कुछ हसीन ख़्वाब मुझसे संभाले नहीं गये,
काँटे जो लगे थे पाँव में निकाले नहीं गये।
मग़रूर आँधियों से शिक़ायत तो नहीं की,
बस....घोंसले दरख़्तों पे डाले नहीं गये।
यूँ हँस के बोलना,मिलना,गले लगना,
हम जानते हैं तेरे मन के जाले नहीं गये।
हाँ,मुस्कुराना अब मेरी आदत ही बन गयी,
इक उम्र गुज़री दिल के मगर छाले नहीं गये।
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