ये दर्द कसक दीवानापन
ये उलझा बिगड़ा तरसता मन
दुनिया से उकताकर के भागा
तेरे पहलू में आ सुस्ताता मन
दो पल को तुम मेरे साथ रहो
तन्हाई में तड़पता प्यासा मन
तेरी एक नज़र को बेकल
पल पल कितना अकुलाता मन
नज़रे तो दर न ओझल हो
तेरी आहट पल पल टोहता मन
खुद से बातें कभी शीशे से
तुझपे मोहित तुझे पाता मन
तेरी तलब तुझसे ही सुकून
हद में रह हद से निकलता मन
दुनिया के शोर से अंजाना
बस तुझसे ही बातें करता मन
बेरूख तेरे रूख से आहत
रूठा रूठा कुम्हलाता मन
चाहकर भी चाहत कम न हो
बस तुझको ही पागल चाहता मन
तुम ही तुम
तुम ही तुम छाये हो ख़्वाबों ख़्यालों में
दिल के शजर के पत्तों में और डालों में
लबों पे खिली मुस्कान तेरी जानलेवा है
चाहती हूँ दिल टाँक दूँ मैं तुम्हारे गालों में
लकीरों के फ़साने मुहब्बत की कहानी
न जाने क्यूँ उलझी हूँ बेकार सवालों में
है गुम न जाने इस दिल को हुआ क्या है
सुकूं मिलता नहीं अब मंदिर शिवालों में
तेरे एहसास में कशिश ही कुछ ऐसी है
भरम टूट नहीं पाता हक़ीक़त के छालों में
बहे लहू जिस्मों पे खंज़र
न दिखलाओ ऐसा मंज़र
चौराहे पर खड़े शिकारी
लेकर हाथ में दाना है
चेहरों पर चेहरे है बाँधें
लोमड़ और गीदड़ है सारे
नहीं सलामत एक भी शीशा
पत्थर से याराना है
हाथों से वक्त की रही फिसलती ज़िदगी
मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी
लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम
हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ज़िदगी
दाखिल हुये ज़जीरे में एहसास है नये
पीकर के आब ए इश्क है मचलती ज़िदगी
मीठी नहीं है उम्र की मासूम झिड़कियाँ
आँखों के दरारों से आ छलकती ज़िदगी
करने लगी तालाब पे आबोहवा असर
मछलियों के साँस सी तड़पती ज़िदगी
बिकने लगे मुखौटे भी हर इक दुकान पर
बेमोल लगी मौत में बदलती ज़िदगी
आते नहीं परिंदे भी जबसे हुई ख़िज़ा
सूखे शज़र की साँस साँस ढलती ज़िंदगी
मधु भरे थे
जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में
सपने चुनते आया बुढ़ापा, वक्त ढला खामाशी में।
ढूँढते रह गये रेत पे सीपी, मोती नगीना भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
आसमान के तोड़ सितारे, ख़ूब संजोये आँगन में
बंद हुये कमरों में ऐसे, सूखे रह गये सावन में।
गिनते रहे राह के काँटे, फूल मिले जो भूल गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
बरसों बाद है देखा शीशा, खुद को न पहचान सके
बदली सूरत दिल की इतनी, कब कैसे न जान सके।
धुँधले पड़ गये सफ़हे सारे, बंध अश्क़ के फूट गये
मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।।
मैं रहूँ न रहूँ
फूलेंगे हरसिंगार
प्रकृति करेगी नित नये श्रृंगार
सूरज जोगी बनेगा
ओढ़ बादल डोलेगा द्वार द्वार
झाँकेगी भोर आसमाँ की खिड़की से
किरणें धरा को प्यार से चूमेगी
मैं रहूँ न रहूँ
मौसम की करवटों में
