मों के लिये मैं अकेला कहां तक बढ़ूं
आकाष की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम ये घनघोर है कुछ मैं लड़ू कुछ तुम लड़ो
तुम न समझो तुम्हारा मुकद्दर हूं मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तकदीर हो
चंद मछेरो ने साजिष कर सागर की संपदा चुराली
कांटो ने माली से मिलकर फूलों की कुर्की करवा ली
खुषियों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी है
आने को आई आजादी, मगर उजाला बंदी है
रहा ना कारवां अब गर्द लिये बैठे हैं
हमें ना छेडि़ये हम दर्द लिये बैठे हैं
हर फूल की किस्मत में नहीं सेहरे की ताजनषीन
कुछ फूल तो खिलते हैं मजारों के लिये भी
कहीं पर चांद-तारे हैं, कहीं बादल गरजते हैं
कहीं षादी के जलसे हैं, कहीं आंसू बरसते हैं
कहीं टुकड़ों के लाले हैं, कहीं किस्मत बनी रानी
कहीं सूखा समंदर है, कहीं लहरा रहा पानी
हमें दोनों ही प्यारे हैं, बना कुछ भी न बोलेंगे
खुषी भेजे तो हंस लेंगे, सितम भेजे तो रो लेंगे
उस दिन आवाज ने नहीं, चुप्पी ने साथ दिया मेरा
बिगाड़ा चुप्पी ने ही उस दिन मेरे ईमान को
गर हौसले बुलंद हो मंजिले मिलती रहेगी
एक कदम तुम चलोगे, दो कदम मंजिल चलेगी
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है
ज्यादा खाय, जल्द मरी जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगड़े काम न जो गम खाय
टूटे नहीं संकल्प, बस संदेष यौवन का यही
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत् संघर्ष ही
आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है
आइना छोडि़ये आइने में क्या रखा है
या रहिये इसमें अपने घर की तरह
या मेरे दिल में आप घर ना करें
करीब आओ तो षायद हमें समझ लोगे
ये फासले तो गलतफहमियां बढ़ाते हैं
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये
षब्द के तीर प्यार की कमान रखते हैं
बंद होंठो में एक मीठी जुबान रखते हैं
तुम तो रहते हो हिन्दुस्तान में लेकिन
ये तो वो हैं जो दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं
रूके तो चांद चले तो हवाओं जैसा है
वो षख्स धूप में देखो तो छांव जैसा है
परी चेहरों की कमी नहीं दुनिया मंे मगर ऐ दोस्त
तेरे मिजाज की ठंडक कहां मिलती है
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते
न ही मैदान जीतने से, मन भी जीते जाते हैं
गहरी नदियां, नांव पुरानी, तिस पर यह मौसम तूफानी
तू किसको आवाज लगाता, सभी करेंगे आना-कानी
वैसे तो इस जग में यारों, बड़ी प्रखर आंसू की बानी
लेकिन अंधो की नगरी में, मत कर रोने की नादानी
तू ही नहीं दुखी इस जग में, सबकी अपनी राम कहानी
जीवन में एक सितारा था, माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया, अंबर के आंगन को देखो
इसके कितने तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये, फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर षोक मनाता है, जो बीत गई सो बीत गई
इस राज को एक मर्दे फिरंगी के किया फाष
हर चंद की दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत एक तर्जे हुकूमत है कि जिसमें
बंदो को गिना करते हैं तौला नहीं करते
मंजिल भी उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों मंे जान होती है
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौंसलो से उड़ान होती है
माना कि तेेरे प्यार के काबिल हम नहीं
पर उनसे जाकर पूछिये, जिन्हें कि हम हासिल नहीं
खाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
और छोटी-मोटी बात पर हिजरत नहीं होती
पहले दीप जले तो चर्चा हुआ करती थी
अब षहर जले तो भी हैरत नहीं होती
रोटी की गोलाई नापा करता है पगले
इसलिये तो घर में बरकत नहीं होती
फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं
जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूं
मोहब्बत एक खुष्बू है हमेषा साथ चलती है
कोई इंसा तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं होता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में जरा सा फासला रखना
दरिया समंदर में मिल जाए तो समंदर नहीं होता
झुकते वही जिनमें जान होती है
अकड़े रहना मुर्दों की पहचान होती है
जिसने बनाई दसो दिषाएं और बनाई ऋतुएं चार
करें विनम्र षीष नवाकर उस रब से मैं बारम्बार
जब-जब जन्म लूं धरती पर संगनी तुझे पाऊं हर बार
यूं तो तुम्हे रोज प्यार करते हैं
पर आज षब्दों से इजहार करते हैं
आप भी आइये हमको भी बुलाते रहिये
दोस्ती जुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिये
दुष्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये
नजर बदल लो, नजारे बदल जाएंगे
सोच बदल लो सितारे बदल जाएंगे
जरूरत नहीं है किष्तियां बदलने की
राह बदल दो किनारे बदल जाएंगे
सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख नहीं, माणिक मदिरा का प्याला
छल रही है जिसमें छल-छल, रूप मदिर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूं
जहां कहीं मिल बैठे हम-तुम, वहीं हो गई मधुषाला
जो दर्द दिया तुमने, गीतों में पिरो लेंगे
आंखे भी छलकेगी, जी भर के भी रो लेंगे
अब तक है जमाने पे जिस आवाज का जादू
उसके मेरे नगमात पे उपकार बड़े थे
कहना रफी साहब के लिये है बड़ा मुष्किल
इंसान बड़े थे या कलाकार बड़े थे
खंडवा की मिट्टी ने मुझको गढ़ा, यहीं की फिजा में ये पौधा बढ़ा
खंडवा का रंग ऐसा मन चढ़ा, कोई षहर लगता न इससे बड़ा
गूढ़ ज्ञान, संगीत कला का बिरसे में वो लाए हैं
गंधर्वों की वाणी लेकर इस धरती पर आए हैं
मन्ना दा पहुंचे जहां उन्नति की उच्चतम चोटी है
उनकी कला के सामने फिल्मी दुनिया छोटी है
गजल, गीत, अरू छंद से, छीन ले सबका चैन
दिव्य अमोलक रत्न है, रवीन्द्र जैन
लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
कयामत कहीं से चली आ रही है
खुदा के लिये अपनी नजरों को रोको
मेरे दिल की दुनिया लुटी जा रही है
जिंदगी या तो किसी को प्यार से देखने का नाम है
या किसी की आंखों में प्यार देखने का नाम है
जिस तरफ से गुजरकर हम गये
लोग उसे रास्ता कहने लगे
तुम ही मेरी आरजू हो, किस्मत हो
मेरे मरने के बाद भी नहीं छूटेगी
तुम मेरी जिंदगी की आदत हो
जिसको सदियों से ढूंढ रहा था मैं
तुम उसी रोषनी की दौलत हो
तुमको देखा तो यूं लगा जैसे
तुम्हीं दिल हो तुम्हीं मोहब्बत हो
बिखरा पड़ा है मेरे ही घर में मेरा वजूद
बेकार महफिलों मंे इसे ढूंढता हूं मैं
कुछ हकीकत का सामना भी कर
खुष खयाली के जाल ही मत बुन
आइना देखकर पलट मत जा
हौंसला है तो उसकी बात भी सुन
घरों में छुपकर ना बैठो कि ऋतु सुहानी है
छतों पर चले आओ कि बहता पानी है
पूनम डूबी अमावस के घर, सावन सारे सलाखों में डूबे
और मौसम डूब गया बे मौसम, डूबने वाले तो लाखों में डूबे
षाखों में डूबा है मधुबन सारा, पंछी सयाने भी पाखो में डूबे
और तैर गये हम यूं तो समंदर, डूबे तुम्हारी तो आंखों में डूबे
साजिषें लड़वाने वाली, दीन-ओ-ईंमा हो गयी
गीत हिंदू हो गये, गजलें मुसलमां हो गयी
ला पिला दे साकिया, पैमाना पैमाने के बाद
होष की बाते करेंगे, होष में आने के बाद
सुरखरू होता है इंसा आफते आने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे घिस जाने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर मिन्नतें क्या-क्या ना की
कैसे नजरें फेर ली मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद
कभी दिये के आगे पल दोपल बर्बाद कर लेना
पतंगा जब चले कोई तो, हमको याद कर लेना
वो जितनी खुदनुमाई कर रहा है
खुद अपनी जग हंसाई कर रहा है
जरा सा जोर दरिया में क्या आया
समंदर की बुराई कर रहा है
तमाषा देख तो खुद गर्जियों का
दगा भाई से भाई कर रहा है
हमारे बल पर मसनद पाने वाला
हमसे ही कद अदाई कर रहा है
खुद जिंदगी के हुस्न का मयार बेचकर
दुनिया अमीर हो गई किरदार बेचकर
दीवानगी तो देखिये जूते पहन लिये
उस सरफिरे ने जुनबाओ दस्तार बेचकर
बुजदिल तेरी रगो में अगर खूं नहीं बचा
जा चूडि़यां पहन ले तलवार बेचकर
कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा बना देना
फिर उसके बाद कुछ अफवाह के पर्चे उड़ा देना
गलतफहमी से बढ़कर प्यार का दुष्मन नहीं कोई
परिंदो को उड़ाना हो तो बस षाखें हिला देना
नजर-नजर में उतरना कमाल होता है
नफ्स में बिखरना कमाल होता है
बुलंदी पर पहुंचना कमाल नहीं
बुलंदी पर ठहरना कमाल होता है
कड़वा भले है नीम क्या, चंदन से कम है
अपना षहर खंडवा क्या चंदन से कम है
जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो तार पे बिली है वो इस दिल को खबर है
वह पथ क्या पथिक कुषलता क्या, पथ में बिखरे यदि षूल ना हो
वह नाविक धैर्य परिक्षा क्या, यदि धाराएं प्रतिकूल ना हो
वक्ते सफर करीब है बिस्तर समेट लूं
बिखरा हुआ हयात का दफ्तर समेट लूं
फिर जाने हम मिलें, ना मिलें इक जरा रूको
मैं दिल के आइने में ये मंजर समेट लूं
ऐ मेरे हमसफरों तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम हो मिलावट ना करो इन छांवांे में
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बंट ना जाए तेरा बीमार कहीं इन मसीहाओं में
उनके हमारे अंदाजे इष्क में बस फर्क इतना है
हम मिलने को तरसते हैं वो तरसाके मिलते हैं
लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
अदाओं के झुरमुट में वो आ रहे हैं
नजर लड़ कई है जो मेरी नजर से
पसीने-पसीने हुए जा रहे हैं
आए जुबां पे राजे मुहब्बत मुहाल है
तुमसे मुझे अजीज तुम्हारा ख्याल है
षाहजहां से ताजमहल बन गया
मैं तेरे लिये रंगमहल बनवाउंगा
षाहजहां ने तो मुर्दा दफनाया था
मैं तुझे जिंदा दफनाउंगा
जो भी ससुर ने हमको दिया, दान ले चले
टी वी, फ्रिज और साथ में मान ले चले
लेकिन जब चली साथ में दुल्हन तो ये लगा
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले
जिस गेट पर लिखा रहता था, मेहमान है मेरा भगवान के समान
तरक्की ए जमाना देखिये, उस गेट पर लिखा है कुत्ते से सावधान
एक तलवार है मेरे घर में, जिसका दस्ता ठोस सोने का
क्या करेगी मेरी हिफाजत वो, डर सा रहता है जिसके खोने का
उससे मिलने की जुस्तजू भी है, वो मेेरे रूबरू भी है
सोचा था दिल जला डालें, ख्याल आया कि दिल में तू भी है
गांव लौटे षहर से तो सादगी अच्छी लगी
हमको मिट्टी के दिये की रोषनी अच्छी लगी
बासी रोटी सेंककर जब नाष्ते में माॅं ने दी
तब अमीरी से हमें ये मुफलिसी अच्छी लगी
मैं तेरी आंख में आंसू की तरह रहता हूं
जलते-बुझते हुए जुगनू की तरह रहता हूं
सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूं
खूबसूरत हैं आंखे तेरी, रातों को जागना छोड़ दे
खुद-बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे
तेरी आंखों से कलियां खिले, तेरे आंचल से बादल उड़े
देख ले तेरी चाल को, मोर भी नाचना छोड़ दे
जो बातें राज की हैं, उसे आम कर देगी
तुम्हारी दोस्ती मुझे बदनाम कर देगी
इससे बढ़कर वो क्या लाएगा जुल्मों-सितम
षरीर बूढ़ा कर दिया पर दिल जवान रह गया
सारे रिष्ते हैं टिके अब झूठ की बैसाखी पर
भाई तो है जिंदा, लेकिन भाईचारा मर रहा है
