सात फेरों के सात वचन विस्तार सहित 🏵️
👉जिन जिन का विवाह हो गया है या जिनका होना है वह सभी स्त्री पुरुष इसे अवश्य पढ़े
विवाह को दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन माना गया है। ऋग्वेद में वर वधु विवाह के समय भगवान से एक प्रार्थना करते हैं -
” विश्व के सृजनहार (ब्रह्मा जी), पालनहार (विष्णु जी) व् संहारकर्ता (आदि देव महादेव) अपनी शक्ति से और विवाह मंडप में विराजमान देवता, विद्वान और महान गण अपने शुभ आशीष से हमारी (वर -वधु) आत्माओं और हृदयों का एकीकरण इस प्रकार कर दें जैसे दो नदियों और दो पात्रों का जल परस्पर मिल कर एक हो जाता है । अर्थात जिस प्रकार गंगा और यमुना की पवित्र धाराओं का संगम होने पर विश्व की कोई शक्ति उन्हें अलग नहीं कर सकती , इसी प्रकार हमारी आत्माएं भी परस्पर मिल कर शरीर से पृथक होते हुए भी आत्मा और हृदय से एक हो जायें । “
सप्तपदी को सनातन धर्म में सात जन्मों का बंधन माना गया है । सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है । इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है
(1) हे देवी ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ , सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
(2) हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ । सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें!
(3) हे देवी ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
(4) हे देवी ! तुम आरोग्य शरीर और सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
(5) हे देवी !तुम घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
(6) हे देवी ! तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
(7) हे देवी ! जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
सप्तपदी पूरी होने के बाद कन्या को वर के वाम अंग में आने का निमंत्रण दिया जाता है, लेकिन वामांगी बनने से पहले कन्या भी वर से कुछ वचन लेती है –
तीर्थ , व्रत, उद्यापन . यज्ञ , दान यदि मेरे साथ करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग आऊंगी ।
यदि देवों का हव्य, पितृजनों को कव्य मुझे संग लेकर करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
परिजन , पशुधन का पालन रक्षण भार यदि है आपको स्वीकार तो मैं वाम अंग में आने को तैयार ।
आय
मंदिर , बाग -तड़ाग या कूप का कर निर्माण पूजोगे, यदि तो मुझे वामांगी निज जान ।
देश- विदेश में तुम क्रय विक्रय की जानकारी मुझे भी देते रहोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
सुनो सातवीं शर्त यह , पर नारी का संग ,नहीं करोगे तो आऊंगी, स्वामिन् वाम अंग ।
कन्या के इन सात वचनों के उत्तर में वर कहता है- तुम अपने चित्त को मेरे चित्त के अनूकूल कर लो , मेरे कहे अनुसार चलना और मेरे धन को भोगना पतिव्रता बन कर रहना तो मैं भी तुम्हारे सारे वचन निभाऊंगा तुम गृह स्वामिनी बन कर सारे सुख भोगना । वर एक बार फिर कन्या से पांच वचन लेता है
मेरी आज्ञा के बिना , सोमपान , उद्यान ।
पितृघर या कहीं और , मुझको अपना मान ।।
जाओगी यदि तुम नहीं , बन कर मम अनूकूल ।
पतिव्रता बन न करो , मुझ से कुछ प्रतिकूल ।।
वामांगी तब ही तुम्हे मानूंगा कल्याणी
इसमें ही हित जानना नहीं तो निश्चित हानि ।।