Wednesday 23 May 2018

एक ख़त पतिदेव के नाम

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एक ख़त पतिदेव के नाम
समझ नहीं आ रहा आपको पतिदेव कहूँ या नहीं। क्योंकि देव जैसा कुछ मिला नहीं आप में। जब आप से विवाह के बंधन में बंध के आयी थी तो नहीं सोचा था कि कभी ऐसा कोई ख़त लिखूंगी। अब तक जो भी लिखा था, अपने प्यार की चाशनी में डूबा लिखा था। पर आपने मेरे प्यार की कभी कोई कद्र नहीं की। या यूं कह लीजिए कि आपको एहसास ही नहीं हुआ कि इस प्यार की भी एक क़ीमत है |
आप जानते हैं खून के रिश्ते हमें अपने आप बंधन में बांध देते हैं। पर यह शादी के बाद मिले रिश्ते हम कमाते हैं! हैरान हो गए ना आप! कमाते हैं! कैसे? जी, जनाब सिर्फ पैसे नहीं कमाए जाते जो आप आजतक कर रहे हैं। मैंने आपके घर मे आने के बाद अपने प्यार से, सब्र से अपने रिश्ते कमाए। आपके भाई मेरे देवर, आपकी बहनें मेरी ननदें। आपके माता पिता को अपना माना। मुझमें और ख़ुद में फ़र्क देखना चाहते हैं, तो सबूत आपकी अपनी ज़ुबान में है। मैंने आज तक नहीं कहा आपके माता -पिता, आपके भाई-बहन। पर आप इतने वर्षों बाद भी तुम्हारे पापा, तुम्हारी मम्मी, तुम्हारे भाई, तुम्हारी बहन। आपके भाई-बहनों के बच्चों को अपना माना, क्या कभी आपने भी यह प्यार मेरे मायके में जताया। मेरे तो रिश्ते बन गए, खट्टे मीठे ही सही। पर आपका क्या?
मैंने इंसान से शादी की थी। एटीएम मशीन से नहीं! व्यर्थ है मेरे लिए यह रुपये जिनमें मुझे आपका साथ नहीं मिलता। ऐसा नहीं कि आप प्यार की अनुभूति से अनभिज्ञ हैं। आपको भी उतना ही प्यार था, पर खो गया कहीं। भूल नहीं पाती कितना मान दिया था आपने मेरे अस्तित्व को, पर बाद में उसी अस्तित्व को खत्म करने में भी आपकी ही भूमिका रही। बच्चों के जन्म हो या अस्पताल के चक्कर हर जगह का सफर अकेले तय किया। अब आप कहेंगे अकेले क्यों? मम्मी या फिर 'तुम्हारी मम्मी' हमेशा साथ रहे। सच है आपकी बात। पर जीवन में मिला हर रिश्ता धूमिल पड़ जाता है शादी के बाद। मेरे पहले सच्चे मित्र भी अब आप ही थे। जिससे मैं बिना डरे दिल की बात कह दूं वह भी आप ही थे। आपके मन का पता नहीं पर आप मेरे जीवनसाथी हैं तो हर जगह आपको ही तलाश करती हूं। पर नहीं पाती मैं अब उस 'देव' को ना 'पति' को। आपने हर बार मेरे ही विश्वास की धज्जियाँ उड़ाईं।
कहते हैं स्त्री दस बातें बर्दाश्त करती है तो पुरुष एक करता है सही है। मैंने तो सौ बातें बर्दाश्त की पर आपने एक भी नहीं। जब आपने मुझे अपशब्द कहे मैंने बर्दाश्त किया, पर अपना रोष तब भी प्रकट किया कि आप समझ जाएं यह व्यवहार उचित नहीं। किन्तु जब आपने मेरे माता-पिता को अपशब्द कहे, मुझपे नाराज़ होते हुए, अपनी ही गलती को छिपाते हुए तो वह मुझे बर्दाश्त नहीं। वह बेचारे तो वहाँ थे भी नहीं। सच बताइये, अगर मैं आपके माता-,पिता को एक भी अपशब्द तो दूर कुछ गलत बोल दूँ तो आप तलाक़ तक सोच लेंगे। बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। पर किस प्रेम और आदर की उम्मीद करते आप आते हैं रोज़ मेरे सामने? हाँ, पति हो मेरे पर परमेश्वर नही हो अब। आपका दिया ज़ख्म मेरे दिल का नासूर है। मुझे आपके चेहरे में सिर्फ वह व्यक्ति दिखता है अब जिसने मेरी और मेरे माता -पिता की बेइज़्ज़ती की है। नहीं मुस्कुरा पाती अब।
एक छोटा सा शब्द है 'सॉरी', दिया तो अंग्रेजों ने है पर कमाल का है। एक बार दिल से ज़बान पे इक़रार किया होता कि हो गई मुझसे ग़लती अपने गुस्से के आवेश में। आइंदा खयाल रखूंगा। पर कैसे कहें आपका पुरुषार्थ रोकता है न। पौरुष ग़लती के इनकार करने में नही अपनी गलती मानने में है। आपने क्या क्या खोया आप ख़ुद परखें।पर ग़ौर करना, अपने कमाए रिश्ते आज भी दिल से निभा रही हूँ। जानते हैं क्यों? क्योंकि मेरी माँ ने सिखाया था, पति को तो हर औरत अपना मानती है लेकिन रिश्ते वही निभा पाती है जो उसके घरवालों को भी अपना ले। सबसे प्यार करना खूब इज़्ज़त करना पर खुद की भी इज़्ज़त करना, खुद से भी प्यार करना। बस इसलिए अब और एक अपशब्द बर्दाश्त नहीं मुझे। आपको कोई अधिकार नहीं कि आप मेरी या मेरे परिवार का अपमान करें।
यही कारण है , अब अपने मन को आहत नहीं करूंगी। क्योंकि दिल आपको दिया था, जो आप संभाल ना सके। सिर्फ़ पति हो , पति- परमेश्वर नहीं।
आपकी पत्नी

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