Monday, 27 August 2018

मेरे बाद किधर जायेगी तन्हाई



मेरे बाद किधर जायेगी तन्हाई 
मैं जो मरा तो मर जायेगी तन्हाई,
मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा 
उस दिन पार उतर जायेगी तन्हाई,
तन्हाई को घर से रुखसत कर तो दो
सोचो किस के घर जायेगी तन्हाई,
वीराना हूँ आबादी से आया हूँ 
देखेगी तो डर जायेगी तन्हाई,
यूं आओ कि पांव की भी आवाज ना हो 
शोर हुआ तो मर जायेगी तन्हाई .

--------घर बुलाता है-----------

उस पुराने घर में जब भी मैं जाता हूँ ,
यादों के इक भँवर में स्वयं को घिरा पाता हूँ !
दीवारों की उखड़ी ईटों के पीछे से कई चेहरे झाँकते हैं!
कितना बदल गया हूँ मैं, अंचभित हो कर ताकते हैं !
हवा चलती सर्द सी, कोई दरवाजा चरमराता है ,
किसी दरवाजे के पीछे से माँ का चेहरा झाँकता है !
खिड़कियों के मैले और टूटे काँच, कहानी पुरानी सुनाते हैं !
दिखते हैं उनमे यादों के प्रतिबिंब, दिल छलनी कर जाते है !
बरामदे में पड़ी चिर-परिचित कुर्सी में, पिताजी बैठे नजर आते हैं !
बढ़ जाती है उनकी आँखों की चमक, मुझे देख कर मुस्कुराते है,
बुढ़ी टागों की कंपन को वे छिपा लेना चाहते हैं,
बेटा दोषी अनुभव करे, वे भूल के भी नहीं चाहते हैं ,
हाथ बढ़ाता हूँ उन्हें छुने को, तभी हवा सी कुछ चलती 
ले जाती उन्हें उड़ाकर न कुर्सी है न पिताजी !
दिल को चीरने वाली ठिठुरन एकाएक बढ़ जाती ,
सुखे पते फड़फड़ाते, सर्द सी हवायें चलती!
भारी कदमों से मैं पहुँचा हूँ घर के भीतर ,
वो फर्श कभी चमचमाता था, ओढ़े बैठा है मैल की चादर!
छोटे-छोटे भाई-बहन हम ,यहाँ मिल के खेला करते थे ,
नन्ही बातें, नन्हे बटँवारे यहीं बैठ किया करते थे !
माँ-पिताजी के चेहरों पर था रंग भी, रौनक और रोशनी, 
खुशियाँ बसती थी इस घर में, बसती थी तब यहाँ जिदँगी !
बढ़ा कारवाँ, उठे काफिले, जिदँगी आगे बढ़ गई !
घर सुना पीछे रह गया, रौनक भी गुम हो गई !
इस घर से जुड़े सनहरे पल, मैं भूल नहीं पाता हूँ !
रोता है दिल यहाँ आकर, पर खिचाँ चला आता हूँ ।

ना तुम भूले ना हम भूले 
मगर, कुछ याद अब नहीं है.. 
हाथों में हाथ है फिर भी 
मगर, अब वो बात नहीं है..
तुम्हारी याद के आँसू भी 
हम दिखलाये किसको..?
कहने को कई है लोग 

मगर, कोइ साथ अब नहीं है.
.

दुख जितना भी दे, खुशी से पेश आते हैं 
हम तो यूँ ही जिदंगी से पेश आते हैं.. 

चढ़ने लगे खुमार सा हर मुलाकात में, 
वो कुछ ऐसी सादगी से पेश आते हैं.. 

इंसान हो इंसानियत की आस रखो हमसे, 
जो खुदा हो, तो बन्दगी से पेश आते हैं.. 

सब के सब हुए हुस्न-ए-गुलाब पर फिदा,
लो, काँटे तक नाजुकी से पेश आते हैं.. 

जहान के हर सितम पे हम आशिक लोग, 
सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ, आशिकी से पेश आते हैं.. 

सिखाया है हमें ये इश्क ने फन 'जैफ' 
रोते पल भी हम, हंसी से पेश आते हैं.. 

उदास आँखें, खुरदरा चेहरा क्यों भला 
केवल मेरी खुशियों पे पहरा क्यों भला

वर्षों से हो रही है बस आंसू की खेती 
दुःख का बीज इतना गहरा क्यों भला

अतीत, वर्तमान और भविष्य काले हैं 
मुझसे दूर ही रहा सुनहरा क्यों भला 

देने वाला अजीज होता है ज़माने को 
सब लुटाने के बाद अखरा क्यों भला

ऊपर बैठा सुनता है सबकी सदा ‘मधु’ 
मेरी दुआ के वक्त ही बहरा क्यों भला

ठोकरों को न कोस, जमीं को सलाम कर 
फिर से चल पड़, तू तनिक न विश्राम कर

धरती देती है सहारा, हर गिरने वाले को 
पत्थरों से बेपरवाह हो, तू अपना काम कर

फर्श की धुल अर्श पर बन जाती है सितारा 
गिरकर उठने वालों में रोशन जरा नाम कर

अवरोधों पर हावी रहे जीजिविषा सदा तेरी
मनुज अपराजेय है, फिर से ये पैगाम कर 

सांस के रुकते. ही सब थम जाएगा ‘मधु’
जब तक जिन्दा है, तब तक धूमधाम कर


गम-ओ-दुख के ये इशारे तुम ना समझोगे 
जो दिन हम ने तुम बिन गुजारे तुम ना समझोगे

तुम्हें कैसे बताये तुम हमारे वास्ते क्या हो ? 
समंदर की कहानी में किनारे तुम ना समझोगे 

