Thursday 25 April 2019

क्या महिलाओ को घुन्घट


क्या महिलाओ को घुन्घट
क्या महिलाओ को घुन्घट करना चािए या नहि?मैंघुन्घट के ना तो पक्ष में हु ओर ना ही विरोध में क्योंकि मैं खुद घुन्घट करती हूँ । हमारे भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा समाजिक परंपराओं को निभाते और मानते हुए देखा गया है, जैसे कि वे हमेशा ही पारंपरिक कपड़े, और गहने, पहनती हैं, माथे पर बिंदी लगाती हैं और सर पर घूंघट लेती हैं।

भारत में महिलाओं दृारा सिर को ढकने की प्रथा ने हमेशा ही हमारे अंदर जिज्ञासा बढाई है, खासतौर पर उन लोगों के लिये जो भारतीय संस्‍कृति से बिल्‍कुल अलग हैं।

हिंदू परंपराओं के पीछे छुपे विज्ञान को समझना है जरुरी 


सिर पर घूँघट डालना अपने से बड़ों के सम्मान के रूप में देखा गया है, इसलिए महिलाएं अपनों से बड़ों के सामने अक्सर घूँघट करती हैं। शहरों में यह कुछ कम देखने को मिलता है मगर गांवों में आज भी महिलाएं अपने सर, चेहरा और गर्दन को पुरुषों से ढांक के रखती हैं।

भारतीय महिलाएं क्‍यूं लेती हैं अपने सिर पर घूंघट? 
भारतीय महिलाएं घूँघट क्यों लेती हैं?

क्‍या कहता है हिंदू ग्रंथ: आपको यह जान के आश्चर्य होगा कि हिन्दू धर्म ग्रंथों में महिलाओं को पर्दे में रहने का कोई उल्‍लेख नहीं है। यहां तक कि पूजा के समय भी सर पर घूँघट रखना जरूरी नहीं है।

सुरक्षा के कारण: कुछ धर्मो में पर्दा रखना इसलिए जरुरी है, क्योंकि यह माना जाता है कि अगर महिलाएं खुद को पर्दे में रखेंगी तो वे अन्‍य पुरुषों से सुरक्षित रहेंगी। महिलाएं केवल अपने पति या पिता के सामने बेपर्दा हो सकती हैं।

मुस्लिम का आक्रमण: महिलाओं को पर्दे में रखने का रिवाज मुस्लिम शासन के बाद से हुआ है। भारत में राजपूत शासन के दौरान महिलाओं को आक्रमणकारियों के बुरे इरादों से बचाने के लिए उन्हें पर्दा में रखा जाता था। इसका सबसे बड़ा उदहारण हैं चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जिनकी खूबसूरती को देख कर अल उद दीन खिलजी ने उन्हें पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर था। लेकिन रानी पद्मिनी ने जौहर का प्रदर्शन किया और दुश्मन के चंगुल से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया। तब से भारत में महिलाओं को पर्दे में रखने का रिवाज शुरू हो गया।कोई औरत क्या पहनती है इस वजह से किसी का कोई हक नहीं बनता उसके साथ बदतमीजी करने का लेकिन कपड़ा हो या व्यवहार हर चीज में एक बैलेंस जरूरी है। अब एक ऐसा ग्रुप आ गया है जोकि बैलेंस की बात नहीं करता। उन्हें बिलकुल नहीं दिख रहा कि समाज में आया नंगापन आजादी या शशक्तिकरण जैसी बातों से कोसो दूर हैं।
आपके सशक्तिकरण (empowerment) के लिए कपड़ो का महत्व बहुत कम हैं, महत्व इस बात का हैं कि जब कोई आपको दबोचने आता है तो आप कितने जूते मारने की ताकत रखती है !

1. जो औरते कहती है कि उनको कपड़ो की लम्बाई पर जज नहीं किया जा सकता उनसे एक सवाल,”क्या सच में आप अपने पहनावे और लुक्स पर जज नहीं होना चाहती हैं?” अगर नहीं होना चाहती तो अकेले घर पर भी नए कपड़ो में सज-संवर कर बैठी होती आप। चाहे लड़का हो या लड़की सभी अपने कपड़ो और लुक्स पर जज किये जाने का ध्यान रखते हैं,इसीलिए ये सारा आडम्बर इंसान तभी करता नजर आता है जब उसे बाहर लोगों को इम्प्रेस करना हो। ये मेरी भी सच्चाई है और आपकी भी। सॉरी मैं इस बात को नहीं मान सकती की चार इंच की हील और न्यू इयर की ठण्ड में शार्ट ड्रेसेज आपने सुविधा के हिसाब से पहना था। हाँ मैं यह जरूर मानती हूँ कि हर इंसान को खुद को सुंदर दिखाने का हक है, पर कम से कम झूठ मत बोलिये कि आप जज नहीं होना चाहती या चाहते।

