
मुझे घमंड था की मेरे चाहने
वाले बहुत है इस दुनिया में,
बाद में पता चला की सब चाहते है
अपनी ज़रूरत के लिए.

झूम जाते हैं शायरी के लफ्ज़ बहार के पत्तों की तरह,
जब शुरू होता है बयां ए हुस्न महबूब का मेरे.

दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे
सदियों तलक जमीं पे तेरी कयामत रहे

गजब का जुल्म ढाया खुदा ने हम दोनों के उपर
मुझे भरपुर इस्क दे कर तुम्हें बेइन्तहा हुस्न दे कर

तुम्हारा हुस्न आराइश.तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की

आइने में वो देख रहे थे बहारे हुस्न आया मेरा ख़्याल तो शर्मा के रह गऐ

ये हुस्न-ए-राज़ मुहब्बत छुपा रहा है कोई है अश्क आँखों में और मुस्कुरा रहा है कोई

कुछ अच्छा होने पे जो इन्सान सबसे पहले याद आता है वो ज़िन्दगी का सबसे कीमती इन्सान होता है

मैंने वो खोया जो मेरा कभी था ही नहीं
लेकिन तुमने वो खोया जो सिर्फ तुम्हारा था
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 10 मार्च 2018 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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