कैचियां हमें उड़ने से क्या रोक पाएगी
हम परो से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
गम तो मेरे साथ दूर तक गये
मुझे ना आई थकान तो वे खुद थक गये
मजाल क्या है कोई रोके दिलेर को
कुत्ता भी काट लेता है दोस्ती में षेर को
जिद से जिद टकरा गई खुद्दारियों के नाम
वरना देर क्या लगती थी फैसला होते हुए
इस कदर भी नाज मत अपनी वफा पर कीजिये
जाने क्या गुजरी हो उस पर बेवफा होते हुए
किसी ने पूछा राज-ए-कामयाबी
हमने बताया बस मोहब्बत तुम्हारी षुक्रिया
सफर ए जिंदगी में कितनों को दोस्त कहकर जाना है
दोस्ती प्यार है, जिंदगी इबादत है, तुम्हें सिर्फ कहा नहीं दिल से माना है
पंजाब 4 फायटिंग, बंगाल 4 राइटिंग
कर्नाटक 4 सिल्क, हरियाणा 4 मिल्क
केरला 4 बे्रन, यूपी 4 ग्रेन, एचपी 4 एप्पल
ओडि़सा 4 टेम्पल, एपी 4 हेरिटेज
एमपी 4 ट्राइवल्स, स्टेट 4 युनिटी, इंडिया 4 इंटरसिटी
लोग कहते हैं कि इतनी दोस्ती मत करो
कि दोस्त दिल पर सवार हो जाए
हम कहते हैं दोस्ती इस तरह से करो
कि दुष्मन को भी तुमसे प्यार हो जाए
एहसास बहुत होगा, जब छोड़ के जाएंगे
रोओगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज हमें देना
आसमां पर भी होंगे तो लौट के आएंगे
मदमस्त हवाएं हैं, मौसम भी सुहाना है
बंदर भी एमबीबीएस पड़ रहे हैं देखो क्या ज़माना है
खिड़की से देखा तो रास्ते पर कोई नहीं था
रास्ते से देखा तो खिड़की पर कोई नहीं था
प्यार करने वालों की किस्मत बुरी होती है
हर मुलाकात जुदाई से जुड़ी होती है
कभी रिष्ते की किताब पड़ लेना
दोस्ती हर रिष्ते से बड़ी होती है
जिन अमीरों के आंगन में सोने का सजर लगता है
उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है
फूल में कितना वजन है, षूल में कितनी चुभन है
यह बताएंगे तुम्हें वे, लुट गया जिनका चमन है
बर-बार राजा और मंत्री बदलने से क्या होगा
बदलना है तो इस काठ महल को बदलो
यादों की रूत आते ही सब हो गये हरे
हम तो समझ रहे थे सभी जख्म भर गये
जो हो सके तो अब भी सागर को लौट आ
साहिल के सीप स्वाति की बूंदो से भर गये
असलियत जमाने से किसलिये छुपाते हो
जब दिल नहीं मिलता तो हाथ क्यों मिलाते हो
तुम मुझे भूल जाओ ये मुमकिन नहीं
तुम्हें मेरी तरह चाहता कौन है
जो दिन में अम्न कमेटी नयी बनाते हैं
सुना है रात में वो बस्तियां जलाते हैं
लगे हुए हैं कई दाग जिनके चेहरे पर
वो लोग आज हमें आईना दिखाते हैं
सारे अंदाज हैं माषूक के राठन की तरह
संग मारे हैं निगाहों से वो गोफन की तरह
कमसिनी बीत गयी, दौरे जवानी भी गया
बल वो खाते हैं मगर आज भी हेलन की तरह
इस ढली उम्र में था जिसका सहारा मेयर
रूठकर बैठ ये वो भी समधन की तरह
जिस्म पर मिट्टी मलेंगे, खाक हो जाएंगे हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाएंगे हम
ऐ गरीबी देख रास्ते में हमंे मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएंगे हम
सियासी गुफ्तगू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता
रफू को फिर रफू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता
कुंए के पहरेदारों को लबो की प्यास मत दिखला
खुदा का नाम ले पानी तेरी ठोकर से निकलेगा
पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती सबको अमृत, स्वयं थामती हाला
पुलिस हमारे दिवस सजाने अपनी रात जलाती है
राज्य व्यवस्था के दीपक में पुलिस तेल बनाती है
खाकी वर्दी समाधान है, संकट के हर काल का
पुलिस हमारी उत्तर केवल, जलते हुए सवाल का
खाकी वर्दी पहन निकलना नहीं कोई आसान
इस वर्दी पर टंका हुआ है पूरा हिन्दुस्तान
मेरी षाम के धुंधलके, मेरी सुबह के उजाले
तुझे दोनों दे दिये हैं, तेरी बात कौन टाले
पी लेता हूं पीने के तमन्ना के लिये भी
डगमगाना भी जरूरी है संभलने के लिये
उम्मीदें कम चष्म ए वरीदार में आए
हम लोग जरा देर से बाजार मंे आए
ये आग हवस की है झुलसा देगी उसे भी
सूरज से कहो साये दीवार में आए
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूं कितना है
नोक-ए-खंजर ही बताएगी कि खूं कितना है
जमा करते रहे जो अपने को जर्रा-जर्रा
वो ये क्या जाने बिखरने में सुकूं कितना है
लुटाके अपने काले धन को इज्जत चाहते हैं हम
बहुत आसान तरकीबों से जन्नत चाहते हैं हम
हमें इस वास्ते कोई षराब लगती नहीं अच्छी
षराबों में भी तेरे होंठो की लज्जत चाहते हैं हम
जरा सा कतरा कहीं आज उभरता है,
समंदरों के लहजे में ही बात करता है
खुली चाहतों के दिये कबसे बुझ गये होते
कोई तो है जो हवाओं के भी पर कतरता है
सजदा ए दिल में तराने बहुत हैं
जिंदगी जीने के बहाने बहुत हैं
आप सदा मुस्कुराते रहें
आपकी मुस्कुराहट के दीवाने बहुत हैं
अंधेरे चारो तरफ सांय-सांय करने लगे
चराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
सलीका जिनको सिखाया था हमने चलने का
वो लोग हमेें आज दायंे-बायें करने लगे
जमीं पर आ गया आंखों से टूटकर आंसू
बुरी खबर है फरिष्ते खताएं करने लगे
तरक्की कर गये बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो अब दवाएं करने लगे
सबको रूसवा बारी-बारी किया करो
हर मौसम में फतवे जारी किया करो
कतरा-कतरा षबनम गिनकर क्या होगा
दरियाओं की दावेदारी किया करो
रोज वहीं एक कोषिष जिंदा रहने की
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो
चांद ज्यादा रोषन है तो रहने दो
जुगनू भैया दिल मत भारी किया करो
हजारों हमदर्द मिलते हैं, काम के चंद मिलते हैं
बुरा जब वक्त आता है, सारे दरवाजे बंद मिलते हैं
मुझे सहल हो गई मंजिलें, वो हवा के रूख भी बदल गये
तेरा हाथ, हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये
जीवन क्या है चलता-फिरता एक खिलौना है
दो आंखों में एक से हंसना, एक से रोना है
बहल जाएंगे पत्थरों से ही बच्चे
गरीबी खिलौने कहां मांगती है
हम जिंदगी की जंग में तन्हा लड़े रफीक
आई करीब मौत तो सब साथ हो गये
साया बनकर खड़ा रहा मैं आंगन में
बना नहीं मैं रास्ते की दीवार कभी
बारिष की बूंदो के भरोसे मत रहना
आंखे भी कर देती है बौछार कभी
दौलत की क्या हवस है रिलायंस से पूछ लो
पैसा सगा और भाई पराया ही रहेगा
जब तक रहेगी जेब गर्म देखते रहो
हर लफ्ज ‘‘जाहिरा‘‘ का बदलता ही रहेगा
दल कोई भी हो और कोई भी निषान हो
नेता तो है नेता और वो नेता ही रहेगा
झूठ के आगे-पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जायेगा
धुंआ भरा हो जिन आंखों मंे नफरत का
उनसे कोई ख्वाब ना देखा जाएगा
एक मदारी के जाने का गम किसको
गम तो ये है मजमा कौन लगाएगा
किसी चिराग का कहीं कोई मकां नहीं रहता
जहां जाएगा, वहीं रोषनी लुटाएगा
तेरी नफरतों को प्यार की खुषबू बना देता
मेरे बस में अगर होता तो तुझे उर्दू सिखा देता
पहले जमीन बांटी थी अब घर भी बंट गया
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया
हम मुंतजिर थे षाम से सूरज के दोस्तों
लेकिन वो आया सर पे तो कद अपना घट गया
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की षर्तों पे जीता नहीं
देखे जाते नहीं मुझसे हारे हुए,
इसलिये मैं कोई जंग जीता नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चिरागों की सांसो से जीता नहीं
स्याह रात नहीं लेती है नाम ढल तेरा
यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का
कहीं न सबको समंदर बहाके ले जाए
ये खेल खत्म करो कष्तियाॅं बदलने का
बहुत मषहूर होता जा रहा हूं,
मैं खुद से दूर होता जा रहा हूं
यकीनन अब कोई ठोकर लगेगी
मैं बहुत मगरूर होता जा रहा हूं
षैतान एक रात में इंसान हो गये
जितने भी थे हैवान वे कप्तान हो गये
कभी-कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिस बात को खुद ही ना समझे, दूसरों को समझाया है
ये षेख बिरहमण हमें अच्छे नहीं लगते
हम हैं जितने सच्चे ये उतने नहीं लगते
ऐसे भी गली-कूंचे हैं बस्ती में हमारी
बचपन में भी बच्चे जहां बच्चे नहीं लगते
रखना हमेषा याद ये मेरा कहा हुआ
आता नहीं के लौटके पानी बहा हुआ
सबके फसाने सबने सुने गौर से मगर
जो मेरा वाकिया था वही अनसुना हुआ
हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे षाही टुकड़ा डाल देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
कहां की हिजरतें, कैसा सफर, कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है
फुरसत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ये ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों
किसी फनकार का षोहरत पर इतराना नहीं अच्छा
दौराने सफर में कुछ धूल सर पर बैठ जाती है
तवायफ की तरह अपनी गलतदारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का परदा डाल देती है
मोहब्बत करने वालो में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
ये चिडि़या भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है
कहीं भी षाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है
गांव से षहर में भेज दिया मुझको पढ़ने स्कूल
मैं था कांटा गांव का हो गया षहर का फूल
मैंने सारी जिंदगी खुषबुएं बांटी
माॅं ने सारी उम्र मेरी याद में काटी
इससे पहले कि हम जुदा हो जाएं
बेहतर है दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी ना जाने क्या से क्या हो जाएं
मेरा दुष्मन मेरे जीने की दुआ देता है
कोई षख्स खुद को यूं भी सजा देता है
अपना चेहरा कोई कितना भी छुपाए लेकिन
वक्त हर षख्स को आईना दिखा देता है
हरेक चेहरा यहां पर गुलाल होता है
तुम्हारे षहर मंे पत्थर भी लाल होता है
किसी हवेली के ऊपर से मत गुजर चिडि़या
यहां छते नहीं होती हैं जाल होता है
मैं षोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता
जरा उरूज पर पहुंचा तो बवाल होता है
मेरे आंगन की कलियों को तमन्ना षाहजादों की
मगर मेरी मजबूरी है कि मैं बीड़ी बनाता हूं
हुकूमत का हरेक ईनाम है बंदूकसाजी पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूं
मुझे इस षहर की सब लड़कियां आदाब कहती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिये राखी बनाता हूं
सजा कितनी बड़ी है गांव से बाहर निकलने की
मैं मिट्टी गूंधता था अब डबलरोटी बनाता हूं
क्या कहिये कितनी जल्दी जवानी गुजर गई
अब ढूंढता हूं मैं किधर आई, किधर गई
मैं सिर्फ इसकी इतनी हकीकत समझ सका
एक मौज थी जो आई उठी और उतर गई
कुनबे का बोझ उठाता था तन्हा जो जान पर
बूढ़ा हुआ तो बोझ बना खानदान पर
देखकर फसल अंधेरों की ये हैरत कैसी
तूने खेतों में उजाला ही कहां बोया था
गुम अगर सुई भी हो जाए तो दिल दुखता है
और हमने तो मोहब्बत में तुम्हें खोया है
जब भी अपना गम छुपाना पड़ता है
बच्चों में बच्चा बन जाना पड़ता है
गलती पर तुम गलती करते रहते हो
और हमें खुद को समझाना पड़ता है
होकर मायूस ना यूं षाम से ढलते रहिये
जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिये
एक ही पांव पर ठहरोगे तो थक जाओगे
मुझे इसका गम नहीं है कि बदल गया जमाना
मेरी जिंदगी है तुमसे कहीं तुम बदल ना जाना
ये जहां पैसे बचाने में लगा रहता है
हम फकीरों का हाथ मगर खुला रहता है
