Thursday, 21 September 2017

हर सागर के दो किनारे होते है

हर सागर के दो किनारे होते है 
कुछ लोग जान से भी प्यारे होते है 
ये जरूरी नही हर कोई पास हो 
क्युकी ज़िन्दगी में यादो के भी सहारे होते है



मै मशीन नही हूँ
जज्बात और हसरत
मेरे भीतर भी हिलौरे मारते हैं।
मै सिर्फ प्रेम करने के लिए
ही जमीं पर नही उतरी हूँ।
मै सिर्फ माँ बनने की मशीन नही हूँ।
मै रिमोट से चलने वाला रोबोट नही हूँ।
दुनिया बदल रही है
मशीनी सुविधा तुमने दिया तो
पर किचिन से आजादी नही ।
बिस्तर का साहचर्य के आलावा
मेरे घरेलू काम में भी होता तुम्हारा साथ तो कुछ पल मै भी अपने वजूद को संवारने में लगाती।
मै भी सृजन को एक नया आयाम देती।
मेरी कल्पनायें भी आकाश में उड़ान भरती।
मेरी अपनी हस्ती होती जिसके प्रकाश से तुम और दिव्य होते।
ये जहान और खूबसूरत होता।
मेरी मजबूती से तुम और मजबूत होते।
कब तक दोहन होगा
कब तक नोचोगे
कब तक कुचलोगे
क्या ठूँठ से छाया पाओगे?
मरु भूमि में तब्दील कर क्या तुम
अपने लिए खुशी की कल्पना कर पाओगे?
तुम्हारी ख़ुशी का राज मै हूँ
फिर मुझे चोट कर तुम क्या
खूबसूरत दुनिया बना पाओगे?



रहस्यमयी व्याकरण
से भरी है ये जिंदगी।
छंदों से.. अलंकारों से... उपमाओं
से सजी ये जिंदगी ।

वात्सल्य, प्रेम,क्रोध ,सौंदर्य सब हैं यहां।
मीठे कड़वे खट्टे रसों से भरी है ये जिंदगी ।

सुख और दुःख की जुगलबन्दी से चलती है।
न विराम ,न विश्राम बस
चलती रहती है ये जिंदगी ।

जितना खोजो उतनी उलझती है ये ।
बचपन सी लापरवाही.. आसान करती है जिंदगी।






उठो ये सुबह की धूप तुम्हारे गाल छू रही है
ये चहकती चिड़ियाँ तुम्हें चिड़ा रही हैँ
फ़ूल भी तुम बिन खिल नही पाये
आँखें खोलो खुश्बू तुम्हें गले लगा रही है










इतने आसानी से
कोई मुझे कैसे जुदा कर देगा।
मै पतझड़ की पत्ती नही हूँ ।
जड़ो मैं साँस लेता हूँ तेरी।






ये क्या दबा दबा रहता है
जाने क्या सहमा सहमा सा रहता है

जल रहा है जज्बातों का शहर
जाने क्या बुझा बुझा सा रहता है

सब बह गया नज़्मों में मेरी
जाने क्या रुका रुका सा रहता है

लिखते लिखते भागते हैं रंग मुझसे
जाने क्या ख़पा ख़पा सा रहता है

जश्न में डूबे हैं गुल सारे,
गुलाब मेरा
उखड़ा उखड़ा सा रहता है

भीड़ है महफ़िलों में कयामत की
मेरा हर शफा तन्हा तन्हा रहता है






कभी कभी कुछ नायाब होता है
ख्वाबों का सबेरा अनायास होता है,,,,

जिन्हें ढूंढ़ता रहा ता जिंदगी दरबदर
उनका दीदार मेरे भीतर होता है,,,,

मै बिखरता हूँ जब भी टूटकर
जाने कौन आँचल में समेटा होता है,,,

तुम दिल से निकली नज़्म हो मेरी
जिसका इल्म मुझे हरदम होता है,,,,






तुम्हारे साथ डूबने लगता हूँ जब
संवेदना के चरम पर
खुदको तैरते पाता हूँ,,,

तुम जज़्बात और एहसास
के घोल से बनी नायाब
रूहानी शराब हो,,,

जिसे पीकर कोई भी
दीवाना सदियों तक झूमते रहे,,,,,

तुम कभी लबों से अपने
जज्बातों की एक बून्द
मेरी नज़्मों में भी मिला देना,
मेरी नज्में भी साँसे लेने लगेगी,
जीने लगेगीं,,,
तुम्हारे एहसासों की जमीं पर,,,,,,












जिया जाये न पिया तेरे बिन
सावन सूखा जाये तेरे बिन,,,,,

जुदाई बन गई जान की दुश्मन
मनवा लागे न कहीं तेरे बिन,,,,,

भोर भी है साँझ भी है
खुद को संवारा न जाये तेरे बिन,,,,

झूले भी हैं, बाग फ़ूले भी हैं
कुछ न भाये अब तेरे बिन,,,,,

निंदिया न आये याद सताये
रतिया न बीतें अब तेरे बिन,,,,






जब भी तेरी बाँहों में
खुद को सौंपती हूँ
पेड़ में लिपटी बेला सी
परत दर परत
तुम में समाने लगती हूँ,,

और तृप्त होने लगती हूँ
तेरे जज्बातों की पत्तियों से
टपकते सूफ़ियाना इश्क से,,,
कतरा कतरा जी उठता है मेरा,,,,

जर्रे जर्रे में तेरी मौजूदगी
कर देती है मुझे सुबह सी उजली,,,,

चढ़ने लगती हूँ
चर्मोतकर्ष का पहाड़
जहाँ तुम डूबते हो
मुझमें
ढलते सूरज से,,









बेचारगी का
दम घोंटू धुंआ
जीने नही देता,,,
प्यास है बहुत
पर खारा समन्दर
पीने नही देता,,,,






जब भी तेरी बाँहों में
खुद को सौंपती हूँ
पेड़ में लिपटी बेला सी
परत दर परत
तेरी काया के भीतर उतरने लगती हूँ,,
और तृप्त होने लगती हूँ
तेरे जज्बातों की पत्तियों से
टपकते सूफ़ियाना इश्क से,,,
कतरा कतरा जी उठता है मेरा,,,,
जर्रे जर्रे में तेरी मौजूदगी
कर देती है मुझे सुबह सी उजली,,,,
चढ़ने लगती हूँ उत्कृस्टता की पहाड़ी
जहाँ तुम डूबते हो
मुझमें
ढलते सूरज से,,












मै नायाब सफ़र में हूँ
आ भी जाओ,,,
मै तन्हा सुलग रही हूँ
आ भी जाओ,,,

मै जज्बातों में बह रही हूँ
तेरी चाहत में संवर रही हूँ
आ भी जाओ,,,

मै यादों की गठरी खोल रही हूँ
तेरी ही बोली बोल रही हूँ
आ भी जाओ,,,

एहसासों की शाल लपेट रही हूँ
तेरी चाहतों से भेंट कर रही हूँ
आ भी जाओ,,,

मै चाँदनी सी खिल रही हूँ
मोंगरे सी महक रही हूँ
आ भी जाओ,,,




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