सिहरेगी मादक गुनगुनी धूप
पीपल की फुनगी पर
नवपात लजायेगी धर रक्तिम रूप
पपीहा, कोयल लगायेगे आवाज़
भँवर तितली रंगेगे मन के साज
फूट के नव कली महकेगी
मैं रहूँ न रहूँ
चार दिन बस चार दिन ही
मेरी कमी रूलायेगी
सजल नयनों में रिमझिम
अश्रुओं की.बरखा आयेगी
थक कर किसी जीवन साँझ में
छोड़ चादर तन की चली जाऊँगी
मन की पाखी बनके उड़ उड़
यादों को सहलाऊँगी
अधर स्मित मुसकायेगे
मैं रहूँ न रहूँ
सोये ख्वाबों कोसोये ख्वाबों को जगाकर चल दिए
आग मोहब्बत की जलाकर चल दिए
खुशबू से भर गयी गलियाँ दिल की
एक खत सिरहाने दबाकर चल दिये
रात भर चाँद करता रहा पहरेदारी
चुपके से आके नींद चुराकर चल दिये
चिकनी दीवारों पे कोई रंग न चढ़ा
वो अपनी तस्वीर लगाकर चल दिये
उन निगाहों की आवारगी क्या कहे
दिल धड़का के चैन चुराकर चल दिये
बनके मेहमां ठहरे पल दो पल ही
उम्रभर की याद थमाकर चल दिये
उड़े तिरंगा शान से
उन्मुक्त गगन के भाल पर
उड़े तिरंगा शान से
कहे कहानी आज़ादी की
लहराये सम्मान से
रक्त से सींच रहे नित जिसे
देकर अपने बहुमूल्य प्राण
रखो सँभाल अमूल्य निधि
है आज़ादी जीवन वरदान
न भूलो उन वीर जवानों को
शहीद हुये जो आन से
बिना कफन की आस किये
सो गये सीना तान के
सत्तर वर्षों का लेखा जोखा
क्या खोया क्या पाया सोचे
क्या कम है गद्दारों से वो नेता
भोली जनता को जो नोचे
जागो उठो खुद देखो समझो
सुन सकते हो कान से
नर नारायण तुम ठान लो गर
सब पा सकते हो मान से
मातृभूमि के रक्षा से बढ़कर
और कोई भी संकल्प नहीं
आत्मसम्मान से जीने का
इससे अच्छा है विकल्प नहीं
आज़ादी को भरकर श्वास में
दो सलामी सम्मान से
जब तक सूरज चाँद रहे नभ पे
फहरे तिरंगा शान से
मोह है क्यूँ तुमसे
मोह है क्यूँ
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
( रक्षा बंधन पर मेरी रचना वीर शहीदों की सम्मानीय बहनोे के लिए)
बचपन की वो सारी बातें
स्मृति पटल पर लोट गयी
तुम न आओगे सोच सोच
भरी पलकें आँसू घोंट गयी
वीरगति को प्राप्त हुये तुम
भैय्या तुम पर हमें नाज़ है
सूना आँगन चुप घर सारा
बस सिसकियों का राज़ है
छुप छुप रोये माँ की आँखें
पापा भी मौन उदास है
रोऊँ मैं कौन चुप करायेगा
लूडो में मुझे हारता देखकर
कौन मुझको जितवायेगा
चोरी से छुपके सबसे अब
पिक्चर कौन ले जायेगा
पॉकेटमनी बचा बचाकरके
मँहगी किताबें कौन दिलवायेेेगा
तुम बिन राखी आकर जायेगी
कितना भी समझाऊँ खुद को
भैय्या तेरी याद बहुत ही आयेगी
न होगी वो होली, दिवाली, दूज
ये वेदना रह रह मुझे रूलायेगी
नियति के क्रूर लेख से हारकर
तेरी कमी आजीवन न भर पायेेेगी
किस गुमान में है
आप अब तक किस गुमान में है
बुलंदी भी वक्त की ढलान में है
कदम बेजान हो गये ठोकरों से
सफर ज़िदगी का थकान में है
घूँट घूँट पीकर कंठ भर आया
सब्र गम़ का इम्तिहान में है
अब डरना नही तीरगी से मुझको
भोर का आफ़ताब दरमिमान में है