इतना जान लो एक शख्स से हमने मोहब्बत की थी, 
हमारे टूटने का खेल प्यारे तुम ना समझोगे 

हजारों मुश्किलों से खेल कर भी जाने वाले, 
ये आखिर किस जगह पर हारे तुम ना समझोगे

उसके बिना अब चुप-चुप रहना अच्छा लगता है 
खामोशी से दर्द को सहना अच्छा लगता है 

जिस हस्ती की याद में आँसूं बरसते हैं 
सामने उस के कुछ ना कहना अच्छा लगता है 

मिल के उस से बिछड़ ना जाऊं डरता रहता हूँ 
इसलिये बस दूर ही रहना अच्छा लगता है 

जानता हूँ कि चाहत में बस आँसूं मिलते हैं 
कुछ भी हो अब इस जहर को पीना अच्छा लगता है 

जी चाहे सब खुशियां ले कर उस को दे दूँ 
उस के प्यार में सब कुछ खोना अच्छा लगता है




जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई

लोग माज़ी* का भी अन्दाज़ा लगा लेते हैं
मुझको तो याद नहीं कल का भी क़िस्सा कोई

बेसबब* आँख में आँसू नहीं आया करते
आपसे होगा यक़ीनन मेरा रिश्ता कोई

याद आने लगा एक दोस्त का बर्ताव मुझे
टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई

बाद में साथ निभाने की क़सम खा लेना
देख लो जलता हुआ पहले पतंगा कोई

उसको कुछ देर सुना लेता हूँ रूदादे-सफ़र*
राह में जब कभी मिल जाता है अपना कोई

कैसे समझेगा बिछड़ना वो किसी का "राना"
टूटते देखा नहीं जिसने सितारा कोई








आओ! 
खुशियों का कारोबार करते हैं
धकेल के दुखों को दूर
हंसी को मेहमान करते हैं
थोड़ी सी तुम ले के आओ
थोड़ी मुस्कुराहट मैं भी लाता हूँ
बाँट कर इक दूसरे से
खुद को साँझीदार करते हैं.. 
ये कैसी दुनियादारी है कि
जंग बेधड़क हो के और 
हो प्यार डर डर के
आओ! मिटा के नफ़रतें दिल से
मोहब्बतों को सरे-आम करते हैं

'तुम' जानते हो
मुझे क्या पसंद है?
बरसती बारिश
समंदर की लहरें
फुलों की खुश्बू
चाँदनी रातें
अच्छी शायरी
और
और सबसे ज्यादा
इस तहरीर का
पहला लफ्ज़


जाने कितने दर्द को हमने खुद में समाया
तब जा कर जिन्दगी को थोड़ा समझ पाया

आइना दीवार से टंगा बदसूरत सा हो गया
जाने कितनों के चेहरे को उसने था सजाया

फूल अब कभी खिलने की जिद नहीं करते
जिसे तोड़ कर हमने किसी से प्यार जताया

हालात में बहकर जो दरिया अब सुख गया है
उन आंसूओं ने ही तो मुझे हंसना सिखाया 


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं?
तुम कह देना कोई खास नहीं..
एक दोस्त है पक्का कच्चा सा
एक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात से ढका एक पर्दा है
एक बहाना है कोई अच्छा सा.
जीवन का ऐसा साथी है जो,
पास हो कर भी पास नहीं!
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं?
तुम कह देना कोई खास नहीं..
एक साथी जो अनकही सी,
कुछ बातें कह जाता है
यादों में जिसका धुंधला सा
एक ही चेहरा रह जाता है
यूँ तो उसके ना होने का
मुझको कोई ग़म नहीं
पर कभी कभी वो आँखों से, 
आंसू बन के बह जाता है
यूँ रहता तो मेरे ज़हन में है
पर नज़रों को उसकी तलाश नहीं
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं?
तुम कह कोई खास नहीं..
साथ बन कर जो रहता है
वो दर्द बांटता जाता है
भूलना तो चाहूं उसको पर
वो यादों में छा जाता है
अकेला महसूस करूँ कभी जो
सपनों में आ जाता है
मैं साथ खड़ा हूँ सदा तुम्हारे
कह कर साहस दे जाता है
ऐसे ही रहता है साथ मेरे की
उसकी मौजूदगी का आभास नहीं
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई खास नहीं..


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