Saturday, 17 March 2018

ये भी क्या कम है


ये भी क्या कम है के मासूम ख़्यालात लिये
तुम मेरी जिंदगी में बंदगी का आलम हो..
लोग जिस्मों की कवायद में दर्ज होते है
तुम मेरी चाहतों की सादगी का आलम हो
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राही को रहगुजर में गर आराम नही हो तो
क्या शिकवा करे कोई जब मुकाम नही हो तो
ऐसे ही कोई किस तरह अपना समझके जी ले
दिल से किसी के प्यार का एहतिराम नही हो तो
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राही को रहगुजर में गर आराम नही हो तो
क्या शिकवा करे कोई जब मुकाम नही हो तो
ऐसे ही कोई किस तरह अपना समझके जी ले
दिल से किसी के प्यार का एहतिराम नही हो तो
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खूबसूरत सबब छीन लेता जीने का
गनीमत है जमाने ने तुम्हे मेरी नजर से नही देखा
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बटनों का भरोसा नही होता सूफी
सूई में हमेशा धागा पिरोके रखियेगा..
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शुभरात्रि....
गुजर रहे है रफ्त: रफ्त: हसीं लम्हें
वक्त की रफ्तार से बहुत डर लगता है
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जिंदगी ने तो हम सबको थपथपाया लेकिन
किसने सहलाया जिंदगी को हकीकतन.....?

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फक़त खामोशियाँ ही हाथ मिलाकर गुजर जाती है
आजकल तमाम रिश्ते अपने हालात में तन्हा तन्हा है

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तहरीर मेरे खत की छू लिया करो आँखों से
बगैर तवज्जोह के हर लफ्ज़ यतीम लगता है..
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जिस्म की शोख़ जायदाद का हिस्सा नही हूँ
वक्त ने हमें रूह की वसीयत में लिक्खा है..
हर अक्स में पत्थरों के काबिज निशां होंगे
हर आईने की अंजामे तबीयत में लिक्खा है...


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धुआँ धुआँ है मंजिले मक्सूद
दरमियाने सफर ही सुलगता रहा
जर्द तन्हाईयों की सर्द कफ़ालत में
हसीं यादों का असर ही सुलगता रहा....
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मौत के खाते में जिंदगी जमा है सूफ़ी
और किश्त दर किश्त सांसों की निकासी है..
कोई साया पसर गया है सूरज की ढ़लान पर
शाम के आँगन में फिर रात की उदासी है...
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हवाओं के रहम पर इक वहम की परवरिश है
जर्द पत्तों से शाख़ का रिश्ता क्या है........
ये तो दिल पे लगी है जो आँख भर आती है वरना
इन आँसुओं का आँख से रिश्ता क्या है....
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