Monday 1 May 2017

जब थक हार कर बैठ जाती है दुनिया,
तब जहां में आती हैं बेटियां,
जब कोई बेटा हौसला खो देता है,
माँ बन जाती हैं बेटियां,
कोई भाई की उम्मीद टूट जाती है,
बहन बन कर हिम्मत बंधाती हैं बेटियां,
जब भी इस मतलबी दुनिया में ठोकर खाता है,
उस पति को पत्नी बन समझाती हैं बेटियां,
जब दोस्त साथ छोड़ दें,जब दुनिया मुँह मोड़ दे
तब हाथ दोस्ती का पहला बढाती हैं बेटियां,
पर कभी सोचता हूँ बैठ कर अकेले तो समझ आता है,
कितने आंसू चुपचाप पी जाती हैं बेटियां,
जब घर किसी और का बसाने एक स्वर्ग और बनाने,
अपना घर बिना ज़िद छोड़ जाती हैं बेटियां,


कुछ अनजान चेहरों को,कुछ नए पहरों को,
बिना शिकायत पल्लू लिए निभाती हैं बेटियां,
जब ईश्वर संसार बढ़ाता है,
जब दुनिया को फैलाता है,
तब उसका हाथ बंटाने,
हर दर्द सह कर भी माँ बन जाती हैं बेटियां,
न जाने किस दुनिया से आती हैं,
न जाने कैसे सबको चाहती हैं,
न जाने कितने रिश्ते,कितने वचन निभाती हैं,
न जाने सब कुछ लूटा कर भी क्यों कुछ नही चाहती हैं,
हर रंग,हर खुशबु,हर पूण्य के पीछे बेटी नज़र आती है--:--

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