Thursday, 2 November 2017

चोट को दिल



चोट को दिल में बिठाने की जरूरत क्या है,
बहने वालें को, ठिकाने की जरूरत क्या है!


कौन वो शै है,जो बख़्शी नहीं दाता ने तुम्हें,
और अब बोझ उठाने की जरूरत क्या है!

जो फक़त लबको छुए और दिल में न उतरे,
ऐसे रिश्ते को निभाने की जरूरत क्या है!

बहसो तकरार से बदलेंगे न कोई ख़याल,
बेसबब बात बढ़ाने की जरूरत क्या है!

हम तो हर हाल महकते ही रहेंगे ए परख,
गुलेख़न्दाँ को, बहाने की जरूरत क्या है!

Kuch जमी पर कुछ सिर पर कुछ बोझ बढ़ गया जिंदगी का।बोझ बन चुकी बाली उमरिया आओ आमंत्र न ह बन्दगी का।।
तमाम उम्र का बोझ कोई ढोने के काबिल तो मिले।। क्या करूँ असली बोझ तो है ये दिलजले।।।।।




फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है!
आप आते हैं कि गुलशन में सबा आती है!!
आप के रुख़ से बरसता है सहर का जोबन!
आप की ज़ुल्फ़ के साए में घटा आती है !!
आप के हाथ जो छू जाएँ किसी डाली से!
गुल ही क्या ख़ार से भी बू-ए-हिना आती है!!
आप लहरा के न यूँ दूधिया आँचल को चलें!
मुस्कुराते हुए फूलों को हया आती है !!
आप को क्यूँ न तराशा गया मेरे दिल से!
संग-ए-मरमर से हमेशा ये सदा आती है!!

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lekin aaine se dil ka dard chup na paya hai.
hogi kal ki subah tere sang ya fir hoga tanha din
maine raat ka har ek lamha iss uljhan main bitaya hai
jin ankhon main subah teri aur fir shaam mehakti thi.
un yaadon main apni tumne kitna mujhe rulaya hai.....
कभी जो देखनी हो मोहब्बत
तो मेरी चाहतों में आ जाना..
कभी जो करनी हो मुझसे बातें तो मेरी यादों में आ जाना..
कभी जो चाहो महसूस करना प्यार मेरा
तो मेरी आँखों में आ जाना..

कभी जो सुननी हो आवाज मेरे दिल की
तो मेरी धड़कनों में आ जाना..
कभी जो पाओ खुद को अकेला सा
तो मेरी राहों में आ जाना..

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