क्यों जल्दी तुझे हाथ छुड़ाने के लिए है
इक जख़्म अभी और दिखाने के लिए है
लगता है मुझे गैर की तरह शहर तुम्हारा
हर शख़्स यहां दिल ही दुखाने के लिए है
हमराज़ कोई मेरा नहीं मेरे अलावा
इक बात मगर फिर भी छुपाने के लिए है
हम अहले-मोहब्बत को नहीं मौत की परवाह
ये साथ कोई इक जमाने के लिए है
हर मिलने वाले की जिन्दगी को महकाते रहना
कितना ही दर्द हो जेहन में पर मुस्कुराते रहना
जिन्दगी की रात में चाहे अमावस ही आ जाये
पर तुम आशा के तारों की तरह टिमटिमाते रहना
मुश्किलें तो मेहमान बन कर आती रहेंगी
तुम बस उन मुश्किलों में भी खिलखिलाते रहना
जीवन की रणभूमि के हर मोड़ पर तुम बस
आगे बढ कर अपनी विजय पताका फहराते रहना
इस पापी कलयुग के इस घोर अंधकार में
तुम अच्छाई के दीपक बन जगमगाते रहना
ये 'घायल' कभी यहां रहे या ना रहे पर
तुम उसे याद करने को हमेशा आते जाते रहना
अजीब सी धुन बजा रखी है जिंदगी ने मेरे कानों में,
कहाँ मिलता है चैन पत्थर के इन मकानों में।
बहुत कोशिश करते हैं जो खुद का वजूद बनाने की
हो जाते हैं दूर अपनों से नजर आते है बेगानों में।
हस्ती नहीं रहती दुनिया में इक लंबे दौर तक,
आखिर में जगह मिलती है उन्हें कहीं दूर श्मशानों में।
न कर गम कि कोई तेरा नहीं,
खुश रहने की राह है मस्ती के तरानों में
जान ले कि दुनिया साथ नहीं देती,
कोई दम नहीं होता इन लोगों के अफसानों में।
क्यों रहता है निराश अपनी ही कमजोरी से
झोंक दे सब ताकत अपनी करने को फतह मैदानों में।
खुद को कर दे खुदा के हवाले ऐ इंसान
कि असर होता है आरती और आजानों में,
करना है बसर तो किसी की खिदमत में कर
वर्ना क्या फर्क है तुझमें और शैतानों में।
करना है तो कर गुजर कुछ किसी और की ख़ातिर
बन जाए अलग पहचान तेरी इन इंसानों में
बन जाए अलग पहचान तेरी इन इंसानों में
।
ऐसा कैसा रिश्ता है ये तेरे मेरे प्यार का
टूटता जुड़ता रहता ये रिश्ता है तेरे मेरे प्यार का
तुझे कैसे छोड़ जाऊं मैं अकेले इस जहान में
कितना गहरा रिश्ता है ये तेरे मेरे प्यार का
आते जाते खुशियां है आते जाते ग़म भी है
इसके दम पे बंधा रिश्ता है ये तेरे मेरे प्यार का
तुझसे करते जब भी बातें, हमसे तुम रुसवा होते
फिर भी सच्चा रिश्ता है ये तेरे मेरे प्यार का
मैं ना रहूँ अगर कल गर्दिश में हो जाऊं तुझसे जुदा
पर भूला ना सकोगे ऐसा रिश्ता है ये तेरे मेरे प्यार का
हो सके तो मुस्कुराहट बांट यार
बातों में कुछ सरसराहट बांट यार
नीरस सी हो चली है जिंदगी बहुत
थोड़ी सी इसमें शरारत बांट यार
जहां भी देखो ग़म पसरा है आंसूं है
थोड़ी सी नातों में हरारत बांट यार
नहीं पूछता कोई भी ग़म इक दूजे के
लोगों में थोड़ी सी जियारत बांट यार
सब भाग रहे हैं यूं ही इक दूजे के पीछे
अब सुकून की कोई इबारत बांट यार
जीने का अंदाज़ न जाने कहाँ खो गया
नफरत छोड़ प्यार मोहब्बत बांट यार
जिन्दगी ना बीत जाये यूं ही दुख दर्द में
बैचेनियों को कुछ तो राहत बांट यार
तन्हा रहना सीख रहा हूँ
मर के जीना सीख रहा हूँ
मांग के पाना सीख लिया है
पा के खोना सीख रहा हूँ
सबर को ज़द-ए-राह बना कर
काँच पे चलना सीख रहा हूँ
फिरते फिरते सहरा सहरा
प्यास को पीना सीख रहा हूँ
मरहम तो रखना ना आया
जख़्म खूरचना सीख रहा हूँ
जीने के हैं अज़ब तकाज़े
जिन्दा रहना सीख रहा हूँ
मदहोशी ने बहोत सताया
होश में रहना सीख रहा हूँ
डर कर जहर के प्याले से
सुख को छुपाना सीख रहा हूँ
मुहब्बत इतनी बरकरार रखो कि
मज़हब बीच में ना आये कभी..
तुम उसे मस्जिद तक छोड़ दो
तो वो तुम्हें मंदिर छोड़ दे कभी..
जिंदगी कुछ इस तरह है दुनिया में
जैसे कॉटों पर शबनम का कतरा..
तेरी याद में हम किस किस से ना मिले
हौंसला मिला जब हम खुद से जा मिले
सुना था आईना सच दिखाता है मगर
दंग रह गये जब खुद से जा मिले
पहुंचे दर पे राह-ए-खुदा पुछते हुए
फिर हुआ वही और एक बुत से जा मिले
था तेरा जिक्र ग़ालिब और मीर की ग़ज़लों में
तुझसे मिलने से पहले ही हम तुझसे जा मिले
कौन ढूंढे मंजिलें राहें ही काफी हों जब
हर रास्ता महका सा हो हर राह तुझसे जा मिले
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