नारी जीवन
नारी के जीवन को कविता के माध्म से बताने की छोटी सी कोशिश !
बाबुल तुम बगिया के माली, हम तरुवर के फुल रे
बाबुल तुम बगिया के माली, हम तरुवर के फुल रे
खिलते ही हम पिया संग चले, जाएँ तो लोट न आयें,
आँखों से आँसू निकले तो पीछे बाबुल रोये,
घर की कन्या बगिया का फुल,फिर ना डाली से जुड़े
बाबुल तुम बगिया के माली.......
सुध ना हमको जनम के पहले , अपनी कहाँ थी क्यारी
जब आँख खुली तो, हम थे और गोद थी तुम्हारी
ऐसा था वह संसार हमारा जहाँ शाम भी लगे सवेरा
बाबुल तुम थे विशाल वक्ष, हम कोमल केसर क्यारी रे
बाबुल तुम बगिया के माली.......
दुःख में भी हमने सुख देखा तेरी आचल के छाव मे
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियां रे
बाबुल तुम बगिया के माली.......
बचपन बिता भोलेपन मे पर अब झलके रंग जवानी के
बाबुल ढूढ़ते फिरो तुम हमको,हम ढूंढें अपना सावरिया रे
बाबुल तुम बगिया के माली.......
बदती उमर लोक-लाज से जा टकराई
इज्जत गिरने के डर से, दुनिया डोली ले आई
बाबुल तुम बगिया के माली.....
गूंजी शहनाई तो मन रोया और नयन बहे बाबुल
ओढ़ चुनरी सुहाग की, हाथो मे डाली हथकड़ियां रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
तन का सौदा कर के भी तो , मिला ना मन का मीत रे
रीत निभाई प्रीत की, पर वो ही निकला हरजाई रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
ब्याह नाम की यह लीला करवाई लाखों पर
मांग रखी मंडप पर मन ही मन बाबुल रोये रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
प्यार बताकर पीड मिली तो नीर निकला अंखियाँ से
सखियाँ बिछुड़ी तो प्रीत मिली पिया की रे
बाबुल तुम बगिया के माली....
जब ससुराल पहुंच कर देखा तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों की सी थी हरी भरी क्यारी पर थी वो कांटो की फुलवारी
बाबुल तुम बगिया के माली
दुल्हन बनकर दिया कुलदीपक, दासी बन घर चलाया
माँ बनकर ममता बांटी तो ,झोंपड़िया बनी महल रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
जनम लिया तो जले पिता -माँ ,जब यौवन खिला ननद -भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी
बाबुल तुम बगिया के माली.....
जगत से छुड़ा कर अपने को , माथे बिंदु में बंद किया
कर्तव्यो में बाँधा तन को त्याग -तप से साधा मन को
बाबुल तुम बगिया के माली.....
गर पहले गए पिया जो हमसे तो जग जीने ना दे
अगर हम ही चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे
बाबुल तुम बगिया के माली...
बाबुल ढूढ़ते फिरो तुम हमको,हम ढूंढें अपना सावरिया रे
बाबुल तुम बगिया के माली.......
बदती उमर लोक-लाज से जा टकराई
इज्जत गिरने के डर से, दुनिया डोली ले आई
बाबुल तुम बगिया के माली.....
गूंजी शहनाई तो मन रोया और नयन बहे बाबुल
ओढ़ चुनरी सुहाग की, हाथो मे डाली हथकड़ियां रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
तन का सौदा कर के भी तो , मिला ना मन का मीत रे
रीत निभाई प्रीत की, पर वो ही निकला हरजाई रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
ब्याह नाम की यह लीला करवाई लाखों पर
मांग रखी मंडप पर मन ही मन बाबुल रोये रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
प्यार बताकर पीड मिली तो नीर निकला अंखियाँ से
सखियाँ बिछुड़ी तो प्रीत मिली पिया की रे
बाबुल तुम बगिया के माली....
जब ससुराल पहुंच कर देखा तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों की सी थी हरी भरी क्यारी पर थी वो कांटो की फुलवारी
बाबुल तुम बगिया के माली
दुल्हन बनकर दिया कुलदीपक, दासी बन घर चलाया
माँ बनकर ममता बांटी तो ,झोंपड़िया बनी महल रे
बाबुल तुम बगिया के माली.....
जनम लिया तो जले पिता -माँ ,जब यौवन खिला ननद -भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी
बाबुल तुम बगिया के माली.....
जगत से छुड़ा कर अपने को , माथे बिंदु में बंद किया
कर्तव्यो में बाँधा तन को त्याग -तप से साधा मन को
बाबुल तुम बगिया के माली.....
गर पहले गए पिया जो हमसे तो जग जीने ना दे
अगर हम ही चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे
बाबुल तुम बगिया के माली...
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