नीम सी लगी उसकी बातें सारी
कड़वाहट अब तक ज़बान में है
छलछलाए आसमां की आँखों से
बरसती बैचेन बूँदें
देने लगी मन की खिड़की पर दस्तक
कस कर बंद कर ली ,फिर भी,
डूबने लगी भीतर ही भीतर पलकें,
धुँधलाने लगे दृश्य पटल
हृदय के चौखट पर बनी अल्पना में
मिल गयी रंगहीन बूँदे,
भर आये मन लबालब
नेह सरित तट तोड़ कर लगी मचलने,
मौन के अधरों की सिसकियाँ
शब्दों के वीरान गलियारे में फिसले,
भावों के तेज झकोरे से
छटपटा कर खुले स्मृतियों के पिटारे,
झिलमिलाती बूँदों मे
बहने लगी गीली हवाओं की साँसे,
अनकहे सारे एहसास
दुलराकर नरम बाहों से आ लिपटे,
सलेटी बादलों के छाँव में
बड़ी दूर तक पसरे नहीं गुजरते लम्हें,
बारिश से पसीजते पल
ढ़ूँढ रहे चंद टुकड़े धूप की कतरनें।
घुमड़े बदरा नभ में फिर से सावन आ गया
रंगहीन जल कितनी सतरंगी यादें बरसा गया
आसमान से फिसली बूँदें
बचपन की गलियों में गूँजें
उमड़ते बादलों को देख
किलकारियाँ सुना गया
बेझिझक छप छप कूदते
चिल्लाकर फिल्मी गाना
ठुमक ठुमक कर नाचना
यादों के आईने को वो रूप भा गया
अखबारों के नाव के रेस में
कॉपी के पन्नों की शहादत
मम्मी का मेरा कान उमेठना
बरबस ही दिल मुस्का गया
भुट्टे की दावत याद कर के
मुँह में पानी आ गया
वक्त की चाल से मौसम हार गया
जवानी के मोड़ से गुजरते ही
कहाँ वो सावन का त्योहार गया
मेघों के मृदंग पर अनायास ही
भूला मन झूमकर मेघ मल्हार गा गया
बरखा से गीली हो आई यादों को
सोचूँ मैं कहाँ सुखाऊँ अब
सीले जीवन के लम्हो को फैलाकर
दमकता धूप कहाँ से लाऊँ अब
भर लूँ अंजुरी में बूँदे भीगूँ ज़रा सा
वापस आए बचपन हो जाये हरा सा
खोल खिड़कियाँ मन के सारे
सूखी यादें हरी हो रही
लेकर बाग की सारी खुशबूएँ
फिर इक बार बचपन का सावन आ गया
आवारा मन
भटके आस पास
बस तेरे ही
कोई न सही
पर हो सब तुम
मानते तो हो
तुम्हें सोचूँ न
ऐसा कोई पल हो
जाना ही नहीं
खुश रहो तो
तुमको देख कर
मुसकाऊँ मैं
बरस रही
बूँद बूँद बरखा
नेह से भरी
श्वेत चुनर
रंगी प्रीत में तेरी
सतरंगी सी
अनंत तुम
महसूस होते हो
पल पल में
पास या दूर
फर्क नहीं पड़ता
एहसास हो
छू गया नज़र से
छू गया नज़र से वो मुझको जगमगा गया
बनके हसीन ख्वाब निगाहों में कोई छा गया
देर तलक साँझ की परछाई रही स्याह सी
चाँद देखो आज खुद ही मेरे छत पे आ गया
चुप बहुत उदास रही राह की वीरानियाँ
वो दीप प्रेम के लिए हर मोड़ को सजा गया
खिले लबों का राज़ क्या लोग पूछने लगे
धड़कनों के गीत वो सरगम कोई सुना गया
डरी डरी सी चाँदनी थी बादलों के शोर से
तोड़ कर के चाँद वो दामन में सब लगा गया
बुझ गयी शाम
बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी
जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाईयाँ भी
दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी
हो गया फैसला बेकार है सुनवाईयाँ भी
कर बदरी का बहाना रोने लगा आसमां