मुफलिसी देकर वो बचाता है मक्कारी से
सब समझते हैं खुदा हमसे खफा रहता है
तुझको कुदरत ने नवाजा है तो मगरूर न बन
जिसमें फल रहते हैं वह पेड़ झुका रहता है
जो करते हो वो कहते हो, चुप रहने की लज्जत क्या जानो
इसे राज-ए-मोहब्बत कहते हैं तुम राज-ए-मोहब्बत क्या जानो
खूबसूरत आंखे तेरी रातों को जागना छोड़ दे
नींद खुद-ब-खुद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे
मत करो यकीन अपने हाथों की लकीरों पर
नसीब उनके भी होेते हैं जिनके हाथ नहीं होते
हम दाद भी फिर भाई को भाई नहीं देते
जाले भी पड़ोसी के दिखाई नहीं देते
बढ़ जाती है जब घर की दिवारांे की बुलंदी
मस्जिदों के मीनारे भी दिखाई नहीं देते
हिरषो हवस में कोई कमी क्यों नहीं हुई
सुख पाकर ये दुनिया सुखी क्यों नहीं हुई
जो मिल सका ना उसका ही गम क्या किया गया
जो कुछ मिला था उसकी खुषी क्यों नहीं हुई
फूल खुषबू, चांद तारे कहकषां भी साथ है
ये ज़मीं भी साथ है ये आसमां भी साथ है
इसलिये जन्नत के जैसा लग रहा है मेरा घर
मेरे बच्चों के अलावा मेरी माॅं भी घर में है
वो रूलाकर हंस ना पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उसको मगर
और भी वो याद आया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था एक फकीर
धूप रहती है, ना साया देर तक
जब से उसके घर की दीवार ऊंची हो गयी
भाई की आवाज भी ऐ यार दुष्वार हो गई
भाइयों के दरमियां जब से हुआ है
दुश्मनांे के हाथ की तलवार ऊंची हो गई
गम की आहट भी ना आए तेरे दर पर
प्यार के समंदर का तू भी किनारा हो
कभी भूल से भी जो टपके तेरी आंख से मोती
थामे वही जो तुझको सबसे प्यारा हो
कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी षहर के जलने के बाद आती है
वो नींद जो तेरी पलकों पे ख्वाब बुनती थी
यहां तो धूप निकलने के बाद आती है
वही महक जो तुम्हारे बदन से आती है
कभी-कभी वो मेरे पैरहन से आती है
गुलाब ऐसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात कांटो पर चलने के बाद आती है
ना जाने कैसी महक आ रही है बस्ती से
जो दूध के जलने के बाद आती है
दुख में नीर बहा देते थे, सुख में हंसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
उनसे क्या करें मेहमान नवाजी की उम्मीद
जो अपनी मुंडेरों से कौएं तक उड़ा देते हैं
सबकी आंखे तो खुली हैं देखता कोई नहीं
सांस सबकी चल रही है जी रहा कोई नहीं
मैं सिसकने की सदाएं सुन रहा हूं बार-बार
आप कहते हैं कि घर में दूसरा कोई नहीं
षहर को षहर बहा देती है तिनके की तरह
तुम तो कहते थे कि अष्कों में रवानी कम है
षिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
रिष्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है
मेरे हिस्से की जमीं बंजर थी मैं वाकिफ न था
बेसबब इल्जाम मैं देता रहा बरसात को
ये काफिले यादों के कहीं खो गये होते
एक पल भी यदि भूल से हम सो गये होते
ऐ षहर तेरा नामो-निषा भी नहीं होता
जो हादसे होते थे अगर हो गये होते
फिर भी एक षिकवा है लबों पे हमारे
खुदा ने तुझे बहुत जल्दी बुलाया
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मेरे दिल को आज तड़पा रहा है
वो मंजर मेरे सामने आ रहा है
कि लोगों ने तेरा जनाजा उठाया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
हम रातों को उठ-उठकर जिनके लिये रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानांे की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
इस बात का रोना है इस बात पर रोते हैं
कष्ती के मुसाफिर ही कष्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकड़ते हैं
कुछ लोग उमर सारी अंधेरा ही ढोते हैं
जब ठेस लगी दिल को ये राज खुला हम पर
धोखा तो नहीं देते नष्तर ही चुभोते हैं
मेरे दर्द के टुकड़े हैं बेचैन नहीं सागर
हम सांसो के धागों में जख्मों को पिरोते हैं
पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम षहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचाके आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुजारें भी तो कहां
सहरा में खुषी के फूल नहीं षहरो में गमों के साए हैं
झूठी-सच्ची आस पर जीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय की जगह खूने दिल पीना कब तक आखिर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकराकर डूब मरेंगे
तूफानों से डरकर जीना कब तक आखिर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुजारा फिर भी ना आए
वादे का एक महीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
सामने दुनियाभर का गम है और इधर एक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर एक आइना कब तक आखिर, आखिर कब तक
ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
दिन गुजर गया इंतजार में रात कट गई इंतजार में
वो मजा कहां वस्ले यार में लुत्फ जो मिला इंतजार में
अब में समझा तेरे रूखसार पे तिल का मतलब
दौलते हुस्न पे दरबान बिठा रखा है
पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती ये हंसी नजरे ख्वाब हो जाती
तूने डाली ना मैकदा नजरें वरना षबनम षराब हो जाती
पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी ये षबनम षराब क्या होगी
जिसने लाखों हंसी देखे हों उसकी नीयत खराब क्या होगी
तुम धड़कनों में बस गए अरमां बन गए
सौ साल यूं बस पहचान बन गए
कल रात उनको देखा उर्दू लिबास में
कुछ लोग कह रहे हैं अगला चुनाव है
वो भीख मांगते हैं हाकिमों के लहजे में
हम अपने बच्चों का हक भी अदब से मांगते हैं
छुपे बैठे हैं गुलजार में बहारे लूटने वाले
कली की आंख लग जाए ऐ कांटो तुम ना सो जाना
दिखाओ चाबुक तो झुककर सलाम करते हैं
ये वो षेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं
कुदरत ने तो बख्षी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं चीन, कहीं ईरान बनाया
साहिर लुधियानवी
पैदा उल्फत में वो सिफात करें पत्थरों के सनम भी बात करें
तुम जरा रूह के करीब आओ जिस्म के दरमियां क्या बात करें
विशिष्ट है आपका ये जन्मदिन
षुभकामना है बार-बार आए यह सुदिन
कामयाबी की मिसाल आपके पूरे पचास साल
तुम हमेषा पत्रकारिता के भाल का तिलक बनकर चमको
मान अधूरा लगता है सम्मान अधूरा लगता है
एक राजीव तेरे बिना संसार अधूरा लगता है
तुम सही वक्त पर खबरों को
इसी तरह क्लिक करते रहो
समय समय की बात है समय समय का योग
लाखों मंे बिक रहे है दो कौड़ी के लोग
हमने किया गुनाह तो दोजख हमें मिला
दोजख का क्या गुनाह जो दोजख को हम मिले।
कायरता जिन चेहरो का श्रंगार करती है
मक्खियाॅ भी उन पर बैठने से इंकार करती है।
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
पिया की दुलारी भोली भाली रे दुल्हनियाॅ
तेरी सब राते हो दीवाली रे दुल्हनियाॅ
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
दुल्हे राजा रखना जतन से दुल्हन को
कभी न दुखाना तुम गोरिया के मन को
नाजुक है नाजो की है पाली रे दुल्हनियाॅ
एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चूल्हो मे हरेक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाॅ सोएगा।
आॅंधी नफरत की न चलेगी कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यकी अब ना कोई शोर शराबा होगा ।
जुल्म होगा ना कही खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा कोई
अब मेरे देष में बेघर न रहेगा कोई ।
नये वादो का जो डाला है वो जाल अच्छा है।
रहनुमाओ ने कहा है ये साल अच्छा है।
दिल को खुष रखने का गालिब यह ख्याल अच्छा है ।
दुष्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गाें का जमाना नहीं भूले
तुम आॅंखो की बरसात बचाए हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम अपनी तस्वीर बनाना नही भूले।
एक उम्र हुई मैं तो हॅंसी भूल चुका हूॅ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नही भूले।
उनके मकबरे पर तो एक भी दिया नही
जिन्होंनें अपना खून चढ़ाया वतन पर
जगमगा रहे है मकां उन्हीं के
बेचा जिन्होंने शहीदो के कफन को
कोई चांदनी रात का चांद बनकर तुम्हारे तसव्वुर में आया तो होगा
किसी से तो की होगी तुमने मोहब्बत किसी को गले लगाया तो होगा
तुम्हारे ख्यालों की अंगड़ाइयों में मेरी याद के फूल महके तो होंगे
कभी अपनी आंखों के काजल से तुमने मेरा नाम लिखकर मिटाया तो होगा
लबों से मोहब्बत का जादू जगाके भरी बज्म में सबसे नजरे बचाके
निगाहों की राहों से दिल में समाके किसी ने तुम्हें भी चुराया तो होगा
कभी आइने से निगाहें चुराकर जली होगी भरपूर अंगड़ाइयों में
तो घबराके खुद तेरी अंगड़ाइयों ने तेरे हुस्न को गुदगुदाया तो होगा
निगाहों में षम्मे तमन्ना जलाके तकी होगी तुमने भी राहे किसी की
किसी ने तो वादा किया होगा तुमसे किसी ने तुम्हें भी रूलाया तो होगा
तुझसे मिलकर उंगली मीठी लगती है
तुमसे बिछड़कर षहद भी खारा लगता है
तेरे आगे चांद पुराना लगता है
तुझसे मिलके कितना सुहाना लगता है
माषूक का बुढ़ापा लज्जत दे रहा है
अंगूर का मजा किषमिष में आ रहा है
जड़ दो चांदी चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं है
सच हारे या बढ़े तो सच ना रहे
झूठ की कोई इंतहा नहीं है
सुनते है कि मिल जाती है हर चीज दुआ से
एक रोज तुझे मांगकर देखंेगे खुदा से
तुझको यूं देखा है, यूं चाहा है, यूं पूजा है
तू जो पत्थर भी होती तो खुदा हो जाती
कहां ले जाएगा बांधकर तू ये षान ओ षौकत
कि कफन में कभी किसी के भी जेब नहीं होता
प्यास है ओस की बूंद पिये लेते हैं
रात है तारों को देखकर जिये लेते हैं
तुम न दे सके लेकिन भरोसा मुझको
जाओ तुम्हें चांद सी मुस्कान दिये देते हैं
क्षितिज तक प्रत्येक दिषा में हम उठे नवप्राण भरने
नवसृजन की साध लें हम उठे निर्माण भरने
साधना के दीप षुभ हो ज्ञान का आलोक छाए
नष्ट तृष्णा के तिमीर हो धाम अपना जगमगाए
तंग आकर मरीज ने अस्पताल से छलांग लगाई
तो डाॅक्टर ने टांग पकड़कर प्रभाती सुनाई
सुबह-सुबह षहर को प्रदूषित करता है नादान
खाली हाथ कहां चला जजमान फोकट में मुक्ति पाएगा
अबे मुर्दे को तो छोड़ा नहीं जिंदा कैसे जाएगा
भूख हर दर्षन का घूंघट उतार देती है
रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपड़े उतार देती है
इस देष में जिंदा लोग रहते हैं मुझे तो इस बात पर भी षक है
यारों ऐसे लोगों को जीने का क्या हक है
जो अपनी बदनसीबी पर खिलखिलाए
और पचास साल में पचास ईमानदार आदमी भी नहीं ढूंढ पाए
पत्थर उबालती रही एक माॅं तमाम रात
बच्चे फरेब खाकर चटाई पर सो गए
कभी तो कोई सच का साथ देेने सामने आए
कि हरेक सच के लिये मुजरिम हमारी जुबां क्यों हो
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाॅं जलाने में
‘‘दुष्मनी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइष रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो षर्मिन्दा न हों‘‘
खुदा महफूज रखे मुल्क को गंदी सियासत से
षराबी देवरों के बीच भोजाई रहती है
मिलकर बैठे भी और कोई न हो
खुदा करे कभी ऐसी कोई मुलाकात न हो
ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे गम उठा ले
