Tuesday, 19 September 2017

, दाह संस्कार...

शाम ढलने के बाद क्यों नहीं किया जाता है, दाह संस्कार...Photo

हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार बताए गए हैं। इनमें सबसे अंतिम है मृतक संस्कार। इसके बाद कोई अन्य संस्कार नहीं होता है इसलिए इसे अंतिम संस्कार भी कहा जाता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि शरीर पंच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। अंतिम संस्कार के रुप में जब व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है तब यह पांचों तत्व जहां से आए थे उनमें विलीन हो जाते हैं और फिर से नया शरीर पाने के अधिकारी बन जाते हैं।

अंतिम संस्कार विधि पूर्वक नहीं होने पर मृतक व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है क्योंकि उन्हें न तो इस लोक में स्थान मिलता है और न परलोक में इसलिए वह बीच में ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्ति की आत्मा को प्रेतलोक में जाना पड़ता है। इसलिए व्यक्ति की मृत्यु होने पर विधि पूर्वक उनका दाह संस्कार किया जाता है।

लेकिन ऐसा नहीं है कि व्यक्ति की मृत्यु होने पर उनका कभी भी दाह संस्कार किया जा सकता है। शास्त्रों में दाह संस्कार के भी कुछ नियम बताए गए हैं।

इनमें एक नियम यह भी है कि व्यक्ति की मृत्यु अगर रात में या शाम ढ़लने के बाद होती है तो उनका अंतिम संस्कार सुबह सूर्योदय से लेकर शाम सूर्यास्त होने से पहले करना चाहिए। सूर्यास्त होने के बाद शाव का दाह संस्कार करना शास्त्र विरुद्घ माना गया है।

अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु दिन के समय होती है तब भी सूर्यास्त से पहले उनका अंतिम संस्कार करना होता है। शाम ढ़लने के बाद यह संस्कार नही किया जाना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के बाद शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। इसका कारण यह माना जाता है कि सूर्य ढ़लने के बाद अगर अंतिम संस्कार किया जाता है तो दोष लगता है।

इससे मृतक व्यक्ति को परलोक में कष्ट भोगना पड़ता है और अगले जन्म में उसके किसी अंग में दोष हो सकता है। एक मान्यता यह भी है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का द्वार बंद हो जाता है और नर्क का द्वार खुल जाता है।

एक मत यह भी है कि सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य ही जीवन और चेतना भी है। आत्मा सूर्य से ही जन्म लेती है और सूर्य में ही विलीन होती है। सूर्य नारायण रुप हैं और सभी कर्मों को देखते हैं। जबकि चन्द्रमा पितरों का कारक है।

यह पितरों को संतुष्ट करने वाला है। रात्रि के समय आसुरी शक्ति प्रबल होती है जो मुक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। इन्हीं कारणों से शास्त्रों में शाम ढ़लने के बाद मृतक व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं करने की बात कही गई गई है।

शास्त्रों में बताया गया है कि शाम ढ़लने के बाद अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके शव को रात में ही ले जाकर दाह संस्कार नहीं करना चाहिए।

ऐसे व्यक्ति के शव को आदर पूर्वक तुलसी के पौधे के समीप रखना चाहिए और शव के आस-पास दीप जलाकर रखना चाहिए। शव को रात में कभी भी अकेले या विराने में नहीं छोड़ना चाहिए।

मृतक व्यक्ति की आत्मा अपने शरीर के आस-पास भटकती रहती है और अपने परिजनों के व्यवहार को देखती है इसलिए परिवार के सदस्यों को मृतक व्यक्ति के शव के पास बैठकर भगवान का ध्यान करना चाहिए ताकि मृतक व्यक्ति की आत्मा को शांति मिले।

शव को अकेले नहीं छोड़ने के पीछे यह कारण माना जाता है। शरीर को छोड़कर जब आत्मा निकल जाती है तो शरीर के एक खाली घर की तरह हो जाता है।

इस खाली घर पर कोई भी बुरी आत्मा अधिकार कर सकती है। इसलिए बुरी आत्माओं से शव की रक्षा के लिए लोगों के आस-पास होना चाहिए। व्यवहारिक तौर पर शव को कोई जीव हानि न पहुंचाए इसलिए भी इसके आस-पास लोगों का होना जरुरी माना गया है।

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