चाँद हुआ फीका खो गयी लुनाईयाँ भी
खामोशियों में बिखरा ये गीत है तुम्हारा
लफ़्ज़ बह रहे हैं चल रही पुरवाईयाँ भी
बेचैनी की पलकों से गिरने लगी है यादें
दर्द ही सुनाए है रात की शहनाईयाँ भी
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
हरपल मुझको महसूस करो
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
भोर लाली के रंग चुरा
पलकों पे तेरे सजाऊँगी
तुम मीठे से मुस्काओगे
प्रथम रश्मि की गरमाहट
मैं उजास भर जाऊँगी
पंखुड़ियाँ कोमल नाजुक
अपने हाथों में भर भर के
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
मलकर महक गुलाब की
चुन सारे काँटे ले जाऊँगी
न कुम्हलाओ धूप मे तुम
मैं आँचल सा बिछ जाऊँगी
बनकर लहराती इक बदरी
बारिश रिमझिम रिमझिम
तन को शीतल कर जाऊँगी
चाँद हाथ में लेकर रात को
चुनरी झिलमिल तारों की
गलियारें में आसमां के
बिन बोले खामोशी से
बस तेरी मैं हो जाऊँगी
मैं न समझूँ कुछ न समझूँ
क्या जाने मैं क्या पाऊँगी
तुमको ही दिल ने जाना है
इक डोर नेह के बाँध के मैं
सारे एहसास जगाऊँगी
तेरे मौन का कोई गीत बनूँ
तेरी तन्हाई में चुपके से फिर
मैं तुमसे मिलने आऊँगी
खुद को दिल में तेरे छोड़ के चले जायेगे एक दिन
तुम न चाहो तो भी बेसबब याद आयेगे एक दिन
जब भी कोई तेरे खुशियों की दुआ माँगेगा रब से
फूल मन्नत के हो तेरे दामन में मुसकायेगे एक दिन
अंधेरी रातों में जब तेरा साया भी दिखलाई न देगा
बनके इल्मे ए चिरां ठोकरों से बचायेगे एक दिन
तू न देखना चाहे मिरी ओर कोई बात नहीं,मेरे सनम
आईने दिल अक्स तेरा बनके नज़र आयेगे एक दिन
तेरी जिद तेरी बेरूखी इश्क में जो मिला,मंजूर मुझे
मेरी तड़पती आहें तुझको बहुत रूलायेगे एक दिन
आज तुम जा रहे हो मुँह मोड़कर राहों से मेरे घर के
दोगे सदा फिर कभी खाली ही लौटके आयेगे एक दिन
चोटिल होकर यथार्थ के धरा से
बोझिल मन जब नीर बहाता है
टूट टूट कर टुकड़ो में जीवन का
जब सब सार समझ में आता है
बेकल मन क्षण दो क्षण के लिए
बेसुध सुधबुध भूलना चाहता है
उस विश्राम के पल में थका मन
पकड़ के कुछ यादों की डोरी
सुखद स्वप्न लोक में ले जाता है
गुलाब लदी डालियों के कंटक
भीनी सुगंध से मन भरमाते है
तितली सा उड़ मन को छूकर
अधरों को चूम रागिनी गाते है
पतझड़ न आया हो जहाँ कभी
बहार ही बहार की सौगाते है
उर स्पंदित हो जाता क्षण में
पकड़ उँगलियाँ भँवर प्रेम के
सुखद स्वप्न लोक में ले जाता है
अंधेरे मन के आँगन में टूटकर
चाँद कोने कोने में भर जाता है
तारें लेकर दीपक मन मुंडेर पे
निःशब्द टिमटिम मुस्काते है
जीवन से चुरा समय के पन्ने
सुनहरी कविताएँ रचे जाते है
तोड़ के बंधन सारे रस्मों के
अतुल नेह के फेरे लग जाते है
क्षणभंगुर ही सही पर मनचाहे
साथ की कल्पना में उड़ता मन
सुखद स्वप्न लोक ले जाता है
मौन बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??
एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??
ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??
साथ तुम्हारे हूँ
निष्ठुर,कोमल, उर प्रीत भरी
हूँ वीतरागी,शशि शीत भरी,
मैं पल पल साथ तुम्हारे हूँ।
रविपूंजों की जलती ज्वाला
ले लूँ आँचल में,छाँव करूँ,
कंटक राहों के चुन लूँ सारे
जीवन के भँवर में नाव बनूँ,
हर बूँद नयी आशा से भरी
मैं पल पल साथ तुम्हारे हूँ।
जीवन पथ के झँझांवत में
थाम हाथ, तेरे साथ चलूँ
जब सूझे न कोई राह तुम्हें
जलूँ बाती, तम प्रकाश भरूँ,
घन निर्मल पावन प्रेम भरी
मैं पल पल साथ तुम्हारे हूँ।
क्या ढूँढ़ते हो तुम इधर उधर
न मिल पाऊँ जग बंधन में,
नयनों से ओझल रहती हूँ
तुम पा लो हिय के स्पंदन में,
जीवनदायी हर श्वास भरी
मैं पल पल साथ तुम्हारे हूँ।
मुक्तक
चाँद
चाँद आसमान से बातें करता ऊँघने लगा
अलसाकर बादलों के पीछे आँखें मूँदने लगा
नीरवता रात की मुस्कुरायी सितारों को चूमकर
ख्वाबों मे तेरी आहट फिजां में संगीत गूँजने लगा
*******************************
चाँदनी रातों को अक्सर छत पे चले जाते है
वो भी देखते होगे चंदा सोच सोच मुस्कुराते है
पलकों के पिटारे मे बंद कर ख्वाब नशीले
उनकी यादों के आगोश में गुम हम सो जाते है
*******************************
झर झर झरती चाँदनी मुझसे है बतियाए
वो बैठा तेरे छाँव तले चँदनियाँ उसको भाए
गुन गुन करते पवन झकोरे तन मेरा छू जाए
उसकी याद की मीठी सिहरन मन मेरा बौराए
********************************
चाँदनी के धागों से स्याह आसमान पे पैगाम लिखा है
दिल की आँखों से पढ़ लो संदेशा एक खास लिखा है
पी लो धवल चाँद का रस ख्यालों के वरक लपेटकर
सुनहरे ख्वाब मे मुस्कुराने को अपने एहसास लिखा है
मोहब्ब्त की रस्में
मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के खुद को वफा कर चुके हम
इबादत में कुछ और दिखता नहीं है
सज़दे में उन को खुदा कर चुके हम
ये कैसी खुमारी में भूले जमाना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम
बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम
शिकवा ये कितनी दफा कर चुके हम
जाता नहीं दर्द दिल का है भारी
हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम
उनकी याद
*तन्हाई में छा रही है उनकी याद
देर तक तड़पा रही है उनकी याद
काश कि उनको एहसास होता
कितना सता रही है उनकी याद
एक कतरा धूप की आस में बैठी
मौन कपकपा रही है उनकी याद
रख लूँ लाख मशरूफ खुद को
जे़हन में छा रही है उनकी याद
साथ घूमने ख्वाब की गलियों में
बार बार ले जा रही है उनकी याद
रूला कर ज़ार ज़ार सौ बार देखो
बेशरम मुस्कुरा रही है उसकी याद
बना लूँ दिल भी पत्थर का मगर
मोम सा पिघला रही है उनकी याद*
जाते हो तो...