2.अब करते हैं नंगे लड़को की बात। जब एक किसान अधनंगा बदन खेत में हल चला रहा होता है तो वह खुद को ऑब्जेक्टीफाइ नहीं कर रहा होता लेकिन जब रणबीर कपूर पर्दे पर नंगा होता है तो उसकी नियत ही खुद को ऑब्जेक्टीफाइ करने की होती है ठीक उसी तरह जैसे तमाम हीरोइनों की होती है। नंगेपन के पीछे भी दो अलग नियत होती हैं। गांव के चापाकल पर नहाती औरतों के नंगेपन को मैं सपोर्ट कर सकती हूँ पर सनी लियोने के नंगेपन को नहीं। आज एक नई पीढ़ी उभरी है जिसको नंगापन आजादी का प्रतीक लगता है पर इस आजादी को लेने से पहले वो बिकनी बॉडी बनाएंगी और फूल-बॉडी वैक्सिंग करवाएंगी और ऐसी सोच वाले लड़के जब तक तोंद को सिक्स पैक एब्स में कन्वर्ट नहीं करेंगे और शीशे की तरह चमकने तक शरीर पर तेल नहीं मलेंगे तब तक बीच पर शर्ट उतारने की हिम्मत नहीं करेंगे।

3.ईमानदारी से बताइयेगा जब आप घर से बाहर निकलती हैं तो लड़के आपको किन कपड़ो में दीखते हैं?
शर्ट-पैंट, कुरता-पजामा आदि जोकि ऊपर से निचे तक ढका होता है।दिल्ली की सड़क पर आपको शायद ही कोई लड़का नजर आएगा जो लड़कियों जितने अंग-प्रदर्शन कर रहा होता हैं।जब मैं सड़क पर निकलती हूँ या किसी क्लब ही जाती हूँ तो वहां मुझे लड़के पुरे कपड़े में मिलते है, पर लड़कियां नहीं। अगर एक पुरे जेंडर की चॉइस आजादी के नाम पर कम कपड़े हैं तो मुझे यह बात थोड़ी कम समझ आती है कि इसके पीछे खुद को ऑब्जेक्टीफाइ करने के अलावा और क्या कारण है।

4. एक तर्क यह आता है कि मैं चेहरा दिखाऊं या स्तन दोनों ही शरीर के अंग है।फिर एक सवाल, कोई opposite gender का इंसान आप से हाथ मिलाये तो वो सही है लेकिन शरीर के कुछ और अंगो को छु दे तो वह गलत क्यू हो जाता हैं?? मान लिया उसने आपकी मर्जी से नहीं छुआ इसीलिये गुस्सा आया तो लीजिये 2nd situation- कोई बिना मर्जी के आपके हाथ छुएगा तो आपको ज्यादा गुस्सा आएगा या आपके प्राइवेट पार्ट पर हाथ डालेगा तो ज्यादा गुस्सा आयेगा?? दोनों ही शरीर के अंग है ना??

आपके साथ होने वाली बदतमीजी में आपके कपड़ो का कोई हाथ नहीं है, लेकिन आज एक पूरी पीढ़ी (मर्द -औरत दोनों)कपड़ो को अपनी पहचान बना रही है, जो गलत है।स्कर्ट वाली के सामने साड़ी वाली को अपने आप पिछड़ी सोच वाली मान लिया जाता हैं और पेंट वाले के सामने धोती वाले को।

पहले बाजारवाद ने अपने फायदे के लिए सिर्फ लड़कियों को टारगेट किया था। आज इसकी चंगुल में लड़के भी हैं जिसका नतीजा है हर साल बढ़ता जाने वाला मेल ब्यूटी इंडस्ट्री। Infact ये बच्चों को भी ऑब्जेक्टीफाइ करने की पूरी कोशिश कर रहे है और यह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हैं।

औरतों आपको यह प्रश्न खुद से पूछना पड़ेगा कि हमें ही आजादी के लिए छोटे कपड़े क्यू चाहिये मर्दों को क्यू नहीं?? फेंक दो उठा कर घूंघट और बुर्का पर उन से निकल कर एक ग्लैमरस जाल में मत फसों जो सिर्फ बाजारवाद का फैलाया हुआ हैं।

नोट- I know यह लिखने के बाद मैं गंवार, बेवकूफ और जाहिल anti-woman नजर आऊँगी कइयों को; but seriously I am not interested in ur modern विचार।

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