तन्हाइयों में रोले महफिल में मुस्कुरा ले
दिनभर गमों की धूप में जलना पड़ा हमें
रातों को षमां बनकर पिघलना पड़ा हमें
हर एक कदम पे जानने वालों की भीड़ थी
हर एक कदम पे भेस बदलना पड़ा हमें
दिल के लहु को मेहंदी की खुषबू ने छीन लिया
जो हुआ बेटा जवान तो बहू ने छीन लिया
मेरा क्या है फिर एक सूरज उगा लूंगा
उजाले उनको दो जो तरसते हैं उजालों को
मेरी मजदूरी पर निगाह भी जमाने की
पर किसने देखा मेरे हाथों के छालों को
लब पे आए जिक्रे काना कहे काषी भी साथ-साथ
बात जब है कि हो नमाज और आरती भी साथ-साथ
कोई कहता है खुदा कोई कहता है नहीं
चल रही है झूठ और सच की कहानी साथ-साथ
नन्हें जहनों पर ये भारी बोझ किसने रख दिया
फिक्र रोटी-दाल की और ए बी सी डी साथ-साथ
जितने कष्ट कंटकों में हैं उनका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला
मोहब्बतों में था जो खुमार वो जाता रहा
बुरा ना मान पर एतबार जाता रहा
इनके साथ 950 करोड़ लोगों का प्यार था
तो उनके साथ वे भी नहीं थे, जिन्होंने उन्हें भेजा
इन षहीदों के पार्थिव षरीर के लिये षहर उमड़ पड़ा
तो उनके गद्दारों के षव भी हमें दफनाना पड़े
तजुर्बों में कमी रही होगी
हादसे बेसबब नहीं होते
आगे बढ़ने का जिनमें है साहस
लोगों की आषाओं का जिन्हें है अहसास
कर्म करने में जिन्हें है विष्वास
सेवा और दयालुता का जिन्हें है अहसास
ठिकाना है उनका सेठी निवास
सफलता आपके यूं ही कदम चूमे
खुषियों ऐसे अवसर आते रहें आप झूमें
प्रगति और सफलता, विस्तार और उपलब्धियां
आपके कार्य को मिले नित-नित नई ऊंचाइयाॅं
अग्रणी रहने का जिनमें है साहस
नमोकार मंत्र जैसा जिन पर हमें है विष्वास
षक नहीं ऐसी दोस्ती पर बढ़ाया है हमारा आत्मविष्वास
मार्ग जिन्होंने सदा दिखाया चलो चले सिस्ट निवास
तुम्हारे इष्क पर कुरबान है मेरी सारी जिंदगी
पर मादरे वतन पर मेरा इष्क भी कुरबान है
आंधियां मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी
वही षाख बचेगी जो लचक जाएगी
तू जब रिष्तों की समाधी बनाने जाएगा
ये बता विष्वास की मिट्टी कहां से लाएगा
दक्षिणा के नाम पर चाहे अंगूठा मांग ले
तेरा पागलपन तुझे इतिहास बनकर खाएगा
घर से मस्जिद है बड़ी दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
हमसे उजली ना सही राजपथो की षाम
जुगनू बनकर आएंगे हम पगडंडी के काम
यूं बेबस ना रहा करो कोई षाम घर भी रहा करो
वो गजल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
मुझे इष्तहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियाॅं
जो कहा नहीं वह सुना करो, जो सुना नहीं वह कहा करो
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करें
दीवानगी हो, उम्मीद हो अक्ल हो या आस
अपना वही है वक्त पे जो काम आ गया
फूल थे गैर की किस्मत में ही ऐ जालिम
तूने पत्थर ही मुझे फेंक के मारे होते
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिये
रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा ना था अंजाम भी अच्छा ना हुआ
संयोग न हो तो मिलन नहीं संभव
गज भर की दूरी भी योजन बन जाती है
यदि मिलन हो तो भू-अंबर में
किरणों वाली सीढ़ी बन जाती है
जो पे्रम में रोया ना हो जिसने पे्रम विरह को जाना ना हो
उसे तो प्रार्थना की तरफ इंगित भी नहीं किया जा सकता
इसलिये मैं पे्रम का पक्षपाती हूं प्रेम का उपदेष दे रहा हूं
कहता हूं पे्रम करो, क्योंकि पे्रम का निचोड़ ही एक दिन प्रार्थना बनेगा
प्रेम की एक हजार बूंद निचोडे़गे तब कहीं प्रार्थना की एक बूंद एक इत्र की बूंद बनेगी
दोस्त के लिये जान देने के लिये हर कोई तैयार है
बषर्ते जान देने का मौका नहीं आए।
दोस्त मददगार होते है पर इस षर्त पर कि आप उनसे मदद ना मांगे।
सबसे दुष्वार होता है दोस्त की कामयाबी पर मुबारकबाद देना
हाय आंख में आंसू हैं और लब पर मुस्कान।
अगर आपके यहां खुषी का कोई मौका है और आपने दुनिया को उसमें
हिस्सेदारी की दावत देते हैं तथा आप मेरे हरे दोस्त होते हुए भी मुझे भूल गए
मैं इसकी षिकायत नहीं करूंगा, बल्कि खुष हो आप कि आपने खुषी में मुझे याद
नहीं किया। अपनी दोस्ती आपने निभायी, लेकिन खुदा ना खास्ता कभी आप पर मुसीबत
आ जाए और आप उसकी खबर मुझे न दें ताकि मैं आपके कुछ काम ना आ सकूं तो मैं
जरूर बुरा मानूंगा कि आप मुझे अपना दोस्त नहीं मानते।
हे भगवान ! दोस्तों से मेरी रक्षा कर, दुष्मनों से तो मैं खुद अपनी रक्षा कर लूंगा।
अगर मुझे दोस्त या मुल्क में से किसी एक के साथ गद्दारी करना पड़े तो मैं मुल्क
के साथ कर लूंगा।
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
समझते थे मगर रखी ना फिर भी दूरियां हमने
पुलिस और ईमानदारी क्या बात करते हो श्रीमान्
जैसे सरदारों के मोहल्ले में दुकान
‘‘षब्द के मोती चुगने और बुनने वाला पत्रकारिता का हंस
अपने विषाल पंखो के बावजूद हल्की सी सरसराहट किये
बगैर ही उड़ गया‘‘
मधुमय वसंत जीवन वन के तुम अंतरिक्ष की लहरों में
कब आए थे चुपके से, रजनी के पिछले प्रहरों मंे
क्या तुम्हें देखकर आते यांे मतवाली कोयल बोली थी
उस नीरवता में अलसाह कलियों ने आंखे खोली थी।
किसी ने जर दिया, जेवर दिया, किसी ने खुषी दे दी
किसी का घर बसाने को हमने अपने घर की रोषनी दे दी
बेटे और पिता का हाथ दो बार ही मिलना चाहिये। एक बार
जब बाप-बेटे का हाथ पकड़कर चलना सिखाए, दूसरा जब
बूढ़े बाप को बेटा हाथ पकड़कर सहारा देकर चलाए। जवान
बेटे और बाप का आपस में हाथ मिलाना हमारी संस्कृति नहीं है।
दीवार में दरारे नहीं आती हैं, जहां दरारे पड़ती हैं वहां दीवार खींची जाती हैै।
आज के समय में जब मेरे कमरे में से चीख की आवाज आती है, जब दूसरे
भाई के कमरे में से ठहाके की आवाज आती है। यह समझ में नहीं आता है
कि मेरी चीख को सुनकर वे ठहाके लगा रहे हैं या उनके ठहाके को सुनकर
मेरी चीख निकल रही है।
हम माॅं-बाप के साथ रहे, वे हमारे साथ ना रहे
पहले मैं माॅं-बाप के साथ रहता था, अब वे मेरे साथ रहते हैं।
मनुष्य मूलतः अच्छे स्वभाव का प्राणी है। हमारी सोच नकारात्मक हो गई है।
हम चाहते हैं कि हम भले ही मैच हार जाएं पर पाकिस्तान फाईनल नहीं जीत पाए।
एक बार तीन व्यक्तियों को भगवान ने वरदान दिया- एक को गोरा, दो को गोरा
तीसरा बोला- दोनों को वापस काला कर दो।
एक बार भगवान बोला- तेरे को जो होगा, उससे पड़ोसी को दुगुना होगा। तो मैंने कहा
मेरी एक आंख फूट जाए।
हम जब कम पढ़े-लिखे थे तो सरदार पटेल को ज्यादा चुनते थे। अब ज्यादा पढ़-लिख
लिये तो फूलन देवी को चुनते हैं। हम षिक्षित तो हो गए पर सभ्य नहीं हो पाए।
अगर कहीं पर्वत है तो यकीन मानिये आस-पास कहीं नदी भी होगी
बिना हृदय में गहरा दर्द संजोए कोई कोई इतना ऊंचा उठ नहीं सकता।
खंडवा जैसे छोटे षहर में आदमी इस खुषी में ही जिये जाता है
कि उसके मरने पर बहुत लोग आएंगे।
बच्चे फूलगोभी हैं, माॅं-बाप बंदगोभी
अजान की तरह पढि़ये, आरती की तरह गाइये
पीतल की बाली भी नहीं उसकी बीबी के कान में
जिसने अपनी जिंदगी गुजार दी सोने की खान में
जाएगी कहां मौज किनारों को छोड़कर
मिल जाएगा सुकून क्या सहारों को छोड़कर
मानाकि हमसे दूर चले जाओगे मगर
रह भी सकोगे क्या इष्क के मारो को छोड़कर
असत्य में षक्ति नहीं होती उसे अपने अस्तित्व
के लिये भी सत्य का सहारा लेना होता है।
सत्य बोले- प्रिय बोले, ऐसा सत्य न बोलें जा प्रिय ना हो
ऐसा प्रिय ना बोलें जो सत्य ना हो।
दुष्कर्म से सफलता की कामना करने के बजाय सत्कर्म करते हुए मर जाना बेहतर है।
जब क्रोध उठे तो उसके नतीजे पर विचार करो।
जिस दिन मनुष्य दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझेगा
मांसाहार उसी दिन समाप्त हो जाएगा।
वाणी से आदमी की बुद्धि और औकात का पता लग जाता है।
ज्ञान पाप हो जाता है, अगर उद्येष्य षुभ ना हो।
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती-गांव
हर चादर के छोर से बाहर निकले पांव
सातो दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
अच्छी संगत बैठकर संगी सदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
चाहे गीता बाचिये या पढि़ये कुरआन
मेरा-तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
वो रूलाकर हंस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक
कैसे पता चले पतझड़ है या बहार
ऐ दोस्त कोई पेड़ नहीं आस-पास में
मावस का मतलब बिटिया को भूखी माॅं ने यूं समझाया
भूख की मारी रात अभागन आज चांद को निगल रही है
दुश्मनी का सफर इक कदम, दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे
उलझे हुए दामन को छुड़ाने की सजा है
खुद अपने चिरागों को बुझाने की सजा है
षहरों में किराए का मंका ढूंढ रहे हम
ये गांव का घर छोड़कर आने की सजा है
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है
जख्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यूं है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर
अपनी नजरों में हर आदमी सिकंदर क्यूं है
अब मैं राषन की कतारों में नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता है
इतनी मंहगाई की बाजार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांट के षरमाता हूं
मैं खिलौनों की दुकाने खोजता ही रह गया
और मेरे फूल से बच्चे सयाने हो गए
ये दुनिया गम तो देती है षरीके गम नहीं होती
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
जिंदगी सच्चाई बनकर जिस्म छूने को लगी
जब जरा पैसे मिले बाजार मंहगा हो गया
मंजिले ख्वाब बनकर रह जाए
इतना बिस्तर से प्यार मत करना
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
दिले नांदा तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
न्यौछावर संकल्पमय सेवा का वरदान
चिर कृतज्ञ हम कर रहे अमृत महोत्सव सम्मान
सरस सिपाहा सुहृदय की आत्मीयता अगाध
अब गिरीष पूरी करें सौ वर्षों की साध
हम तो बिक जाते है उन अहले करम के हाथों
करके अहसान भी जो नीची नजर रखते हैं
उस पार है उम्मीद और उजास की एक पूरी दुनिया
अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है
उन दिलों के नाम जिनमें अभी प्यार करने की ताकत है
और जिनमें बसी है यह बात कि बेहतर जिंदगी रखने के लिये
एक ताजा षुरूआत करने के लिये कभी भी देर नहीं हुआ करती
जाने कैसे पंख लगाकर पल-पल उड़ जाता है
वक्त तो है आकाष पंछी कहां पकड़ में आता है
क्या भरोसा जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का
बंद रखते हैं जुंबा लब नहीं खोला करते
चांद के सामने तारे नहीं बोला करते
हम अपनी बात का रखते हैं भरपूर जवाब
तुम्हारी तरह हवा में नहीं बोला करते
फासला कितना है इस डाली से उस डाली तक
इतनी दूरी के लिये हम पर नहीं खोला करते
बता सितारों की पगडंडी तुझे चांद तक जाना है
और वहां की बंजर धरती पर एक बाग लगाना है
जन्म दिवस के षुभ प्रभात पर, जब खोलो नयनों के द्वार
सौ-सौ सूरज पास खड़े हों, ले ज्योति षक्ति भंडार
दिले नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम पर षाम ही तो है
तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली
तेरा नभ भर में संचार, मेरा दस फुट का संसार
तेरा गीत कहा वे वाह रोना भी है मुझे गुनाह
सच्चा है अपना प्यार तो क्या इस जहां का डर
फूल बनकर गुलिस्ता में फिर खिलंेगे हम
अब बिछड़ रहे हैं तो कोई रंज मत करो
जब जब बहार आएगी तो फिर मिलेंगे हम
सितारों को आंखो में महफूज रख लो दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी, इसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी
देखना चाहते हो गर इनकी उड़ान को
और ऊंचा करो इस आसमान को
कष्ती का जिम्मेदार फकत् नाखुदा ही नहीं
कष्ती में बैठने का सलीका भी चाहिये
कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए
कुछ लोग हैं जो वक्त के सांचे बदल गये
किसी का कद बड़ा देना, किसी का कद घटा देना
हमें आता नहीं ना मोहतरम को मोहतरम कहना
ष्
लब पर उसके कभी बदृदुआ नहीं होती
एक माॅं ही तो है जो कभी खफा नहीं होती
जिंदगी है तो ख्वाब है, ख्वाब है तो मंजिले हैं
मंजिले हैं तो रास्ते हैं, रास्ते हैं तो मुष्किले हैं
मुष्किले हैं तो हौंसला है, हौंसला है तो विष्वास है
विष्वास है तो जीत है
मन में अगर हो प्यार तो हर दौर मधुवास है
देता है रब भी साथ अगर दिल में सच्ची आस है
ये तो माना हम बिछड़ रहे हैं मगर
हम यहीं पर फिर मिलेंगे, ये अटल विष्वास है
सूखी धरती, सूखे समंदर आओ पानी बहाएं
रंग गुलाल के सबसे अच्छे सूखी होली मनाएं
आओ दूर कर लें दिल के मलाल
गालों पर लगा दें प्रेम का गुलाल
जरा सी भी वफा तेरी फितरत में नहीं आई,
तुझे पच्चीस बोतल खून कुत्ते का चढ़ाया था
सत्य की विजय होती है यह बात पुरानी है
अब तो जो विजयी होता है, वही सत्य है
रेस में हारे हुए लोगों के पास जीते हुए को
कोसने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता
खंडवा रेस में हारे हुए लोगों का षहर है अतः
विजयी को कोसना यहां का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है
तुम्हारा बेवफा कहना हमें मंजूर है क्योंकि
तुम्हारा साथ देने से मदीना छूट जाएगा
इतनी ऊंची मत छोड़ो गिर पड़ोगे धरती पर
क्योंकि आसमान में सीढि़याॅं नहीं होती
सबको उस रजिस्टर में हाजिरी लगानी है
मौत वाले दफ्तर में छुटिृटयाॅं नहीं होती
बंदूके बंद रहे हमेषा, गायब नफरत फसाद हो
आंसा हो खुलकर मुस्कुराना, हर दिल में उल्लास हो
न्याय चिरायु बनें यहां, अन्याय का अवसान हो
चहक उठे हर चप्पा-चप्पा कोई कोना ना वीरान हो
हर ईद मने खुषहाली में, सदा सुखी रमजान हो
हम लगा ना सके उसके कद का अंदाज
वो आसमां था पर सर झुकाए बैठा था
चमन में इकतलफ बू और रंग से बात बनती है
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमीं हम हैं तो क्या हम हैं
तमाम रिष्ते मैं अपने घर पर छोड़ आया था
फिर उसके बाद कुछ अजनबी ना मिला
वह मूर्ति कर्म में जीती थी हों परमषांत प्रस्थान मिला
अमणित अनुनय बेकार हुए निष्ठुर हरि में कब ध्यान दिया
दुनिया की आंख मिचैली से वे दोनों आंखे बंद हुई
बंधन ठुकराकर तपोमयी, वह आत्मा अब स्वछंद हुई
नमोमंडल पर जरूरत नहीं कि तुम नक्षत्रों
की तरह बंधी घडि़यों और बंधे दिनों में आओ
और तारूण्य में जन्मते ही तुम्हारा विज्ञापन हो
तुम सर्वनाष के नहीं सर्वप्राण के भूकम्प बनकर क्यों ना आओ
पेज गिनने वाले प्रकाषक का पुस्तक के पन्ने बनकर आने के
बजाय तुम अपने जमाने की उथल-पुथल के संदेषवाहक बनकर
क्यों ना आओ। तुम्हारा स्वागत करने वाले बरस अचंभा करें कि
तुम विष्व में किस द्वार से आये थे और किस जीने पर चढ़कर लौट गए।
--माखनलाल चतुर्वेदी--
मंजिल मिलेगी जरूर, विष्वास ले चलना होगा वरना
हो अमावस की हुकूमत तो दीप बनकर जलना होगा
ऊंचे पहाड़ों पर जो परिंदा बैठा है
जब भी सोचता है आसमान की बात होगी
पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती तुमको अमृत, स्वयं थामती हाला
पड़ाव-दरपड़ाव, मंजिल के अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा सफर
सहेजते-सहेजते, पड़े-पड़े बिखर गई जिंदगी की किताब
गरीब रोज मरना चाहता है, अमीर उसे मरने नहीं देता
जानता है अमीर, गरीब मर जाएगा तो अमीरी भी नहीं रहेगी
गरीबी की पीठ पर ही टिका है अमीरी का अस्तित्व
हर ओर फूल है, खुषबू है, रस है रसवंती मौसम में
गहरे मन से दे रहे तुम्हें हम, विदा वसंती मौसम में
किताबे जिंदगी का एक नया उनवान है षादी
दो अजनबी जब एक हों वह इकरार है षादी
दुनिया का तकाजा है और फर्ज मजबूर करता है
ये कैसा जष्न है जो लख्ते जिगर को दूर करता है
तू प्यार करना छोटो से, बड़ो की कद्र भी करना
कहे तुझको बुरा कोई तो दीपा सब्र भी करना
तुझे कुछ दे नहीं सकता, बस ये आन देता हूं
बजाए सोने-चांदी के तुझे कुरआन देता हूं
सर्द रातों की आवारगी, उस पर नींद का बोझ
हम अपने षहर में होते तो घर जाकर सोते
काफिरों के लिये फकत एक शोर, मोमिनों के लिये एक अजान हूं मैं
ऐ नयी दौर की नस्ल मुझे गौर से सुन, गालिब और मीर की जबान हूं मैं
मोहब्बत में अना नहीं चलती, खुद ना आते हमें बुलाते हो
चांदनी रात सिसकियां भरती तुम जब छत पर आते हो
हजार लाषों को देखकर, आंखे नम नहीं होती
कैसे खा जाते हैं वे झूठी कसमें, हमसे रोटी हजम नहीं होती
काटकर गैरों की टांगे, खुद लगा लेते हैं लोग
इस षहर में इस तरह भी, कद बढ़ा लेते हैं लोग
षेर सुनने का सलीका जब इन्हें आता नहीं
षायरों को जाने ना फिर क्यों बुला लेते हैं लोग
जीने दो हर बषर को, तितली के पर तलक की हिफाजत किया करो
बिन आदमी के क्या वजूद कायनात का, इंसान हो इंसान से मोहब्बत किया करो
--अब्दुल जब्बार--
बनाये प्यार की माला जो बिखर न पाये कभी
नषा अहिंसा का चढ़कर, उतर ना पाये कभी
तुम्हीं दुआएं दो, आषीर्वाद दो मुझको
मेरे पांव से चींटी भी ना मर पाए कहीं
निहत्थे लोग भी जंगल में काम करते हैं
तो गाय-बैलों के घर षेर काम करते हैं
करिष्मा है ये महावीर जी के होने का
कि मोर, सांपो को झुककर सलाम करते हैं
वो एक सच है जिसे सब भुलाए बैठे हैं
खुद अपनी आंखों पर पर्दा गिराए बैठे हैं
किसी को कोई भी उस एक से नहीं मतलब
सब अपनी-अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
नई सुबह की, नई किरण हो
नया जोष हो, नई लगन हो
हर पल चिंतन, यही हमारा
मंगलमय हो, जीवन तुम्हारा
मौत रास्ते में बिछाई जा रही थी
षहरों को जिंदा जलाया जा रहा था
बज रही थी डुगडुगी बाजीगरों की
खेल टीवी पर दिखलाया जा रहा था
कीमती कालीन जब से मेरे घर में आ गए
बेहिचक घर आने-जाने की अदा जाती रही
बाथरूमों की नये कल्चर में इतना बंद हूं
खुलकर बारिष में नहाने की अदा जाती रही
अगर मिल जाते मुझे वापस उम्र के पिछले हिस्से
भूल जाता मैं बाकी जिंदगी सारी
जी लेता अपना बचपन फिर से
ताजी सांसे ही रहेगी मन में
माॅं की यादें प्राणों में
पिता की ऊर्जा आंखों में उजाला होगा
जाने कैसे मेरे पिता ने मुझे पाला होगा
संतान होना यूं ही नहीं कि आपकी प्रगति है
आपका सोपान है, संतान का होना यूं कि
आपसे भी परे, आपसे भी पार कोई इंसान है
जो अभी-अभी खेलकर सोया हुआ है मगर
जिसमें नियती ने ईष्वर को बोया होगा
माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है
मैं ना जुगनू हूं, ना दिया हूं, ना कोई तारा
रोषनी वाले मेरे नाम से डरते क्यों हैं
लोग हर मोड़ पर रूककर संभलते क्यों हैं
इतना डर है तो घर से निकलते क्यों हैं
क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत में
कर्तव्य पथ पर जो मिले ये भी सही वो भी सही
कुछ ना पहले-पहल आऊं ये दुनिया छली गई
सुमनों के मुख पर धूल सदा ही मली गई
युग-भुज फैलाकर फूलों ने सरिता से मांगा आलिंगन
वह आज नहीं प्रिय कल, कल कहती चली गई
बेरंग जिंदगी तो बेरंग ही सही, हम तो यहीं रहेंगे जमीं तंग ही सही
हम अमन चाहते हैं जुल्म के खिलाफ, गर जंग लाजमी है तो जंग ही सही
आज की यह कविता में खो जाइये
क्या पता ये मिल न फिर दोबारा ना हो
और दोबारा तो क्या इसका पता
मन तुम्हारा न हो मन हमारा न हो
डूबकर कुछ सुनों और सुनकर बुनो
मन मिलाओगे मन से तो मिल जाएंगे
वरना हम हैं परिंदे बहुत दूर के
बोलियां अपनी बोलकर उड़ जाएंगे
मेहरबां होकर जब चाहे बुला लो मुझको
मैं गया वक्त नहीं जो आ भी ना सकूं
कमरे कम दीवार बहुत हैं
इस घर में लाचार बहुत हैं
खुद अपने अपमान से बच, यारों के अहसान से बच
जो निकले आसानी से ऐ दिल, उस अरमान से बच
बात इषारों में कर ले, दीवारों के कान से बच
जगमगाते हुए सूरज पर नजर रखता हूं
तुम समझते हो कि झिलमिलाते सितारों बहक जाऊंगा
घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाॅं
अपनी तबस्सुम से इसे सजाती हैं बेटियाॅं
जब वक्त आता है इनका बिदाई का
जार-जार सबको रूलाती हैं बेटियाॅं
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां
और जिंदगानी रही भी तो नौजवानी फिर कहो
मेरा मुझमें कुछ नहीं जो है सो है तेरा
तेरा तुझको सौंप दूं, क्या लागे है मेरा
जो भी आता है सजा देता है दोस्त बनकर दगा देता है
वो तो माॅं-बाप का ही दिल है वरना मुफ्त में कौन दवा देता है
वो आती रही मिलती रही, हम हंसी को प्यार समझ बैठे
वो एक दिन नहीं आई, हम इतवार समझ बैठे
सभी गीत ऊंचे स्वर में गाए नहीं जाते
जिगर के जख्म सभी को दिखलाए नहीं जाते
जिसे देखो वो बेताब है मीनार बनने को
पर नींव के पत्थर कहीं पाए नहीं जाते
नेता, कुत्ता और जूता पहले तो चरण चाटते हैं
और उसके बाद काटते हैं
गत क्या ढली, सितारे चले गये
गैरों से क्या गिला, जब अपने चले गये
जीत तो सकते थे इष्क की बाजी हम भी
पर तुम्हें जिताने के लिये हम हारते चले गये
वो घटाएं, वो फुहारें वो खनक भूल गये
बज्में बारिष में नहाने की ललक भूल गये
जब से इस बाग में तूने आना छोड़ दिया
तब से पंछी भी यहां अपने चहक भूल गये
हमारे होंठो की हंसी सबने यहां याद रखी
जाने क्यों लोग हमारे दिल की कसक भूल गये
जिन्होंने अपनों को ना माना, माना देष महान है
उन्हीं के दम पर खड़ा हुआ मेरा ये हिन्दुस्तान है
हर चमकती चीज सोना नहीं होती
भावुकता सिर्फ रोना नहीं होती
किसी की दूरी से उदास मत हो दोस्त
किसी की दूरी, उसे खोना नहीं होती
जो बसे हैं वो उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दिया जलाना कब मना है
लोगों को कहते सुना अक्सर जिंदा रहे तो फिर मिलेंगे
मगर इस दिल ने महसूस किया है, मिलते रहेंगे तो जिंदा रहेंगे
जब दोस्ती की दास्तान वक्त सुनाएगा
हमको भी कोई षख्स याद आएगा
तब भूल जाएंगे जिंदगी के गमों को
जब आपके साथ गुजरा वक्त याद आएगा
वही अल्फाज जो अखबार में पत्थर के होते हैं
गजल में आ गये तो आंख की पलकें भिगोते हैं
बंगले से भी सड़क को दिये उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने
हवेली वाले हिकारत से मेरी सल्तनत ना देख
मुझे यहां नहीं जन्नत में घर बनाना है
इबादतों के लिये तू मुझे जगह न बता
मुझे पता है कि सर कहांॅ झुकाना है
यूं बेबस न फिरा करो, कोई षाम घर भी रहा करो
वह गजल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिजाज का षहर है, जरा फासले से मिला करो
रंजिश रही दिल में सफाई के बाद
बंजर रही जमीं सिंचाई के बाद