जाते हो तो साथ अपनी यादें भी लेकर जाया करो
पल पल जी तड़पा के आँसू बनकर न आया करो
चाहकर भी जाने क्यों
खिलखिला नहीं पाती हूँ
बेचैनियों को परे हटा
तुम बिन धड़कनों का
सिलसिला नहीं पाती हूँ
भारी गीली पलकों का
बोझ उठा नहीं पाती हूँ
फूल,भँवर,तितली,चाँद में तुम दिखते हो चौबारों में
पानी में लिखूँ नाम तेरा,तेरी तस्वीर बनाऊँ दीवारों में
दिन दिन भर बेकल बेबस
गुमसुम बैठी सोचूँ तुमको
तुम बन बैठे हो प्राण मेरे
हिय से कैसे नोचूँ तुझको
गम़ बन बह जा आँखों से
होठों से पी पोछूँ तुझको
सूनी सुनी सी राहों में पल पल तेरा रस्ता देखूँ
दुआ में तेरी खुशी माँगू तुझको मैं हँसता देखूँ
चाहकर ये उदासी कम न हो
क्यूँ प्रीत इतना निर्मोही है
इक तुम ही दिल को भाते हो
तुम सा क्यूँ न कोई है
दिन गिनगिन कर आँखें भी
कई रातों से न सोई है
तुम हो न हो तेरा प्यार इस दिल का हिस्सा है
अब तो जीवन का हर पन्ना बस तेरा ही किस्सा है
मौन हो तुम
मौन हो तुम गुनगुनाते
वीणा मधुर आलाप हो
मंद मंद सुलगा रहा मन
अतृप्त प्रेम का ताप हो
नैन दर्पण आ बसे तुम
स्वर्ण स्वप्नों के चितेरे
प्रीत भरे हृदय घट के
सकल नेह के हो लुटेरे
पाकर जिसे न छू सकूँ
अबोला कोई शाप हो
तेरे नयन आलोक से
सजता मेरा रंग रूप है
साथ चल दो कुछ कदम
लगे चाँदनी सी धूप है
साँसों में जपकर न थकूँ
प्रभु मंत्र सा तुम जाप हो
रंग लिया हिय रंग में तेरे
कुछ नहीं अब बस में मेरे
बाँधे पाश मनमोह है घेरे
बंद पलकें छवि तेरे उकेरे
अश्रुजल से न मिट सके
वो अमिट अनंत संताप हो
युद्ध
(1)
जीवन मानव का
हर पल एक युद्ध है
मन के अंतर्द्वन्द्व का
स्वयं के विरुद्ध स्वयं से
सत्य और असत्य के सीमा रेखा
पर झूलते असंख्य बातों को
घसीटकर अपने मन की अदालत में
खड़ा कर अपने मन मुताबिक
फैसला करते हम
धर्म अधर्म को तोलते छानते
आवश्यकताओं की छलनी में बारीक
फिर सहजता से घोषणा करते
महाज्ञानी बनकर क्या सही क्या गलत
हम ही अर्जुन और हम ही कृष्ण भी
जीवन के युद्ध में गांधारी बनकर भी
जीवित रहा जा सकता है
वक्त शकुनि की चाल में जकड़.कर भी
जीवन के लाक्षागृह में तपकर
कुंदन बन बाहर निकलते है
हर व्यूह को भेदते हुए
जीवन के अंतिम श्वास तक संघर्षरत
मानव जीवन.एक युद्ध ही है
(2)
ऊँचे ओहदों पर आसीन
टाई सूट बूट से सुसज्जित
माईक थामे बड़ी बातें करते
महिमंडन करते युद्ध का
विनाश का इतिहास बुनते
संवेदनहीन हाड़ मांस से बने
स्वयं को भाग्यविधाता बताते
पाषाण हृदय निर्विकार स्वार्थी लोग
देश के आत्मसम्मान के लिए
जंग की आवश्यकता पर
आकर्षक भाषण देते
मृत्यु का आहवाहन करते पदासीन लोग
युद्ध की गंध बहुत भयावह है
पटपटाकर मरते लोग
कीड़े की तरह छटपटाकर
एक एक अन्न.के दाने को तरसते
बूँद बूँद पानी को सूखे होंठ
अतिरिक्त टैक्स के बोझ से बेहाल
