एक शहर बेगाना सा रहने को मकान ढूँढ़ते है
लोग तो बहुत रहते है हम एक इंसान ढ़ूँढ़ते है
खो गयी है ज़िदगी की मायूसियों मे कहीं जो
खिलखिलाते बचपने में वो मुस्कान ढूँढ़ते है
लोगों की नज़रों मे अजनबीपन देखा है जबसे
लेकर आईना मन का अपनी पहचान ढूँढ़ते है
रेत का घरौंदा समन्दर किनारे बना तो लिया है
अब गुनगुनी हवाओं में भी हम तूफान ढूँढ़ते है
दौड़ मे ज़िदगी की इंसानियत मिलना मुश्किल है
इसलिए इंसान शायद पत्थर मे भगवान ढूँढते है
लोग तो बहुत रहते है हम एक इंसान ढ़ूँढ़ते है
खो गयी है ज़िदगी की मायूसियों मे कहीं जो
खिलखिलाते बचपने में वो मुस्कान ढूँढ़ते है
लोगों की नज़रों मे अजनबीपन देखा है जबसे
लेकर आईना मन का अपनी पहचान ढूँढ़ते है
रेत का घरौंदा समन्दर किनारे बना तो लिया है
अब गुनगुनी हवाओं में भी हम तूफान ढूँढ़ते है
दौड़ मे ज़िदगी की इंसानियत मिलना मुश्किल है
इसलिए इंसान शायद पत्थर मे भगवान ढूँढते है
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