तुम गुफ्तगू करो तो तुम्हें पता चले
कितने हैं लोग जाहिल पढ़ाई के भी बाद
न रहा मोहताज चांद-सितारों का कभी
सदा मैंने अपने मेहनत के उजाले देखे
तष्कीरा लकीरों का वही पर रख दिया
जब नजमियों ने मेरे हाथ के छाले देखे
अक्लें हैरां हैं मेरी रफ्तारे दुनिया देखकर
एक को आता देखकर, एक को जाता देखकर
भूलकर मेरे जनाजे को कांधा मत देना
जिंदा ना हो जाऊं फिर मैं सहारे देखकर
ना पूछा कौन है, क्यों राह में लाचार बैठै हैं
मुसाफिर हंै, सफर करने की हिम्मत हार बैठै है
टूटी हुई मंुडेर पर, छोटा-सा एक चिराग
मौसम से कह रहा है, आंधी चलाके देख
नषेमन पर नषेमन इस कदर तामीर करता चल
कि बिजली गिरते-गिरते आप ही बेजार हो जाएं
ठंडी हवाएं, महक, फिजां, नर्म चांदनी
रात तो एक थी जो बस तेरे साथ काट दी
गोसा बदल-बदलके सारी रात काट दी
कच्चे मकां ने अबके भी बरसात काट दी
हालांकि हम मिले है बड़ी मुद्दतों के बाद
औकात की कमी ने मुलाकात काट दी
वो सर भी काट देता तो होता नहीं मलाल
अफसोस ये है कि उसने मेरी बात काट दी
फुर्सत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से तो बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों
किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर है ये बाहर कौन है
दिल धड़कने का तसव्वुर ख्याली हो गया
एक तेरे जाने से सारा षहर खाली हो गया
सियासत में सियाकारों के चेहरे लाल रहते हैं
यहां जो कुछ नहीं करते मालामाल रहते हैं
मेरे सोने की गंगा में, मेरी चांदी की जमना में
सुनहरी मछलियाॅं थीं, आजकल घडि़याल रहते हैं
या तो मुझसे छीन लो ये बुत तराषी का हुनर
या फिर जो बुत तराषूं वो खुदा हो जाए
हजारों मुष्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर एक फायदा है पीठ पर खंजर नहीं लगता
जिसको तेरी आंखों से प्यार होगा
गर जिया भी तो वह बीमार होगा
ये मोहब्बत है जरा सोच-समझकर रोना
एक आंसू भी टूटा तो गुनाह देगा
वह हादसा भी खूब था, जब आंसुओं का तीर
निकला किसी की आंख से आकर लगा मुझे
कितने मौसम बीत गये दुख-दर्द की तन्हाई में
दर्द की झील नहीं सूखी है आंखों की अंगनाई में
ना किसी की आंख का नूर हूं, ना किसी के दिल का करार हूं
जो किसी के काम ना आ सका, मैं वो एक मुष्ते गुबार हूं
बारिष का मजा चाहो तो, मेरी आंखों में आकर बैठो
वो तो बरसों में बरसती है, यह बरसांे से बरसती है
इतने हुए बदनाम हम इस जमाने में
तुमको लग जाएगी सदियां हमें भुलाने में
ना तो पीने का सलीका है ना पिलाने का षऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में
अबके सावन में षरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़कर सारे षहर में बरसात हुई
षब्द झूठे हैं सत्य कथाओं की तरह
वक्त बेषर्म है वैष्या की अदाओं की तरह
सबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहां पे उजालों ने खुदखुषी की है
जिंदगी भर तो गुफ्तगू हुई गैरों से मगर
आज तक तुमसे हमारी ना मुलाकात हुई
खुषबू सी आ रही है इधर जाफरान की
षायद खुली है खिड़की, उनके मकान की
सातों दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
मैं रोया परदेस में भीगा माॅं का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
आपकी नजरों में सूरज की जितनी अजमत
हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं
रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ
मैंने अपनी खुष्क आंखों से लहु टपका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिये
और सिर्फ कब्रों की जमीनें देकर मत बहलाओ
हमने राजधानी दी थी हमको राज-धानी चाहिये
उस पार उतर जाएं ये बात ख्याली है
जिस नाव में बैठे हो वो डूबने वाली है
हालात की तब्दीली षायद उसे कहते हैं
जो बाग का दुष्मन था, वो बाग का माली है
भोर का तारा हुए तुम, रात के साए गए
रोशनी का दिन सजा तो तुम कहीं पर खो गए
तन समर्पित, मन समर्पित और ये यौवन समर्पित
और क्या दूं मातृ-भू तुम पर किया जीवन समर्पित
कौन कहता है बुढ़ापे में जवानी नहीं होती
ये अलग बात है किसी की मेहरबानी नहीं होती
भाषा चाहे जितनी भी हो, जीत सदा हिंदी की होगी
चंद्रमा पर जाओ या मंगल पर, पहली दुकान किसी सिंधी की होगी
नये कमरों में चीजें पुरानी अब कौन रखता है
परिंदों के लिये कुंडो में पानी अब कौन रखता है
ये तो ये हैं जो संभाले हैं गिरती दीवारों को
वरना बुजुर्गों की निषानी को कौन रखता है
कौन कहता है बूढ़ों को प्यार करने का हक नहीं होता
ये अलग बात है इन पर किसी को षक नहीं होता
उसके घर जाकर दिये सपाटे चार
देखता ही रह गया जगत का ठेकेदार
फटी जब पैर बिवाइ पीर जब समझ में आई
मेरे घर में चहकती रही बेटियाॅं
सारे षहर को खटकती रही बेटियाॅं
ओढ़कर सपन सारा षहर सो गया
राह पापा की तकती रही बेटियाॅं
छोड़ माॅं-बाप को जब बेटा चल दिया
सेवा माॅं-बाप की कर रही बेटियाॅं
मम्मी-पापा के आंसू के अंगारों पर
बनकर बदली बरसती रही बेटियाॅं
बेटी होना एक अपराध है देष मंे
यही सुन-सुन सिसकती रही बेटियाॅं
इस जमाने ने षर्मो-हया बेच दी
राह चलने में अब झिझकती रही बेटियाॅं
अब की तनख्वाह पर ये ये चीज होना हमंे
कहते-कहते झिझकती रही बेटियाॅं
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो
चाहे बसों, पहाड़ पर या फूलों के गांव
माॅं के आंचल से अधिक षीतल कहीं न छांव
इसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माॅं की गोदी से अधिक नीरज कौन पवित्र
पूछिये तो कायम है रंगीनियाॅं जमाने की
सर धुनते हैं फिर भी वो दिन कहां गये
कुत्ते का घुमाना याद रहा और गाय की टोटी भूल गये
दोस्त-यार सब याद रहे पर सगे भाइयों को भूल गये
साली का जन्मदिन याद रहा और माॅं की दवाई भूल गये
षर्त लगी जब एक षब्द में दुनिया लिखा देने की
सबने दुनिया लिख डाला मैंने सिर्फ माॅं लिखा
थामले जो हाथ गिरते आदमी का
आदमी सही में वो ही इंसान है
अन्न देना, धन देना, देना ना मकान चाहे
बेटी कभी देना नहीं किसी निर्धन को
साधना इतनी बड़ी की जाप छोटे पड़ गये
पुण्य जब इतने बडे़ कि पाप छोटे पड़ गये
इतनी ऊंचाइयाॅं जब नापने निकले ये लोग
इतना कद ऊंचा मिला कि नाप छोटे पड़ गये
एक है षहर मुंबई जहां लोग पत्थर दिल होते हैं
एक आपका षहर है खंडवा जहां पत्थर के भी दिल होते हैं
जो भरत भूमि में जन्मा है मुस्लिम है, सिख, इसाई है
उससे पे्रम का रिष्ता है माता का जाया भाई है
अब तो कोई एक वरक तेरे-मेरे बीच हो
तेरे घर हो गीता और मेरे घर कुरआन हो
ईद, दीवाली, होली, मोहर्रम सब मिलकर एक साथ हो
मेरे घर हो जब उपवास, तब तेरे घर रमजान हो
आया वसंत तो फूल भी षोलो में ढल गये
मैं चूमने गया तो मेरे होठ जल गये
जिनके लिये दिलों में चाहत है, प्यार है
वो आ रहे हैं, जिनका हमें इंतजार है
जहां ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मोटरगाड़ी
जहां ना पहुंचे मोटरगाड़ी, वहां पहुंचे बेलगाड़ी
जहां ना पहुंचे बेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी
आ मिटा दे दिलों पे जो स्याही आ गई
मेरी ईद तू मनाले तेरी दीवाली में मनालूं
एक-दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं
क्या कमी है आदमी की रफ्तार में
आदमी को पेषेवर होते हुए
हमने देखा गांव को षहर होते हुए
खुदा की तरह पूजे गए है यहां
न जाने कितने लोग पत्थर हुए
तुम्हारी षान घर जाती कि रूतबा घर गया होता
जो तुमने कहा गुस्से में प्यार से गर कह दिया होता
माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है
जब कलिका को मादकता में, हंस देने का वरदान मिला
जब सरिता को उन बेसुध-सी लहरों को कल-कल गान मिला
युग-युग की उस तन्मयता को, कल्पना मिली संचार मिला
तब हम पागल से झूम उठे, जब रोम-रोम को प्यार मिला
परिभाषा बांधती है, निष्चित करती है सीमाएॅं
अपरिभाषित प्रेम के बंधन में हम और तुम
परिणाम, परिणिति या नियति सोचकर
क्या किसी ने वास्तव में पे्रम किया है
एक दिन दिनमान से मैंने जरा जब यों कहा
आपके साम्राज्य मंे इतना अंधेरा क्यों रहा
तिलमिलाकर वो दहाड़ा मैं भला अब क्या करूं
तुम निकम्मों के लिये मैं अकेला कहां तक बढ़ूं
आकाष की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम ये घनघोर है कुछ मैं लड़ू कुछ तुम लड़ो
तुम न समझो तुम्हारा मुकद्दर हूं मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तकदीर हो
चंद मछेरो ने साजिष कर सागर की संपदा चुराली
कांटो ने माली से मिलकर फूलों की कुर्की करवा ली
खुषियों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी है
आने को आई आजादी, मगर उजाला बंदी है
रहा ना कारवां अब गर्द लिये बैठे हैं
हमें ना छेडि़ये हम दर्द लिये बैठे हैं
हर फूल की किस्मत में नहीं सेहरे की ताजनषीन
कुछ फूल तो खिलते हैं मजारों के लिये भी
कहीं पर चांद-तारे हैं, कहीं बादल गरजते हैं
कहीं षादी के जलसे हैं, कहीं आंसू बरसते हैं
कहीं टुकड़ों के लाले हैं, कहीं किस्मत बनी रानी
कहीं सूखा समंदर है, कहीं लहरा रहा पानी
हमें दोनों ही प्यारे हैं, बना कुछ भी न बोलेंगे
खुषी भेजे तो हंस लेंगे, सितम भेजे तो रो लेंगे
उस दिन आवाज ने नहीं, चुप्पी ने साथ दिया मेरा
बिगाड़ा चुप्पी ने ही उस दिन मेरे ईमान को
गर हौसले बुलंद हो मंजिले मिलती रहेगी
एक कदम तुम चलोगे, दो कदम मंजिल चलेगी
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है
ज्यादा खाय, जल्द मरी जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगड़े काम न जो गम खाय
टूटे नहीं संकल्प, बस संदेष यौवन का यही
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत् संघर्ष ही
आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है
आइना छोडि़ये आइने में क्या रखा है
या रहिये इसमें अपने घर की तरह
या मेरे दिल में आप घर ना करें
करीब आओ तो षायद हमें समझ लोगे
ये फासले तो गलतफहमियां बढ़ाते हैं
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये
षब्द के तीर प्यार की कमान रखते हैं
बंद होंठो में एक मीठी जुबान रखते हैं
तुम तो रहते हो हिन्दुस्तान में लेकिन
ये तो वो हैं जो दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं
रूके तो चांद चले तो हवाओं जैसा है
वो षख्स धूप में देखो तो छांव जैसा है
परी चेहरों की कमी नहीं दुनिया मंे मगर ऐ दोस्त
तेरे मिजाज की ठंडक कहां मिलती है
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते
न ही मैदान जीतने से, मन भी जीते जाते हैं
गहरी नदियां, नांव पुरानी, तिस पर यह मौसम तूफानी
तू किसको आवाज लगाता, सभी करेंगे आना-कानी
वैसे तो इस जग में यारों, बड़ी प्रखर आंसू की बानी
लेकिन अंधो की नगरी में, मत कर रोने की नादानी
तू ही नहीं दुखी इस जग में, सबकी अपनी राम कहानी
जीवन में एक सितारा था, माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया, अंबर के आंगन को देखो
इसके कितने तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये, फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर षोक मनाता है, जो बीत गई सो बीत गई
इस राज को एक मर्दे फिरंगी के किया फाष