आम जनमानस
अपनों के खोने का दर्द झेलते
रोते बिसूरते बचे खुचे लोग
अगर विरोध करे युद्ध का
देशद्रोही कहलायेगे
देशभक्ति की परीक्षा में अनुत्तीर्ण
राष्ट्रभक्त न होने के भय से मौन व्रत लिये
सोयी आत्मा को थपकी देते
अनदेखा करते बुद्धिजीवी वर्ग
एक वर्ग जुटा होगा कम मेहनत से
ज्यादा से ज्यादा जान लेने की तरकीबों में
धरती की कोख बंजर करने को
धड़कनों.को गगनभेदी धमाकों और
टैंकों की शोर में रौंदते
लाशों के ढेर पर विजय शंख फूँकेगे
रक्त तिलक कर छाती फुलाकर नरमुड़ पहने
सर्वशक्तिमान होने का उद्घोष करेगे
शांतिप्रिय लोग बैठे गाल बजायेगे
कब तक नकारा जा सकता है सत्य को
युद्ध सदैव विनाश है
पीढ़ियों तक भुगतेगे सज़ा
इस महाप्रलय की अनदेखी का।
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो
न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं
रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है
कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
भरा है दिल
भरा है दिल,पलकों से बह जायेगा
भीगा सा कतरा,दामन में रह जायेगा
न बनाओ समन्दर के किनारे घरौंदा
आती है लहर ठोकरों में ढह जायेगा
रतजगे ख्वाबों के दर्द जगा जाते है
दिल खामोश है सारे गम़ सह जायेगा
अनजाने रस्ते है जीवन के सफर में
यादों का काफिला,साथ रह जायेगा
गैर नहीं दिल का हिस्सा है तुम्हारे
तुम भी समझोगे, वक्त सब कह जायेगा
दिल पे तुम्हारे
दिल पे तुम्हारे कुछ तो हक हमारा होगा
कोई लम्हा तो याद का तुमको प्यारा होगा
कब तलक भटकेगा इश्क की तलाश में
दिली ख्वाहिश का कोई तो किनारा होगा
रात तो कट जाएगी बिन चाँदनी के भी
न हो सूरज तो दिन का कैसे गुजारा होगा
पूछती है उम्मीद भरी आँखें बागवान की
लुटती बहार मे कौन फूलों का सहारा होगा
तोड़ आते रस्मों की जंजीर तेरी खातिर
यकीन ही नहीं तुमने दिल से पुकारा होगा
आँखें
तुम हो मेरे बता गयी आँखें
चुप रहके भी जता गयी आँखें
छू गयी किस मासूम अदा से
मोम बना पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से हासिल लाली
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
बोल चुभे जब काँटे बनके
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये तुम बिन साजन
कैसा रोग लगा गयी आँखें
छेड़ने राग
बूँदों से बहकाने
आया सावन
खिली कलियाँ
खुशबु हवाओं की
बताने लगी
मेंहदी रचे
महके तन मन
मदमाये है
हरी चुड़ियाँ
खनकी कलाई में
पी मन भाए
धानी चुनरी
सरकी रे सर से
कैसे सँभालूँ
झूला लगाओ
पीपल की डार पे
सखियों आओ
लजीली आँखें
झुक झुक जाये रे
धड़के जिया
मौन अधर
मंद मुस्काये सुन
तेरी बतिया
छुपके ताके
पलकों की ओट से
तोरी अँखियाँ
संग भीग ले
रिम झिम सावन
बीत न जाए
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