हर चंद की दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत एक तर्जे हुकूमत है कि जिसमें
बंदो को गिना करते हैं तौला नहीं करते
मंजिल भी उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों मंे जान होती है
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौंसलो से उड़ान होती है
माना कि तेेरे प्यार के काबिल हम नहीं
पर उनसे जाकर पूछिये, जिन्हें कि हम हासिल नहीं
खाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
और छोटी-मोटी बात पर हिजरत नहीं होती
पहले दीप जले तो चर्चा हुआ करती थी
अब षहर जले तो भी हैरत नहीं होती
रोटी की गोलाई नापा करता है पगले
इसलिये तो घर में बरकत नहीं होती
फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं
जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूं
मोहब्बत एक खुष्बू है हमेषा साथ चलती है
कोई इंसा तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं होता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में जरा सा फासला रखना
दरिया समंदर में मिल जाए तो समंदर नहीं होता
झुकते वही जिनमें जान होती है
अकड़े रहना मुर्दों की पहचान होती है
जिसने बनाई दसो दिषाएं और बनाई ऋतुएं चार
करें विनम्र षीष नवाकर उस रब से मैं बारम्बार
जब-जब जन्म लूं धरती पर संगनी तुझे पाऊं हर बार
यूं तो तुम्हे रोज प्यार करते हैं
पर आज षब्दों से इजहार करते हैं
आप भी आइये हमको भी बुलाते रहिये
दोस्ती जुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिये
दुष्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये
नजर बदल लो, नजारे बदल जाएंगे
सोच बदल लो सितारे बदल जाएंगे
जरूरत नहीं है किष्तियां बदलने की
राह बदल दो किनारे बदल जाएंगे
सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख नहीं, माणिक मदिरा का प्याला
छल रही है जिसमें छल-छल, रूप मदिर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूं
जहां कहीं मिल बैठे हम-तुम, वहीं हो गई मधुषाला
जो दर्द दिया तुमने, गीतों में पिरो लेंगे
आंखे भी छलकेगी, जी भर के भी रो लेंगे
अब तक है जमाने पे जिस आवाज का जादू
उसके मेरे नगमात पे उपकार बड़े थे
कहना रफी साहब के लिये है बड़ा मुष्किल
इंसान बड़े थे या कलाकार बड़े थे
खंडवा की मिट्टी ने मुझको गढ़ा, यहीं की फिजा में ये पौधा बढ़ा
खंडवा का रंग ऐसा मन चढ़ा, कोई षहर लगता न इससे बड़ा
गूढ़ ज्ञान, संगीत कला का बिरसे में वो लाए हैं
गंधर्वों की वाणी लेकर इस धरती पर आए हैं
मन्ना दा पहुंचे जहां उन्नति की उच्चतम चोटी है
उनकी कला के सामने फिल्मी दुनिया छोटी है
गजल, गीत, अरू छंद से, छीन ले सबका चैन
दिव्य अमोलक रत्न है, रवीन्द्र जैन
लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
कयामत कहीं से चली आ रही है
खुदा के लिये अपनी नजरों को रोको
मेरे दिल की दुनिया लुटी जा रही है
जिंदगी या तो किसी को प्यार से देखने का नाम है
या किसी की आंखों में प्यार देखने का नाम है
जिस तरफ से गुजरकर हम गये
लोग उसे रास्ता कहने लगे
तुम ही मेरी आरजू हो, किस्मत हो
मेरे मरने के बाद भी नहीं छूटेगी
तुम मेरी जिंदगी की आदत हो
जिसको सदियों से ढूंढ रहा था मैं
तुम उसी रोषनी की दौलत हो
तुमको देखा तो यूं लगा जैसे
तुम्हीं दिल हो तुम्हीं मोहब्बत हो
बिखरा पड़ा है मेरे ही घर में मेरा वजूद
बेकार महफिलों मंे इसे ढूंढता हूं मैं
कुछ हकीकत का सामना भी कर
खुष खयाली के जाल ही मत बुन
आइना देखकर पलट मत जा
हौंसला है तो उसकी बात भी सुन
घरों में छुपकर ना बैठो कि ऋतु सुहानी है
छतों पर चले आओ कि बहता पानी है
पूनम डूबी अमावस के घर, सावन सारे सलाखों में डूबे
और मौसम डूब गया बे मौसम, डूबने वाले तो लाखों में डूबे
षाखों में डूबा है मधुबन सारा, पंछी सयाने भी पाखो में डूबे
और तैर गये हम यूं तो समंदर, डूबे तुम्हारी तो आंखों में डूबे
साजिषें लड़वाने वाली, दीन-ओ-ईंमा हो गयी
गीत हिंदू हो गये, गजलें मुसलमां हो गयी
ला पिला दे साकिया, पैमाना पैमाने के बाद
होष की बाते करेंगे, होष में आने के बाद
सुरखरू होता है इंसा आफते आने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे घिस जाने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर मिन्नतें क्या-क्या ना की
कैसे नजरें फेर ली मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद
कभी दिये के आगे पल दोपल बर्बाद कर लेना
पतंगा जब चले कोई तो, हमको याद कर लेना
वो जितनी खुदनुमाई कर रहा है
खुद अपनी जग हंसाई कर रहा है
जरा सा जोर दरिया में क्या आया
समंदर की बुराई कर रहा है
तमाषा देख तो खुद गर्जियों का
दगा भाई से भाई कर रहा है
हमारे बल पर मसनद पाने वाला
हमसे ही कद अदाई कर रहा है
खुद जिंदगी के हुस्न का मयार बेचकर
दुनिया अमीर हो गई किरदार बेचकर
दीवानगी तो देखिये जूते पहन लिये
उस सरफिरे ने जुनबाओ दस्तार बेचकर
बुजदिल तेरी रगो में अगर खूं नहीं बचा
जा चूडि़यां पहन ले तलवार बेचकर
कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा बना देना
फिर उसके बाद कुछ अफवाह के पर्चे उड़ा देना
गलतफहमी से बढ़कर प्यार का दुष्मन नहीं कोई
परिंदो को उड़ाना हो तो बस षाखें हिला देना
नजर-नजर में उतरना कमाल होता है
नफ्स में बिखरना कमाल होता है
बुलंदी पर पहुंचना कमाल नहीं
बुलंदी पर ठहरना कमाल होता है
कड़वा भले है नीम क्या, चंदन से कम है
अपना षहर खंडवा क्या चंदन से कम है
जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो तार पे बिली है वो इस दिल को खबर है
वह पथ क्या पथिक कुषलता क्या, पथ में बिखरे यदि षूल ना हो
वह नाविक धैर्य परिक्षा क्या, यदि धाराएं प्रतिकूल ना हो
वक्ते सफर करीब है बिस्तर समेट लूं
बिखरा हुआ हयात का दफ्तर समेट लूं
फिर जाने हम मिलें, ना मिलें इक जरा रूको
मैं दिल के आइने में ये मंजर समेट लूं
ऐ मेरे हमसफरों तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम हो मिलावट ना करो इन छांवांे में
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बंट ना जाए तेरा बीमार कहीं इन मसीहाओं में
उनके हमारे अंदाजे इष्क में बस फर्क इतना है
हम मिलने को तरसते हैं वो तरसाके मिलते हैं
लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
अदाओं के झुरमुट में वो आ रहे हैं
नजर लड़ कई है जो मेरी नजर से
पसीने-पसीने हुए जा रहे हैं
आए जुबां पे राजे मुहब्बत मुहाल है
तुमसे मुझे अजीज तुम्हारा ख्याल है
षाहजहां से ताजमहल बन गया
मैं तेरे लिये रंगमहल बनवाउंगा
षाहजहां ने तो मुर्दा दफनाया था
मैं तुझे जिंदा दफनाउंगा
जो भी ससुर ने हमको दिया, दान ले चले
टी वी, फ्रिज और साथ में मान ले चले
लेकिन जब चली साथ में दुल्हन तो ये लगा
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले
जिस गेट पर लिखा रहता था, मेहमान है मेरा भगवान के समान
तरक्की ए जमाना देखिये, उस गेट पर लिखा है कुत्ते से सावधान
एक तलवार है मेरे घर में, जिसका दस्ता ठोस सोने का
क्या करेगी मेरी हिफाजत वो, डर सा रहता है जिसके खोने का
उससे मिलने की जुस्तजू भी है, वो मेेरे रूबरू भी है
सोचा था दिल जला डालें, ख्याल आया कि दिल में तू भी है
गांव लौटे षहर से तो सादगी अच्छी लगी
हमको मिट्टी के दिये की रोषनी अच्छी लगी
बासी रोटी सेंककर जब नाष्ते में माॅं ने दी
तब अमीरी से हमें ये मुफलिसी अच्छी लगी
मैं तेरी आंख में आंसू की तरह रहता हूं
जलते-बुझते हुए जुगनू की तरह रहता हूं
सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूं
खूबसूरत हैं आंखे तेरी, रातों को जागना छोड़ दे
खुद-बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे
तेरी आंखों से कलियां खिले, तेरे आंचल से बादल उड़े
देख ले तेरी चाल को, मोर भी नाचना छोड़ दे
जो बातें राज की हैं, उसे आम कर देगी
तुम्हारी दोस्ती मुझे बदनाम कर देगी
इससे बढ़कर वो क्या लाएगा जुल्मों-सितम
षरीर बूढ़ा कर दिया पर दिल जवान रह गया
सारे रिष्ते हैं टिके अब झूठ की बैसाखी पर
भाई तो है जिंदा, लेकिन भाईचारा मर रहा है
कैचियां हमें उड़ने से क्या रोक पाएगी
हम परो से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
गम तो मेरे साथ दूर तक गये
मुझे ना आई थकान तो वे खुद थक गये
मजाल क्या है कोई रोके दिलेर को
कुत्ता भी काट लेता है दोस्ती में षेर को
जिद से जिद टकरा गई खुद्दारियों के नाम
वरना देर क्या लगती थी फैसला होते हुए
इस कदर भी नाज मत अपनी वफा पर कीजिये
जाने क्या गुजरी हो उस पर बेवफा होते हुए
किसी ने पूछा राज-ए-कामयाबी
हमने बताया बस मोहब्बत तुम्हारी षुक्रिया
सफर ए जिंदगी में कितनों को दोस्त कहकर जाना है
दोस्ती प्यार है, जिंदगी इबादत है, तुम्हें सिर्फ कहा नहीं दिल से माना है
पंजाब 4 फायटिंग, बंगाल 4 राइटिंग
कर्नाटक 4 सिल्क, हरियाणा 4 मिल्क
केरला 4 बे्रन, यूपी 4 ग्रेन, एचपी 4 एप्पल
ओडि़सा 4 टेम्पल, एपी 4 हेरिटेज
एमपी 4 ट्राइवल्स, स्टेट 4 युनिटी, इंडिया 4 इंटरसिटी
लोग कहते हैं कि इतनी दोस्ती मत करो
कि दोस्त दिल पर सवार हो जाए
हम कहते हैं दोस्ती इस तरह से करो
कि दुष्मन को भी तुमसे प्यार हो जाए
एहसास बहुत होगा, जब छोड़ के जाएंगे
रोओगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज हमें देना
आसमां पर भी होंगे तो लौट के आएंगे
मदमस्त हवाएं हैं, मौसम भी सुहाना है
बंदर भी एमबीबीएस पड़ रहे हैं देखो क्या ज़माना है
खिड़की से देखा तो रास्ते पर कोई नहीं था
रास्ते से देखा तो खिड़की पर कोई नहीं था
प्यार करने वालों की किस्मत बुरी होती है
हर मुलाकात जुदाई से जुड़ी होती है
कभी रिष्ते की किताब पड़ लेना
दोस्ती हर रिष्ते से बड़ी होती है
जिन अमीरों के आंगन में सोने का सजर लगता है
उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है
फूल में कितना वजन है, षूल में कितनी चुभन है
यह बताएंगे तुम्हें वे, लुट गया जिनका चमन है
बर-बार राजा और मंत्री बदलने से क्या होगा
बदलना है तो इस काठ महल को बदलो
यादों की रूत आते ही सब हो गये हरे
हम तो समझ रहे थे सभी जख्म भर गये
जो हो सके तो अब भी सागर को लौट आ
साहिल के सीप स्वाति की बूंदो से भर गये
असलियत जमाने से किसलिये छुपाते हो
जब दिल नहीं मिलता तो हाथ क्यों मिलाते हो
तुम मुझे भूल जाओ ये मुमकिन नहीं
तुम्हें मेरी तरह चाहता कौन है
जो दिन में अम्न कमेटी नयी बनाते हैं
सुना है रात में वो बस्तियां जलाते हैं
लगे हुए हैं कई दाग जिनके चेहरे पर
वो लोग आज हमें आईना दिखाते हैं
सारे अंदाज हैं माषूक के राठन की तरह
संग मारे हैं निगाहों से वो गोफन की तरह
कमसिनी बीत गयी, दौरे जवानी भी गया
बल वो खाते हैं मगर आज भी हेलन की तरह
इस ढली उम्र में था जिसका सहारा मेयर
रूठकर बैठ ये वो भी समधन की तरह
जिस्म पर मिट्टी मलेंगे, खाक हो जाएंगे हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाएंगे हम
ऐ गरीबी देख रास्ते में हमंे मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएंगे हम
सियासी गुफ्तगू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता
रफू को फिर रफू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता
कुंए के पहरेदारों को लबो की प्यास मत दिखला
खुदा का नाम ले पानी तेरी ठोकर से निकलेगा
पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती सबको अमृत, स्वयं थामती हाला
पुलिस हमारे दिवस सजाने अपनी रात जलाती है
राज्य व्यवस्था के दीपक में पुलिस तेल बनाती है
खाकी वर्दी समाधान है, संकट के हर काल का
पुलिस हमारी उत्तर केवल, जलते हुए सवाल का
खाकी वर्दी पहन निकलना नहीं कोई आसान
इस वर्दी पर टंका हुआ है पूरा हिन्दुस्तान
मेरी षाम के धुंधलके, मेरी सुबह के उजाले
तुझे दोनों दे दिये हैं, तेरी बात कौन टाले
पी लेता हूं पीने के तमन्ना के लिये भी
डगमगाना भी जरूरी है संभलने के लिये
उम्मीदें कम चष्म ए वरीदार में आए
हम लोग जरा देर से बाजार मंे आए
ये आग हवस की है झुलसा देगी उसे भी
सूरज से कहो साये दीवार में आए
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूं कितना है
नोक-ए-खंजर ही बताएगी कि खूं कितना है
जमा करते रहे जो अपने को जर्रा-जर्रा
वो ये क्या जाने बिखरने में सुकूं कितना है
लुटाके अपने काले धन को इज्जत चाहते हैं हम
बहुत आसान तरकीबों से जन्नत चाहते हैं हम
हमें इस वास्ते कोई षराब लगती नहीं अच्छी
षराबों में भी तेरे होंठो की लज्जत चाहते हैं हम
जरा सा कतरा कहीं आज उभरता है,
समंदरों के लहजे में ही बात करता है
खुली चाहतों के दिये कबसे बुझ गये होते
कोई तो है जो हवाओं के भी पर कतरता है
सजदा ए दिल में तराने बहुत हैं
जिंदगी जीने के बहाने बहुत हैं
आप सदा मुस्कुराते रहें
आपकी मुस्कुराहट के दीवाने बहुत हैं
अंधेरे चारो तरफ सांय-सांय करने लगे
चराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
सलीका जिनको सिखाया था हमने चलने का
वो लोग हमेें आज दायंे-बायें करने लगे
जमीं पर आ गया आंखों से टूटकर आंसू
बुरी खबर है फरिष्ते खताएं करने लगे
तरक्की कर गये बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो अब दवाएं करने लगे
सबको रूसवा बारी-बारी किया करो
हर मौसम में फतवे जारी किया करो
कतरा-कतरा षबनम गिनकर क्या होगा
दरियाओं की दावेदारी किया करो
रोज वहीं एक कोषिष जिंदा रहने की
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो
चांद ज्यादा रोषन है तो रहने दो
जुगनू भैया दिल मत भारी किया करो
हजारों हमदर्द मिलते हैं, काम के चंद मिलते हैं
बुरा जब वक्त आता है, सारे दरवाजे बंद मिलते हैं
मुझे सहल हो गई मंजिलें, वो हवा के रूख भी बदल गये
तेरा हाथ, हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये
जीवन क्या है चलता-फिरता एक खिलौना है
दो आंखों में एक से हंसना, एक से रोना है
बहल जाएंगे पत्थरों से ही बच्चे
गरीबी खिलौने कहां मांगती है
हम जिंदगी की जंग में तन्हा लड़े रफीक
आई करीब मौत तो सब साथ हो गये
साया बनकर खड़ा रहा मैं आंगन में
बना नहीं मैं रास्ते की दीवार कभी
बारिष की बूंदो के भरोसे मत रहना
आंखे भी कर देती है बौछार कभी
दौलत की क्या हवस है रिलायंस से पूछ लो
पैसा सगा और भाई पराया ही रहेगा
जब तक रहेगी जेब गर्म देखते रहो
हर लफ्ज ‘‘जाहिरा‘‘ का बदलता ही रहेगा
दल कोई भी हो और कोई भी निषान हो
नेता तो है नेता और वो नेता ही रहेगा
झूठ के आगे-पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जायेगा
धुंआ भरा हो जिन आंखों मंे नफरत का
उनसे कोई ख्वाब ना देखा जाएगा
एक मदारी के जाने का गम किसको
गम तो ये है मजमा कौन लगाएगा
किसी चिराग का कहीं कोई मकां नहीं रहता
जहां जाएगा, वहीं रोषनी लुटाएगा
तेरी नफरतों को प्यार की खुषबू बना देता
मेरे बस में अगर होता तो तुझे उर्दू सिखा देता
पहले जमीन बांटी थी अब घर भी बंट गया
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया
हम मुंतजिर थे षाम से सूरज के दोस्तों
लेकिन वो आया सर पे तो कद अपना घट गया
जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की षर्तों पे जीता नहीं
देखे जाते नहीं मुझसे हारे हुए,
इसलिये मैं कोई जंग जीता नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चिरागों की सांसो से जीता नहीं
स्याह रात नहीं लेती है नाम ढल तेरा
यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का
कहीं न सबको समंदर बहाके ले जाए
ये खेल खत्म करो कष्तियाॅं बदलने का
बहुत मषहूर होता जा रहा हूं,
मैं खुद से दूर होता जा रहा हूं
यकीनन अब कोई ठोकर लगेगी
मैं बहुत मगरूर होता जा रहा हूं
षैतान एक रात में इंसान हो गये
जितने भी थे हैवान वे कप्तान हो गये
कभी-कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिस बात को खुद ही ना समझे, दूसरों को समझाया है
ये षेख बिरहमण हमें अच्छे नहीं लगते
हम हैं जितने सच्चे ये उतने नहीं लगते
ऐसे भी गली-कूंचे हैं बस्ती में हमारी
बचपन में भी बच्चे जहां बच्चे नहीं लगते
रखना हमेषा याद ये मेरा कहा हुआ
आता नहीं के लौटके पानी बहा हुआ
सबके फसाने सबने सुने गौर से मगर
जो मेरा वाकिया था वही अनसुना हुआ
हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे षाही टुकड़ा डाल देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
कहां की हिजरतें, कैसा सफर, कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है
फुरसत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ये ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों
किसी फनकार का षोहरत पर इतराना नहीं अच्छा
दौराने सफर में कुछ धूल सर पर बैठ जाती है
तवायफ की तरह अपनी गलतदारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का परदा डाल देती है
मोहब्बत करने वालो में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
ये चिडि़या भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है
कहीं भी षाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है
गांव से षहर में भेज दिया मुझको पढ़ने स्कूल
मैं था कांटा गांव का हो गया षहर का फूल
मैंने सारी जिंदगी खुषबुएं बांटी
माॅं ने सारी उम्र मेरी याद में काटी
इससे पहले कि हम जुदा हो जाएं
बेहतर है दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी ना जाने क्या से क्या हो जाएं
मेरा दुष्मन मेरे जीने की दुआ देता है
कोई षख्स खुद को यूं भी सजा देता है
अपना चेहरा कोई कितना भी छुपाए लेकिन
वक्त हर षख्स को आईना दिखा देता है
हरेक चेहरा यहां पर गुलाल होता है
तुम्हारे षहर मंे पत्थर भी लाल होता है
किसी हवेली के ऊपर से मत गुजर चिडि़या
यहां छते नहीं होती हैं जाल होता है
मैं षोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता
जरा उरूज पर पहुंचा तो बवाल होता है
मेरे आंगन की कलियों को तमन्ना षाहजादों की
मगर मेरी मजबूरी है कि मैं बीड़ी बनाता हूं
हुकूमत का हरेक ईनाम है बंदूकसाजी पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूं
मुझे इस षहर की सब लड़कियां आदाब कहती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिये राखी बनाता हूं
सजा कितनी बड़ी है गांव से बाहर निकलने की
मैं मिट्टी गूंधता था अब डबलरोटी बनाता हूं
क्या कहिये कितनी जल्दी जवानी गुजर गई
अब ढूंढता हूं मैं किधर आई, किधर गई
मैं सिर्फ इसकी इतनी हकीकत समझ सका
एक मौज थी जो आई उठी और उतर गई
कुनबे का बोझ उठाता था तन्हा जो जान पर
बूढ़ा हुआ तो बोझ बना खानदान पर
देखकर फसल अंधेरों की ये हैरत कैसी
तूने खेतों में उजाला ही कहां बोया था
गुम अगर सुई भी हो जाए तो दिल दुखता है
और हमने तो मोहब्बत में तुम्हें खोया है
जब भी अपना गम छुपाना पड़ता है
बच्चों में बच्चा बन जाना पड़ता है
गलती पर तुम गलती करते रहते हो
और हमें खुद को समझाना पड़ता है
होकर मायूस ना यूं षाम से ढलते रहिये
जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिये
एक ही पांव पर ठहरोगे तो थक जाओगे
मुझे इसका गम नहीं है कि बदल गया जमाना
मेरी जिंदगी है तुमसे कहीं तुम बदल ना जाना
ये जहां पैसे बचाने में लगा रहता है
हम फकीरों का हाथ मगर खुला रहता है
मुफलिसी देकर वो बचाता है मक्कारी से
सब समझते हैं खुदा हमसे खफा रहता है
तुझको कुदरत ने नवाजा है तो मगरूर न बन
जिसमें फल रहते हैं वह पेड़ झुका रहता है
जो करते हो वो कहते हो, चुप रहने की लज्जत क्या जानो
इसे राज-ए-मोहब्बत कहते हैं तुम राज-ए-मोहब्बत क्या जानो
खूबसूरत आंखे तेरी रातों को जागना छोड़ दे
नींद खुद-ब-खुद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे
मत करो यकीन अपने हाथों की लकीरों पर
नसीब उनके भी होेते हैं जिनके हाथ नहीं होते
हम दाद भी फिर भाई को भाई नहीं देते
जाले भी पड़ोसी के दिखाई नहीं देते
बढ़ जाती है जब घर की दिवारांे की बुलंदी
मस्जिदों के मीनारे भी दिखाई नहीं देते
हिरषो हवस में कोई कमी क्यों नहीं हुई
सुख पाकर ये दुनिया सुखी क्यों नहीं हुई
जो मिल सका ना उसका ही गम क्या किया गया
जो कुछ मिला था उसकी खुषी क्यों नहीं हुई
फूल खुषबू, चांद तारे कहकषां भी साथ है
ये ज़मीं भी साथ है ये आसमां भी साथ है
इसलिये जन्नत के जैसा लग रहा है मेरा घर
मेरे बच्चों के अलावा मेरी माॅं भी घर में है
वो रूलाकर हंस ना पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उसको मगर
और भी वो याद आया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था एक फकीर
धूप रहती है, ना साया देर तक
जब से उसके घर की दीवार ऊंची हो गयी
भाई की आवाज भी ऐ यार दुष्वार हो गई
भाइयों के दरमियां जब से हुआ है
दुश्मनांे के हाथ की तलवार ऊंची हो गई
गम की आहट भी ना आए तेरे दर पर
प्यार के समंदर का तू भी किनारा हो
कभी भूल से भी जो टपके तेरी आंख से मोती
थामे वही जो तुझको सबसे प्यारा हो
कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी षहर के जलने के बाद आती है
वो नींद जो तेरी पलकों पे ख्वाब बुनती थी
यहां तो धूप निकलने के बाद आती है
वही महक जो तुम्हारे बदन से आती है
कभी-कभी वो मेरे पैरहन से आती है
गुलाब ऐसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात कांटो पर चलने के बाद आती है
ना जाने कैसी महक आ रही है बस्ती से
जो दूध के जलने के बाद आती है
दुख में नीर बहा देते थे, सुख में हंसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
उनसे क्या करें मेहमान नवाजी की उम्मीद
जो अपनी मुंडेरों से कौएं तक उड़ा देते हैं
सबकी आंखे तो खुली हैं देखता कोई नहीं
सांस सबकी चल रही है जी रहा कोई नहीं
मैं सिसकने की सदाएं सुन रहा हूं बार-बार
आप कहते हैं कि घर में दूसरा कोई नहीं
षहर को षहर बहा देती है तिनके की तरह
तुम तो कहते थे कि अष्कों में रवानी कम है
षिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
रिष्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है
मेरे हिस्से की जमीं बंजर थी मैं वाकिफ न था
बेसबब इल्जाम मैं देता रहा बरसात को
ये काफिले यादों के कहीं खो गये होते
एक पल भी यदि भूल से हम सो गये होते
ऐ षहर तेरा नामो-निषा भी नहीं होता
जो हादसे होते थे अगर हो गये होते
No comments:
Post a Comment